छत्तीसगढ़ वो राज्य है, जो कभी मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. हालांकि, 1 नवंबर 2000 को इसे अलग राज्य घोषित कर दिया गया. कभी 'बीमारू राज्य' में गिनती होने वाले इस प्रदेश को आज, बास्केटबॉल प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है.
इसके पीछे कड़ी मेहनत और कभी न हार मानने का जज्बा रखने वाले स्वर्गीय राजेश पटेल का हाथ है. कौन है वह और ऐसा उन्होंने क्या कर दिया जिससे बीमारू प्रदेश को बास्केबॅाल प्रदेश के नाम से जाना जाने लगा, आईए जानते हैं–
गरीबी में गुजरा बचपन मगर...
7 जुलाई 1956 को इंदौर के परिवार में एक बच्चे की किलकारिया गूंजी. नाम रखा गया राजेश पटेल. पेशे से पिता श्री आर सी पटेल टैक्सी ड्राइवर थे और मां सूर्या सेन घर संभालती थीं.
परिवार के हालात इतने बुरे थे कि उन्हें एक समय के भोजन के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. हालांकि, राजेश साहब ने इन परेशानियों को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया.
उन्होंने जिंदगी में कुछ पाने के संकल्प के साथ बचपन से ही कड़ी मेहनत शुरू कर दी. पढ़ने के लिए किताबों तक के पैसे नहीं थे, तो उन्होंने लाइब्रेरी के सहारे अपनी पढ़ाई को जारी रखा.
इस दौरान उन्होंने कुछ बच्चों को बास्केटबॉल खेलते देखा और उनके अंदर भी एक जुनून सवार हो गया. उन्होंने सोचा कि मैं अपनी और अपने परिवार की जिंदगी इस खेल के सहारे बदलूंगा.
इस सफर में घर वालों ने भी उन्हें पूरा सहयोग दिया, लेकिन दिल्ली अभी भी बहुत दूर थी. राजेश पटेल के पास पहनने के लिए जूते नहीं थे.
इसके बाद भी उनके हौसलों में कभी भी कमी नहीं आई. वह मिट्टी के बास्केटबॉल कोर्ट पर नंगे पैर अभ्यास करने लगे.
इसके बाद एक दिन ऐसा कुछ हुआ जिसकी उम्मीद उन्हें बिल्कुल भी नहीं थी. साल 1972 के दौरान जेएम शर्मा ने इस खिलाड़ी की कड़ी मेहनत को देखाकर राजेश पटेल को मुफ्त में प्रशिक्षण देने का फैसला किया.
उस दिन के बाद से मानों राजेश पटेल के भाग खुल गए हों. उसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
कम कद की वजह से भारतीय टीम में नहीं मिली जगह!
जिस साल शर्मा ने राजेश पटेल को तराशा उसी साल उन्हें मध्य प्रदेश की नेशनल स्कूल टीम में शामिल कर लिया गया.
इसके बाद राजेश ने 1976 तक अपने राज्य की स्कूल टीम में बतौर कप्तान और खिलाड़ी हिस्सा लिया. इसी दौरान पटेल साहब को राज्य की जूनियर टीम में भी खेलना का मौका मिला.
हर बदलता दिन राजेश पटेल की झोली में खुशियों की सौगात ला रहा था. 1979 में राजेश के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए भिलाई स्टील प्लांट ने 5 नवंबर को उन्हें स्पोर्ट्स कोटे से अपने टीम में शामिल कर लिया.
राज्य के लिए मेहनत को देखते हुए 1981 में राजेश पटेल को विक्रम पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिता खेलीं.
और फिर वो दिन भी आया जिसका इस खिलाड़ी को बरसों से इंतजार था. 1980 एशियन गेम्स के लिए 20 खिलाड़ियों को प्रशिक्षण शिविर में आमंत्रित किया गया.
इसमें पटेल भी शामिल थे. हालांकि, भारतीय कोचों की पुरानी विचारधारा की वजह से इन्हें टीम में जगह नहीं दी गई.
चयनकर्ताओं का यह बहाना था कि भारतीय टीम में खेलने के लिए 6 फुट की हाइट होना अनिवार्य है. पटेल 5.5 इंच के थे जिस वजह से उन्हें टीम में शामिल नहीं किया जा सकता था.
इस बात का राजेश को बुरा तो लगा मगर वह फिर भी बास्केटबॉल से जुड़े रहे.
बास्केटबॉल के सहारे गरीब बच्चियों की जिंदगी सवारी
इस दौरान वो खेलने के साथ ही बच्चों को बास्केटबॉल के सिखाने लगे और आसमान छूने के सपनों को लगातार जीवित रखते रहे.
साथ ही 1988 में उन्होंने एनआईस कोलकाता का रुख किया, जहां उन्होंने कोचिंग के गुर सीखे. 1990 में पटेल ने फैसला किया कि हर दिन वो अब 16 से 17 घंटे तक बच्चों को प्रशिक्षण देंगे.
इसके साथ ही उन्होंने इस खेल को बतौर खिलाड़ी अलविदा कह दिया. 2000 के दौरान छत्तीसगढ़ को एक राज्य का दर्जा मिला और वो इस प्रदेश के बास्केटबॉल सेक्रटरी बन गए.
बच्चियों की जिंदगी सवारने का प्रण लेने वाले पटेल ने छत्तीसगढ़ सरकार की मदद से भिलाई स्टील में खिलाड़ियों के आवास के साथ खेलने के लिए बास्केटबॉल कोर्ट की स्थापना कराई.
हजारों बच्चियों के लिए सफलता के द्वार खोल दिए गए. ऐसी कोई प्रतियोगिता और वर्ग नहीं है, जहां राजेश पटेल की लड़कियों ने अपने नाम का झंडा ना गाड़ा हो.
इनके पास प्रशिक्षण लेने वाली 85 गरीब लड़कियों के पास स्पोर्ट्स कोटे के तहत सरकारी नौकरी है. इसमें 41 खिलाड़ियों ने हर उम्र वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और कुछ तो भारतीय टीम की कप्तान भी रह चुकी हैं.
पटेल साहब की निगरानी में...
पूर्व अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल खिलाड़ी सीमा सिंह बताती हैं कि, "जब उन्होंने 11 साल की उम्र में खेलना शुरू किया था, तो डॅाक्टर ने जवाब दे दिया था कि यह खिलाड़ी बहुत कमजोर है यह नहीं खेल सकती."
उस समय पटेल साहब वो शख्स थे जिन्होंने इस खिलाड़ी को लगातार मेहनत और अच्छा खाना खिलाकर एक अच्छा खिलाड़ी बनाया.
इतना ही नहीं उन्होंने सीमा को इतना काबिल बनाया कि सीमा को पहले रेलवे में नौकरी और फिर भारतीय टीम भी जगह मिल गई.
सीमा ने राजेश पटेल की निगरानी में लगातार 10 साल से विजेता रह रही भारतीय रेलवे टीम को हराकर भारतीय बास्केटबॉल जगत में इतिहास रच दिया था.
इन्हीं की निगरानी में भारतीय महिला बास्केटबॉल टीम को सबसे लंबे कद की खिलाड़ी पूनम चतुर्वेदी मिली. उनका कद 6 फुट से भी ज्यादा है.
वहीं इसी राज्य की कविता अकुला ने ना सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी अपना परचम लहराया. कविता उन खिलाड़ियों में से एक हैं जिन्हें आईमजी रिलांयस के स्कॉलरशिप के तहत अमेरिका भेजा गया था.
वहां उन्होंने विश्व के सबसे लोकप्रिय कॉलेज बास्केटबॉल लीग एनसीए में अपना परचम लहराया. यह पटेल साहब की मेहनत है जिसने गरीब प्रदेश को बास्केटबॉल प्रदेश में स्थापित कर दिया.
दिल का दौरा पड़ने के बावजूद नहीं रुके!
फेडरेशन कप में प्रशिक्षण देने के बाद 62 साल के राजेश पटेल आंध्र प्रदेश से दिल्ली होते हुए Under-18 महिला खिलाड़ियों को लुधियाना ले जा रहे थे.
ट्रेन जैसी ही पानीपत पहुंची उन्हें अजीब सी बेचैनी होने लगी और गाड़ी रुकवाकर उन्हें अस्पताल ले जाए गया. वहां डॅाक्टर ने उन्हें मौके पर ही मृत घोषित कर दिया.
जैसे ही यह खबर आई, पूरे बास्केटबॉल जगत में मातम का महौल पसर गया. हालांकि, इससे पहले भी उन्हें दिल का दौरा पड़ चुका था और साथ ही उन्हें डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी भी थी.
इन सबको दरकिनार करते हुए वो लगातार अपना काम करते रहे. उनकी मृत्यु पर खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह भी शोक व्यक्त कर चुके हैं.
वहीं प्रशिक्षण में इनके अनमोल योगदान के लिए 2015 में इनका नाम लिमका बुक में भी भारत के सबसे सफल कोच के तौर पर शुमार हो चुका है. यह बतौर कोच 100 से ज्यादा मेडल जीत चुके थे. साथ ही इन्हें 2010 में फिक्की स्पोर्ट्स पुरस्कार के साथ भी नवाजा जा चुका है.
राजेश जी जसे कई लोग हैं जिनकी कड़ी मेहनत और जिंदगी से वंचीत हैं. कितने लोग मर चुके हैं. लेकिन आज भी दुनिया इनके बारे में नहीं जानती. अगर पटेल साहब के बारे में और कुछ पता हो तो आप हमे कमेंट बॅाक्स में बता सकते हैं.
Feature Image: spotskeeda