आज हम आपको एक ऐसे एथलीट की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने सैनिकों की तरह कठोर परिश्रम कर भारत के लिए गोल्ड जीता है.
इनकी सुबह 5 किलोमीटर की दौड़ के साथ और रात थकान के साथ नींद से शुरू होती थी. पिता फौजी थे, तो सब कुछ संयमित था. जब यह पांचवी कक्षा में पहुंचे, पिता ने जालंधर के स्पोर्ट्स स्कूल में दाखिल दिला दिया.
शुरुआत में 100 मीटर, 200 मीटर की दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया, लेकिन कुछ कमाल नहीं दिखा पाए. फिर लंबी कूद के प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लिया. यहां भी फ़िसड्डी साबित हुए.
एक दिन स्कूल के कोच ने लंबी कूद की बजाए इन्हें ट्रिपल जंप का सुझाव दिया. फिर क्या, उन्होंने ऐसी जंप लगाई कि 2018 के एशियाड खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत लाए. इसी के साथ इन्होंने 48 साल बाद भारत के लिए गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया.
जी हां! हम बात कर रहे हैं भारत के स्टार ट्रिपल जंपर अरपिंदर सिंह की. इन्होंने तमाम मुश्किल पड़ावों को पार कर एशियन गेम्स में पदक जीता.
ऐसे में जानना दिलचस्प हो जाता है कि अरपिंदर ने किन मुश्किल हालातों में यह मुकाम हासिल किया –
फौजी पिता से मिला शुरूआती प्रशिक्षण
30 दिसंबर 1992 को पंजाब के अमृतसर जिले के हरसा चीना गांव में पैदा हुए अरपिंदर सिंह के पिता जगबीर सिंह भारतीय सेना में हवलदार रहे.
एक सैनिक अपने अनुशासन और समयनिष्ठता के लिए जाना जाता है. रिटायर्ड फ़ौजी जगबीर सिंह अपने बेटे को भी इसी सैन्य अनुशासन के साथ एक एथलीट बनाना चाहते थे. फिर क्या अरपिंदर सिंह को एथलीट बनाने के लिए जगबीर सिंह ने खुद प्रशिक्षण देना शुरू किया.
अरपिंदर को बचपन से ही तड़के सुबह उठाकर 5 किलोमीटर की दौड़ लगवाते. छोटी उम्र में 5 किलोमीटर दौड़ लगाना कोई मामूली बात नहीं है.
अरपिंदर अभी इतने छोटे थे कि सुबह उठते वक्त वह रोने भी लग जाते थे. बहरहाल, फौजी पिता के दिशा-निर्देश में कुछ समय बाद ही उन्हें सुबह उठने और दौड़ने की आदत बन गई.
समय बीता तो आगे की ट्रेनिंग के लिए जगबीर सिंह ने अपने बेटे को जालंधर स्पोर्ट्स स्कूल में दाखिला दिलवा दिया.
कोच ने दिया 'ट्रिपल जंप' का सुझाव
जगबीर सिंह ने पिता होने का पूरा फर्ज निभाया. अरपिंदर की पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी रुचि बनाने में मदद करते रहे. अपने प्रोफेशनल प्रशिक्षण के दौरान अरपिंदर को कोच के रूप में 'डीएस बाल' मिले.
अरपिंदर सिंह 5वीं कक्षा से ही 100 मीटर, 200 मीटर की दौड़ के साथ-साथ लंबी कूद की प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने लगे थे. तमाम प्रैक्टिस के बावजूद भी अरपिंदर इन प्रतिस्पर्धाओं में सफल नहीं हो पा रहे थे.
अरपिंदर पर उनके कोच डीएस पाल की पैनी नजर थी, उन्हें कहीं न कहीं ये ऐहसास हो रहा था कि अरपिंदर इससे ज्यादा तेज नहीं दौड़ सकते. ऐसे में उन्होंने अरपिंदर को 'ट्रिपल जंप' के लिए प्रेरित किया.
ज्यादा समय न गंवाते हुए अरपिंदर ने भी ट्रिपल जंप की प्रैक्टिस शुरू कर दी. जल्द ही ट्रिपल जंप प्रतिस्पर्धाओं में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने लगे.
साल 2014 में लखनऊ में 54वीं राष्ट्रीय अंतरराज्यीय चैंपियनशिप शुरू हुई. अरपिंदर ने यहां वह कमाल कर दिखाया, जिसके लिए वह दिन रात मेहनत कर रहे थे. 17.17 मीटर की जंप लगाकर इन्होंने नेशनल रिकॉर्ड बना दिया.
इस रिकॉर्ड के साथ अरपिंदर ने अपने पिता को ये यकीन दिला दिया था कि उनकी मेहनत को वह बेकार जाने नहीं दे सकते, चाहें उन्हें कितनी ही बार हार का सामना करना पड़े. आखिरकार वह जीतेंगे!
जमीन रखनी पड़ी गिरवी
अरपिंदर के पिता जगबीर सिंह सन 1990 में सेना से रिटायर हुए. भारतीय सेना की ओर से मिलने वाली मासिक पेंशन से घर खर्च तो चल जाता था, लेकिन अरपिंदर की प्रेक्टिस पर खर्च होने वाली रकम काफी ज्यादा थी.
जगबीर सिंह के ऊपर परिवार को संभालने के साथ-साथ अरपिंदर के ऊपर होने वाले खर्च का बोझ बढ़ने लगा था. इसके लिए सेना की पेंशन पर्याप्त नहीं थी.
ऐसे में आर्थिक तंगी से परेशान जगबीर सिंह को मजबूरन 1.5 एकड़ जमीन गिरवी रखनी पड़ी.
इधर, अरपिंदर ने अपनी कड़ी मेहनत जारी रखी. अरपिंदर को किसी तरीके की कोई समस्या ना हो, इसके लिए पिता ने हर संभव प्रयास किया. धीरे-धीरे जगबीर सिंह के ऊपर 5 लाख का कर्जा हो गया.
सन 2014 में स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू हुआ. इन खेलों के लिए अरपिंदर सिंह का भी चयन हुआ.
अरपिंदर के लिए ये इवेंट अब तक का सबसे बड़ा इवेंट था, जिसमें जीत इनके पिता को कई बोझों से मुक्त कर सकती थी. ऐसे में अरपिंदर यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे.
फिर क्या, ट्रिपल जंप में अरपिंदर ने शानदार प्रदर्शन करते हुए देश के लिए कांस्य पदक जीता. जीत के बाद मिली धनराशि से गिरवी रखी जमीन को छुड़वाया गया. साथ ही पिता के ऊपर से 5 लाख के कर्जे को भी उतार दिया गया.
...और छोड़ना पड़ा पंजाब
कॉमनवेल्थ खेलों में पदक जीतने के बाद इधर इनका घर कर्जों से मुक्त हुआ, उधर अरपिंदर के पास अपनी प्रेक्टिस तक के लिए पैसे नहीं बचे.
ऐसे में आर्थिक मदद की उम्मीद के साथ इन्होंने अपना गृह प्रदेश पंजाब छोड़ दिया और पड़ोसी राज्य हरियाणा आ गए. अरपिंदर का सपना देश के लिए गोल्ड जीतने का था. वह अपने पिता की उम्मीदों पर पलीता नहीं लगाना चाहते थे. लिहाजा उनके पास पंजाब छोड़ने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा.
अरपिंदर ने हरियाणा के सोनीपत में आकर रहना शुरू कर दिया. यहां भी अरपिंदर का शानदार प्रदर्शन जारी रहा. हरियाणा की तरफ से साल 2015 के राष्ट्रीय खेलों में अरपिंदर ने गोल्ड मेडल जीता. इतना ही नहीं उन्होंने बेस्ट एथलीट का खिताब भी अपने नाम किया.
अरपिंदर जीतते जा रहे थे, घर की आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी थी.
48 साल बाद पदक लाकर रचा इतिहास
इसके बाद अरपिंदर ने ओलंपिक स्वर्ण पदक के सपने को पूरा करने के लिए लंदन की ओर रुख किया. यहां 10 माह की प्रैक्टिस के बाद भी साल 2016 के ओलंपिक खेलों में इन्हें निराश होकर वापस लौटना पड़ा.
अरपिंदर जल्द ही समझ गए कि लंदन में रहकर उनकी प्रैक्टिस नहीं हो सकती. इसके तुरंत बाद वह भारत वापस आ गए और केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम पहुंच गए.
2018 के गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों में एक बार फिर अरपिंदर को अपना दमखम दिखाने का मौका मिला. चोट लगने के कारण यहां भी वह पदक से चूक गए.
जाकार्ता में हुए एशियन खेलों में इन्होंने 48 साल बाद रिकार्ड 16.77 मीटर की ट्रिपल जंप लगाकर देश के लिए स्वर्ण जीता. इससे पहले ट्रिपल जंप में भारत के लिए सोना 1970 में मोहिंदर सिंह गिल ने जीता था.
अब अरपिंदर सिंह 2020 में जापान के टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में देश के लिए सोना लाने की तैयारी में जुट गए हैं.
कठोर सैन्य अनुशासन में दौड़ से शुरू हुई अरपिंदर की पारी में 2018 का एशियाड एक पड़ाव था. इसमें एशियन खेलों में जीत और अब ओलंपिक में जीत की तैयारी ही अरपिंदर सिंह को बनाती है रोर राइजिंग स्टार.
Web Title: Asian Games 2018 Gold Winner Arpinder Singh, Hindi Article