अगर आज हम आंकड़ों की बात करें, तो माना जाता है कि महज 53 सालों में हम धरती पर मौजूद सारा ईंधन खत्म कर देंगे. इंसान इतनी तेजी से अपने ईंधन को खत्म कर रहे हैं कि यह आकड़े सच होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.
कहते हैं कि ईंधन के बिना धरती बिलकुल अँधेरी हो जाएगी. जीवन कुछ इस कदर बदलेगा कि कोई सोच भी नहीं सकता. हालांकि माना जाता है कि इस अँधेरे से धरती को 'बायोफ्यूल' बचा सकता है!
आखिर क्या है धरती पर ईंधन का भविष्य और कैसे बायोफ्यूल बन सकता है उम्मीद की एक नयी किरण चलिए जानते हैं–
मुश्किल हो जाएगा जीवन अगर नहीं रहा ईंधन!
बायोफ्यूल क्यों जरूरी है इसे जानने से पहले जानते हैं कि ईंधन के बिना हमारा जीवन कैसा होगा. हम जानते भी नहीं हैं कि कितनी ही चीजें जिन्हें हम इस्तेमाल करते हैं वह सब पेट्रोलियम से ही बनी हैं. इसलिए अगर ईंधन कभी खत्म होता है, तो हमारा जीवन बहुत ही मुश्किलों भरा हो जाएगा.
सबसे पहली और बड़ी दिक्कत जो सामने आएगी वो होगी खाने की. ऐसा इसलिए क्योंकि खेतों से फल-सब्जियों को शहरों तक लाने वाले ट्रक चलने बंद हो चुके होंगे. इतना ही नहीं खेती में मदद करने वाले ट्रैक्टर भी गाँव के किसी कोने में पड़े होंगे.
गाँव के लोगों को तो फिर भी गुजारा चलाने के लिए खाद्य पदार्थ मिल जाएंगे मगर शहरों का क्या. शहर में तो कुछ पकाने के लिए गैस भी शायद ही उपलब्ध हो पाएगी.
इसके बाद जो परेशानी सामने आएगी वो होगी प्लास्टिक प्रोडक्ट्स की. सालों से प्लास्टिक प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हुए हम इसके आदि हो चुके हैं. हमारे टूथब्रश, जूते, कपड़े, मेडिकल प्रोडक्ट आदि जैसी कितनी ही चीजें पेट्रोलियम से बनती हैं. ईंधन खत्म होने के कुछ ही समय बाद इन चीजों का बनना बंद हो जाएगा.
इतना ही नहीं पूरी दुनिया गुजरते वक्त के साथ अँधेरी हो जाएगी. बिजली बनाने में भी फ्यूल का काफी इस्तेमाल किया जाता है. इनके इस्तेमाल के बाद ही हम अपने घरों में बिजली पाते हैं. इनके खत्म होते ही सारे बड़े-बड़े पॉवर प्लांट बंद हो जाएंगे. बिजली उत्पन्न ही नहीं हो पाएगी और हर जगह अंधेरा पसर जाएगा.
सिर्फ एक ईंधन खत्म होने के कारण हमारी जिंदगी में इतने सारे बदलाव आ सकते हैं!
बायोफ्यूल की खूबियाँ ला सकती है क्रांति...
अगर आप सोचते हैं कि बायोफ्यूल आज-कल में आई कोई चीज है, तो आप गलत हैं. माना जाता है कि जब से गाड़ियाँ प्रचलन में आई हैं तब से ही बायोफ्यूल भी प्रसिद्ध हुआ.
फोर्ड कार कंपनी के मालिक हेनरी फोर्ड ने तो अपने शुरूआती समय में ही बायोफ्यूल को अपनाने की सोच ली थी. उन्होंने इथेनॉल पर चलने वाली अपनी T मॉडल की कार भी मार्केट में उतार दी थी. इतना ही नहीं शुरूआती डीजल इंजन भी बायोफ्यूल पर काम करते थे.
हालांकि सस्ते और बेहतर पेट्रोल-डीजल के आने के बाद इन्हें किसी ने नहीं पूछा. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बायोफ्यूल एक ऐसा ईंधन है जिसे हम खुद बना सकते हैं. जहां प्राकृतिक ईंधन फिर से नहीं बनाया जा सकता है. वहीं दूसरी ओर इसे बार-बार बनाया जा सकता है.
बायोफ्यूल बनाने में प्रकृति हमारे काम आती है. ऐसा इसलिए क्योंकि फसलों के जरिए ही बायोफ्यूल को बनाया जाता है. इतना ही नहीं इसे बहुत कम टाइम में ही बनाया जा सकता है. वहीं दूसरी ओर हमारे फॉसिल फ्यूल को बनने में लाखों-करोड़ों साल लगे हैं. यूँ तो बायोफ्यूल को लैब में भी बनाया जा सकता है मगर वह तरीका थोड़ा पेचीदा है.
इसलिए अधिकतर फसलों के जरिए इसे बनाया जाता है. जो बायोफ्यूल इस समय सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है वह है इथेनॉल. यह एक काफी असरदार ईंधन है और बड़े ही आराम से इसे पेट्रो-डीजल की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है.
ये कोई बहुत खास पदार्थ नहीं है. ये और शराब बिलकुल एक जैसे ही हैं. इथेनॉल और शराब दोनों को ही एक प्रकार से बनाया जाता है. दोनों में ही 'प्रोसेस्ड मक्के' का इस्तेमाल किया जाता है.
हालांकि दोनों में फर्क बस इतना है कि शराब को पी सकते हैं मगर इथेनॉल को नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि ईंधन को उपयोगी बनाने के लिए इसमें कुछ केमिकल भी मिलाए जाते हैं.
आमतौर पर बायोफ्यूल बनाने के लिए केमिकल रिएक्शन, स्टार्च, चीनी और पौधे में मिलने वाले बाकी मोलिक्यूल को इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें बहुत गर्म किया जाता है जिससे यह पूरी तरह टूट जाते हैं. इसके बाद जो पदार्थ बचता है उसे रिफाइन किया जाता है, जो आखिर में बायोफ्यूल का रूप लेता है.
अपनी इन खूबियों के कारण आज बायोफ्यूल को भविष्य के ईंधन के रूप में देखा जा रहा है. जैसे-जैसे ईंधन के दाम बढ़ रहे हैं, दुनिया का ध्यान इसकी ओर खिंच रहा है.
इतनी आसन नहीं है इसकी राह!
बायोफ्यूल दुनिया के लिए बहुत काम आ सकता है मगर इसके साथ कई दिक्कतें भी हैं. कहते हैं कि हर चीज के दो पहलू होते हैं. ठीक ऐसा ही बायोफ्यूल के साथ भी है. जहां एक ओर ये ईंधन को बचाने वाली चीज बन सकता है. वहीं दूसरी ओर ये प्रकृति के लिए खतरा भी बन सकता है.
ऐसा इसलिए क्योंकि बायोफ्यूल बनाने के लिए जीवित पौधों और फसल का इस्तेमाल किया जाता है. शुरूआती समय में तो इसकी मांग बहुत कम है, इसलिए बहुत कम फसल इसके लिए जरूरी है. हालांकि अगर इसकी डिमांड बढ़ी, तो एक बड़ी मात्रा में फसलों का हिस्सा बायोफ्यूल बनाने में लग जाएगा.!
अगर भविष्य में बायोफ्यूल की डिमांड बढ़ी, तो उसके लिए जंगलों को हटाकर खेती लायक जमीन बनानी पड़ेगी. इसके कारण हवा में ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाएगी. इसका सीधा असर हमारे क्लाइमेट पर भी पड़ेगा. हालांकि इस चीज को रोकने के लिए खोज लगातार जारी है.
वैज्ञानिक कोशिश में हैं कि बायोफ्यूल को कैसे बिना क्लाइमेट को बिगाड़े अपनाया जाए. उम्मीद की जा रही है कि यह आविष्कार जदल ही होगा और दुनिया को बायोफ्यूल नाम का बेशकीमती तोहफा मिलेगा.
कई देशों में शुरू हो गया है चलन...
दुनिया से ईंधन दिन ब दिन खत्म हो रहा है. ऐसे में कई देशों ने भविष्य को सोचकर बायोफ्यूल को अपनाना शुरू कर दिया है. इन सब में सबसे पहले नाम आता है अमेरिका का. आंकड़ों की माने, तो अमेरिका इस समय बायोफ्यूल के मामले में सबसे आगे है. वहां पर लोग इसे बड़ी तेजी से अपनाने लगे हैं.
अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर ब्राजील और तीसरे नंबर पर जर्मनी है. ब्राजील ने भी बायोफ्यूल की अहमियत पहले ही समझ ली. उन्होंने भी बड़ी मात्रा में बायोफ्यूल बनाने की शुरूआत कर दी है. माना जाता है कि अमेरिका और ब्राजील को मिलाकर दुनिया का 70 प्रतिशत बायोफ्यूल बनता है.
जहां अमेरिका बायोफ्यूल के निर्माण के लिए मक्के का इस्तेमाल करता है. वहीं दूसरी ओर ब्राजील गन्ने के इस्तेमाल से बायोफ्यूल बनाता है.
इसके अलावा चीन, फ्रांस, थाईलैंड, कनाडा आदि जैसे कई देशों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया है. इन सभी देशों को यकीन है कि बायोफ्यूल ही आने वाला भविष्य है. इसलिए ही यह इसे अभी से अपना रहे हैं. हालांकि देखना है कि भारत कब इसकी शुरू करता है.
तो देखा आपने कैसे बायोफ्यूल हमारे भविष्य को बचा सकता है. इसके कारण हम एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और दुनिया को एक अँधेरे गोले में बदलने से भी बचा सकते हैं. हालांकि अभी भी इसे परफेक्ट बनाने का काम जारी है मगर आने वाले वक्त में शायद यही हमारे काम आए. अब क्या होगा और क्या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा.
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