घड़ियाँ पहनना आखिर किसे अच्छा नहीं लगता. बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर कोई हाथ घड़ी का दीवाना होता है. आज के समय में तो इतनी तरह की हाथ घड़ियाँ बन चुकी हैं कि उन्हें देख कर ही सिर चकरा जाए. घड़ियों का यह चलन आज का नहीं बल्कि सदियों पुराना है.
तो चलिए जानते हैं कि आखिर कब और कैसे शुरू हुआ हाथ घड़ी का सफर–
15 वीं शताब्दी में आया हाथ घड़ी का आईडिया!
यूँ तो घड़ियों का आविष्कार 14 वीं शताब्दी में ही हो चुका था, लेकिन यह शुरुआत में सिर्फ घर तक ही सीमित थीं. यह काफी बड़ी और भारी हुआ करती थी इसलिए इन्हें कहीं लाना ले जाना नहीं हो सकता था. धीरे-धीरे इनका आकार छोटा किया गया. इन्हें इतना छोटा बना दिया गया कि यह किसी की जेब में समा जाए.
कहते हैं कि 1504 में पहली बार पीटर हेनलीन ने ऐसी घड़ी बनाई थी जो आकार में छोटी थी और जिसे कहीं भी अपने साथ ले जाया जा सकता था. लोग उन घड़ियों को अपनी जेब में रखा करते थे जिसके कारण उनका नाम पॉकेट वाच पड़ गया.
पॉकेट वाच को कहीं भी ले तो जा सकते थे, लेकिन समय देखने के लिए उसे बार-बार जेब से बाहर निकालना पड़ता था. यह कई बार परेशान भी करता था. इस से परेशान हो कर गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल ने अपनी जेब घड़ी को हाथ में पहनने का सोचा. उसने अपनी घड़ी को धागों की मदद से अपनी कलाई पर बांध दिया था. माना जाता है कि वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिसके दिमाग में हाथ घड़ी का ख्याल आया था. उस एक छोटे से कदम ने हाथ घड़ियों के लिए एक नई राह खोल दी.
1787 Double Pair Cased Pocket Watch (Pic: the-lothians)
पहली हाथ घड़ी महिलाओं के लिए थी?
यूँ तो आज के समय में लड़का-लड़की कोई भी हाथ घड़ी पहन सकता है, लेकिन इसकी खोज असल में महिलाओं के लिए हुई थी. यह सुनकर चौंकिए नहीं… यह सच है!
यह दरअसल महिलाओं का फैशन था. कलाई वाली घड़ी को खासतौर से केवल ‘नेपोलियन बोनापार्ट’ की छोटी बहन के लिए बनाया गया था.
1868 में पाटेक फिलिप्पी नामक एक स्विस घड़ी बनाने वाले ने नेपोलियन की बहन के लिए उस घड़ी को बनाया था. माना जाता है कि यह पहली ऐसी घड़ी थी जिसे खास हाथ पर पहनने के लिए डिज़ाइन किया गाया. यह थी तो घड़ी, लेकिन महिलाओं के लिए यह एक आभूषण की तरह थी. वह इसे अपने फैशन के लिए पहना करती थीं. कहते हैं कि शुरुआत में मर्द इसे पसंद नहीं करते थे. उन्हें लगता था कि यह उनकी मर्दानगी के खिलाफ है. वह काफी समय तक पॉकेट वाच का ही इस्तेमाल करते रहे.
वक़्त के साथ धीरे-धीरे हाथ घड़ी की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी. वह छोटी थी, उसे कहीं भी ले जाया जा सकता था. इन्हीं कारणों से लोगों का ध्यान हाथ घड़ियों की ओर ही जाने लगा. महिलाओं के बाद पुरुष भी उसे पहनने लगे.
कहते हैं कि शुरूआती समय में फौजियों ने इसे खूब पसंद किया. उन्हें इसके जरिए समय का हिसाब रखने में आसानी होने लगी. पॉकेट वाच की तरह इसे आसानी से खोने का भी कोई डर नहीं था. माना जाता है कि जर्मन सेना ने तो एक बड़ी मात्रा में अपने लिए हाथ घड़ियों का ऑर्डर दिया था. बदलते वक़्त ने हाथ घड़ियों को महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के हाथों पर भी ला दिया.
First Wrist Watch Was Made For A Women (Pic: theverge)
बैटरी वाली घड़ियों की शुरुआत…
वक़्त के साथ हाथ घड़ी का चलन बढ़ने लगा था. लोगों को वह बहुत पसंद आने लगी थी. जमाना बदल रहा था.
तब बिजली का उपयोग ज्यादा चीजों में होने लगा था. ऐसे में सब एक बैटरी बनाना चाहते थे जिससे हाथ घड़ी चला सकें, लेकिन किसी को भी सफलता हाथ नहीं लग रही थी.
इससे पहले की हाथ घड़ियाँ मेनस्प्रिंग पर काम करती थीं जिन्हें ज्यादा कारगर नहीं माना जाता था. ग्राहकों को लुभाने के लिए कुछ नया चाहिए था. बैटरी वाली घड़ी बनाने के लिए सबसे बड़ी परेशानी जो सामने थी वह यह थी कि आखिर इतने छोटे साइज़ की बैटरी कैसे बनाई जाए. इस काम का जिम्मा हैमिलटन नामक एक कंपनी ने लिया. उन्होंने बैटरी से चलने वाली हाथ घड़ी बनाने की अपनी प्रक्रिया को शुरु कर दिया.
कई असफलताओं के बाद उन्होंने आखिर में एक ऐसी बैटरी बना दी जो लीक नहीं होती थी और घड़ी को एक सीमित मात्रा में ऊर्जा प्रदान करती थी. आखिर में उन्होंने अपनी घड़ी पूरी की और उसे नाम दिया ‘हैमिलटन 500’. इस हाथ घड़ी के अंदर चुम्बक लगाई गई थी जो घड़ी के काँटों को नियंत्रण में रखती थी.
आखिरकार 1957 में हैमिलटन ने अपनी घड़ी दुनिया के सामने ला के रख दी. इसने आते ही काफी लोकप्रियता हासिल कर ली क्योंकि यह पहली बैटरी से चलने वाली घड़ी थी. यह एक बहुत बड़ा बदलाव था. हैमिलटन ने इसे बनाने के लिए पुरानी तकनीक को बदल दिया था जो आखिर में उसके लिए ही परेशानी बन गया.
हैमिलटन की घड़ी को कोई भी ठीक नहीं कर पा रहा था. हैमिलटन की इस कमी का फायदा उठाते हुए कुछ ही सालों में बुलोवा नामक एक नई कंपनी ने हैमिलटन से ज्यादा आसानी से ठीक की जाने वाली हाथ घड़ी बन दी. इसके बाद 1969 आते-आते हैमिलटन 500 पूरी तरह खत्म हो गई. उसकी जगह मार्केट में एक और नई और ज्यादा सटीक टाइम बताने वाली कंपनी आ गई क्वार्ट्ज एस्टरोन. उस दिन के बाद से घड़ियों के मार्केट पर क्वार्ट्ज का राज शुरू हो गया. वक़्त ने चाहे कैसी भी करवट बदली हो, लेकिन पहली बैटरी से चलने वाली हाथ घड़ी बनाने का श्रेय आज भी हैमिलटन को ही जाता है.
1980 Seiko Quartz (Pic: pinterest)
स्मार्ट हो चुकी है हाथ घड़ी…
आधुनिक समय में घड़ियाँ बिलकुल डिजिटल हो गई हैं. अब सुई वाली घड़ियों का दिखना धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. आज के जमाने में हमारे फोन, टीवी और नजाने क्या-क्या चीजें डिजिटल हो गई हैं ऐसे में हाथ घड़ी भला कैसे पीछे रह जाती.
कुछ समय पहले तक लोगों के हाथों पर बस सुई वाली घड़ियाँ हुआ करती थी पर अब उनकी जगह डिजिटल घड़ियाँ लेती जा रही हैं. यह डिजिटल घड़ियाँ हमें कई तरह की टेक्नोलॉजी प्रदान करवाती हैं जो आज के समय में काफी काम आती हैं.
ऐप्पल को भला कौन नहीं जानता. डिजिटल प्रोडक्ट बनाने में तो एप्पल को महारत हासिल है. अपने आईफोन से तो एप्पल ने दुनिया को अपना दीवाना बनाया ही था, लेकिन अब इसकी स्मार्ट वाच भी ऐसा ही कुछ कर रही है. सिर्फ एप्पल ही नहीं एप्पल की तरह बाकी कई और स्मार्ट फोन कंपनियां हैं जो ऐसी स्मार्ट वाच बनाने में लगी हुई हैं.
एप्पल, सैमसंग, लेनोवो आदि कई और कंपनियां समार्ट वाच बनाती हैं. इन स्मार्ट वाचेज में कई तरह के फीचर होते हैं. इंटरनेट, वाईफाई, जीपीएस ईमेल, कालिंग, नोटिफिकेशन आदि कई फीचर्स इसमें पाए जाते हैं, जो लोगों को इसकी ओर आकर्षित करते हैं. आज के समय में हाथ घड़ी बस एक समय देखने का जरिया बनके ही नहीं रह गई.
Smart Watch (Pic: smartwatch)
समय के साथ-साथ तो हर कोई बदलता है पर किसी को क्या पता था कि सबको समय दिखाने वाली घड़ी भी इतना बदल जाएगी. अभी तक तो स्मार्ट वाच और डिजिटल वाच ने पूरी तरह से मार्केट अपने नाम नहीं किया है, लेकिन क्या पता आने वाले वक़्त में आपको घड़ी के सुईयां दिखाई देंगी भी कि नहीं.
Web Title: History Of Wrist Watches, Hindi Article
Featured Image Credit: rolex