कहावत है कि शेर अगर बूढ़ा भी हो जाए तो उसकी काबिलियत पर शक नहीं करना चाहिए. बूढ़ा शेर उतना ही घातक होता है, जितना तूफान के आने से पहले की शांति.
शेर को हमेशा से ताकत का दूसरा नाम माना जाता है!
हम बात कर रहें हैं भारतीय हॉकी के एक ऐसे बूढ़े शेर की जिसके खाते में जितने पदक है, उससे कहीं ज्यादा लोगों के दिलों में उसके लिए सम्मान. वह पद्मश्री भी हैं और भारत के खेल रत्न भी. वह हॉकी के जादूगर तो नहीं, लेकिन उनके हाथ में पकड़ी गई हॉकी स्टिक गेंद को जरूर नाटकीय अंदाज जरूर देती है.
कहते हैं कि जब वह उनका खेल शुरू होता है, तो विपक्षी टीम के गोल पोस्ट में जाकर ही दम तोड़ता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं पूर्व भारतीय कप्तान सरदार सिंह की. भारतीय हॉकी का वो बूढ़ा शेर, जिसने भारत के लिए हॉकी के मैदान पर जीत की कई कहानियां लिखीं.
ऐसे में यह जानना दिलचस्प रहेगा कि उन्होंने किस तरह से हॉकी को अपना करियर बनाया और कैसे वह कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते चले गए–
विरासत में मिला था ‘हॉकी’ का इल्म
15 जुलाई 1986 को हरियाणा के सिरसा जिले में जन्मे सरदार सिंह का ताल्लुक हॉकी के परिवार से था. छोटी सी उम्र में जब बच्चे खिलौनों की मांग करते थे, तब सरदार सिंह ने हॉकी स्टिक को अपना खिलौना बना लिया.
असल में उनके बड़े भाई दिलदार सिंह राष्ट्रीय टीम से खेल चुके हैं. इसके अवाला वह अपने समय के शानदार ड्रैगफ्लिकर विशेषज्ञ रहे हैं. यही नहीं वह प्रीमियर हॉकी लीग में हैदराबाद सुल्तान के लिए भी खेलते हुए देखे गए.
इस लिहाज से कह सकते हैं कि सरदार हॉकी के स्टिक के साथ ही बड़े हुए. यही कारण रहा कि जब वह बड़े हुए तो करियर को लेकर उनका नज़रिया एकदम साफ था.
Sardar Singh (Pic: Odisha Live)
आसान नहीं था ‘सरदार’ का सफर
हॉकी के जूनून और अपनी मेहनत के चलते सरदार जल्द ही चयनकर्ताओं की नज़र में आ गए. 2003-2004 में उन्हें भारतीय जूनियर टीम के पोलैंड दौरे पर टीम की तरफ में खेलने का मौका मिला. चूंकि सरदार एक छोटी सी जगह से आने आए थे, इसलिए दर्शकों की बड़ी संख्या के सामने खेलना उनके लिए चुनौतीपूर्ण रहा.
शुरुआती करीब 70 मिनट तक सरदार सिंह गेंद को एक बार भी नहीं छू सके और उसके इर्द-गिर्द ही घूमतेरहे. इसका नतीजा यह रहा कि उनके मन में एक बात घर कर गई कि वह बड़े स्तर पर नहीं खेल सकते. खैर, उन्होंंने हार नहीं मानी और पहले से ज्यादा मेहनत शुरू कर दी.
साल 2006 में उनकी मेहनत रंग लाई और यह साल उनके करियर का सबसे बड़ी खुशी लेकर आया. यही वह साल था, जब सरदार सिंह को पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला अंतराराष्ट्रीय हॉकी खेलने का मौका मिला.
इसके बाद सरदार सिंह ने कभी भी करियर में पीछे मुड़कर नहीं देखा.
Sardar Singh in Ground (Pic: Republic TV)
कप्तान बनने के बाद क्या…
सिलसिला आगे बढ़ा तो सरदार सिंह साल 2008 में 22 बरस की उम्र में सुल्तान अजलान शाह कप में भारतीय टीम के सबसे युवा कप्तान बनाये गए.
एक कप्तान के तौर पर सरदार सिंह 16 टूर्नामेंट खेल चुके हैं, जिसमें विश्व कप, चैंपियंस ट्रॉफी, हॉकी विश्व लीग, अजलान शाह कप, एशिया कप, एशियन गेम एशियन चैंपियंस ट्रॉफी और राष्ट्रमंडल खेल जैसे टूर्नामेंट शामिल है.
इंचियोन में आयोजित एशियाई खेल 2014 के उद्घाटन समारोह में भारतीय दल के ध्वजवाहक के रूप में भी सरदार सिंह ही दिखे. यह सीजन भारत के नाम रहा और सरदार की कप्तानी में भारत स्वर्ण पदक विजेता बना.
इस जीत के बाद भारत रियो ओलंपिक 2016 में भी क्वालीफाई करने में सफल रहा.
बतौर खिलाड़ी बात की जाए तो सरदार सिंह अब तक 37 टूर्नामेंट खेल चुके हैं. टीम में एक खिलाड़ी के तौर पर रहते हुए जहां उन्होंने 7 स्वर्ण अपने नाम किए. वहीं बतौर कप्तान पर 3 स्वर्ण पदकों पर उनका कब्जा रहा.
बतौर कप्तान उनके नाम 5 रजत और 2 कांस्य पदक भी दर्ज हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि सरदार भारत की तरफ से ह़ॉकी में कप्तानी करने वाले सबसे युवा कप्तान रहे. 2008 में उन्हें कप्तानी मिली, तब वह महज 21 साल के थे.
Sardar Singh with Indian Flag (Pic: IHN)
शोहरत के साथ ‘विवाद’ भी…
सरदार अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ की 2010 और 2011 टीम का हिस्सा भी रहे.
हॉकी इंडिया लीग के पहले संस्करण में सरदार सिंह सबसे महंगे खिलाड़ी बनकर उभरे. इस प्रतियोगिता में उन्हें दिल्ली की टीम ने 42.49 लाख रुपए में खरीदकर अपना हिस्सा बनाया था. जिस तरह से दिल्ली ने उन पर भरोसा दिखाया था, उसी तरह उन्होंने मैदान पर अपना जलवा भी दिखाया. इस टूर्नामेंट में वह ‘प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ रहे थे.
इसी कड़ी में साल 2015 में उन्हें देश का चौथा सबसे सम्मानित पुरस्कार ‘पद्मश्री’ मिला दिया गया. इसके पहले उन्हें 2012 में अर्जुन पुरूस्कार से भी सम्मानित किया गया.
सरदार सिंह के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया जब उन पर यौन शोषण के आरोप लगे. दिलचस्प बात तो यह थी कि उन पर यह आरोप उनकी कथित मंगेतर ने ही लगाए थे.
बकायदे उन्होंने पंजाब पुलिस से लिखित शिकायत करते हुए कहा था कि सरदार सिंह ने उन्हें शादी का झांसा देकर उनके साथ यौन शोषण किया. मंगेतर का कहना है कि साल 2012 में इनके रिश्ते की शुरुआत हुई थी, जोकि 2014 में सगाई के साथ आगे बढ़ा था.
यह मामला लंबे समय तक सुर्खियों में रहा था.
यहाँ तक कि इसके कारण उसी साल जब चयनकर्ताओं ने उनका नाम, दिव्यांग जेवलिन थ्रोअर देविंदर झाझरिआ के साथ सयुंक्त रूप से राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए चुना गया, तो विवाद छिड़ गया था.
सवाल उठा कि क्या सरदार इस पुरस्कार को योग्य हैं, जबकि उन पर एक महिला द्वारा यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए गए थे. हालांकि, इस विवाद के बावजूद उन्हें 2017 में राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया था.
President Presented the Rajiv Gandhi Khel Ratna Award to Sardar Singh (Pic: HT)
वर्तमान में वह टीम इंडिया में सेंटर-हाफ खेलने वाला यह बूढ़ा शेर हरियाणा पुलिस में ‘डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट’ पुलिस अधिकारी का रुतबा रखता है.
आज भले ही उसकी उम्र हो चली है, लेकिन आज भी वह अच्छे-अच्छों पर भारी है. शायद यही कारण है कि उसे लोग भारतीय हॉकी टीम का बूढ़ा शेर कहते हैं!
वैसे आपका फेवरिट हॉकी प्लेयर कौन है?
Web Title: Sardar Singh Youngest Hockey Captain, Hindi Article
Feature Image Credit: The SportsRush