भारतीय फुटबॉल के इतिहास में बाइचुंग भूटिया के बाद अगर किसी फुटबॉल खिलाड़ी का नाम आता है, तो वह भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री हैं!
हाल फिलहाल की बात करें, तो इनकी एक भावुक अपील ने लोगों को अपना दीवाना बना लिया. उनकी अपील को भारत के कई नामचीन हस्तियों ने समर्थन भी किया है. ऐसे में उनके जीवन से जुड़े पहलुओं को जानना दिलचस्प होगा.
तो देर किस बात की है आईये जानते हैं-
बचपन में चुराए थे मां के 50 रुपए!
कप्तान सुनील छेत्री का जन्म 3 अगस्त 1984 को नेपाल के सिकंदराबाद जिले में हुआ था. इनकी मां और बहन नेपाल की महिला टीम के लिए फुटबॉल खेल चुकी है. शायद यही वजह रही कि इनकी दिलचस्पी भी इस खेल की तरफ हो गयी!
खैर, आज सुनील छेत्री भले ही भारत के सबसे महंगे फुटबॉलर है, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी था जब वह कुछ पैसों की खातिर चोरी भी किया करते थे. इसका खुलासा उन्होंने खुद 'फुटबॉल क्लब बेंगलुरु एफसी' से किया था.
उन्होंने बताया कि बचपन में एक बार मैंने घर पर चोरी की थी, क्योंकि उन्हें पैसों की सख्त ज़रुरत थी. असल में उन्होंने अपनी माँ से 50 रूपए मांगे, जिसको देने से उनकी मां ने इंकार कर दिया. ऐसे में उन्होंने चोरी की थी. बाद में मां को यह बात पता लगी तो, उन्होंने छेत्री को कुर्सी से बांध दिया और तक़रीबन दो घंटों तक मेरी पिटाई करती रहीं!
हालांकि, पिटाई के बाद वह अपने कमरे में चली गईं और रोने लगीं. फिर उन्होंने उन्हेें अपने कमरे में बुलाया और माफ़ी मांगी. उन्होंने कहा कि क्या हम अपने बेटे की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं... क्या हम उसको चोर बना रहे हैं...
छेत्री बताते हैं कि मां को इस तरह भावुक देखने के बाद मुझे अपने किए पर बहुत निराशा हुई थी. इस घटना के बाद मैंने यह फैसला किया कि आज के बाद ऐसी बेवकूफी और बचकाना रवैया नहीं करूंगा.
बिना टिकट बस का सफर, क्योंकि...
छेत्री के पिता एक आर्मी अफसर थे, इसलिए उनका ट्रांसफर होता रहता था.
ऐसे में सुनील छेत्री का बचपन काफी हलचल भरा रहा. इनके परिवार को लगातार घर बदलना पड़ा. इस तरह सुनील का बचपन अलग-अलग शहरों में बीता. वैसे ज्यादातर वो दिल्ली में ही रहे. पढ़ाई की बात करें तो इन्होंने गंगटोक, दार्जलिंग, कोलकाता और नई दिल्ली के सेना पब्लिक स्कूल से अपनी इंटर तक की पढ़ाई पूरी की.
खास बात यह रही कि इस पूरे सफर में उनके पिता की खास भूमिका रही.
उन्होंने छेत्री का हमेशा सपोर्ट किया. कहते हैं कि वह अक्सर उन्हें साइकिल से छोड़ने बस स्टॉप जाया करते थे. साथ ही उनको उतने ही पैसे इनको देते, जितना बस का किराया होता. ऐसे में ये बस का टिकट नहीं लेते और बिना टिकट ही सफ़र करते.
असल में वह उन पैसो को अपने पॉकेट खर्च के लिए बचाते थे!
किताबें पीछे छूटी और फुटबॉल बनी दोस्त
2001 में हुए एशियाई स्कूल चैम्पियनशिप में उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौक़ा मिला.
बस यहीं से किताबें उनसे पीछे छूट गईं और फुटबॉल उनकी दोस्त बन गई! पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्हें दिल्ली के कई क्लबों से जुड़कर अपनी प्रतिभा का मौका मिला. इसी क्रम में उन्होंने संतोष ट्राफी में दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया.
आगे उनको 2002 में मशहूर फुटबॉल क्लब मोहन बागान से खेलने का मौक़ा मिला. इस क्लब से जुड़ने पर उनका खेल दिन प्रतिदिन निखरता गया. यहां से उनको अधिक दर्शकों के बीच दबाव को किनारे करते हुए खेलने का अनुभव प्राप्त हुआ.
फिर वह मौका आया, जिसके उन्हें इंतजार था. 2005 में उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मैच खेलने का मौक़ा मिला.
इसके बाद उन्होंने पलट कर नहीं देखा. 2006-2007 में हुए राष्ट्रीय फुटबॉल लीग में तो उनका प्रदर्शन बुलदियों पर था. इसमें उन्होंने 12 गोल किए थे, जिसके लिए वह उस साल 'एनएफएल का प्लेयर ऑफ़ द ईयर' चुने गए.
विदेशी क्लब से खेलने वाले तीसरे भारतीय
ये सफर यही नहीं रुका. 2008 में हुए एएफसी चैलेंज कप में उन्होंने ताजिकिस्तान के खिलाफ 3 गोल दागकर भारत को 27 साल बाद एशिया कप में प्रवेश दिलाया. लगातार सुनील अपनी प्रतिभा से अपने फैंसों को अपना दीवाना बनाते रहे.
एक वक़्त ऐसा भी आया, जब इनको 2009 में अपनी फार्म से जूझना पड़ा और जिसकी वजह इनको फीफा रैंकिंग की सूची से बाहर कर दिया गया. हालांकि, ये अपने लगातार संघर्षों से अपनी फार्म को वापस पाने में कामयाब रहे.
नेहरु कप में भारतीय राष्ट्रीय टीम का ख़िताब बचाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इसके बाद उन्होंने 2010 में विदेशी फुटबॉल क्लब केंसास सिटी विजार्ड्स के लिए खेलकर तीसरे भारतीय फुटबॉल खिलाड़ियों में अपना नाम दर्ज करवाया. इनसे पहले मोहम्मद सलेम और बाईचुंग भूटिया ने यह कारनामा किया था.
सबसे ज्यादा गोल दागने वाले भारतीय
सुनील छेत्री को 2007, 2011, 2012 और 2014 में एआईएफएफ का प्लेयर ऑफ़ द ईयर चुना गया था. वह 4 बार ऐसा करने वाले भारतीय बने. इसी के साथ सुनील भारत के लिए सबसे ज्यादा गोल करने वाले पहले भारतीय फुटबॉलर हैं.
विश्व में भारत का नाम फुटबॉल के लिए भले ही न लिया जाए, लेकिन इस प्रतिभावान खिलाड़ी ने अपने खेल से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेल प्रेमियों के दिल में अपनी जगह बना ली है.
उन्होंने 2011 के सैफ चैम्पियनशिप में भारत को जीत दिलाने में अहम किरदार निभाया था. आगे उनके लगातार बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए उनको मलेशिया में 2012 के एएफसी चैलेंज कप में भारतीय फुटबॉल टीम का कैप्टन चुना गया.
साथ ही भारत को इस खेल में एक नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए प्रयत्नशील हैं.
हाल ही में उन्होंने 102 मैचों में 64 अंतर्राष्ट्रीय गोल करके अर्जेंटीना के सुपरस्टार फुटबॉलर मेसी की बराबरी कर ली है.
वह अर्जुन पुरस्कार जैसे बड़े सम्मान से भी नवाजे जा चुके हैं.
भारतीय फुटबॉलर की बेटी से रचाई शादी
छेत्री ने 4 दिसंबर 2017 को अपनी प्रेमिका सोनम भट्टाचार्य से शादी कर ली.
सोनम इंडियन फुटबॉलर सुब्रत भट्टाचार्य की बेटी हैं. सुब्रत भट्टाचार्य बागान क्लब के खिलाड़ी और कोच दोनों रहें हैं. बताते चलें कि छेत्री भी 'मोहन बागान क्लब' की तरफ से खेलते थे. उसी दौरान उनकी मुलाकात सोनम से हुई थी.
आगे दोनों दोस्त बने तो करीबियां बढ़ीं. बाद में दोनों कई दिनों तक प्रेम संबंध में रहे फिर शादी के बंधन में बंध गए.
छेत्री भारतीय फुटबॉलर बाईचुंग भाटिया को अपना प्रेरणास्रोत और वहीं ब्राज़ील के स्टार फुटबॉलर रोनाल्डो को अपना पसंदीदा खिलाड़ी मानते हैं. उनको रोनाल्डो की गति और क्षमता और इनके रिकार्डस प्रेरित करती है.
इनकी इस सूची में मेसी और एंड्रेस इनिएस्टा का नाम भी शामिल है. इसी के साथ छेत्री का क्रिकेट जगत में सबसे पसंदीदा खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी हैं और बॉलीवुड की पसंदीदा अभिनेत्री कोकणा सेन हैं!
तो ये थे भारतीय फुटबाल टीम के कप्तान सुनील छेत्री के जीवन से जुड़े कुछ पहलू.
अगर आप भी इनसे जुड़ी कुछ बातों को जानते हैं, तो कृपया कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं.
Web Title: Sunil Chhetri are most goalscorer of Indian Football Player , Hindi Artilce
Feature Image Credit: championsleague