हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘सूरमा' सुर्खिया में है. पंजाब के मशहूर हीरो दिलजीत दोसांझ इस फिल्म में मुख्य भूमिका में है. इससे पहले दिलजीत उड़ता पंजाब जैसी बड़ी फिल्म कर चुके हैं.
खैर, इस फिल्स में दिलजीत जिस संदीप की की भूमिका में हैं. वही संदीप सिंह, जो कभी भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी हुआ करते थे. बताते चलें कि एक हादसे ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदलकर रख दिया था.
तो आईए फिल्म ‘सूरमा' के असली किरदार संदीप सिंह को जरा और नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं-
‘फ्लिकर सिंह' के नाम से मशहूर हुए!
संदीप सिंह का जन्म 27 फरवरी, 1986 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुआ था. उनके बड़े भाई बिक्रमजीत सिंह भी एक हॉकी प्लेयर थे. उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ. बचपन से ही उनका हॉकी खेल की तरफ आकर्षण बढ़ रहा था.
धीरे-धीरे उम्र के साथ उनकी दिलचस्पी भी इसमें गहरी होती चली गई.
संदीप खुद को एक बेहतरीन हॉकी प्लेयर के रूप में देखना चाहते थे जो अपने देश के लिए खेले. भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतने का सपना रखने वाले संदीप ने 18 साल की उम्र में हॉकी टीम में कदम रखा.
उन्होंने साल 2004 में सुल्तान अजलान शाह कप के दौरान भारतीय हॉकी टीम में कदम रखा था. अपने खेल के अंदाज़ के लिए उन्होंने खूब चर्चा बटोरी.
हॉकी में वह भारतीय पेनल्टी कॉर्नर स्पेशलिस्ट और दुनिया के बेहतरीन ड्रैग फ्लिकर के तौर पर भी चर्चित हुए. यही वजह थी कि वो ‘फ्लिकर सिंह' नाम से मशहूर हुए.
अभी उनका सफ़र शुरू ही हुआ था. वो अभी सफलता की सीढ़ियों पर कदम रख ही रहे थे कि एक हादसे ने उनकी जिंदगी को बदलकर रख दिया. क्या था वो हादसा, जानते हैं….
...और जब गलती से हुए गोली का शिकार!
संदीप जर्मनी वर्ल्ड टूर्नामेंट में खेलने के लिए भारतीय हॉकी टीम में सेलेक्ट हुए. जब उन्हें इस बात का पता चला तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह उस समय चंडीगढ़ थे. उन्हें दिल्ली से जर्मनी की फ्लाइट पकड़नी थी. जिसके लिए उन्होंने चंडीगढ़ से दिल्ली ट्रेन से जाने की टिकट कटाई.
संदीप बड़े खुश थे, हो भी क्यूँ न?
वह भारत के लिए खेलने के लिए जर्मनी जा रहे थे. उनका सपना सच हो रहा था. कुछ ही समय में वह इंडियन हॉकी टीम के साथ उड़ान भरने वाले थे. अपनी सुंदर कल्पनाओं में खोये संदीप जा ही रहे थे कि अचानक पीछे से उन्हें एक गोली आकर लगी. वो दर्द से कराहते हुए ज़मीन पर गिर गए. उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उनके साथ हुआ क्या है?
अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि, उन्हें पहले लगा कि शायद कोई बम धमाका हुआ था. लेकिन उन्हें अपनी पीठ में असहनीय दर्द हुआ. ऐसा लगा मानों किसी ने गरम रोड उनकी पीठ में घोप दी हो. वह धीरे-धीरे अपने होश खो रहे थे.
तभी एक आदमी उनकी ओर दौड़ते हुए आया. वो उन्हें बताता है कि वह गलती से गोली का शिकार हो गए हैं. दरअसल, एक आरपीएफ (RPF) के जवान से गलती से गोली चल गयी. जिसका शिकार संदीप हुए.
हादसे में पूरा शरीर हो चुका था लकवाग्रस्त!
जब इस हादसे की खबर उनके भाई विक्रमजीत को दी गयी तब उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. उनके भाई को लगा कि अभी तो वह सही सलामत संदीप को स्टेशन तक छोड़ कर आये थे. ऐसे में, अचानक उनके साथ इतनी बड़ी घटना कैसे हो गयी.
अपने भाई को जीत की शुभकामनाएं देकर आए विक्रम इस बात पर यकीन ही नहीं कर पा रहे थे.
गोली लगने की वजह से उनकी पसलियां, पैनक्रिया और गुर्दे बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए. उनकी रीढ़ की हड्डी का एक हिस्सा भी बुरी तरह प्रभावित हुआ.
वह चल फिर पाने में असमर्थ हो गए. उन्हें देखकर यही लगा कि अब वो शायद कभी बिस्तर से नहीं उठ पाएंगे. लेकिन संदीप इन सब से हार नहीं मानने वाले थे.
अपने सुनहरे सपनों को यूँ ही बिस्तर पर दम तोड़ते हुए नहीं देखना चाहते थे. अपनी इच्छा-शक्ति और हिम्मत की बदौलत उन्होंने अपनी बुरी किस्मत को मात दे दी.
साल 2008 में मैदान में एक बार फिर वापसी!
विपरीत स्तिथियों को मात देते हुए संदीप साल 2008 में एक बार वापिस मैदान में लौट आए. उनकी ये वापसी नाम मात्र नहीं थी. दरअसल, इसी साल उन्होंने भारत को सुल्तान अजलान शाह कप में दूसरा स्थान हासिल करने में मदद की. भारत की झोली में यह खिताब तेरह साल बाद आया था.
दो साल इतनी बाद इतने बड़े हादसे से गुजरने के बाद उन्होंने सारी दुनिया को अपना दम दिखा दिया. अपने बेहतरीन प्रदर्शन के चलते ये साल 2009 में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान बनाए गए.
इसके बाद संदीप ने लंदन ओलंपिक के लिए भारतीय टीम को क्वालीफाई कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. दरअसल, क्वालीफाइंग राउंड में संदीप भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे.
हालांकि, वह 2014 से राष्ट्रीय टीम से बाहर रहे हैं. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और मैदान पर कड़ी मेहनत जारी रखी, ऑस्ट्रेलियाई और यूरोपीय लीगों के साथ-साथ हॉकी इंडिया लीग में भी खेले.
फ़िलहाल, संदीप सिंह हरियाणा पुलिस में एक डीएसपी के तौर पर नियुक्त हैं.
सिंह अब इच्छुक युवाओं के लिए सलाहकार के रूप में काम करना चाहते हैं. वह ड्रैग-फ्लिकिंग की कला में माहिर हैं इसीलिए, वह इसके बारे में ज्यादातर युवाओं को सिखाना चाहते हैं.
खुद मुश्किलों का सामना करके सफलता प्राप्त करने वाले संदीप की सोच भी बहुत बड़ी है. वो हर ग्राउंड लेवल से उठने वाले भारतीय ड्रैग-फ्लिकर्स के साथ काम करना चाहते हैं और उन्हें प्रशिक्षित करना चाहते हैं.
आपको बता दें, संदीप सिंह आज भी भारत के बेहतरीन ड्रैग-फ़्लिकर माने जाते हैं. सिंह वाकई में एक प्रेरणादायक इंसान हैं. इन्होंने हर उस इंसान को प्रेरणा दी है जो जिंदगी की छोटी-छोटी परेशानियों से हार मान लेते हैं.
संदीप ने खुद को व्हीलचेयर से उठाकर एक बार फिर हॉकी के मैदान पर लाकर साबित कर दिया कि अगर मनुष्य कुछ करने की ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं होता है.
Web Title: A Real Story of Filmy 'Surma', Hindi Article
Feature Image Credit: sillyconfusion