‘दादी’ यह शब्द सुनकर आपके जेहन में जो तस्वीर कौंधती है. वह कैसी है? यकीनन उसमें लोरिया सुनाती हुई कोई बुजुर्ग महिला होगी या फिर पालने में नन्हें बच्चे को खिलाती हुई ममता की कोई मूरत.
अगर आपके ज़ेहन में सिर्फ इतनी ही तस्वीर बनती है तो जरा ठहरिए!
हम लेकर आये हैं आपके लिए उत्तर प्रदेश के बागपत की एक दादी की कहानी, जिसने इस कहावत से कहीं आगे जाकर खुद को सिद्ध किया है. यह प्रतीक ही नहीं, इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि बुढ़ापे में कोई कुछ नहीं कर सकता. 80 साल से भी ज्यादा की उम्र वाली चंद्रो तोमर ‘शूटर दादी’ और ‘रिवाल्वर दादी‘ (Link in English) के नाम से मशहूर हैं.
बताते चलें कि शूटिंग में इनके नाम 25 से अधिक राष्ट्रीय चैंपियनशिप खिताब दर्ज हैं. वह उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं, फिर भी उनका हौंसला एकदम जवान है. अपने गांव की बेटियों के लिए उन्होंने अपने गांव को ही शूटिंग हब बना दिया है. तो आईये इनके जीवन के कुछ पहलुओं पर नज़र डालने की कोशिश करते हैं:
60 साल तक नहीं था ‘शूटिंग’ से वास्ता
कई सालों पहले चंद्रो तोमर यानी ‘शूटर दादी’ उत्तर प्रदेश स्थित बागपत के जोहरी गांव में रहने वाले एक तोमर परिवार में शादी करके आईं थीं. अन्य गृहणियों की तरह उन्होंने भी खुद को पूरी तरह घर के कामों में झोंक दिया था. रोटी बनाने से लेकर जानवरों की देख-रेख जैसी हर जरुरी जिम्मेदारी का निर्वहन उन्होंने पूरी ईमानदारी से किया. शुरुआती जिंदगी में निशानेबाजी तो दूर उनके पास खुद के लिए तनिक भी समय नहीं था. वक्त का पहिया घूमता गया और वह बहू से मां बन गईं.
मां बनते ही उनपर बच्चों की देखभाल की नई जिम्मेदारियां का बोझ आ गया. इस सब में उनकी उम्र ढलती गई और वह बूढ़ी होती चली गईं. एक-एक करके उन्होंने अपने 6 बच्चों की शादी करके उन्हें गृहस्थ जीवन का तोहफा दिया. समय के इसी चक्र में उन्हें जल्द ही दादी बनने का मौका दिया. हर दादी की तरह उन्हें भी अपने पोते-पोतियों से बहुत प्यार था. चूंकि घर के कामकाज अब बच्चों की पत्नियां संभाल लेती थीं, इसलिए दादी होने का फर्ज निभाने के लिए उनके पास पर्याप्त समय होता था. वह लगभग 60 वर्ष की हो चुकी थीं.
Chandro Tomar: The world’s oldest professional sharpshooter (Pic: sportskeeda.com)
पोती शैफाली ले गई थी शूटिंग प्वाइंट
दादी चंद्रो की पोती शैफाली को निशानेबाजी में दिलचस्पी थी, पर वह अकेले जाने से डरती थी. यह बात उसकी दादी चंद्रो को पता चली तो वह पोती की मदद के लिए आगे आ गईं. उन्होंने शैफाली को हौंसला दिया. साथ ही उससे कहा कि तुम घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. अगले दिन चंद्रो तोमर अपनी पोती शेफाली को खुद जोहरी राइफल क्लब में लेकर गईं. शैफाली अभी भी बहुत डरी हुई थी. उसके हाथ बंदूक को पकड़ने में कांप रहे थे.
यह देखकर दादी ने उसका मनोबल बढ़ाने के लिए खुद बंदूक उठा ली. सब यह देखकर हैरान थे. तभी दादी ने शूटिंग स्टार्ट कर दी. वह इस तरह से निशाना लगा रही थीं, जैसे वह कोई प्रोफेशनल शूटर हों. शैफाली के कोच फारुख पठान (Link in English) दादी की निशानेबाजी से दंग रह गये थे. वह तुरंत दादी के पास पहुंचे और उनसे अनुरोध किया कि वह शूटिंग सीखें. उन्होंने दादी को बताया कि आपकी नज़र और निशाना दोनों लाजवाब हैं. थोड़ी बहुत हां-ना के बाद दादी इसके लिए तैयार हो गईं, लेकिन यह इतना आसान नहीं था.
सारी बेड़ियां तोड़कर आगे बढ़ीं और…
खैर, वह अपनी पोती के साथ शूटिंग के लिए आने लगीं. उनका यह फैसला परिवार और घर के लोगों को रास नहीं आया. उन्होंने दादी पर ताने कसने शुरु कर दिए. कईयों ने तो यहां तक कहा कि बुढ़िया सठिया गई है. तो कईयों ने फौज में भर्ती होने की हिदायत दे डाली. बावजूद इसके दादी रात में सबके सोने के बाद छुप-छुप कर निशाना लगाने की कोशिश करती थीं. असल में उन्हें मजा आने लगा था. नियमित अभ्यास ने जल्द ही दादी को निशानेबाजी का महारथी बना दिया.
वह आसपास के इलाके में मशहूर होने लगी. उन्होंने न सिर्फ प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरु कर दिया था, बल्कि जीतना भी शुरु कर दिया था. नतीजा यह रहा कि उनका गांव उनके नाम से जाने जाना लगा. किसी को जोहरी गांव के बारे में कुछ कहना होता था, तो वह कहते थे, वही जोहरी जहां शूटर दादी रहती हैं. गांव और परिवार के लोग अब अपनी चंद्रों पर गर्व करने लगे थे. उन्होंने खुद को कोसना भी शुरु कर दिया था, क्योंकि उन्होंने कभी चंद्रों पर खूब ताने मारे थे.
Chandro Tomar with His Awards (Pic: patronne.co)
अपने हुनर से जीत लिया ‘जहां’
अपने नियमित अभ्यास के लगभग दो साल बाद उन्हें दिल्ली में आयोजित एक शूटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला. इस प्रतियोगिता में इत्तेफाक से उनका मुकाबला उस समय के दिल्ली के डीआईजी से पड़ा. आप यकीन नहीं करेंगे कि इस मुकाबले में दादी ने डीआईजी साहब को चारों खाने चित्त करके अपनी जीत का डंका बजा दिया था. उनकी यह जीत उनके बढ़ते कदम की दस्तक थे, जो कह रहे थे कि यह तो अभी शुरुआत है. हमें बहुत दूर तलक जाना है. इतनी दूर कि हर कोई सिर्फ यही कहे कि अगले जन्म मुझे बिटिया ही कीजो.
इस जीत के बाद दादी के पैर नहीं रुके. वह लगातार कई सारे प्रतियोगिताओं का हिस्सा बनीं और जीत का परचम लहराती रहीं. उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में लगभग 25 मेडल (link in English) जीतकर रिकॉर्ड कायम किया. वह कोयंबटूर और चेन्नई में सिल्वर मेडल जीत चुकीं हैं. बढ़ती हुई उम्र आज तक उनके रास्ते का रोड़ा नहीं बन सकी.
2009 के आसपास हरियाणा के सोनीपत में हुए चौधरी चरण सिंह मेमोरियल प्रतिभा सम्मान समारोह में उन्हें सोनिया गांधी (Link in English) ने सम्मानित किया था. इसके अलावा हाल ही में उन्हें मेरठ की स्त्री शक्ति सम्मान से नवाजा गया. अपनी प्रतिभा के दम पर ही वह ‘शूटर दादी’ और ‘रिवाल्वर दादी’ की संज्ञाओं से बुलाई जाती हैं.
देती हैं बच्चों को देश के लिए ट्रेनिंग
आज चंद्रो अपने आसपास के इलाकों के अलावा दूर के क्षेत्रों के बच्चों को भी ट्रेनिंग देती हैं. उनके तैयार किए गए बच्चों में से कई आज नेशनल लेवल पर खेल रहे हैं. चंद्रो की बेटी सीमा (Link in English) एक अंतरराष्ट्रीय शूटर है. 2010 में राइफल और पिस्तोल विश्व कप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला थीं. उनकी पोती नीतू सोलंकी एक अंतरराष्ट्रीय शूटर है, जो हंगरी और जर्मनी की शूटिंग प्रतियोगिताओं का हिस्सा रह चुकी हैं.
Chandro Tomar Gives Instruction to Youth (Pic: grindtv.com)
‘शूटर दादी’ चंद्रो में एक बात गौर करने वाली है. उन्होंने निशानेबाजी के जौहर से भले ही ढेर सारी बुलंदियों को छुआ हो, लेकिन आज भी वह उतनी ही सहज और सरल हैं, जितनी पहले थीं. अपने गांव की संस्कृति और पहनावे को उन्होंने खुद से कभी दूर नहीं होने दिया. वह आज भी गांव में रहती हैं. अपने पोते-पोतियों की देखभाल करती हैं. साथ ही जरुरत पड़ने पर घर के कामों में हाथ भी बंटाती हैं. वह युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा हैं, खासतौर पर महिलाओं के लिए, जिन्हें आज भी घर की चारदीवारी से बाहर जाने लायक नहीं समझा जाता है.
Web Title: Chandro Tomar: Who Defeated The Age Factor, Hindi Article
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