अगर आप मुंबई गए हैं, तो आपने अपने आसपास काली-पीली रंग की कारों की लंबी कतार जरूर देखी होगी, जिसके ऊपर टैक्सी लिखा रहता है.
जी हां! अब आपको बिल्कुल याद आ गया होगा कि यहां बात फिएट पद्मिनी कार की हो रही है.
1970-80 के दशक में कभी इसी कार से भारत की सड़कें गुलज़ार रहा करती थीं और लोग देखते ही देखते इसे सड़कों की रानी का तमगा दे बैठे.
अब जानना दिलचस्प हो जाता है कि कैसे यह कार हर भारतीय के दिल में बस गई –
1964 में भारतीय बाजार में उतरी
आज़ादी के बाद भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग की शुरुआत दो नामों से हुई. पहला था हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड, जिसकी चर्चित कार एम्बेसडर थी. और दूसरा प्रीमियर ऑटो लिमिटेड, जिसकी पद्मिनी कार थी.
मज़ेदार बात यह है कि दोनों कारें विदेश की कारों की कॉपी थीं.
जहां एम्बेसडर, मॉरिस ऑक्सफोर्ड III की कॉपी थी, तो वहीं पद्मिनी कार इटली के मार्वल फैब्रीका इटालियाना ऑटोमोबाइल टोरिनो कंपनी की एक कार की कॉपी थी. जो भारत में प्रीमियर ऑटो ने साल 1964 में फिएट पद्मिनी 1100 डिलाइट के रूप में लांच की.
फिर क्या? लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया और इसने अगले तीन चार दशक तक सभी के दिलों पर राज किया.
ये आराम का मामला है...
वैसे देखा जाए तो पद्मिनी कुछ साल पहले ही बन चुकी थी, जब 'फिएट 500' फिएट की पहली कार बनी.
इसे सन 1951 से भारतीय बाजार में उतारने के लिए बनाया गया. फिर 1954 में एक कार आई, जिसे सभी लोग डकर कहा करते थे.
असल में यह फिएट 1100-103 थी, जिसे बाद में विकसित करके फिएट पद्मिनी 1100 डी बनाया गया. और 1964 में भारतीय बाजार के लिए इसे फिएट के लाइसेंस के तहत बनाना शुरू किया गया.
शुरुआत में लोग इसे केवल 'फिएट' के रूप में जानते थे, समय बदला और इसे अपनी पहचान 'पद्मिनी' के रूप में मिली.
ख़ास बात यह है कि इस कार में कार्बोरेटर, चार सिलेण्डर वाला पेट्रोल इंजन था. यह इंजन 40 बीएचपी यानी ब्रेक हॉर्स पॉवर का था.
हालांकि रफ्तार के मामले में पद्मिनी थोड़ी अधूरी मालूम पड़ती थी.
खैर, इस कार की टॉप स्पीड 125 किलोमीटर प्रति घंटा थी.
अंदर से देखने और बैठने पर पद्मिनी काफ़ी आरामदायक थी. डैशबोर्ड के अधिकतर हिस्से पर मैटल की शीट हुआ करती थी, जो आजकल की कारों में नहीं होती. इतना ही नहीं, इस कार को ड्राइव करने के लिए आपको बिलकुल सीधा बैठना पड़ता था.
रेसिंग ट्रैक पर भी दौड़ी पद्मिनी
आप सोच सकते हैं कि 1960-70 के दशक में रेसिंग ट्रैक पर कार दौड़ाना कितना मुश्किल होता होगा, वह भी भारत में. ख़ैर, इस कार को रेसिंग ट्रैक पर भी दौड़ाया गया.
चेन्नई का शोलावरम और कोलकाता का सीएमएससी रेस ट्रैक साठ के दशक में मशहूर रेसिंग ट्रैक था. हालांकि उस समय रेसिंग चुनौतीपूर्ण हुआ करती थी, लेकिन उसके बावजूद फ़िएट ने दोनों ट्रैकों पर होने वाली रैलियों में भाग लिया. जहां पद्मिनी का मुकाबला सिपानी डॉल्फिन, हिन्दुस्तान मोटर्स की एम्बेस्डर और स्टैंडर्ड हेराल्ड से हुआ.
फिएट अपनी मज़बूती और ख़ासियत से यहां भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही. और लोगों के दिलों में इस क़दर जगह बनाई कि आज भी लोग फिएट पद्मिनी की सवारी करना चाहते हैं.
नेताओं और फ़िल्मी सितारों की मनपसंद
फिएट पद्मिनी अपनी खासियत से आम लोगों के बीच मशहूर तो थी ही, लेकिन इसकी चर्चा तब और तेजी से होने लगी, जब ये कार फ़िल्मी दुनिया और देश के दिग्गज नेताओं की मनपसंद कार बन गई.
सादगी और सरल जीवन व्यापन करने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने 1964 में प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. जब उनके पास भी कोई कार नहीं थी.
उस समय मशहूर रही पद्मिनी की कीमत 12,000 रुपए थी. लेकिन शास्त्री जी के पास इसे खरीदने के लिए केवल 7,000 रुपए थे.
ऐसे में उन्होंने कार के लिए लोन का आवेदन किया और एक फिएट खरीद ली.
दुर्भाग्यवश ऋण चुकाने से पहले ही शास्त्री जी की मृत्यु हो गई. लेकिन शास्त्री जी की पत्नी ललिता ने अगले चार सालों में 5000 हजार रुपए का ऋण वापस कर दिया. आज भी यह कार दिल्ली में लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल संग्रहालय में रखी हुई है.
वहीं, बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारों में से एक धर्मेंद्र ने एक साक्षात्कार में कहा था कि फ़िल्मी दुनिया में एंट्री के बाद मेरे सिर्फ दो सपने थे. पहला एक फ्लैट और दूसरा 'फिएट कार'.
फिर क्या धर्मेंद्र ने भी यह कार खरीद ली.
इसके अलावा कई और मशहूर फिल्मी सितारों जैसे रजनीकांत, मामुट्टी, आमिर खान ने भी अपने शुरूआती जीवन में प्रीमियर पद्मिनी कार खरीदी थी.
आज भी मुंबई में भरती है फर्राटा
समय बीतता गया और एक से बढ़कर एक कार भारतीय बाजार में आने लगी.
इसका एक कारण और था, भारत ने 1991 में उदारीकरण अपनाया. जिससे विदेश की भी कंपनियां अच्छी माइलेज और तेज भागने वाली कार भारतीय बाजार में उतारने लगीं.
इधर फिएट पद्मिनी कार भी मुकाबले में बने रहने के लिए बकेट सीट, गियर बॉक्स और इंजन बदलकर और बेहतर बनाने का प्रयास करती रही. लेकिन फ़िएट की मांग कम होने लगी.
इसके बाद फ़िएट ने एक पेट्रोल और एक डीजल जैसी खूबियां भी इसमें जोड़ीं, लेकिन यह कार की आखिरी कोशिश भी नाकाम साबित हुई और अंत में पद्मिनी कार को 1997 में बनाना बंद कर दिया गया.
बावजूद इसके आज भी प्रीमियर पद्मिनी कार का क्रेज कम नहीं हुआ है. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में आज भी सड़कों पर ये सरपट भागती नजर आती है.
इसकी बड़ी वजह यह है कि कई वर्षों तक इस कार का निर्माण मुंबई के 'कुर्ला' में होता रहा. वहीं इस कार में लगे उल्टी तरफ खुलने वाले दरवाजे भी आजकल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
Web Title: Fiat Padmini Car: The Queen of Indian Roads, Hindi Article
Feature Image Credit: Networked India