चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में टीम इंडिया पहुँच चुकी है और यह फाइनल चूंकि भारत-पाकिस्तान के बीच है, तो पूरा देश क्रिकेट के बुखार से तप रहा है. लीग मैच में भारत-पाकिस्तान का मैच न होने देने और फिर न देखने की वकालत करने वालों का स्वर समाप्तप्राय दिख रहा है.
गौर करने वाली बात यह है कि इस तरह की घोषणा करने वाले केवल सोशल मीडिया के शूरवीर ही नहीं थे, बल्कि मेनस्ट्रीम मीडिया के लोग भी थे. खैर, फाइनल में उनके स्वर पर फाइनली लगाम उन्होंने खुद ही लगा ली है.
आखिर, क्रिकेट को भारतीय उपमहाद्वीप में यूं ही धर्म का दर्जा हासिल नहीं है. दोनों देशों में विरोध के स्वर को न केवल शांत करने की क़ाबिलियत, बल्कि विरोध को बढ़ाने घटाने तक की क्षमता इस खेल ने बार-बार दिखलाई है. भारत-पाकिस्तान के सम्बन्ध बेहद पेचीदा हैं.
न… न… इस वाक्य का सरलीकरण नहीं कीजिये आप. अब देखिये, एक तरफ देश के आम-ओ-ख़ास तक इस क्रिकेटीय बुखार में तप रहे हैं, किन्तु इस ‘तपन’ पर कलम नहीं चल रही है, कोई ख़ास बयानबाजी भी नहीं हो रही है. लाइव स्कोर से आगे कोई बात करने को तैयार नहीं है, जबकि दिमाग में सभी के इससे आगे और पीछे की तमाम बातें हैं.
यह कुछ कुछ ऐसा है जैसे किसी व्यक्ति को 102 डिग्री बुखार हो, किन्तु पूछने पर वह अपनी स्थिति जाहिर करने से बचना चाहता हो!
नहीं, नहीं… मैं ठीक हूँ… जैसी कोई बात उसके मुंह से निकलती हो.
इस बीच कुछ सेलिब्रिटीज ने ‘मसखरेपन’ में ही सही, बाप-बेटे… पाकिस्तानी आतंकवाद, फिक्सिंग, पैसे इत्यादि का मुद्दा उठाया है, जिसकी तह में जाने की छिछली ही सही, कोशिश करनी चाहिए.
मसखरेपन से आगे…
पूर्व क्रिकेटर से आगे बढ़कर चर्चित ट्विटरबाज बन चुके वीरेंदर सहवाग ने भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर चुटकी लेते हुए उन्हें बाप, बेटा और पोता बता डाला.
अभिनेता ऋषि कपूर ने भी कई ट्वीट्स के बाद एक ट्वीट में लिखा कि ‘पाकिस्तान जीत बेशक जाए, किन्तु वह अपनी ‘आतंकवाद-पॉलिसी’ जरूर छोड़ दे.’
शोएब अख्तर और वीरेंदर सहवाग के बीच एक बातचीत में पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड की गरीबी की बात भी उठी.
इन तीनों के अलावा भी तमाम ट्विटर यूजर्स अपनी अपनी सलाहें दे रहे हैं, किन्तु मेन-स्ट्रीम मीडिया चुप है. डिबेट्स भी कोर-क्रिकेट पर वह भी नपी-तुली… मतलब भारत-पाकिस्तान का पेचीदा रिश्ता ‘मसखरेपन’ तक सीमित रह जाएगा?
नयी पीढ़ियों को ‘मसखरेपन’ से हम क्या कुछ बता सकेंगे?
वैसे सच भी है, अगर गंभीरता से कार्य न हो रहा हो तो शायद इसी अंदाज़ से कुछ काम निकल आये.
इस बीच पाकिस्तान के पूर्व कप्तान आमिर सोहैल ने एक राग छेड़ा कि “वनडे टीम के कप्तान सरफराज अहमद और उनके लड़कों को फाइनल में पहुंचने पर ज्यादा खुशी नहीं मनाना चाहिए, क्योंकि वे वहां अपनी परफॉर्मेंस की वजह से नहीं बल्कि ‘बाहरी कारणों’ से पहुंचे हैं.” न… न… सोहैल के बयान में मसखरेपन की गुंजाइश मत ढूंढिए, क्योंकि इसमें सच भी हो सकता है. हाँ! पाकिस्तानी टीम को इतने बेहतर ढंग से समझने की उनकी क्षमता की दाद जरूर दीजिये.
भारत-पाकिस्तान की पेचीदगी भरे रिश्तों पर मीडिया की चुप्पी से कम से कम उनकी इस अंटकल को ज्यादा तवज्जो तो दी ही जा सकती है. आखिर, किसी की दवाई तो लेगी ही पब्लिक… क्रिकेटीय बुखार जो है. वो बेशक मीडिया की चुप्पी वाला मसखरापन ही क्यों न हो!
पाकिस्तान की समस्याएं
होने वाले क्रिकेट फाइनल के बीच यह टॉपिक बेवजह है, पर कहते हैं न कि ‘कलम’ भेद नहीं करती!
पिछले दिनों क़तर और सऊदी अरब का विवाद पूरी दुनिया में छाया रहा. क्या अख़बार, क्या टेलीविजन और क्या डिजिटल मीडिया. सभी रंगे रहे. इस्लामी देशों के बीच इस विवाद से पाकिस्तान ख़ासा परेशान हुआ और दोनों देशों के बीच मेल-मिलाप कराने की कोशिश में जुट गया. अब आप इसे मसखरापन मत समझियेगा कि जिसे अपने विवाद का अता पता न हो, वह दूसरों के…
खैर, उसकी इन कोशिशों के बीच सऊदी सुलतान ने कथित तौर पर पाकिस्तान से सीधा पूछ लिया कि ‘वह किसके साथ है’? तब तक एक और ख़बर आयी कि प्रिंस सुलेमान ने एक विवादस्पद बयान में पाकिस्तान को ‘अरब का गुलाम‘ कह डाला. इसके अनुसार ‘सही मायने में मोहम्मद साहब के असली वंशज उन्हीं के देशवासी हैं’, जबकि वह पाकिस्तान को इस्लामी देश ही नहीं मानते हैं.
अब आप कहेंगे कि इस ख़बर का चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल और पाकिस्तान की समस्याओं से क्या सम्बन्ध है तो ज़रा ठहरिये.
एक दूसरी ख़बर पर नज़र डालिये.
पिछले दिनों शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में जिस तरह पाकिस्तान के तथाकथित ‘सर्वेसर्वा’ मददगार चीन के प्रेजिडेंट ने नवाज़ शरीफ को अनदेखा किया, उसने पाकिस्तानी मीडिया और हुक्मरानों में खलबली मचा डाली. जबकि, पाकिस्तानी राजनीतिक अर्थशास्त्री एस. जैदी ने पहले ही बयान दे डाला है कि ‘सीपेक से पाकिस्तान चीनी उपनिवेश बन जायेगा’.
वो पिछले दिनों ट्रम्प के मिडिल-ईस्ट दौरे पर शरीफ़ की रिहार्ल्सल के बावजूद उन्हें बोलने का मौका नहीं मिला, जिससे पाकिस्तानी नाराज हो गये. अह! तो ये नाराज भी होते हैं…
अब पाकिस्तानी समस्या देखिये. इस्लामी देशों में उसकी स्वीकार्यता कितनी है और चीन की नज़र में उसकी महत्ता कितनी है?
पुरानी बातों पर न जाइये जनाब! आज की बातों को देखिये, तो समझ पाएंगे कि इन्हें लेकर पाकिस्तानी ग़लतफ़हमी लाज़वाब के स्तर को पार कर चुकी है. ऐसे में चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में ‘मसखरेपन’ के सहारे अगर किनारा ढूंढने की कोशिश की जाए तो… तो दिक्कत क्या है. किसी किनारे लगे तो सही!!
भारत की समस्याएं
यह टॉपिक भी लिजलिजा है. आखिर, भारत जीत रहा है. क्रिकेट से लेकर दुनिया भर में और… और अब तो फ़ाइनल में धोएगा वह पाकिस्तान को.
आखिर भारत की कोई समस्या हो सकती है क्या? अगर होती तो मीडिया इस क्रिकेट के महा मुकाबले पर चुप क्यों रहता भला? टीआरपी भी खूब आती… तो सिद्ध हुआ यह ‘टॉपिक’ बेकार है.
पर यह कम्बख्त ‘कलम’!
देखिये, एक ख़बर ‘अमेरिकी डोनॉल्ड ट्रम्प ने भारत को पैसे का लालची बताते हुए पेरिस समझौते से किनारा किया’.
न…न… कड़ा जवाब दिया था इस पर हमारी सरकार ने और संभवतः पीएम मोदी अपनी अमेरिका-यात्रा रद्द भी करने वाले थे, पर अब पता चला है कि…
दूसरी ख़बर देखिये, रूसी दौरे पर गए पीएम. एनएसजी पर चीन को मनाने के लिए रूस पर डालेंगे दबाव… अन्यथा कुडनकुलम परियोजना को आगे के लिए ठन्डे बस्ते में डाल दिया जायेगा.
पर परियोजना के लिए समझौता हो गया, जबकि एनएसजी पर चीन ने कहा कि ‘रूस से कहने के बावजूद…..
‘खैर, छोड़िये!
अब किसान, जवान, नौकरी की बातें करूंगा तो आप इस लेख को ‘गंभीरतम’ की श्रेणी में रख देंगे.
अच्छा है, आप इसे ‘मसखरेपन’ के नज़रिये से ही देखें. आप भारतीय हों, पाकिस्तानी हों या फिर मीडिया से जुड़े हों… क्या है कि अकड़ रहनी चाहिए और असली मजा तो ‘मसखरेपन’ में ही है.
सेलिब्रिटीज ट्विटर पर ‘मसखरी’ कर खुश हैं. भारत-पाकिस्तान अपनी गलतफ़हमियों में खुश हैं और मीडिया… छोड़िये भी!
Web Title: India, Pakistan and Cricket Diplomacy, Hindi Editorial Aritcle
Keywords: Media, Bharat, Pak, Issues of Neighbours, Confusion, Foreign Policy, China, Russia, Middle East, USA, Match Fixing, Team Pakistan, Team India, Public of India, Public of Pakistan, Hindi Article
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