मार्च 6, साल 1971 को टीम इंडिया वेस्टइंडीज़ दौरे पर थी.
भारत को वेस्टइंडीज से 5 मैचों की टेस्ट सीरीज़ खेलनी थी. भारतीय बल्लेबाज़ो को वेस्टइंडीज की सख्त उछाल भरी पिचों पर 6 फीट लंबे गेंदबाज़ों का सामना करना था.
इस सीरीज़ में क्रिकेट करियर की शुरुआत करने वाला एक नाटा सा नौजवान टीम में नया चेहरा था. ये नाटे कद का नौजवान आगे चलकर लिटिल चैंप कहलाया.
जी हां, हम बात कर रहे हैं सुनील गावस्कर के बारे में. जिन्होंने वेस्टइंडीज़ में अर्धशतक लगाकर टीम को ऐतिहासिक जीत दिलाई थी.
टीम इंडिया ने वेस्टइंडीज को इस टेस्ट सीरीज़ में 1-0 से हरा दिया था.
आइए, इस यादगार जीत और सुनील गावस्कर की उस ऐतिहासिक पारी को करीब से देखते हैं –
सोबर्स की टीम ने की पहले बल्लेबाज़ी
भारतीय टीम में जगह पाने वाले सुनील गावस्कर का यह पहला विदेशी दौरा था. उन्हें हर हाल में खुद को साबित करना था. अगर वो टीम के लिए इस दौरे में रन बनाते तो आगे चलकर उनके लिए टीम इंडिया में जगह बनाना आसान हो जाता. यही सोचकर गावस्कर वेस्टइंडीज़ पहुंच चुके थे.
वहीं, वेस्टइंडीज की कप्तानी कर रहे थे गैरी सोबर्स. जो क्रिकेट में अपने महान रिकॉर्ड के बाद आगे चलकर सर गैरी सोबर्स कहलाए. गैरी सोबर्स टीम में एक बॉलर के रूप में आए थे.
जब सोबर्स टीम में आए, तब वेस्टइंडीज में गेंदबाज़ों का ही वर्चस्व था. अपनी पहली पारी से ही उन्होंने दिखा दिया था कि उनके भीतर बल्लेबाज़ी करने की भी क्षमता है. रफ्ता-रफ्ता उनके खेल में काफी निखार आया और वह एक ऑलराउंडर के रूप में टीम में बने रहे, जिसके बाद उनके हाथ में वेस्टइंडीज की कप्तानी भी दे दी गई.
वेस्टइंडीज की टीम ने पोर्ट ऑफ स्पेन की पिच पर पहले बल्लेबाज़ी करने का फैसला किया था. तब कप्तान सोबर्स को उम्मीद थी कि पहले बल्लेबाज़ी करते हुए स्कोर बोर्ड पर एक बड़ा स्कोर टांगा जाए और टीम इंडिया को आउट किया जाए. लेकिन सोबर्स को नहीं पता था कि टीम इंडिया में सुनील गावस्कर जैसा धाकड़ बल्लेबाज़ आ चुका है.
आबिद अली के दांव में फंसी वेस्टइंडीज
वेस्टइंडीज के पोर्ट ऑफ स्पेन के मैदान में भारतीय टीम मैदान पर पहुंच चुकी थी. चिलचिलाती धूप के बीच यह मैच खेला जा रहा था. भारतीय टीम के कप्तान अजीत वाडेकर ने तेज गेंदबाज़ आबिद अली को लाल रंग की चमचमाती कुकाबूरा गेंद पकड़ा दी.
आबिद अली ने गेंद को इतना घिसा लगा, जिससे उसकी और चमक बढ़ गई. शायद, आबिद अली के दिमाग़ में कुछ प्लान था, जो बल्लेबाज़ को गेंद फेंकने के बाद सामने आने वाला था.
तेज़ गेंदबाज़ आबिद अली तेज़ कदमों के साथ दौड़े, रनअप पूरा किया और एक बेहतरीन इंस्विंगर गेंद डाली. आरसी फैड्रिक गेंद की सीम को नहीं पढ़ पाए... इससे पहले कि वह कुछ जान पाते, गेंद अपना काम कर चुकी थी. आबिद अली की गेंद ने फैड्रिक के स्टंप की गिल्लियां बिखेर दीं.
मैच की इस पहली गेंद पर विकेट के साथ ही, पोर्ट ऑफ स्पेन में टीम इंडिया ने इतिहास रचने का आगाज़ कर दिया था.
बेदी-प्रसन्ना की जोड़ी ने बरपाया कहर
आबिद अली की तेज़ गेंदों से अभी वेस्टइंडीज के बल्लेबाज़ संभले नहीं थे. वेस्टइंडीज के 42 रन पर 2 विकेट गिर चुके थे. दूसरे सलामी बल्लेबाज़ जीए चमाचो को बिशन सिंह बेदी अपनी फिरकी के जाल में फंसाते हुए सोल्कर के हाथों कैच करा चुके थे.
दिलचस्प बात यह है कि उस दौर में बिशन सिंह बेदी और ई. प्रसन्ना के बीच विकेट लेने की होड़ लगी रहती थी. दोनों ही गेंदबाज़ स्पिन के महारथी थे. जब दोनों में से कोई एक विकेट लेता, तो दूसरा उसको पीछे छोड़ने के लिए आतुर रहता.
1970 के दशक की भारतीय टीम की ये सबसे सफल स्पिन गेंदबाज़ी जोड़ी थी.
दोनों गेंदबाज़ों के बीच लगी विकेट लेने की होड़ को देखते हुए, कप्तान अजीत वाडेकर ने दोनों गेंदबाज़ों को ही गेंदबाज़ी के छोर पर लगा दिया. बेदी का ओवर खत्म होता, तो प्रसन्ना अपनी फिरकी का जाल बुनने लगते.
वाडेकर की ये ट्रिक काम कर गई. वेस्टइंडीज के बल्लेबाज़ दोनों छोर से लगाई गई स्पिन गेंदबाज़ी में फंसकर रह गए, उनके लिए गेंद को छोड़ना या खेलना दोनों ही मुश्किल होता जा रहा था.
ई प्रसन्ना के लिए तो बल्कि यहां तक कहा जाता था कि वो मैदान पर क्रिकेट नहीं शतरंज खेलते थे. बल्लेबाज को नई गेंदबाज़ी की चाल में फंसाना उनका शगल था. दोंनों ही गेंदबाज़ों ने 7 विकेट लिए. जिसमें प्रसन्ना को 4 और बेदी को 3 विकेट मिले.
इस तरह स्टार खिलाड़ियों से सजी वेस्टइंडीज की पूरी टीम 214 रन पर ऑलआउट हो गई.
सरदेसाई के शतक से भारत को मिली मजबूती
ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज़ जीतने के लिए भारतीय टीम आगे बढ़ रही थी. टीम के गेंदबाज़ अपना काम कर चुके थे, अब बारी थी बल्लेबाज़ों की.
भारतीय बल्लेबाज़ों को 214 रनों को पार करते हुए पहली पारी में बढ़त बनानी थी. इससे जीत के रास्ते खुल जाते.
सलामी बल्लेबाज़ सुनील गावस्कर ने बेहतरीन अर्धशतक ठोका. उन्होंने 65 रन बनाए. मैच में सबसे ज़्यादा प्रभावित किया दिलीप सरदेसाई ने. चौथे नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए उन्होंने 112 रनों की बेहतरीन पारी खेली, उनकी पारी में 11 चौके शामिल रहे.
जो शुरुआत सुनील गावस्कर और मानकंड ने दिलाई थी. उसका पूरा फायदा उठाया दिलीप सरदेसाई ने. उनकी पारी के दम पर भारतीय टीम पहली पारी में बड़ी बढ़त की ओर बढ़ने लगी.
हालांकि, कप्तान वाडेकर इस मैच में ज़रूर 0 रन पर आउट हुए, लेकिन सोल्कर के अर्धशतक ने मैच में भारत की पकड़ बना दी.
पहली पारी में भारत की टीम 352 रनों पर ऑलआउट हो गई. वहीं, दूसरी पारी में वेस्टइंडीज की टीम 261 रनों पर ऑलआउट हो गई.
... और गावस्कर ने जिता दिया मैच
भारतीय टेस्ट टीम वेस्टइंडीज की धरती पर इतिहास रचने से बस कुछ फासले दूर ही थी. टीम को 124 रनों का मामूली सा टारगेट मिला. कप्तान वाडेकर जीत के लिए मिले इस टारगेट से इसलिए भी बेफ्रिक़ थे, क्योंकि उनकी टीम की बल्लेबाज़ी में काफी गहराई थी.
सीरीज़ में अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत करने वाला एक नाटा सा नौजवान टीम के लिए रन बना रहा था, ये नाटे कद का नौजवान सुनील गावस्कर आगे चलकर अपने कद़ की वजह से भारत का लिटिल चैंप कहलाया.
गावस्कर ने अपनी पहली पारी में शानदार अर्धशतक ठोका और दूसरी पारी में भी 67 रन बनाकर नाबाद रहे. उन्होंने अपनी इस पारी में 7 चौके लगाए. जैसे ही टीम इंडिया ने जीत के लिए लक्ष्य हासिल किया. लोग मैदान के भीतर दौड़े चले आए और जीत के हीरो को बधाईयां देने लगे.
भारत ने यह मैच बड़ी आसानी से 7 विकेट से जीत लिया था.
इस जीत के साथ भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम ने विदेशी धरती पर अपनी पहली सीरीज़ जीती. जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई.
इसी दिन, भारतीय क्रिकेट टीम का एक नया उदय हुआ था.
Web Title: India's 1971 Win Over Sir Garry Sobers's West Indies, Hindi Article
Feature Image Credit: cricketsoccer