भारत में क्रिकेट को लेकर लोगों के अंदर बढ़ती दीवानगी किसी से छिपी हुई नहीं है. यह क्रिकेट का जूनून ही तो है कि, जब इसको पसंद करने वाले इस खेल को खेलते हैं, या देखते हैं तो उन्हें दुनिया के दूसरे रंग बेरंग नज़र आने लगते हैं.
अक्सर देखा गया कि इसी जूनून के कारण हमारे पंसदीदा खिलाड़ी मैदान पर चोटिल तक हो जाते हैं. कई बार उनकी चोटे आम होती हैं, तो कई बार उनकी चोटे इतनी गंभीर भी होती है. इतनी गंभीर कि उनके आगे के करियर पर प्रश्नचिन्ह तक लग जाता है!
किन्तु, क्या आप जानते हैं कि भारतीय क्रिकेट में एक ऐसा भी खिलाड़िया हुआ, जो फिटनेस के मामले में आज भी क्रिकेट से जुड़े खिलाड़ियों के लिए एक सबक माना जाता है. यह खिलाड़ी कोई और नहीं भारत के पहले टेस्ट कप्तान सी. के. नायडू थे.
चूंकि, उन्होंने उस उम्र में खेलना शुरु किया जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट ले लेते हैं, इसलिए उन्हें जानना दिलचस्प होगा-
साल 1926 उनके लिए बहार लेकर
31 अक्टूबर 1895 को नागपुर, महाराष्ट्र में सी. के. नायडू का जन्म लिया. उनके दादा पेश से वकील थे. साथ ही अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में सक्रिय भी रहे. इस लिहाज से घर की स्थिति अच्छी खासी थी. ऐसे में उनका बचपन अच्छे से बीता.
फिर जैसे-जैसे वक्त बीता वैसे-वैसे उनकी उम्र बढ़ी. इसी के साथ आंखें कई सारे सपने भी बुनती चलीं गई.
इन्हीं सपनों में एक था क्रिकेट स्टार बनना. पहली सीढ़ी के रूप में उन्हें हिसलोप कॉलेजिएट हाई की क्रिकेट टीम के लिए चुना गया था, जहां उन्होंने लोगों को खासा प्रभावित किया. सिलसिला आगे बढ़ा, तो 1916 में उन्हें बॉम्बे में एक त्रिकोणीय श्रृंखला खेलने को मिली.
वहां भी बल्ला चला तो कारवां आगे बढ़ा...हालांकि, इसके बाद उनका वक्त थोड़ा थम सा गया. एक पल के लिए लगा शायद ही वह क्रिकेट में आगे बढ़ पाएंगे. इसी बीच साल 1926 बहार लेकर आया. यह उनके जीवन का गोल्डन एरा बना.
असल में हिन्दू’ टीम और एम.सी.सी. के बीच खेले जा रहे एक मैच के दौरान उन्होंने 187 गेंदों पर 153 रन जड़कर सपना ध्यान अपनी तरफ खींचा था. इसमें इनके 11 छक्के तथा 13 चौके शामिल थे. इस प्रदर्शन के लिए उन्हें उन्हें चांदी का बल्ला भी भेंट किया गया था.
1932 में भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम की कमान
1932 में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए कप्तान चुने गए थे. उनके लिए इससे भी बड़ी बात यह थी कि उनके हाथों में भारत के प्रथम टेस्ट मैच की कमान सौपी गई थी. सी. के. नायडू की अगुवाई में खेला गया यह मैच इंग्लैंड के विरुद्ध खेला गया था.
बताते चले कि उस समय इंग्लैंड की टीम बहुत मजबूत हुआ करती थी. बावजूद इसके भारतीय टीम ने उसे कड़ी टक्कर दी. इस मैच में सी. के. नायडू के हाथ में फील्डिंग के दौरान फील्डिंग के दौरान दर्दनाक चोट लग गई थी. वह खेलने की स्थिति में नहीं थे, फिर उन्होंने बल्लेबाजी की और पहली पारी में 40 रन बनाए. इसके लिए उनकी खूब सराहना की गई थी. इस इंग्लैंड दौरे के दौरान वह प्रथम श्रेणी के सभी 26 मैचों में हिस्सा बने.
आकड़ों की बात करें तो इन मैचों में उन्होंने 40.45 की औसत से 1618 रन बनाए और 65 विकेट लिए. दिलचस्प बात तो यह थी कि उस दौर में उन्होंने 32 छक्के लगाए थे. उनका एक छक्का खासा मशहूर है, जो उन्होंने इंग्लैण्ड के एजबेस्टन में मैच खेलते हुए मारा था.
यह छक्का कितना बड़ा आथ, इसको इसी से समझा जा सकता है कि गेंद मैदान के बाहर रिया नदी के पार जाकर गिरी थी. वही रिया नदी, जो वारविकशायर और वार्सेस्टरशायर काउंटी के बीच सीमा बनाती है.
इसका परिणाम यह रहा कि उन्हें 1933 में विज़डन द्वारा ‘क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर’ चुना गया.
बहुत छोटा रहा अंतर्राष्ट्रीय कैरियर, मगर...
दिलचस्प बात तो यह है कि 37 साल की उम्र में जब खिलाड़ी रिटायर होने लगते हैं, तब इन्होंने टेस्ट मैंच खेलना शुरू किया था और 68 की उम्र तक फिट रहकर क्रिकेट खेलते रहे. सी. के. नायडू ने अपने क्रिकेट करियर में मात्र 7 टैस्ट मैच खेले.
अपने बल्ले की धमक दिखाते हुए उन्होंने इन 7 मैचों की 14 पारियों में 25 की औसत से कुल 350 रन बनाए. इसमें दो अर्धशतक शामिल थे. वहीं गेंदबाजी की बात करें, तो 7 मैचों की 10 पारियों में 2.7 की इकॉनमी से कुल 9 विकेट चटकाएं.
वहीं प्रथम श्रेणी मैचों की बात की जाए तो उन्होंने 207 मैचों में 35.9 4 के औसत से 11,825 रन बनाए. इसमें 26 शतक व 58 अर्धशतक शामिल हैं. इस फॉर्मेट में उन्होंने गेंदबाजी करते हुए 411 विकेट अपने नाम किए.
15 अगस्त 1936 को उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला था. इस तरह उनका करियर बहुत छोटा रहा. बावजूद इसके भारतीय क्रिकेट जगत में उन्होंने अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया.
क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद 1941 में वह बाथगेट लिवर टोनिक के ब्रांड एंबेडसर के रूप में देखे गए. बताते चलें कि ऐसा करने वाले वह पहले खिलाड़ी थे. आगे 1956 में उन्हें भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ प्रदान किया गया, जो भारत का तीसरा बड़ा राष्ट्रीय पुरस्कार है.
भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाईयां दिलाने वाला यह सितारा अंतत: 14 नवम्बर, 1967 को हमेशा के लिए अलविदा कह गया.
वह भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपने छोटे से करियर में बिना चोटिल हुए क्रिकेट में अपना अहम योगदान दिया. साथ ही उम्र की बधाओं को तोड़ते हुए एक नया कीर्तिमान गढ़ा. उसके लिए वह हमेशा याद किए जाएगें!
क्यों सही कहा ना?
Web title: India's first Test captain CK Nayudu, Hindi Article
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