वो लड़का गाज़ियाबाद की गलियों से क्रिकेट खेलते हुए टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम तक पहुंचा था. टीम इंडिया में जब जगह बनाई, तो अपने प्रदर्शन से सबको हैरान करते हुए आगे निकल गया.
जी हां, यहां बात हो रही है मनोज प्रभाकर की.
टीम इंडिया को मनोज प्रभाकर की जिस तरह ज़रूरत पड़ी, उस तरह टीम ने उनका प्रयोग किया. जब टीम इंडिया को वनडे में एक सलामी बल्लेबाज़ की ज़रूरत थी, मनोज प्रभाकर टीम के लिए ओपनिंग करने लगे. इसके बाद जब टीम को बीच के ओवरों में एक मीडियम पेसर की ज़रूच्रत महसूस हुई, तो मनोज प्रभाकर ने गेंदबाज़ी की.
मनोज टीम की ज़रूरत के हिसाब से ढलते गए और कुछ ही समय में उन्होंने टीम में ऑलराउंडर के रूप में अपना स्थान पक्का कर लिया.
ऐसे में आइए, इस ऑलराउंडर के गाज़ियाबाद की गलियों से टीम इंडिया तक के सफर पर नजर डालते हैं –
स्कूल से शुरू किया क्रिकेट
15 अप्रैल, 1963 को उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद में पैदा हुए मनोज प्रभाकर ने अपने स्कूली दिनों से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. हालांकि उस दौरान वो मुख्य रूप से बल्लेबाज़ी करते थे.
स्कूल से आने के बाद वह अपने घर के आंगन में क्रिकेट खेलते या फिर गलियों में. समय के साथ उनमें क्रिकेट का खुमार चढ़ने लगा और वह क्रिकेट को प्रोफेशनल तौर पर खेलने लगे.
इसके बाद उन्होंने स्टेडियम में क्रिकेट खेलना शुरू किया. इसके बाद मनोज ने स्टेडियम में कोच के कहने पर गेंदबाज़ी भी करनी शुरू कर दी.
मनोज मीडियम पेस के साथ गेंदबाज़ी करते थे, लेकिन उनकी गेंदबाज़ी में स्विंग काफी थी. जिससे वो क्रीज़ पर खड़े बल्लेबाज़ को मुश्किल में डाल देते थे.
गलियों से रणजी का सफर
स्कूली पीछे छूटा तो उन्होंने क्रिकेट कोचिंग शुरूच् कर दी. गाज़ियाबाद से दिल्ली करीब होने का फायदा मनोज को काफी मिला. उन्होंने उत्तर प्रदेश की रणजी टीम में जाने की बजाए दिल्ली की रणजी टीम में जाने का फैसला किया.
माना जाता है कि यह फैसला इसलिए भी, क्योंकि गाज़ियाबाद से दिल्ली ज़्यादा करीब है, जबकि लखनऊ काफी दूर है.
वहीं, दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला मैदान में पूरे दिन कोचिंग करने के बाद मनोज प्रभाकर देर शाम तक अपने घर लौट आते थे. जब दिल्ली की रणजी टीम के लिए ट्रायल शुरू हुए, तो उसमें मनोज प्रभाकर को जगह मिल गई.
मनोज के लिए कोच की सलाह काम आई. वो सिर्फ बल्लेबाज़ी तक सीमित न रहे, उन्होंने गेंदबाज़ी में भी हुनर दिखाया.
मनोज के कोच का मानना था कि जिस मैच में मनोज बतौर बल्लेबाज़ नहीं चल सका, उसमें एक गेंदबाज़ के तौर पर बल्लेबाज़ों को परेशान तो कर ही देगा.
तब खुद मनोज ने भी नहीं सोचा होगा कि वह एक दिन टीम इंडिया के लिए एक बेहतरीन ऑलराउंडर बनकर उभरेंगे.
उस मैच ने मनोज को हीरो बना दिया
साल 1983 का वर्ल्ड कप टीम इंडिया जीत चुकी थी.
ये वो दौर था, जब टीम इंडिया से पुराने खिलाड़ी संन्यास लेने के बाद रुख़्सत हो रहे थे, तो वहीं, नए लड़कों की एंट्री हो रही थी.
8 अप्रैल, 1984 को यूएई के शारजाह मैदान में इस लड़के को भारतीय टीम के लिए करियर का पहला इंटरनेशनल मैच खेलने को मिला.
शारजाह कप के मैच में श्रीलंका टीम के खिलाफ भारतीय टीम की ओर से मनोज प्रभाकर ने डेब्यू किया. अपने पहले ही मैच में मनोज ने हर किसी को अपने लाजवाब प्रदर्शन से हैरान कर दिया.
सुनील गावस्कर की कप्तानी में खेलते हुए मनोज प्रभाकर पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव ये था कि उन्हें मैच में बेजोड़ प्रदर्शन करना है. अगर बढ़िया प्रदर्शन नहीं दिखा पाए, तो शायद अगले मैच में मौका नहीं मिलता.
श्रीलंका की टीम पहले बल्लेबाज़ी करने के लिए उतरी. भारतीय गेंदबाज़ों के सामने श्रीलंका की बल्लेबाज़ी पूरी तरह से धाराशायी हो गई. श्रीलंका की पूरी टीम 41 ओवरों में महज़ 96 रनों पर ऑलआउट हो गई.
अपना पहला मैच खेल रहे मनोज प्रभाकर ने 10 ओवरों में 3 मेडन ओवर डालते हुए सिर्फ 16 रन दिए और 2 विकेट चटकाए. इस तरह भारतीय टीम ने ये मैच 10 विकेट से जीत लिया था.
करियर में नहीं लगाया एक भी छक्का
टीम इंडिया में भले ही मनोज प्रभाकर ने शुरुआत एक गेंदबाज़ के रूप में की थी, लेकिन उनकी बल्लेबाज़ी भी आगे चलकर टीम के लिए काफी काम आई.
अंतिम ओवरों में जब कई बार उन्होंने टीम को मैच जिताए, तो उन्हें बल्लेबाज़ी क्रम में ऊपर भेजा जाने लगा. इस दौरान उन्होंने कई मैचों में ओपनिंग भी की.
मनोज प्रभाकर भले ही अपने डेब्यू मैच की वजह से सुर्खियों में आए हों, लेकिन उनका एक रिकॉर्ड आज भी लोगों को भुलाए नहीं भुलता.
मनोज ने टीम इंडिया की ओर से 130 मैच खेले. जिसमें उन्होंने 1858 रन बनाए. मनोज ने अपने वनडे करियर में 2 शतक और 11 अर्धशतक लगाए हैं. वनडे करियर में उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 106 रन रहा.
हैरानी की बात है कि उन्होंने 130 वनडे मैचों में एक भी छक्का नहीं लगाया. भारतीय टीम के वे इकलौते ऐसे बल्लेबाज़ हैं, जिन्होंने बल्लेबाज़ के रूप में एकदिवसीय मैचों में कभी छक्का नहीं जड़ा. हालांकि 39 टेस्ट मैचों में मनोज के नाम 4 छक्के हैं.
आगाज शानदार, अंजाम दुखद रहा
मनोज प्रभाकर के करियर का आगाज़ जितने शानदार तरीके से हुआ था. उस करियर का अंजाम काफी दुखद रहा.
माना जाता है कि अपने करियर को बर्बाद करने में खुद मनोज प्रभाकर का ही हाथ रहा. मनोज प्रभाकर ने तब तहलका मचा दिया, जब उन्होंने कई भारतीय क्रिकेटर्स पर मैच फ़िक्सिंग के आरोप लगाए. मनोज ने न सिर्फ आरोप लगाए, बल्कि तहलका के साथ मिलकर अपने ही साथी और दिग्ग्ज़ भारतीय क्रिकेटर्स का स्टिंग ऑपरेशन भी कर दिया.
स्टिंग ऑपरेशन जब मीडिया में आया तो विश्व क्रिकेट में तहलका मच गया.
मनोज प्रभाकर के अनुसार, भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम में मैच फिक्स होते थे. जिसे मनोज ने दुनिया के सामने लाने का बीड़ा उठाया था. मनोज ने कपिल देव पर भी मैच फिक्सिंग का आरोप लगाया. उन्होंने रवि शास्त्री, सुनील गावस्कर, किरण मोरे, सिद्धू जैसे खिलाड़ियों के खिलाफ स्टिंग किया और उन्हें कैमरे पर दिखाया.
बात बिगड़ी तो अदालत तक जा पहुंची और जांच शुरू हुई. उन्होंने कई टेप्स अदालत को दिए, लेकिन तब उल्टा फंस गए, जब उन्हें वेस्टइंडीज़ टीम के खिलाफ खुद मैच फिक्सिंग में संलिप्त शामिल पाया गया. इसके बाद बीसीसीआई ने उन्हें साल 2000 में बैन कर दिया. हालांकि साल 2006 में उनके ऊपर से बैन हटा लिया गया.
संन्यास लेने के बाद इन्होंने दिल्ली रणजी टीम के कोच की भूमिका भी निभाई. इसके बाद अफगानिस्तान टीम के लिए बॉलिंग कोच भी रहे. इनकी कोचिंग के दौरान ही अफगानिस्तान टीम के खिलाड़ियों ने बेहतरीन गेंदबाज़ी करनी शुरू की.
मनोज प्रभाकर को अगर विवादों के इतर देखा जाए, तो एक खिलाड़ी के रूप में वह 90 के दशक के टीम इंडिया के सबसे बेहतरीन ऑलराउंडर थे.
Web Title: Manoj Prabhakar: Batsmen Without Sixes in ODI Career, Hindi Article
Featured Image Credit: nissaninsider/espncricinfo