रवि शास्त्री के बारे में कहा जाता है कि जब उन्होंने भारतीय क्रिकेट में इंट्री ली, तो वह महज 17 साल के थे. इससे भी खास बात तो यह थी कि वह मुंबई के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे. उसी मुंबई के जहां से सचिन तेंदुलकर जैसे महान बल्लेबाज निकले हैं.
क्रिकेट में रवि शास्त्री की इंट्री भी ठीक-ठाक रही. शुरुआती दिनों में वह अपने हरफनमौला खेल से सबको प्रभावित करने में सफल भी रहे. फिर उन्हें उनके खेल से ज्यादा अन्य गतिविधियों के लिए क्यों जाना जाता है?
उनका नाम लेने पर सबसे पहले लोगों की आंखों के सामने कमेंट्री करते हुए उनका चेहरा क्यों नज़र आता है?
ऐसी कौन सी खासियतें हैं, जिनके कारण वह अपने करियर में एक के बाद एक मलाईदार पद पाते रहे. आईये जानने की कोशिश करते हैं:
बतौर खिलाड़ी ठीक ठाक ही रहे…
रवि शास्त्री ने टीम इंडिया की ओर से 80 टेस्ट और 150 वनडे खेले हैं. टेस्ट की बात की जाये तो उन्होंने 35.79 की औसत से 3830 रन बनाये. इसमें 11 शतक और 12 अर्धशतक शामिल हैं. जबकि, वनडे में उनके नाम 29.04 की औसत से 3108 रन दर्ज हैं. शतकों की बात की जाये तो इसमें सिर्फ 4 शतक ही वह बना पाये.
बैटिंग के दौरान उन पर धीमी बल्लेबाज़ी के आरोप तक लगते रहे, कहा जाता रहा कि वह टीम के लिए नहीं बल्कि अपने लिए खेलते थे. कहा तो यहां तक जाता है कि वह टीम में सिर्फ़ इसलिए चुने जाते थे, क्योंकि मुंबई का होने के नाते उनकी गावस्कर से अच्छी बनती थी. खैर, बातों का कोई अंत तो है नहीं!
वैसे शास्त्री कई मौकों पर टीम के लिए मददगार भी साबित हुए. वह अपने दौर के एक ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्होंने 1 से लेकर 10 तक, हर नंबर पर बैटिंग की. उनके करियर का सबसे ज्यादा खास पल उस दौरे को माना जाता है, जिसमें वह ‘चैंपियन ऑफ चैंपियंस’ चुने गये थे. उन्हें यह खिताब 1985 की वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ क्रिकेट में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए दिया गया था. उनके नाम 1 ओवर में 6 छक्के लगाने का रिकॉर्ड भी दर्ज है.
बताते चलें कि शास्त्री 1983 में विश्वकप जीतने वाली टीम का हिस्सा भी थे. वह बात और है कि उनका प्रदर्शन इसमें बहुत अच्छा नहीं रहा. उन्होंने जहां बल्लेबाजी करते हुए 10 के औसत से 5 मैचों में मात्र 40 रन ही अपनी टीम के लिए जोड़ सके, वहीं गेंदबाजी करते हुए 4.31 के इकॉनमी के साथ 4 विकेटों का योगदान बेहद कम था.
किन्तु भारत विश्व विजेता बना था, इसलिए उनको इसका भरपूर फायदा मिला और वह वर्ल्ड कप विनिंग टीम के मेम्बर बन गए.
Ravi Shastri Bat (Pic: espncricinfo)
क्रिकेट से ग्लैमर की ओर
शास्त्री 31 साल के थे, जब उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया. वह चाहते तो कोई क्रिकेट एकेडमी आदि खोल सकते थे, जहां नव युवकों को वह क्रिकेट के गुर सिखा सकते थे. मगर उन्होंने इससे इतर अपने उस पहलू पर काम किया, जो उन्हें एक ब्रांड मैनेजर बना सकता था. गौरतलब हो कि रवि शास्त्री अपने दौर में भारतीय क्रिकेट के ग्लैमर बॉय कहे जाते थे. उनका लंबा-चौड़ा शरीर आकर्षण का केंद्र हुआ करता था. युवा उनके पहनावे व हेयर स्टाइल तक को कॉपी करते थे.
रितु सिंह के साथ शादी करने के बाद उन्होंने मुंबई में वर्ल्ड मास्टर्स टूर्नामेंट के दौरान एक टीवी एंकर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. शो हिट रहा और शास्त्री की निकल पड़ी. वह अब लगातार लोगों को टीवी पर दिखने लगे. उनका यह अवतार न सिर्फ लोगों को पसंद आया बल्कि आईसीसी और बीसीसीआई का ध्यान भी खींचने में सफल रहा. उन्हें इनके द्वारा ‘यूनिसेफ गुडविल एंबेसडर’ के रूप में काम करने का मौका दिया गया.
2003 में वे एक सेलिब्रिटी मैनेजमेंट कंपनी शोडिफ वर्ल्डवाइड में हिस्सेदार बने. सिलसिला आगे बढ़ा तो वह एक हाई प्रोफाइल टीवी कॉमेंटेटर के रुप में स्थापित हुए. इतने हाई-प्रोफाइल कि कई लोगों को जब यह पता चलता है कि वह एक क्रिकेट प्लेयर थे, तो लोग इस तरह देखते हैं, जैसे मानो उनसे मजाक किया गया हो.
हालांकि, वीरेन्द्र सहवाग, गांगुली, आकाश चोपड़ा और शास्त्री के साथी रहे सुनील गावस्कर समेत कई अन्य नाम हैं, जो कमेंट्री करते हैं, लेकिन इस फिल्ड में शास्त्री की बात ही कुछ और रही!
Ravi Shastri with Nimrat Kaur (Pic: pages.rediff)
बीसीसीआई के फेवरेट ‘शास्त्री’
‘शास्त्री’अपनी ब्रांड मैनेजिंग क्वालिटी के चलते बीसीसीआई की नज़रों में हमेशा रहे. शायद यही कारण था कि 2007 में ग्रेग चैपल के इस्तीफे के बाद उन्हें बांग्लादेश के दौरे के लिए भारतीय टीम का अस्थायी कोच बनाकर भेजा गया. इसी तरह बीच-बीच में उन्हें कई मलाईदार पद मिलते रहे.
2014 में शास्त्री कुछ समय के लिए भारतीय क्रिकेट टीम के डॉयरेक्टर बनाये गये. यही नहीं उन्हें लगभग 18 महीनों तक भारतीय क्रिकेट टीम को बतौर प्रशिक्षक लीड करने का मौका भी मिला. यह दौर उनके लिए गोल्डन पीरियड जैसा रहा. घरेलू मैदान समेत विदेशी दौरों पर भी भारतीय क्रिकेट टीम का सफर शानदार रहा.
टीम के प्रदर्शन के बढ़ते आंकड़ों ने शास्त्री को ‘हेड कोच‘ बनने के सपने दिखा दिये. वह इस पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार भी माने जा रहे थे, पर अंतिम मौके पर उस समय के बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने अनिल कुंबले का नाम लेकर उनको सरप्रराइज कर दिया था.
विवादों के पार
2017 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के बाद माना जा रहा था कि बतौर कोच कुंबले का कार्यकाल बढ़ा दिया जायेगा.
किन्तु, किस्मत और टीम इंडिया के कैप्टन विराट कोहली शास्त्री के साथ थे!
बीसीसीआई ने कुंबले की सफलताओं को नजरअंदाज करते हुए, नए कोच के लिए आवेदन मांग लिये. इस बीच कोहली-कुंबले के बीच मनमुटाव की खबरें भी सामने आईं. इस मौके का फायदा उठाकर बीसीसीआई ने मौके पर चौका मारा. उसने एक बार फिर से बता दिया कि शास्त्री उनके खास हैं.
नियमों को दरकिनार करते हुए बीसीसीआई ने नये आवेदन मांगे, तो अचानक शास्त्री ने इंट्री ले ली. इस पूरी प्रक्रिया ने रवि शास्त्री के कद को बड़ा किया. चूंकि रवि शास्त्री की इंट्री विशेष परिस्थितियों में हुई थी, इसलिए गांगुली, सचिन और लक्ष्मण वाली क्रिकेट एडवाइजरी को शास्त्री के नाम पर सहमति देनी ही पड़ी.
इस तरह कथित तौर पर एक बार फिर शास्त्री का जुगाड़ उनके काम आया! वह भारतीय टीम के मुख्य कोच का पद हासिल करने में सफल रहे.
जाहिर तौर पर इस सफर में उन्हें कप्तान विराट कोहली का पूरा साथ मिला.
Ravi Shastri and Virat (Pic: swamirara)
अब शस्त्री कैसे भी यहां तक पहुंचे हो, लेकिन सच तो यह है कि बतौर कोच विराट के साथ अभी तक शास्त्री की जुगलबंदी हिट रही है. टीम भी बढ़िया प्रदर्शन कर रही है. हाल ही उसने ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीम को 5-1 से एक वन-डे सीरीज हराई है.
इस लिहाज से वह एक मशहूर कमेंटेटर की तरह भारतीय टीम के साथ बतौर कोच भी हिट हैं.
आगे भी उम्मीद है कि ‘शास्त्री’ इसी तरह से टीम में संतुलन बनाये रखेंगे, ताकि टीम इंडिया हर रास्ते पर नई बुलंदियों छूती रहे.
Web Title: Story of Ravi Shastri’s Career, Hindi Article
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