मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में हुए 1956 के ग्रीष्म ओलंपिक खेलों में भारतीय पुरुष टीम ने गोल्ड मेडल जीता था.
बलबीर सिंह सीनियर इस टीम के कप्तान थे, जबकि शंकर लक्ष्मण गोलकीपर.
वहीं, इस टीम में 27 साल का एक ऐसा खिलाड़ी भी शामिल था, जो काफी समय से ओलंपिक खेलने की जुगत में लगा था.
और फिर अमेरिका के खिलाफ एक मैच में इन्हें भारतीय टीम में शामिल होने का गौरव प्राप्त हुआ. 28 नवंबर 1956 को अमेरिका के खिलाफ हुए एक मैच में कप्तान बलबीर सिंह सीनियर के घायल होने के बाद इन्हें मैदान पर उतारा गया.
इन्होंने इस मैच में अमेरिकी टीम के खिलाफ 5 गोल दागे, जबकि भारतीय खिलाड़ियों ने अमेरिका को एक गोल दागने तक का मौका नहीं दिया. इस प्रकार से भारतीय टीम ने इस मैच में बड़ी जीत दर्ज करते हुए अमेरिका को 16-0 से रौंद डाला.
जी हां! हॉकी के लिए ऐसी जुनूनी हद को पार कर जाने वाले इस भारतीय सितारे का नाम है हरदयाल सिंह.
हाल ही में 17 अगस्त को 90 साल की उम्र में हरदयाल सिंह जी का देहांत हुआ है. ऐसे में आइए, हरदयाल सिंह जी के जीवन और उनके ऐतिहासिक हॉकी सफर को जानते हैं –
भारतीय सेना में सूबेदार बने
हॉकी से रिटायरमेंट लेने के बाद हरदयाल सिंह सन 1983 से 1987 तक भारतीय हॉकी टीम के कोच भी रहे. नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्टेडियम में मुख्य कोच के रूप में पदभार संभालने से पहले इन्होंने जूनियर राष्ट्रीय टीम को भी प्रशिक्षण दिया.
इन्हें 2004 में हॉकी में अमूल्य योगदान के लिए खेलों में प्रतिष्ठित ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वहीं, सिंह उत्तराखंड में वरिष्ठ हॉकी कोच के रूप में भी सम्मानित किए गए.
हरदयाल सिंह सन 1969 में भारतीय सेना से सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे. हॉकी खेलने से पहले कुछ समय तक ये भारतीय सर्वेक्षण विभाग में भी कार्यरत रहे.
भारतीय सेना में शामिल होने से पहले हरदयाल सिंह देहरादून स्थित भारतीय सर्वेक्षण विभाग में काम करते थे. अपने एक परिचित के कहने पर ये भारतीय सेना में शामिल हो गए.
हालांकि इस समय तक ये बहुत अच्छी हॉकी खेल लेते थे. इसका फायदा इन्हें मिला भी और इन्हें सन 1949 में भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट में स्पोर्ट्स कोटे के तहत भर्ती कर लिया गया.
सेना में भर्ती होने के बाद इन्हें 1 सिख रेजीमेंट में जवान के तौर पर कमीशन्ड मिला. बाद में इन्हें 7 सिख रेजीमेंट में भेज दिया गया.
जहां इनका ज्यादातर सैन्य समय सिख रेजीमेंट हॉकी टीम के खिलाड़ी के तौर पर बीतता था. फिर, इन्हें सिख रेजीमेंट हॉकी टीम में कोच कम मैनेजर का पद भी दिया गया.
अमेरिका के खिलाफ दागे 5 गोल
1956 के मेलबर्न ओलंपिक खेलों में कुल 12 हॉकी टीमें 3 ग्रुप में प्रतिभाग कर रही थीं. भारतीय हॉकी टीम ने तीनों ग्रुप में अपने सभी मैच जीते थे.
भारत ने अपनी जीत की शुरूआत अफगानिस्तान के खिलाफ एक मैच से की. जिसमें अफगानिस्तान को भारतीय खिलाड़ियों ने एक भी गोल करने का मौका नहीं दिया और उसे 14-0 के बड़े अंतर से हरा दिया.
ये तो केवल शुरूआत थी. आगे आने वाले और मैचों में भारत को इससे भी ज्यादा बड़ी जीत मिलने वाली थीं.
और फिर भारत ने 28 नवंबर 1956 को अमेरिका के खिलाफ 16 गोल दागकर जीत अपने नाम कर ली. हरदयाल सिंह इसी टीम का हिस्सा थे, जिन्हें कप्तान बलबीर सिंह के घायल होने के बाद मैदान टीम में शामिल किया गया था.
इस तरह से हरदयाल सिंह ने अमेरिका के खिलाफ 5 गोल दाग कर मैच को एकतरफा कर दिया और बड़ी आसानी से 16-0 से ये मैच जीत लिया.
आश्चर्य की बात ये है कि अमेरिका जैसी मजबूत टीम उस समय एक भी गोल नहीं कर पाई थी. और इस मैच में हार के बाद अमेरिकन हॉकी टीम बिना किसी पदक जीते ओलंपिक खेलों से बाहर हो गई.
इसके बाद, 30 नवंबर 1956 को ग्रुप 'ए' के पांचवे मैच में सिंगापुर की टीम के साथ भारतीय हॉकी टीम टकराई. इस मैच में भी भारतीय शेरों के आगे सिंगापुर की एक न चली और भारत ने ये मैच भी 6-0 से जीत लिया.
इन तीन मैचों में भारत ने कुल 36 गोल किए थे.
इस जीत के साथ ही, भारत ने अपने ग्रुप के सभी मैच जीत लिए थे. चौंकाने वाली बात है कि इस ग्रुप की कोई भी टीम भारत के खिलाफ एक भी गोल नहीं कर पाई.
एक भी गोल नहीं कर पाई जर्मनी
अब भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंच चुकी थी. यहां तक भारत के लिए कांस्य पदक तो पक्का ही था. लेकिन भारतीय खिलाड़ी हरदयाल सिंह को कांस्य से बढ़कर जीत की चाहत थी.
और फिर, 3 दिसंबर 1956 को सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला जर्मनी से हुआ. ये मैच बहुत ही रोमांचक था. एक समय तक भारत और जर्मनी एक भी गोल नहीं कर पाए थे.
लेकिन फिर भारतीय टीम ने जर्मनी के गोलकीपर को चकमा देते हुए एक गोल कर ही दिया.
इसके बाद जर्मनी की हार उसका इंतजार करने लगी. हालांकि हार से बचने के लिए जर्मनी के खिलाड़ियों ने बहुत मेहनत की, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला और भारत ने ये मैच 1-0 से जीत लिया.
भारत ने पांचों मैच जीतकर रचा इतिहास
इस जीत के साथ भारत का सिल्वर पदक पक्का हो गया था. अब भारतीय हॉकी टीम के पास एक मौका था कि वो दोबारा से ओलंपिक में इतिहास को दोहराए और गोल्ड जीते.
अब भारत फाइनल में था. भारत के सामने हिन्दोस्तान विभाजन के बाद पहली बार पाकिस्तान की टीम थी. ये भी पहली ही बार था शायद, जब एशिया की दो टीमें, वो भी पड़ोसी, किसी ओलंपिक के फाइनल में आमने-सामने खेल रही थीं.
बहरहाल, मैच शुरू हुआ और भारत को एक पेनाल्टी कोर्नर मिला. भारतीय खिलाड़ी ऊधम सिंह ने बॉल को हिट किया, जो रघबीर सिंह भोला के हाथों में आ गई.
अब रणधीर सिंह ने गोल करने के लिए एक शॉट खेला और बॉल पाकिस्तानी गोल कीपर की पहुंच से दूर गोल लाइन के पार हो गई हो.
इसी के साथ भारत ने 1-0 से पाकिस्तान को हरा कर फाइनल मैच जीत लिया था.
ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की ये छठी जीत थी. ये ओलंपिक में टीम खेल में किसी भी देश के लिए एक रिकॉर्ड था.
भारतीय हॉकी टीम ने 1956 के ओलंपिक में कुल 5 मैच खेले थे. जिसमें से उसे सभी मैचों में जीत मिली. भारतीय खिलाड़ियों ने कुल मिलाकर 38 गोल किए. वहीं, भारतीय खिलाड़ी हरदयाल सिंह ने इस पूरे ओलंपिक में कुल मिलाकर 6 गोल किए थे.
वहीं, फाइनल तक भारत के खिलाफ कोई भी टीम इस ओलंपिक में एक भी गोल नहीं कर पाई थी.
हरदयाल सिंह ने ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम के हिस्सा रहते हुए कुल 19 गोल किए थे. इसके बाद हरदयाल सिंह 1985 में एशिया कप खेलने गई भारतीय हॉकी टीम के मुख्य कोच भी रहे.
Web Title: Remembering Olympic Hockey Gold Medallist Subedar Hardayal Singh, Hindi Article
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