एक जुलाई 1961 को इंग्लैंड की सड़कों पर कार सवार एक 21 साल का युवक घूम रहा था. अचानक से उनकी गाड़ी एक बड़ी गाड़ी से टकरा गई. एक्सीडेंट इतना भयानक था कि कार का शीशा उसकी दायीं आंख में जा घुसा.
सड़क पर अफरा-तफरी मच गई. आनन-फानन में इस लड़के को अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टरों की एक टीम जल्दी उस लड़के को लेकर ऑपरेशन थियेटर में घुसी.
जैसे ही लाल लाइट बंद हुई, डॉक्टर बाहर निकले और उन्होंने कहा कि ये लड़का अब कभी अपनी एक आंख से नहीं देख पाएगा. लड़के की आंख की रेटीना ने काम करना बंद कर दिया था.
लगभग अंधी हो चुकी जिंदगी में जीना और ऐसे जीना, जो लोगों के लिए आदर्श बन जाए, इस लड़के ने ही सिखाया.
एक आंख खराब होने के बाद इन्होंने अपनी जिंदगी के 6 महीने बिस्तर पर गुजारे, लेकिन हार नहीं मानी. और फिर दिसंबर 1961 में इंग्लैंड क्रिकेट टीम के खिलाफ अपने टेस्ट करियर का आगाज किया.
तब मद्रास में खेले गए तीसरे टेस्ट में इनके बल्ले से 103 रन की शानदार पारी निकली. यहां से एक क्रिकेटर का उदय हुआ, जिसे दुनिया नवाब मोहम्मद मंसूर अली खान पटौदी के नाम से जानती है.
22 सितंबर 2011 में दुनिया को अलविदा कह चुके टाइगर पटौदी के सफर को जानना बेहद दिलचस्प होगा –
नवाबी में गुज़रा बचपन
नवाब मंसूर अली खान पटौदी भारत के नवाब खानदान से ताल्लुक रखते थे. भारत की आज़ादी से पहले जन्मे मंसूर अली खान पटौदी रईस खानदान से थे. 5 जनवरी 1941 को पैदा हुए मंसूर ने बचपन में ही घर के आंगन में अमीरी देखी थी.
जब उनके अब्बा नवाब इफ्तिखार अली पटौदी के सामने नौकरों की कतार खड़े होकर उनके अब्बा के हुक्म का इंतज़ार करती थी. भोपाल में उनकी पुश्तैनी हवेली थी. जिसमें 150 कमरे थे. मंसूर अली नवाबों के खानदान से थे.
मंसूर अली खान के अब्बा इफ्तिखार अली खान अपने दौर के जाने-माने क्रिकेटर थे. उनके अब्बा इंग्लैंड की तरफ से खेलते थे.
मंसूर की उम्र जब 11 साल रही होगी, तब अब्बा की दिल्ली में मौत हो गई थी. उसके बाद मंसूर इंग्लैंड चले गए. वहां रहकर खूब मस्ती की. दोस्त बनाए, क्रिकेट खेला और हर शौक पूरा किया. क्रिकेट के ज़बरदस्त प्लेयर थे. मैदान पर खड़े हो जाते तो गेंदबाज़ों का पसीना छुड़ा देते.
एक्सीडेंट में आंख खोई, हौंसला नहीं
अब्बा के इंतेकाल के बाद, इंग्लैंड में मंसूर बढ़े हो रहे थे. उस दौर में क्रिकेट का चलन भी बढ़ रहा था, लेकिन तब क्रिकेट को रॉयल लोग ही खेलते थे. यानि के उस दौर में इस खेल को वही खेल सकता था, जो रईस हो.
मंसूर इंग्लैंड पहुंचे तो अब्बा का असर तो आना ही था, पढ़ाई के साथ- साथ क्रिकेट खेलने लगे. 20 साल की उम्र में इंग्लैंड में घरेलू मैच खेलते थे.
एक दिन दोस्तों के साथ कार में बैठकर घूमने निकले और एक्सीडेंट में आंख की रोशनी चली गई. दोस्तों ने मान लिया कि मंसूर अब नहीं खेल पाएगा, मंसूर ने आंख खोई हौंसला बरकरार था.
क्रिकेट प्रैक्टिस जारी रखी. 6 महिने ही गुज़रे थे क्रिकेट के मैदान में उतरे और इंग्लैंड के खिलाफ यादगार पारी खेल डाली. पहले ही मैच में 103 रनों की बेहतरीन पारी खेली.
मंसूर 21 बरस की उम्र में टीम इंडिया के कप्तान बना दिए गए, तब वो टीम इंडिया के सबसे नौजवान कप्तान थे.
मंसूर अली ने अपने क्रिकेट करियर में 46 मैच खेले, जिसमें 40 मैचों में टीम इंडिया को लीड किया. इनमें से 9 मैचों में टीम को जीत दिलाई, 19 में हार और 19 मैच ड्रॉ पर छूटे.
ये पंक्ति क्रिकेट प्रशंसकों को ज़रा ध्यान से पढ़ना चाहिए.
विदेशी ज़मी पर पहली जीत दिलाने का श्रेय भी कप्तान मंसूर को जाता है. साल 1968, में न्यूजीलैंड जैसी मज़बूत टीम के खिलाफ पहली विदेशी जीत दिलाई. जिसके बाद “ टाइगर पटौदी” के नाम से मशहूर हुए.
अपने क्रिकेटिंग करियर में 1961 से 1975 तक टीम इंडिया के लिए खेलते रहे, करीब 2790 रन अपने नाम के आगे जोड़े.1975 के दौर में क्रिकेट को अलविदा कह दिया.
जब बॉलीवुड हसीना पर आया टाइगर का दिल
टाइगर पटौदी एक आंख से ही गेंदबाज़ के हाथ में गेंद को पढ़ लेते थे, पता रहता था कि बॉल को कहां टप्पा खिलाएगा. बल्ले का मुंह खोलते थे बॉल बाउंड्री लाइन के पार. क्रिकेटिंग करियर के दौरान टाइग पटौदी अपना दिल बॉलीवुड हसीना शर्मिला टैगोर पर हार बैठे.
क्रिकेट से आगे टाइगर पटौदी मुहब्बत की मंज़िल की तरफ अपनी किस्मत आज़माने के लिए निकलते हैं. वो साल 1967 का था, मंसूर पटौदी की मुलाकता शर्मिला टैगोर से एक पार्टी के दौरान हुई. टाइगर पटौदी की बातचीत हुई, पहली मुलाकात पर बंगाली सुंदरी पर दिल खो बैठे.
शर्मिला ने टाइगर पटौदी को ज़्यादा कुछ भाव नहीं दिए, जानती थीं कि नवाब खानदान से हैं. अख्खड़ होंगे या लापरवाह होंगे. दूसरा पहलू ये था कि शर्मिला टैगोर एक बंगाली परिवार से थीं, पटौदी मुसलमान. इसलिए उन्होंने दूर रहना ही बेहतर समझा.
दोनों के बीच मोहब्बत का आगाज़ हुआ ही था, टाइगर पटौदी ने शर्मिला टैगोर को एक गिफ्ट भेजा. गिफ्ट था रेफ्रिजेरेटर.
ये वो दौर था जब कोई प्रेमी अपनी प्रमिका को उसकी पसंद की चीज़ नहीं, दुनिया के स्टेंडर्ड के हिसाब से गिफ्ट देता था. उनकी बेटी सोहा अली खान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘अब्बा ने एक नहीं, अम्मा को 7-7 रेफ्रिजेरेटर गिफ्ट के तौर पर भिजवाए थे.’
खैर, दिल फेंक नवाब के आगे शर्मिला कब तक पत्थर बनी रहतीं, वो मोम की तरह पिघल गईं. 1967 में दोनों ने पहले सगाई की. 27 दिसंबर, साल 1969 को दोनों ने शादी कर ली.
राजनीति की पिच पर हुए बोल्ड
क्रिकेट की पिच पर गेंदबाज़ों को पानी पीलाने वाले टाइगर राजनीति की पिच पर बोल्ड हो गए. बहुत कम लोग ही जानते हैं कि मंसूर अली खान पटौदी क्रिकेट के अलावा कई और खेलों में भी काफी महारथी थे.
ये सब खेल, शायद उन्हें विरासत में मिले थे. हॉकी, सॉकर, बैडमिंटन के बेहतरीन प्लेयर थे. अब्बा इफ्तिख़ार अली ख़ान को पोलो का शौक़ था.
अब बात उनके इंतेकाल से कुछ दिन पहले की, भारत में आईपीएल का आगाज़ हुआ. टाइगर को आईपीएल की गवर्निंग काउंसिल से जोड़ा गया. टाइगर का नवाबी अंदाज़ तब पता चला, जब उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर पेमेंट नहीं करने का आरोप लगा दिया था.
खैर, नवाब अपने मिजाज़ के तहत साल 2010 में आईपीएल से हट लिए. साल 1991 में नवाब मंसूर अली खान पटौदी ने 1991 में भोपाल से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन राजनीति की पिच पर बोल्ड हो गए.
रामजन्म भूमि को लेकर हिंदू- मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण होने से, उन्हें चुनाव के मैदान में शिकस्त मिली.
शर्मिला टैगोर और टाइगर पटौदी के तीन बच्चे हैं. बेटे सैफ अली खान को तो लोग छोटे नवाब के नाम से जानते ही हैं. बेटी सोहा अली खान भी एक जानी मानी अभिनेत्री हैं.
एक बेटी सबा अली खान हैं. सबा का ज्वैलरी का बिजनेस है. सैफ अली खान के बेटे तैमूर अली खान अभी पटौदी खानदान के वंशज ही हैं.
Web Title: The Nawab Of Pressure: Mohammad Mansoor Ali Khan Pataudi, Hindi Article
Feature Image Credit: Sportswallah