अगर आप बास्केबॅाल के दिवाने हैं, तो आपने माइकल जॉर्डन का नाम जरूर सुना होगा. वो खिलाड़ी जो अपने इशारे में पूरे खेल को नचाता था, लेकिन अगर आपको ये बोला जाए कि भारतीय बास्केबॅाल में भी एक जॉर्डन था.
क्या आप इस बात पर विश्वास करेंगे? नहीं न. तो चलिए क्रिकेट के प्रेमी देश में हम इंडियन बास्केबॅाल के माइकल जॉर्डन यानी खुशी राम से मिलते हैं. जिन्होंने मलेशिया में आयोजित अपनी पहली ही अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ स्कोरर का खिताब अपने नाम किया–
बास्केटबॉल में आते ही बन गए स्टार...
2000 लोगों की आबादी वाले हरियाणा के झज्जर जिले के झामरी गांव में. 7 अगस्त 1936 को एक बच्चे का जन्म हुआ नाम रखा गया खुशी राम. इनके माता-पिता को भी ये पता नहीं होगा कि गुलाम भारत में एक ऐसे खिलाड़ी का जन्म हुआ है, जो विश्व भर में भारत का नाम रोशन करेगा.
14 साल के उम्र में इन्हें दिल्ली स्थित आर्मी यूनिट के राजपूताना राइफल्स में शामिल कर लिया गया. सेना में 6.4 इंच के इस व्यक्ति पर कई बास्केबॅाल कोचों की नजर पड़ी. उन्होंने इन्हें सलाह दी कि तुम्हें बास्केटबॅाल जैसे खेल में अपना हाथ अजमाना चाहिए. फिर क्या था वहीं से खुशी जी का सफर शुरू हो गया.
इनके पहले कोच थे सूबेदार मुलचंद जिनसे इन्होंने इस खेल के गुर सीखें. 1952 में इन्होंने अपनी पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता सर्वीसेस के लिए खेली. कहते हैं कि हर खिलाड़ी की तरह खुशी राम का भी सपना था कि वो अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का मान-सम्मान बढ़ाएं.
इसलिए करीब 11 साल तक यह फ़ौज के लिए खेलते रहे ताकि एक दिन यह देश के लिए बड़े स्तर पर खेल सकें. 1964 में कोलंबो में आयोजित चौथी क्वाड्रेंगुलर प्रतियोगिता में इन्हें भारतीय बास्केटबॅाल संघ ने टीम में शामिल किया. यह पहला मौका था जब खुशी राम फ़ौज नहीं बल्कि भारत के लिए खेलने जा रहे थे.
माना जाता है कि चयनकार्ताओं की बात को सही साबित करते हुए वो इस प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ स्कोरर बनकर उभरे. इस प्रदर्शन को देखते हुए 1965 के दौरान मलेशिया में आयोजित एशियन बास्केटबॅाल चैंपियनशिप में बीफाआई ने उन्हें टीम की कमान सौंप दी . यहां पर भी उनका जलवा कायम रहा और इस प्रतियोगिता में भी वो दूसरे सर्वश्रेष्ठ स्कोर बने.
यहां भारत ने 7वां स्थान प्राप्त किया. 1967 के दौरान इसी प्रतियोगिता का आयोजन साउथ कोरिया के सिओल में हुआ था. वहां इंडियन टीम के हाथ छठवां स्थान लगा था. फिलीपींस से मैच के दौरान भारत को काफी अंकों से शिकस्त का सामन करना पड़ा था. टीम के खाते में 63 पॉइंट थे. कहते हैं कि इसमें अकेले ख़ुशी राम के 40 पॉइंट थे. इसी साल इनके अनुभव का लोहा भारतीय सरकार ने मानते हुए इन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा.
ठुकरा दिया विदेशी टीम में खेलने का मौका!
1969 के दौरान फिर से एशियन बास्केबॅाल चैंपियनशिप का आयोजन हुआ. कहते हैं कि खुशी राम की बदौलत भारत का कद एशिया में हर बीते साल में बढ़ रहा था. इस बार भारत ने 5वें स्थान पर कब्ज़ा कर लिया था. यहां पर भी वो सबसे ज्यादा बास्केट स्कोर करने वाले खिलाड़ी बने.
1970 के दौरान भारतीय टीम फिलीपींस की राजधानी मनीला में निमंत्रण प्रतियोगिता खेलने गयी. जहां 7 मैचों में खुशी राम ने 196 अंक अपने नाम किए. एशियन बास्केबॅाल के पावर हाउस कहे जाने वाले फिलीपींस के खिलाफ उन्होंने टीम के लिए 43 अंक बंटोरे थे. माना जाता है कि यह आजतक किसी भी भारतीय बास्केटबॅाल खिलाड़ी द्वारा एक मैच में किया गया सबसे ज्यादा स्कोर है.
इस रिकॅार्ड को अभी तक कोई खिलाड़ी नहीं तोड़ सका है. इस प्रतियोगिता में उन्हें तीन पुरस्कार मिले. पहला सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का. दूसरा एशिया के सबसे निरंतर शूटर का. तीसरा टूर्नामेंट के सबसे बेहतर सेंटर पोजिशन खिलाड़ी का. समापन सामरोह के खत्म होने तक फिलीपींस के दिग्गज बास्केबॅाल खिलाड़ी लौरो मूमर ख़ुशी राम के खेल को देखकर काफी खुश हो गए थे.
कहते हैं कि उन्होंने कहा कि 'हमें खुशी राम दे दो हम पूरे विश्व पर राज करेंगे'. माना जाता है कि फिलीपींस सरकार ने ख़ुशी राम को उनके देश के लिए खेलने का ऑफर किया था. हालांकि खुशी राम ने उस ऑफर को ठुकरा दिया. वह सिर्फ और सिर्फ अपने देश के लिए खेलना चाहते थे.
अमेरिकियों को अपने खेल से हैरान कर दिया!
1970 के दौरान आयोजित एशियन गेम्स में खुशी राम को टीम में शामिल किया गया था. हालांकि NIS पटियाला में कैंप के दौरान उनकी आंख में चोट लग गयी थी जिस कारण कारण वो इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाए. इसी साल बास्केटबॅाल का मक्का कहे जाने वाले अमेरिका से स्प्रिंगफील्ड कॉलेज की टीम भारत में प्रदर्शनी मैच खेलने आई थी.
अमेरिकी टीम मैच को आसानी से जीत रही थी. हालांकि कहते हैं कि वो एशिया के सर्वश्रेष्ठ शूटर खुशी राम को रोक ही नहीं पा रहे थे. माना जाता है कि अमेरिकन को उन्होंने 40 मिनट के खेल में पानी पिला दिया था. उन्हें ये समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें रोके तो रोके कैसे?
1975 में इस महान खिलाड़ी के प्रशिक्षण में भारतीय टीम उन बुलंदियों को छू पाई, जिसे देश की राष्ट्रीय टीम आज तक नहीं छू पाई. 1975 में बैंकॉक में आयोजित एशियन बास्केटबॅाल चैंपियनशीप में भारत ने सर्वश्रेष्ठ चौथा स्थान हासिल किया.
आखिरी सांस तक बास्केटबॉल से जुड़े रहे!
1952 से 1972 तक भारत, सेना औऱ राजस्थान के लिए खेलने के बाद ख़ुशी राम प्रोफेशनल बास्केटबॉल से रिटायर हो गए. इसके बाद उन्होंने बास्केटबॉल की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया. कई सालों तक वह श्री राम रायंस और राजस्थान के बास्केटबॅाल टीम को इस खेल के गुर सिखाते रहे. उनकी देख-रेख में ये टीमें कई बार विजेता बनी.
हनुमान सिंह, अजमेर सिंह जैसे महान दिग्गज खिलाड़ियों ने इनकी देख रेख में ओलंपिक जैसे प्रतियोगिता में भारतीय टीम का नाम रोशन किया. खुशी राम की ही देन थी, जो रूस में आयोजित ओलंपिक में अजमेर सिंह एक ऐसे खिलाड़ी बनकर उभरे जिनका लोहा पूरे विश्व ने माना.
अपने अंतिम दिनों में ये दिग्गज कोटा के मॉडर्न स्कूल के बच्चों को बास्केटबॅाल से दुनिया बदलने की ताकत बताता रहा. 29 दिसंबर 2013 का वो दिन था खुशी राम एक प्रतियोगिता में अपने गांव झूमरी में पुरस्कार वितरण कर रहे थे. तभी अचानक से उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो हम सबको छोड़कर इस दुनिया से चले गये.
अपनी आखिरी सांस तक वह बास्केटबॉल से जुड़े रहे. 2015 के दौरान इंडियन बास्केबॅाल प्लेयर्स संध ने उनकी जन्मभूमी पर उनकी मूर्ती की स्थापना की. यह खुशी राम के योगदान के लिए बहुत छोटा सा काम था मगर फिर भी इसके जरिए वह हमेशा याद किए जाएंगे.
ऐसे कई महान खिलाड़ी हैं, जो इतिहास के पन्नों में दफन हो जाते हैं और किसी को उनके बारे में जानकारी ही नसीब नहीं होती. खुशी राम ने भारत में बास्केटबॅाल को एक पहचान दिलायी थी. यह माना जा सकता है कि आज उनके कारण ही भारत में बास्केटबॉल को खेला जा रहा है. न जाने कितने ही युवा ख़ुशी राम की कहानी सुनकर बास्केटबॉल की ओर आकर्षित होते होंगे. खुशी राम वाकई एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व थे.
Web Title: Khushi Ram Indian Basketball Player, Hindi Article
Feature Representative Image Credit: writingillini