भारतीय क्रिकेट की शुरुआत चाहे जैसी भी रही हो, लेकिन आज के दौर में वह विश्व स्तर पर अपना परचम लहरा चुका है. शायद इसलिए ही भारत में अन्य खेलों की तुलना में क्रिकेट को लेकर लोगों में ज्यादा दीवानगी देखने को मिलती है. निश्चित रुप से सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी जैसे नामों की बड़ी भूमिका रही है. इसलिए उनको धन्यवाद तो बनता ही है. आखिर यह नाम ही हैं, जिनसे प्रेरणा लेकर हार्दिक पांड्या जैसा कोई युवा स्टार बनता है.
पर इस कड़ी में टीम के कोच की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. वैसे तो कोच मैदान पर नहीं खेलता, लेकिन वह कोच ही होता है, जिसके कारण टीम को आगे चलने का मार्गदर्शन मिलता है और टीम बढ़िया खेलती है. काश क्रिकेट के सितारों को इसका एहसास होता! काश कि वह समझ पाते कि उनके विवादों के चक्कर में क्रिकेट बदनाम होता है.
दिल की धड़कन बन चुके क्रिकेट को लोग राजनीति से प्रेरित आंकने लगते हैं. यूं तो भारतीय क्रिकेट में गुटबाजी को लेकर काफी समय से खबरें आती रही हैं, किन्तु कोहली-कुंबले के विवाद से यह मामला सतह पर आ गया है. वर्चस्व का खेल अब खतरनाक हो चला है, जो क्रिकेट के चाहने वालों को दर्द देता है. इससे भले ही कुछ हो न हो, किंतु क्रिकेट का एक बदनुमा चेहरा तो उजागर होता ही है.
कोहली-कुंबले के मनमुटाव का सच
कोहली-कुंबले के बीच मनमुटाव आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के पहले बीसीसीआई ने बतौर कोच कुंबले की सफलताओं को नजरअंदाज करते हुए नए कोच के लिए आवेदन मांगे तो खबर सुर्खियों में रही. इसी कड़ी में विराट कोहली ने अपने एक बयान में बीसीसीआई के इस फैसले का समर्थन किया तो कयास लगाये जाने लगे कि टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली और कोच अनिल कुंबले के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
इनके पीछे बड़े कारण भी थे. असल में इस टूर्नामेंट से पहले आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली गई टेस्ट सीरीज में टीम में चाइनामैन कुलदीप यादव को खिलाये जाने पर कोच और कप्तान आमने-सामने दिखे. शुरुआती मैचों में विराट की चली और कुलदीप यादव को जगह नहीं मिली. बाद में एक मैच के दौरान जब विराट चोटिल होकर टीम से बाहर हुए और रहाने को कप्तानी मिली तो कोच कुंबले कुलदीप को इंट्री दिलवाने में सफल रहे. कुलदीप का प्रदर्शन शानदार रहा तो विराट ने सार्वजनिक तौर कुंबले के इस फैसले को बोल्ड करार देते हुए तारीफ की थी.
दूसरा यह सभी जानते हैं कि, कुंबले के चुनाव से पहले बतौर कोच रवि शास्त्री विराट की पहली पसंद थे. उन्होंने उनकी वकालत भी की थी, पर कुंबले के मौजूदा प्रकरण में उन्होंने जिस तरह से बीसीसीआई के रवैये को सिर्फ ‘एक सामान्य प्रक्रिया बताया’ उसके बाद दोनों के बीच विवाद की खबरों का आना लाजमी था.
Controversy Between Virat and Kumble (Pi: easterneye.eu)
कुंबले के इस्तीफे के मायने
आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल मुकाबले में भारत भले ही पाकिस्तान से हार गया हो, लेकिन टूर्नामेंट शानदार रहा. बतौर कोच बात करें तो इसे कुंबले की असफलता नहीं कहा जा सकता. ऊपर से जब से वह कोच बने थे, तब से उनके आंकड़े शानदार रहे थे. इसके साथ ही कुंबले की इंट्री सीधे साक्षात्कार राउंड में है और जिस कमेटी को कोच का चयन करना है, उसमें सचिन तेंडुलकर, गांगुली व वीवीएस लक्ष्मण मौजूद हैं, जोकि उनके दोस्त बताये जाते हैं. इस लिहाज से माना जा रहा था कि उन्हें दोबारा से टीम की कमान मिल सकती थी.
पर कप्तान विराट को सम्भवतः कुंबले नहीं चाहिए थे, इसलिए सलाहकार समिति के बीच हुई बैठक में उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि कोच के साथ उनका रिश्ता लगभग खत्म हो गया है. इस मामले में कुंबले से बात की गई तो कुंबले ने कहा कि, उन्हें विराट से कोई समस्या नहीं है. समिति ने दोनों को एक साथ बैठाकर इस मामले को खत्म करने की कोशिश भी की, लेकिन विराट नहीं माने.
ऐसे में कुंबले के लिए पद पर बरकरार रहना बेहद मुश्किल हो गया था और उन्होंने तत्काल प्रभाव से त्यागपत्र दे दिया. वह वेस्टइंडीज दौरे पर भी टीम इंडिया के साथ नहीं गए. ऐसे में सवाल उठने लाजमी हैं कि आखिर विराट को बतौर कोच कुंबले क्यों नहीं चाहिए? क्या विराट को उनके अनुशासन को लेकर समस्या थी? या फिर विराट अपनी पंसद का कोच चाहते हैं? इन सवालों के जवाब आने अभी बाकी हैं.
Ravi Shatri with Virat (Pic: timesnation.com)
क्या गांगुली की राह पर निकल पड़े हैं विराट?
आक्रमकता की बात की जाए तो विराट गांगुली से कतई पीछे नहीं दिखते. कई बार तो वह उनसे कई कदम आगे ही दिखते हैं. दादा के वर्चस्व के बारे में तो किसी से छुपा हुआ नहीं है. सभी जानते हैं कि 2007 के आसपास जब जान राइट का बतौर कोच कार्यकाल खत्म हुआ तो विराट की ही तरह दादा भी अपनी पंसद का कोच टीम के लिए चाहते थे, जो उनकी सुन सके. उनके हर फैसले में हां में हां मिला सके.
इसी कड़ी में वह ग्रैग चैपल को कोच बनवाने में सफल भी हुए थे. वह बात और है कि उनका यह प्रयोग उन्हें ही भारी पड़ा और चैपल ने उनके साथ-साथ पूरी टीम का बेड़ा गर्क कर दिया. विवाद गहराया तो पहले गांगुली और बाद में चैपल की टीम से विदाई हो गई. बिल्कुल उसी तरह खबर है कि रवि शास्त्री विराट की बेस्ट च्वाइस हैं. खैर, देखना अभी बाकी है कि उनकी पसंद पर मुहर लगती है या नहीं.
मौके पर बीसीसीआई ने लगाया चौका
बीसीसीआई का नियमों को दरकिनार करते हुए एक बार फिर से कोच पद के लिए आवेदन मांगना और रवि शास्त्री का आवेदन करना किसी कहानी की पटकथा सा लगता है. इस पूरी प्रक्रिया ने रवि शास्त्री के कद को बड़ा किया है. चूंकि रवि शास्त्री की इंट्री विशेष परिस्थतियों में हुई है इसलिए गांगुली, सचिन और लक्ष्मण वाली क्रिकेट एडवाइजरी को शास्त्री के नाम खास आकर्षण देना ही होगा.
यह कहना गलत नहीं होगा कि विराट ने कुंबले से असंतोष जाहिर करके बीसीसीआई का काम आसान कर दिया. बताते चलें कि वह कुंबले से खुश नहीं थे. उनके नाखुश होने का कारण कुंबले का प्रदर्शन नहीं था. बल्कि, इसके पीछे खिलाड़ियों के केंद्रीय अनुबंध और अपने वेतन में इजाफे के लिये उनका आक्रामक रवैया था.
ऐसे में मिले इस मौके में उसने रवि शास्त्री को इंट्री दिलाकर कुंबले का चैप्टर क्लोज कर दिया. अब चूंकि, कप्तान विराट ने ही मना कर दिया है, तो कोच चयन समिति में होने के बावजूद गांगुली, सचिन और लक्ष्मण भी कुंबले के लिए कुछ नहीं कर सकते.
BCCI (Pic: Ndtv.com)
अगर कोच बनते हैं शास्त्री तो…
शास्त्री के कार्यकाल में भारत ने तीन सीरीज जीती थी. साथ ही एकदिवसीय विश्व कप के सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही थी. इस लिहाज से आप कह सकते हैं कि वह कोच के लिए कप्तान और टीम की पंसद होंगे. पर वजह कुछ और है. गौर करें तो आप पायेंगे कि शास्त्री पूरी तरह से कुंबले से अलग हैं.
वह खिलाड़ियों को हर तरह की आजादी देने के पक्षधर रहे हैं. शायद यही वजह है कि वह शास्त्री के साथ मजबूती से खड़े दिखते रहे हैं. ऐसे में दो राय नहीं कि इस बार जब बीसीसीआई की तरफ से कोच के लिए किसी का नाम लिया जाये तो उसमें रवि शास्त्री का नाम हो.
अब सवाल यह है कि रवि शास्त्री अगर कोच बनते है तो भारतीय टीम का भविष्य क्या होगा? आंकड़ें तो कहते हैं कि विराट और शास्त्री की जुगलबंदी शानदार रहेगी. पर एक बात है जो परेशान करती है वह है विराट की आक्रमकता. बताते चलें कि विराट हमेशा अपनी आक्रमकता के कारण विवादों में रहे हैं. अब अगर कोच भी आक्रामक मिलता है तो इसको नियंत्रित करना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी.
दूसरा टीम में महेंद्र सिंह धोनी और रहाने जैसे कई खिलाड़ी मौजूद हैं, जो हमेशा शांति और अनुशासन के पक्षधर रहे हैं. उन्हें भी आक्रामक शैली को अपनाने में समस्या हो सकती है. यह भी देखना दिलचस्प होगा कि सहवाग इस पर कैसे प्रतिक्रया करते हैं. शायद विराट ने ही उन्हें आवेदन करने के लिए कहा था. वह इस रेस में आगे भी माने जा रहे थे, लेकिन शास्त्री की इंट्री ने गेम बदल दिया है.
Shastri with Dhoni (Pic: postimg.org)
उम्मीद तो यही है कि ‘चैपल’ जैसा दौर भारतीय क्रिकेट को दोबारा देखने को नहीं मिलेगा और टीम नई बुलंदियों पर पहुंचेगी. एक बात और इसमें कोई दो राय नहीं कि कोच वही होगा जो विराट को चाहिए होगा और उन्हें क्या चाहिए, वह कुबंले को नकार कर जग जाहिर कर चुके हैं.
Web Title: Controversy Between Virat and Kumble, Hindi Article
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