कभी एक वक़्त था जब भारत में लोगों का अगर गाड़ी लेने का सपना होता था तो हर व्यक्ति यही चाहता था कि उसके पास एक एम्बेसडर कार हो.
बड़े-बड़े धनाढ्य, देश के प्रधानमंत्री व आम आदमी भी इस पर सवार हुआ करते थे. सालों से यह अपनी एक अलग ही पहचान बना कर चलती रही थी लेकिन आज यह गायब है.
जानना दिलचस्प होगा भारत की सबसे मजबूत कार कही जाने वाली एम्बेसडर का सफ़र…
पहली ‘मेड इन इंडिया’ कार
एम्बेसडर गाड़ी की जो सबसे ख़ास बात थी वह यही थी कि यह पूरी तरह से भारत में बनाई गई थी. हिंदुस्तान मोटर्स ने एम्बेसडर को ‘मोरिस ऑक्स्फ़र्ड’ सीरिज की एक गाड़ी को देखने के बाद बनाने के बारे में सोचा था.
मोरिस की वह गाड़ी सिर्फ और सिर्फ अमीरों के लिए ही थी. हिंदुस्तान मोटर्स चाहती थी कि वह एक ऐसी गाड़ी बनाएं जिसे भारत के आम लोग भी अफोर्ड कर सकते हों.
इसके बाद 1954 में हिंदुस्तान मोटर्स ने एम्बेसडर कार बनाने का काम शुरू कर दिया था. वह नहीं चाहते थे कि इस गाड़ी में कुछ भी विदेशी हो.
कड़ी मेहनत के बाद 1957 में पहली बार एम्बेसडर ने भारत की सड़कों पर अपना सफ़र शुरू किया था.
किसी को नहीं पता था कि यह गाड़ी आते ही इस तरह धूम मचा देगी. इसमें हिंदुस्तान मोटर्स का 1478 सीसी का इंजन लगा हुआ था. गाड़ी बहुत ही मज़बूत थी, तो उसके अंदर स्पेस भी बहुत था.
भारत की सड़कों के लिए यह बहुत ही कारगर साबित हो रही थी. उबड़-खाबड़ सड़कों पर भी यह मक्खन की तरह चला करती थी. इसकी सबसे बड़ी खासियत थी इसका इंजन, जो बाकी गाड़ियों के इंजन की तरह थोड़ी सी कठिनाई में दम नहीं तोड़ता था.
एम्बेसडर ने उस दिन के बाद से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. हर गुज़रते दिन के साथ इस गाड़ी का नाम लोगों की जबान पर लोकप्रिय होता जा रहा था. देखते ही देखते यह सबकी पसंद बन गयी.
Ambassador Car (Pic: autoevolution)
हर किसी को चाहिए थी एम्बेसडर…
अपने पहले मॉडल के सफल रहने के बाद से ही एम्बेसडर ने समय-समय पर नए मॉडल बनाना भी शुरू कर दिया था. हर बदलते मॉडल के साथ वह और भी अच्छी होती जा रही थी.
एम्बेसडर के निर्माताओं ने भी नहीं सोचा था कि उनकी कार लोगों को इस कदर भाएगी. एम्बेसडर हर किसी की पसंद बन चुकी थी. लोगों के बीच इसकी मांग इतनी बढ़ चुकी थी कि इसकी मैन्युफैक्चरिंग लिमिट तक को बढ़ाना पड़ गया था. देखते ही देखते एम्बेसडर भारत की सबसे सफल कार बन गयी थी.
एम्बेसडर बाकी गाड़ियों की तरह जल्दी ख़राब नहीं होती थी. यही कारण था कि कोई भी इसे खरीदने के बाद निराश नहीं होता था. एम्बेसडर ने उस समय कीर्तिमान रच दिया था जब इसमें बी.एम.डब्लू का इंजन लगाया गया था. उसे अपने साथ जोड़ते ही यह भारत की पहली डीजल कार बन चुकी थी.
कहते हैं कि एक वक़्त पर इस कार की मांग इतनी थी कि सिर्फ 16% एम्बेसडर कार तो सरकारी लोग ही ले लिया करते थे. फिर चाहे वह कोई बड़े अफसर, नेता या देश के प्रधानमंत्री ही क्यों न हों. हर किसी के लिए एम्बेसडर पहली पसंद थी. सुरक्षा और कम्फर्ट के मामले में उन्हें इससे अच्छी कोई गाड़ी नहीं दिखाई देती थी.
लोग एम्बेसडर के पीछे बिलकुल पागल थे. कहते हैं कि 1984 में एम्बेसडर की इतनी मांग थी कि लगभग एक लाख गाड़ियों को बनाया गया था. इसके बाद तो एम्बेसडर की मांग दिन दुगनी रात चौगुनी होती गई थी. 2004 में तो हिंदुस्तान मोटर्स ने कीर्तिमान ही रच दिया, जब उन्होंने नौ लाख एम्बेसडर का प्रोडक्शन किया था.
Ambassador Cars In Parliament (Pic: udayindia)
दुनिया की सबसे बढ़िया ‘टैक्सी’
अगर कुछ सालों पहले का माहौल याद करें तो आपको सड़क पर काली-पीली रंग की टैक्सी चलती याद आ जाएंगी.
आज तो ऑनलाइन टैक्सी मिलने लगी हैं लेकिन कभी वक़्त था कि जब यह एम्बेसडर टैक्सी ही लोगों की सवारी थी. इसमें अमीर-गरीब कोई भी सवारी कर सकता था. इसकी सबसे बढ़िया बात थी कि यह बहुत ही कम्फर्ट वाली सवारी थी. कम पैसों में आप लंबा सफ़र कर सकते थे.
रोड भले ही कितनी भी ख़राब हो इसके अंदर आपको कुछ असहजता महसूस नहीं होती थी. अपने समय तक टैक्सी की दुनिया में इससे अच्छी कोई भी गाड़ी नहीं आई थी. बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां भी अपनी गाड़ी इसके सामने ले आईं लेकिन कोई भी नहीं टिक पाई थी.
इस कड़ी में एक सर्वे के तहत एम्बेसडर को दुनिया की सबसे अच्छी टैक्सी चुना गया था. यह न सिर्फ हिंदुस्तान मोटर्स बल्कि हिंदुस्तान के लिए भी एक गौरव की बात थी कि इसे इतना बड़ा मुकाम हासिल हुआ था.
Ambassador Car As A Taxi (Pic: coxandkings)
पर आखिर, बंद हो गयी यह पुरानी कार!
एम्बेसडर भारत की सबसे लंबी चलने वाली कार थी. सालों से अपने एक ही डिजाईन के साथ यह लोगों के सामने आती रही थी. किसी को नहीं पता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि इस गाड़ी को लोग पूछना भी बंद कर देंगे.
पर यह तो प्रकृति का नियम है.
जो आया है, वह जायेगा. जो नया है, वह कल पुराना भी होगा!
अपने पुराने डिजाईन पर ही बने रहना एम्बेसडर के लिए असली परेशानी बन बैठा था. ज़माने में नईं सस्ती और अच्छी गाड़ियाँ आने लगी थीं, जो एम्बेसडर से ज्यादा किफायती थी.
बदलते वक़्त के साथ लोगों ने भी अपनी सोच बदलनी शुरू कर दी और एम्बेसडर पर कोई नज़र भी नहीं डाल रहा था. आखिर में धीरे-धीरे इसकी मांग कम होने लगी थी. प्रोडक्शन आधे से भी कम हो चुका था. अब एम्बेसडर में पहले जैसा चार्म नहीं रह गया था.
‘2014 के आते ही हिंदुस्तान मोटर्स ने यह घोषित कर दिया कि वह अब और एम्बेसडर गाड़ियाँ नहीं बनाएंगे.’
थोड़े ही समय में स्थिति और ख़राब हो गई और फ़रवरी 2017 तक हिंदुस्तान मोटर्स बिकने की हालत में आ गई थी. कंपनी के मालिकों ने आखिर में पूरी कंपनी फ़्रांस की मोटर कंपनी ‘पूजो‘ को बेच दी, वह भी महज 80 करोड़ रूपए में. इसी के साथ एक ही दिन में एम्बेसडर एक इतिहास बन कर रह गयी.
Ambassador Car: Rise To Fall (Pic: huffingtonpost)
एम्बेसडर एक नाम नहीं एहसास भी था. जिन्होंने उसका अनुभव लिया है वह लोग ही जानते हैं कि आखिर वह उनके कितना करीब थी.
आज एम्बेसडर दुर्लभ प्रजाति की गाड़ी बन चुकी है. बेशक, आज भी यह सड़कों पर दिख जाती है लेकिन ना के बराबर. वक़्त की धूल में यह भले ही कहीं खो जाए लेकिन भारतीय गाड़ियों के इतिहास में इसका नाम सबसे ऊपर रहेगा, इस बात में दो राय नहीं!
Web Title: Ambassador Car: Rise To Fall, Hindi Article
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