यह संघर्षगाथा उस मजदूर की बेटी की है, जो पेशे से धाविका है. इन्हें भी बेहद गरीब परिवार से होने के कारण तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
कई प्रतिस्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतने के बावजूद इन्हें 2017 में लंदन की वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप से बाहर कर दिया गया.
बावजूद, इसके इन्होंने हार नहीं मानी. अपने सम्मान और खेलने के अधिकार के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और उनमें जीतीं भी.
जी हां! हम बात कर रहे हैं केरल की 23 वर्षीय धाविका 'चित्रा उन्नीकृष्णन' की. जो तमाम मुश्किल हालात में भी हताश नहीं हुईं. तमाम चुनौतियों का सामना किया और आखिरकार 2018 के एशियन गेम्स में 1500 मीटर की दौड़ में देश के लिए पदक जीता.
चित्रा के यहां तक पहुंचने का सफर इतना आसान भी नहीं था. ऐसे में आइए उनके सफ़र के पीछे के परिश्रम की कहानी को जानते हैं –
मां-बाप ने खेतों में की मजदूरी
9 जून 1995 को केरल के पलक्कड़ जिले के एक छोटे से गांव 'मुंडूर' में बेहद गरीब परिवार में पैदा हुईं चित्रा का पूरा नाम पलक्किझिल उन्नीकृष्णन चित्रा है. ये चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर की हैं.
खेतों में मजदूरी कर जो आय होती थी, उसी से इनका घर खर्च चलता था. इनके घर में पिता उन्नीकृष्ण और माता वसंत कुमारी दोनों मजदूरी करते थे.
बावजूद इसके चित्रा उन्नीकृष्णन को कभी भी इनके परिवार ने ग़रीबी के कारण नहीं कोसा बल्कि पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद के लिए प्रोत्साहित किया. जब चित्रा का मन पढ़ाई से ज्यादा धाविका बनने में लगा, तो उन्होंने दौड़ना भी शुरू कर दिया.
चित्रा बचपन से ही दुबली-पतली रही हैं. इनमें फुर्ती काफी थी, इस लिहाज से दौड़ इनके लिए उपयुक्त खेल था.
इस कारण इन्होंने सीनियर लड़कों के साथ नंगे पांव ही वार्मअप और प्रैक्टिस शुरू कर दी. ये वो समय था जब चित्रा छठी कक्षा में थीं. इन्होंने अपने कोच के दिशा-निर्देश में जमकर प्रैक्टिस शुरू की और धाविका बनने के लिए निकल पड़ी.
पदकों का लगा दिया अंबार
2009 की बात है. 14 साल की चित्रा इस समय से ही सुर्खियों में आने लगी थीं. इन्होंने केरल में आयोजित 'केरल स्टेट स्कूल एथलेटिक्स मीट' में 3000 मीटर दौड़ में गोल्ड और 1500 मीटर की क्रॉस कंट्री स्पर्धा में सिल्वर जीता.
फिर क्या, यहीं से चित्रा के पैरों ने थमने का नाम ही नहीं लिया. एक के बाद एक रिकॉर्ड बनाया और पदक जीतती गईं.
साल 2011 में 56वें नेशनल स्कूल गेम्स का आयोजन पुणे में हुआ. ये प्रतिस्पर्धा चित्रा उन्नीकृष्णन के करियर की टर्निंग प्वाइंट साबित हुई. इसमें चित्रा ने 5000 मीटर, 3000 मीटर और 1500 मीटर की तीनों स्पर्धाओं में गोल्ड जीता.
इतना ही नहीं, इसी गेम में 3000 मीटर की क्रॉस कंट्री रेस में सिल्वर पदक भी प्राप्त किया. फिर ठीक एक साल बाद 3 गोल्ड और जीते. साल 2013 में उत्तर प्रदेश में आयोजित नेशनल स्कूल गेम्स में भी चित्रा ने चार गोल्ड जीते.
चित्रा ने असली सोना तो तब जीता, जब वह पहली बार एशियन स्कूल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शामिल हुईं और 3000 मीटर की रेस में गोल्ड जीता.
इसके बाद रांची में आयोजित 59वें इंडियन नेशनल गेम्स में इन्होंने 4 गोल्ड जीतकर सनसनी मचा दी.
अब चित्रा अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी जलवा बिखरने के लिए तैयार थीं और भुवनेश्वर में होने वाले एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लेने पहुंच गईं.
मिली ‘क्वीन ऑफ एशिया इन द माइल’ की उपाधि
हर एक धावक की इच्छा होती है कि उसको एक ऐसी उपाधि मिले, जिससे उसे पूरा देश पहचाने. ठीक वैसी ही जैसे धाविका पीटी उषा को उड़नपरी और धावक मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख कहा जाता है.
7 जुलाई 2017 का उमस भरा दिन था. भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में 22वीं एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में महिलाओं की 1500 मीटर दौड़ स्पर्धा फाइनल का आगाज हो चुका था.
1200 मीटर की रेस पूरी हो चुकी थी. स्टेडियम में बैठे सभी लोग यही मानकर चल रहे थे कि चीन या जापान की लड़कियों में से कोई विजेता बनेगा.
उसी रेस में चित्रा भी दौड़ रही थीं, लेकिन उन पर किसी की नज़र नहीं थी. वह इस दौड़ में भारत की दूसरी एथलीट मोनिका चौधरी से भी पीछे चल रही थीं.
तभी अचानक से चित्रा ने अपनी पूरी ताकत बटोरी और चीनी-जापानी लड़कियों से लोहा लेते हुए अपना लेन बदला. देखते ही देखते आखिरी 250-300 मीटर में उन्होंने सबको पछाड़ दिया. जब चित्रा फिनिश लाइन पर पहुंची, तब कोई भी प्रतिद्वंद्वी उनके आसपास तक नहीं था.
यह दृश्य देख सभी अवाक रह गए. किसी को यह उम्मीद भी नहीं था कि महिलाओं की 1500 मीटर दौड़ में एशिया को एक नई चैंपियन मिलने वाली है.
फिर क्या स्टेडियम में मौजूद लोगों ने देखते ही देखते चित्रा को ‘क्वीन ऑफ एशिया इन द माइल’ की उपाधि प्रदान कर दी.
चित्रा ने यह मुकाम 4 मिनट और 17.92 सेकंड में हासिल किया. चित्रा के प्रदर्शन से खुश होकर ओडिशा सरकार ने उन्हें 10 लाख रुपए का नकद पुरस्कार भी प्रदान किया.
जैसे-जैसे चित्रा के पास पदक बढ़ रहे थे, उनके घर के हालात भी सुधरने लगे.
जब चित्रा का करियर उड़ान भरने वाला था, तभी उनके साथ एक ऐसी घटना घटी, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.
वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में नहीं भेजा गया
एक खिलाड़ी का सपना, अंतराष्ट्रीय स्तर के मुकाबले में गोल्ड जीतना होता है. इसके लिए चित्रा भी जी जान से जुटी हुई थीं.
इसी बीच, चित्रा को एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने साल 2017 को लंदन में होने वाली वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप से बाहर कर दिया. ये वो वक्त था, जब चित्रा 2016 के 'साऊथ एशियन गेम्स' और 2017 के 22वीं 'एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप' में स्वर्ण पदक जीत चुकी थीं.
फेडरेशन की इस बदसुलूकी को देखकर चित्रा हतप्रभ जरूर हुईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
वह अपने हक की आवाज के लिए केरल हाईकोर्ट पहुंच गईं. यहां सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट ने पाया कि टीम चयन में पारदर्शिता की कमी रही. जिस पर कोर्ट ने फेडरेशन और केंद्र सरकार को आदेश दिया कि चित्रा को लंदन में होने वाले वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप मीट में भेजा जाए.
बावजूद इसके फेडरेशन ने समय कम होने का बहाना बनाकर चित्रा को वर्ल्ड एथलेटिक्स मीट में नहीं भेजा. फेडरेशन के इस रवैये से चित्रा के और साथी भी एथलेटिक्स मीट में नहीं गए.
फेडरेशन के इस फैसले के खिलाफ इस लड़ाई में चित्रा को लोगों का खूब समर्थन और प्यार मिला.
चित्रा उन्नीकृष्णन को वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में न जाने का मलाल रहा. जल्द ही इससे उबरते हुए उन्होंने अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी.
जिस फेडरेशन ने इस मजदूर बेटी को लंदन जाने से रोका था, वह उन्हें 18वें एशियन गेम्स में जाने से नहीं रोक पाया. इस तरह से 1500 मीटर स्पर्धा में हिस्सा लेने के लिए चित्रा इंडोनेशिया के जकार्ता पहुंच गईं.
फिर क्या, चित्रा उन्नीकृष्णन ने 4 मिनट 12 सेकेंड में इस रेस को पूरा कर भारत के लिए कांस्य पदक जीत लिया.
एक ओर जहां ये पदक चित्रा उन्नीकृष्णन के स्वाभिमान, मेहनत और परिश्रम को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर फेडरेशन को भी इससे थोड़ी शर्म तो आई ही होगी.
Web Title: Chitra Unnikrishnan Bags Bronze in Women's 1500M, Hindi Article
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