यूं तो दुनिया में ढ़ेर सारे खेलों का बोलबाला है, लेकिन सूमो पहलवानी की बात ही कुछ और है. यह जापान का राष्ट्रीय खेल है. इस खेल के लिए कठिन ट्रेनिंग करनी पड़ती है, जिस कारण जापानी अपने इस पारंपरिक खेल से दूर होते जा रहे हैं. बताते चलें कि सूमो फाइटर बनने के लिए महज छह साल की उम्र से खिलाड़ियों को खुद को इस खेल के लिए सौंप देना पड़ता है. सिर्फ इतना ही नहीं अपने खान-पान इत्यादि में भी काफी परिवर्तन करने पड़ते हैं. तो आईये इस खेल से जुड़े ऐसे ही कुछ दिलचस्प पहलुओं को जानने की कोशिश करते हैं:
सदियों पुरानी परंपरा से रिश्ता
जापान में सूमो फाइट की परंपरा बहुत पुरानी है. माना जाता है कि यह लगभग 1500 साल पुरानी (Link in English) है. इस परंपरा के हिसाब से पहले जापान में वसंत के आने पर यासुकुनी नामक मठ में चेरी तोड़ी जाती है. इसके बाद में सूमो फाइट का आयोजन किया जाता है. इस मौके पर सूमो पहलवान रीति-रिवाज को बहुत तवज्जो देते हैं. फाइट से ठीक पहले इस लड़ाई में भाग लेने वाले पहलवान अलग किस्म की रीत अपनाते हैं. वह लड़ाई शुरु होने से पहले हवा में नमक उछालते हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से उनका अखाड़ा शुद्ध हो जाता है.
बताते चलें कि इस परंपरा का जापान में तो खूब चलन है, लेकिन चीन और कोरिया जैसे देश इसे बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं. असल में यासुकुनी में द्वितीय विश्वयुद्ध के उन जापानी योद्धाओं के स्मारक बने हुए हैं, जिन्होंंने चीन और कोरिया के सैनिकों का सर्वनाश कर दिया था.
Facts of Sumo Wrestlers Life History (Pic: pinterest.com)
ग्लैमर से दूर होती है जिंदगी
कहने के लिए तो यह सूमो पहलवान जापान के स्टार से कम नहीं होते, लेकिन इनकी असल जिंदगी की बात की जाये तो ग्लैमर (Link in English) से इनका दूर-दूर का वास्ता नहीं होता. यह तो बौद्ध भिक्षुओं जैसे होते हैं. यह खुद को पूरी तरह से पहलवानी को समर्पित कर देते हैं. यह लोग समाज से दूर रहकर गुजर-बसर करते हैं, ताकि किसी भी कारण से इनका ध्यान अपने लक्ष्य से न भटक सके. वह अपने जीवन को अस्तबल में बंधे हुए उन घोड़ों की तरह बना लेते हैं, जिनका सिर्फ एक लक्ष्य होता है, किसी भी कीमत पर दौड़ को जीतना.
जापान में सूमो पहलवानों के लिए एक खास किस्म की जगह मौजूद है, जिसे ‘हेया’ कहा जाता है. यहां सूमो पहलवानों की जरुरत का सारा सामान मौजूद होता है. यहां रहकर पहलवान अपना अभ्यास करते हैं. साथ ही वह यहां के सभी नियम-कानूनों का कड़ाई से पालन करते हैं.
कड़े होते हैं ‘नियम’
जापान में सूमो पहलवानों के लिए एक खास किस्म का एसोसिएशन बनाया गया है. इस एसोसिएशन ने ढ़ेर सारे नियम बनाए हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है. फिर चाहे वह रिंग में फाइट को लेकर हो या फिर आम जिंदगी में सूमो पहलवानों के जीने के तौर-तरीकों की बात हो. सभी के लिए खास किस्म के नियमों को बनाया गया है. खास बात तो यह है कि हर पहलवान को इन नियमों के अनुसार ही चलना पड़ता है. चूंकि, पहलवानों के बाल रखने के तरीके, कपड़े आदि का चयन एसोसिएशन के हिसाब से होता है, इसलिए कुछ लोग इसे एसोसिएशन की तानाशाही करार देते हैं.
खैर, संघ द्वारा बनाए किसी भी नियम को तोड़ना पहलवान के लिए महंगा साबित होता है. नियमों को तोड़ने के लिए पहलवानों को जुर्माना देना पड़ता है. ज्यादा गंभीर मामले में निलंबन का भी प्रावधान किया गया है.
Practice Wrestlers (Pic: slate.com)
घंटों होती है सख्त ट्रेंनिग
सूमो पहलवानों का शरीर विशालकाय होता है. इस लिहाज से उनके लिए रिंग के अंदर लड़ना आसान नहीं होता. मुकाबला जीतने के लिए उनके अंदर वजन, फुर्ती और ताकत का अनूठा संगम जरुरी होता है. किसी एक में भी कमी होने पर वह मुकाबले को नहीं जीत सकते. इसके लिए उन्हें घंटों (Link in English) सख्त ट्रेनिंग के दौर से गुजरना पड़ता है. घंटों उन्हें अखाड़े में अपना पसीना बहाना पड़ता है. उन्हें हर उस परीक्षण से गुजरना पड़ता है, जिसकी मदद से वह अपने मोटे शरीर को चट्टान जैसा बना सकें.
पहलवानों को डाइट चार्ट और कसरत के शेड्यूल के हिसाब से चलना पड़ता है. कोई भी चीज वह अपने मन मुताबिक खा-पी नहीं सकते. उनके खान-पान पर पैनी नज़र रखी जाती है. उन्हें एक निश्चित समय और मात्रा में ही भोजन दिया जाता है. कौन सा पहलवान क्या और कितना खाएगा, इस बात का खास ध्यान रखा जाता है. इसके लिए एक खास व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है.
पहनावे पर प्रतिबंध
सूमो पहलवानों के पहनावे के लिए भी खास किस्म का नियम है. इसके तहत यह लोग जब भी आम लोगों के बीच जाते हैं, तो इन्हें जापानी ट्रेडीशनल कपड़े पहनने होते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि इनकी पहचान आसानी से की जा सके. अखाड़े के अंदर इनको इनकी वरीयता के हिसाब से कपड़े पहनने को दिए जाते हैं.
यहां सीनियर सूमो पहलवान और जूनियर सूमो पहलवान को अलग-अलग श्रेणी में रखा जाता है. इसी के हिसाब से इनको अलग-अलग कामों की जिम्मेदारी भी दी जाती है. बताते चलें कि जहां इनको रखा जाता है, वहां के सारे काम जैसे साफ-सफाई, भोजन बनाना आदि यह लोग आपस में मिल-जुल कर करते हैं. इससे इन लोगों में आपसी प्रेम भी बढ़ता है और यह खुद को ज्यादा तरोताजा रख पाते हैं. सीनियर-जूनियर मिलकर काम करते हैं. इससे जूनियर्स के मन में हीन भावना का संचार भी नहीं होता. फलस्वरुप अखाड़े का माहौल हमेशा स्वस्थ रहता है.
Facts of Sumo Wrestlers Life (Pic: japantoday.com)
यही कारण है कि बदलते दौर के बावजूद सूमो फाइटिंग आज भी जापान का नंबर एक खेल बना हुआ है. जबकि, दूसरे नंबर पर बेसबॉल और तीसरे पायदान पर फुटबॉल का स्थान आता है.
सूमो पहलवान इस खेल के लिए जिस तरह से खुद को समर्पित कर देते हैं वह आसान नहीं होता. डायबटीज जैसी बीमारियों के खतरे के बावजूद जिस तरह से यह लोग सूमो पहलवानी को चुनते हैं और अपने देश के लिए खेलते हैं, वह काबिले तारीफ है.
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