आज के समय में वाहन की बात की जाए तो एक से बढ़कर एक लाजवाब गाड़ियां उपलब्ध हैं. कभी एक समय था कि हर किसी के पास साइकिल हुआ करती थी.
आम लोगों के लिए इससे बढ़िया यात्रा का साधन कोई होता ही नहीं था!
आज के समय में इसका वजूद कहीं खोता जा रहा है. अब सड़कों पर कार और बाइक इतनी दिखाई देती हैं कि साइकिल का तो कोई नाम भी लेने को तैयार नहीं. भले ही आज यह हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन इसका इतिहास बताता है कि आखिर यह कितनी खास थी. तो चलिए देर किस बात की चलते हैं साइकिल के सफर पर–
… तब चार पहियों की होती थी साइकिल
साइकिल के इतिहास में कई लोगों का योगदान रहा है, इसलिए किसी एक को इसका श्रेय देना आसान नहीं है. इसका इतिहास आज भी वैज्ञानिकों के बीच एक बहस का मुद्दा बना हुआ है. साइकिल का असल जनक कौन है यह बताना थोड़ा मुश्किल है. साइकिल के असली निर्माता के बारे में भले ही किसी को न पता हो, लेकिन इससे जुड़ी कुछ धारणाएं जरूर हैं.
माना जाता है कि पहिये से एक वाहन बनाने की शुरुआत 1418 में की गई थी. जिओवानी फोंटाना नामक एक इटली के इंजिनियर को सबसे पहली साइकिल का निर्माता माना जाता है. साइकिल के प्रचलन में आने से कई सालों पहले ही इसकी खोज शुरू हो गई थी. कहते हैं कि शुरुआत से ही साइकिल दो पहिये वाली नहीं हुआ करती थी बल्कि इसे चार पहिये वाला बनाया गया था. इसे ऐसा इसलिए बनाया गया था ताकि इसे चलाने में कोई बाधा न आए.
जिओवानी फोंटाना ने चार पहिया वाहन जैसा ही कुछ बना दिया था, लेकिन 400 सालों तक किसी ने उस खोज पर कोई खास ध्यान नहीं दिया. जिओवानी की वह खोज वक़्त की धूल में कहीं दबी रह गई.
400 साल बाद 1813 में एक जर्मन इन्वेंटर ने साइकिल बनाने का जिम्मा अपने ऊपर लिया. उसने साइकिल बनाने का काम शुरू किया. कार्ल नामक उस व्यक्ति ने भी जिओवानी जैसी ही एक चार पहिया वाहन बनाया था, लेकिन उससे थोड़ा बेहतर.
वह इंसानी ताकत से चलने वाला एक वाहन था जिसने अपने आने के बाद कई लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. इस कड़ी में 1817 में ड्रेस ने चार पहिया साइकिल को बदल कर उसे दो पहिये में तब्दील किया. ड्रेस का वह आविष्कार काफी लोकप्रिय हुआ. यूरोप में लोग उसे ‘हॉबी हॉर्स’ के नाम से जाना करते थे.
First bicycle (Pic: mmbhof)
मेहनत कम करने के लिए जोड़े पेडल…
ड्रेस ने साइकिल का निर्माण तो कर दिया था पर उनकी साइकिल में अभी भी बहुत सी कमियां थी. सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उनकी बनाई साइकिल को सभी को अपने पैरों से धकेलना पड़ता था. यह काम बहुत ही थका देने वाला था. इस मेहनत को खत्म करने के लिए ही आविष्कार हुआ पेडल का.
पेडल बनाने का श्रेय स्कॉटलैंड के एक लोहार ‘मैकमिलन’ को दिया जाता है. कहते हैं कि 1839 में मैकमिलन ने कुछ लोगों को साइकिल को चलाते हुए देखा था. उसने गौर किया कि लोग उन साइकिलों को अपने पैरों से धक्का मार रहे थे. साइकिल इस तरह चलाने से सब जल्दी थक जाएंगे और उसका मजा कम हो जाएगा… इसी सोच के चलते कई साल मैकमिलन लग गए साइकिल चलाने के लिए एक आसान तरीका ढूँढने में.
क्योंकि वह एक लोहार थे, इसलिए उन्होंने अपने इस हुनर का इस्तेमाल करते हुए कुछ बनाने की सोची. उन्होंने कुछ ही वक़्त में पेडल तैयार कर ही दिया. उन्होंने जैसे ही साइकिल में इसे लगाया साइकिल का पूरा हिसाब ही बदल गया. अब उसे पहले की तरह धक्का देके चलाने की जरूरत नहीं थी.
अब वह ज्यादा आरामदायक हो गई थी!
उनकी बनाई साइकिल लकड़ी के फ्रेम की थी, लेकिन पहियों में मजबूती के लिए लोहे का प्रयोग किया गया था. साइकिल को सब चला सकें इसलिए उन्होंने उसमें स्टीयरिंग भी लगाया. उन्होंने बहुत सी चीजें लगा दी थी इसलिए इसकी वजह से साइकिल का वजन काफी बढ़ गया था. माना जाता है कि मैकमिलन की साइकिल का वजन करीब 26 किलो था!
समय के साथ इसमें कई सुधार किए गए.
1870 में आई साइकिल अब पूरी तरह से धातु के फ्रेम वाली हो गई. इसके साथ ही इसमें रबर के टायर का इस्तेमाल भी होना शुरू हो गया. रबड़ के प्रयोग से साइकिल की सवारी और भी बेहतर हो गई थी. 1870 से 1880 तक इस तरह की साइकिलों को पैनी फार्थिंग कहा जाता था जिसको अमेरिका में बहुत लोकप्रियता मिली. इसने बहुत से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा क्योंकि इसका पहला पहिया बहुत बड़ा और इसका पिछला पहिया काफी छोटा था. इसे चलाने में थोड़ी असहजता तो होती थी, लेकिन उस समय यही एक साइकिल थी जो चलाने लायक थी.
The High Wheeler Bicycle (Pic: pinterest)
‘रोवर साइकिल’ ने खोले विकास के दरवाजे…
माना जाता है कि पैनी फार्थिंग साइकिल सुरक्षित नहीं हुआ करती थी, इनमें दुर्घटना का ज्यादा खतरा होता था. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे एक सुरक्षित साइकिल को बनाया जाए. 1880 में इस काम को ‘जे के स्टारले’ द्वारा अंजाम दिया गया जब उन्होंने ‘रोवर साइकिल’ का निर्माण किया.
कहते हैं कि यह पहली बार था जब किसी साइकिल को मौज नहीं बल्कि सुरक्षा के लहजे से भी बनाया गया हो. इसकी खासियत थी कि पहले की साइकिलों की तरह इसमें पेडल आगे के टायर नहीं बल्कि पीछे के टायर से जुड़े होते थे.
इसके बाद से साइकिल के विकास में काफी तेजी आई. 1920 के दशक में बच्चों के लिए साइकिलों को बनाना शुरू कर दिया गया. 1960 के दशक में साइकिलें इतनी लोकप्रिय हो गई कि इनका प्रयोग रेसिंग में भी किया जाने लगा.
Safety Bicycle (Pic: sterba-bike)
आधुनिक समय की इलेक्ट्रिक साइकिल
समय के साथ-साथ साइकिलों में कई बदलाव किये गए. आज के समय तक साइकिलों में बदलाव जारी हैं. पहले कभी पेडल से चलने वाली साइकिल हुआ करती थी. उसके बाद उनमें गियर जैसी सुविधा भी दी गई. कई तरह के धातु से साइकिलों को बनाने का काम चलने लगा. क्योंकि अब जमाना डिजिटल हो रहा है इसलिए साइकिलों पर भी उसका असर दिख रहा है.
आज के जमाने में इलेक्ट्रॉनिक साइकिलें आने लगी हैं. यह बहुत सी डिजिटल तकनीक के साथ आती हैं और इनमें बैटरी का प्रयोग होता है. इन साइकिलों का चलन आज के समय में काफी हो रहा है. इनके अंदर ट्रेकर तक लगा होता है ताकि कोई इसे चुरा के न ले जाए. इस समय इलेक्ट्रॉनिक साइकिल के मामले में ‘वोल्ट इनफिनिटी‘ सबसे आगे मानी जाती है. इसमें डिस्प्ले दी गई है जिससे आप इसमें दिए गए कई फीचर्स को इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिया जा सकता है.
आखिर यही तो है भविष्य की साइकिल!
Volt Ectric Bicycle (Pic: electric-bike)
इलेक्ट्रॉनिक हो या पेडल वाली साइकिल एक बहुत ही बढ़िया सवारी रही है. हाँ यह बात भी सही है कि वक़्त के साथ इसका चलन थोड़ा कम ज़रूर हुआ है, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से अभी भी इसका कोई विकल्प नहीं है!
वैसे भी बदलती तकनीक ने इसे चलाने वालों का रोमांच बरकरार रखा है.
आप क्या कहते हैं साइकिल के बारे में?
Web Title: History of Bicycle, Hindi Article
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