भारत के वैज्ञानिकों ने अपनी योग्यता का परचम पूरी दुनिया में लहराया है.
एक ओर जहां होमी भाभा ने भारत को परमाणु ताकत से संपन्न बनाया, तो वहीं प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में भारत का डंका पूरे विश्व में बजाया.
सदियों से ऐसे लोग अपने ज्ञान का प्रसार पूरी दुनिया में कर रहे हैं.
कुछ ऐसा ही मामला तब सामने आया, जब दुनिया की सबसे तेज परिवहन प्रणाली मानी जाने वाली 'हाइपरलूप' को बनाने की जिम्मेदारी भारतीय वंश की अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. अनीता सेनगुप्ता को मिली.
डॉ. अनीता एयरोस्पेस इंजीनियर हैं, जो इससे पहले नासा के साथ काम कर चुकी हैं. और अब इनके कंधों पर 'हाइपरलूप' को ख्वाबों से उतारकर जमीन पर लाने की जिम्मेदारी है.
तो आईए एक नजर इस भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक के अब तक के सफर और हाइपरलूप पर डाल लेते हैं –
9 साल नासा में काम किया
नासा के हालिया भौतिकी प्रयोग के पीछे डॉ. अनीता सेनगुप्ता का वैज्ञानिक दिमाग ही था, जिसमें उन्होंने ब्रह्मांड में सबसे ठंडा स्थान बनाया था.
डॉ. अनीता टेस्ला कंपनी के सहसंस्थापक एलन मस्क के बहुचर्चित हाई स्पीड प्रोजैक्ट ‘वर्जिन हाइपरलूप वन' में सीनियर वाइस प्रैजीडेंट के तौर पर जुड़ी हैं.
यहां वह सिस्टम इंजीनियरिंग, प्रोडक्ट प्लानिंग और डिवेलपमेंट, सेफ्टी और मिशन एश्योरेंस और एक अलग प्रकार के हाई-स्पीड ग्रीन ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम पर काम कर रही हैं. इससे संभवत: यात्रा करने के तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेंगे.
इससे पहले ये जून 2008 से नासा की जेट प्रोप्युल्शन लैबोरेटरी में रहते हुए कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुकी हैं.
डॉ. अनीता ने अपने करियर की शुरूआत 1998 में बोइंग स्पेस एंड कम्युनिकेशंस में एक इंजीनियर के तौर पर की थी. जहां ये सन 2001 तक कार्यरत रहीं.
इसके बाद इन्होंने नासा में स्टाफ एयरोस्पेस इंजीनियर के रूप में सेवा देनी शुरू कर दी. यहां काम करते हुए इनका रोल तेजी से बढ़ा और इनकी पदोन्नति होती चली गई.
ये वहां सीनियर इंजीनियर/टास्क मैनेजर, फिर वरिष्ठ मैकेनिकल इंजीनियर, मंगल ईडीएल सिस्टम इंजीनियर, वीनस एंट्री सिस्टम फेज लीड, सीनियर सिस्टम इंजीनियर और आखिर में सीनियर प्रोजैक्ट मैनेजर के महत्वपूर्ण पदों पर रहीं.
इस तरह से एक लंबे समय तक नासा में सेवा देने के बाद इन्होंने सितंबर 2017 में हाइपरलूप वन को ज्वॉइन कर लिया.
हालांकि, डॉ. अनीता की पढ़ाई अमेरिका में हुई है, लेकिन इनका भारत के साथ एक मजबूत रिश्ता है. इनके पिता भारत में पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं.
सेनगुप्ता हाइपरलूप वन में काम करने से पहले लीड सिस्टम इंजीनियर के रूप में सुपरसोनिक पैराशूट सिस्टम को बनाने वाली टीम के साथ काम कर चुकी हैं. ये सिस्टम नासा के महत्वपूर्ण मंगल अभियान के दौरान भेजे गए क्यूरोसिटी रोवर प्रोजैक्ट से जुड़ा हुआ था.
इन्होंने साउथर्न कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस में ग्रेजुएशन और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी की है. साथ ही ये इसी विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं.
हालांकि यहां वह अंतरिक्ष विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विभाग में ग्रेजुएशन के छात्रों को ही पढ़ाती हैं.
साथ ही सेनगुप्ता काल्टैक विश्वविद्यालय में जैट प्रोप्यूलशन विभाग में कोल्ड एटम प्रयोगशाला के प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में भी काम कर चुकी हैं.
इसी के साथ डॉ. सेनगुप्ता एक अच्छी वक्ता भी हैं और लोगों की बीच बोलती रही हैं.
अपने खाली समय में इन्हें विमान उड़ाना, मोटर साइकिल और साइकिल चलाना, दौड़ना ज्यादा पसंद है.
अमेरिकी रेगिस्तान में चल रहा है हाइपरलूप पर प्रयोग
हाइपरलूप एक प्रकार की वैक्यूम ट्यूब में चलने वाली मैग्लेव या मैग्नेट की सहायता से चलने वाली ट्रेन का नाम है.
हाइपरलूप वन की टीम अमेरिका में लास वेगास के पास रेगिस्तान में इसका प्रयोग कर रही है. वहां इस प्रोजैक्ट पर प्रयोग करने के लिए 500 मीटर लंबा एक खास ऐलिवेटेड ट्रैक बनाया गया है.
वहां डॉ. अनीता के नेतृत्व में लगभग 300 इंजीनियर और कर्मचारियों की एक टीम लगातार हाइपरलूप का परीक्षण कर रही है. हाल ही में उन्होंने 378 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से इसे चलाने में सफलता हासिल की.
इसकी स्पीड अभी भी 3 गुना और बढ़ाकर 1100 किमी प्रतिघंटा से ऊपर लेकर जाने का अनुमान है.
क्या है हाइपरलूप वन प्रोजैक्ट?
हाइपरलूप का विचार सबसे पहले एलन मस्क के दिमाग में आया था. विचार आगे बढ़ा, तो इससे जुड़ी तकनीक पर काम शुरू किया गया.
एलन मस्क ने इस प्रोजैक्ट से संबंधित एक ‘हाइपरलूप अल्फा व्हाइट पेपर’ प्रकाशित किया. इसके बाद ये पेपर तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के सामने रखा गया.
ओबामा ने इस प्रोजैक्ट पर तत्काल हामी भर दी और एलन से कहा कि "मुझे बताएं कि मैं आपकी मदद कैसे कर सकता हूं."
अप्रूवल मिलने के बाद इन्होंने लॉस एंजेल्स में अपना एक कार्यालय और प्रयोगशाला खोली. फिर इससे जुड़ी कई परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ.
मैग्नेटिक लेविटेशन तकनीक के द्वारा एक वैक्यूम ट्यूब में ट्रेन चलाने का ये पहला प्रयोग था.
इस तकनीक के अंतर्गत एक माग्लेव या मैग्नेटिक लेविटेशन ट्रेन चुंबकीय गुरुत्वाकर्षण के कारण ट्रैक के ऊपर चलती है. इसे 'हाइपरलूप वन' का नाम दिया गया है.
इस वैक्यूम ट्यूब में सफर आपको ठीक उसी प्रकार की अनुभूति देगा, जैसा कि आप एक विमान के अंदर बैठे हैं और वाे आसमान में लगभग दो लाख फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा हो.
एक अनुमान के मुताबिक, साल 2021 तक व्यावसायिक रूप से हाइपरलूप वन का प्रयोग किया जा सकेगा.
हाइपरलूप वन की अत्यधिक रफ्तार 1123 किलोमीटर प्रति घंटा बताई गई है. हालांकि अभी इस रफ्तार पर इसका परीक्षण होना बाकी है.
अगर ये ट्रेन इस रफ्तार पर अपना प्रयोग सफलतापूर्वक कर पाती है, तो भविष्य की यात्रा के लिए इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाएगा.
इसकी रफ्तार का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि, अगर आप लंदन से भारत की नई दिल्ली तक लगभग 7000 किमी का सफर हाइपरलूप से तय करते हैं, तो आपको हवाई जहाज के मुकाबले मात्र 6 से 7 घंटे ही लगेंगे.
Web Title: Anita Sengupta: Indian-American scientist behind Hyperloop Project, Hindi Artilce
Feature Image Credit: anitasengupta