आज भी जब कभी हम सीता-गीता, गोपी-किशन और जुड़वा जैसी अनेकों हिन्दी फिल्मों में किसी अभिनेता या अभिनेत्री को अभिनय करते हुए देखते हैं, तो सोच में पड़ जाते हैं कि यह कैसे संभव हो सकता है? एक जैसे दिखने वाले लोग कैसे हो सकते हैं? कैसे किसी की कद काठी, आंख-नाक व कान एक जैसे हो सकते हैं?
हालांकि, हमारे आसपास प्राकृतिक रुप से पैदा हुए जुड़वा बच्चों के उदाहरण इसका जवाब देने के लिए काफी होते हैं.
किन्तु, इससे इतर अगर आपसे कोई कहे कि कृत्रिम रुप से भी किसी का क्लोन बनाना संभव है, तो सवाल फिर से पनप उठता है कि कैसे?
वह भी तब जब मामला मानव क्लोनिंग का हो!
तो आईये जानने की कोशिश करते हैं कि असल में मानव क्लोनिंग क्या है? इसका इतिहास क्या है और अगर यह संभव हुई तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
क्लोनिंग का इतिहास
यूं तो क्लोनिंग के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि यह सैकड़ों साल पुराना है. फिर भी मोटे तौर पर देखने पर हम पाते हैं कि 50 के दशक में ही क्लोनिंग का विचार लोगों के दिमाग में घूमने लगा था. विज्ञान से जुड़े लोगों ने इसके लिए मेंढ़कों पर कई सारे प्रयोग भी किए, ताकि क्लोन बनाना संभव हो सके. उन्होंने बाद में कुछ जानवरों पर भी प्रयोग किये. हालांकि, उनके प्रयोगों को पूरी तरह से सफल नहीं माना गया. फिर भी उनके प्रयास जारी रहे.
इसी का परिणाम था कि 80 और 90 के दशक के बीच कई भ्रूण क्लोन बनाये गए. इनमें खरगोश, चूहों और भेड़ों के क्लोन थे. इनके अंदर कई कोशिकाओं को विकसित करने की कोशिश की गई थी.
आगे भी क्लोनिंग को संभव बनाने का सिलसिला चलता रहा. इसी कड़ी में 1997 के आसपास में डॉ. ईयन विलमट ने नाभिकीय ट्रांसफर तकनीक का अनोखा नमूना पेश किया था.
‘डाली’ ने दिखाई नई राह
इस तकनीक के अन्तर्गत विलमट ने मेल और फीमेल से अलग-अलग कोशिकायें प्राप्त कर, उनके डी.एन.ए. का प्रयोग किया था. इसके बाद उन्होंने इसे डिम्ब में स्थापित कर दिया था. उन्होंने अपनी मेहनत से ‘डाली‘ नामक भेड़ का क्लोन तैयार कर लिया था. माना जाता है कि उनकी यह सफलता क्लोनिंग के लिए मील का पत्थर साबित हुई. इसकी बदौलत ही वैज्ञानिकों का ध्यान मानव क्लोनिंग पर गया. वह इसको भी संभव बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं.
असल में दूसरे प्रयोगों और मानव क्लोनिंग में भी कोई बड़ा अंतर नहीं है. वैसे यह प्रक्रिया जितनी आसान मालूम पड़ती है, उतनी होती नहीं है. उसके बाद भी यह प्रक्रिया कितनी सफल होगी कहना मुश्किल होता है.
Facts of Human Cloning (Pic: phys.org)
कैसे की जाती है क्लोनिंग?
क्लोनिंग की प्रक्रिया से किसी भी जीव का बिल्कुल वैसा ही प्रतिरूप तैयार किया जाता है. सरल शब्दों में कहा जाये तो जीव की कार्बन कॉपी. डाली भेड़ इसका बड़ा उदाहरण है. यह तकनीक अनेक जानवरों पर इस्तेमाल की जा चुकी है. वह बात और है कि अभी इसका विकसित होना बाकी है. यह पूरी तरह से सफल नहीं हो सकी है.
क्लोनिंग में मां की एक डिम्ब कोशिका से डीएनए निकालकर पिता की एक कोशिका के जीन से बदल दिया जाता है. इसके लिए ज्यादातर स्किन की कोशिकाओं का प्रयोग किया जाता है. अगली कड़ी में डिम्ब कोशिका के विभाजन की प्रकिया शुरू की जाती है. इसके परिणाम स्वरुप यह सामान्य भ्रूण की तरह विकसित होने लगता है. बाद में इसे मां के भ्रूण में प्रतिरोपित कर दिया जाता है.
मानव क्लोनिंग का सच
2003 के आसपास विश्व पटल पर मानव क्लोनिंग की सफलता की एक खबर आई. खबर के अनुसार क्लोनेड नाम की एक कंपनी ने दुनिया का पहला क्लोन बनाने का दावा किया था. क्लोनेड की निदेशक ब्रिजेट बोइसिलियर ने कहा कि ‘ईव नाम की क्लोन की हुई बच्ची तकनीक के क्षेत्र के लिए एक करिश्मा है.’
हालांकि, स्कॉटलैंड के रोसलिन इंस्टीट्यूट के ईयन विलमट उनके इस दावे को ठीक नहीं मानते. यह वही विलमट हैं, जिन्होंने डाली क्लोन बनाकर एक नया कीर्तिमान बनाया था.
विलमट कहते हैं कि ‘लोगों ने सुअर के क्लोन बनाने का दावा किया है, पर क्या उन्हें किसी ने देखा है? बंदरों के क्लोन के भी दावे हुए, पर क्या उन्हें किसी ने देखा?
शायद नहीं!
फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि मानव क्लोंनिग के हम बहुत नजदीक हैं?
या फिर यह संभव है!
आगे आने वाले समय में यह आसान हो सकती है, किन्तु फिलहाल आसान नहीं है. विलमट क्लोनेड के दावे को भी नकारते हैं. उन्हें उनकी सफलता पर संदेह है. उनका मानना है कि अगर ऐसा है तो क्लोनेड को सबूत देने चाहिए, जो वह नहीं दे पा रहे हैं.
Plans for Cloning (Pic: popularmechanics)
मानव क्लोनिंग के बाद क्या?
मानव क्लोनिंग को सही ठहराने वाले क्लोनेड जैसे वैज्ञानिकों की मानें तो इस तकनीक के विकास से चिकित्सा के क्षेत्र को बल मिलेगा. दावा किया जाता है कि इसकी सफलता से कैंसर जैसी बीमारी का भी स्थाई इलाज मिल जायेगा, क्योंकि तब हम जान चुके होंगे कि शरीर की कोशिकाओं को नियंत्रित किया जा सकता है.
वहीं इसका दूसरा पहलू यह है कि इसका प्रयोग जिन पर भी किया गया है, फिर चाहे वह जानवर ही क्यों न हो, वह पूर्णतः सही नहीं दिखे हैं. अधिकतर केसों में कमियां मिली हैं. ब्लड सेल्स और अविकसित फेफड़े की समस्या इनमें प्रमुख रुप से देखी गई है. गायों के अनेक क्लोनों में दोष पाए गए. वे अधिकतर समय तक जीवित नहीं रह पाए. हालांकि, उनके पास ‘डाली’ भेड़ का उदाहरण है, जिसमें क्लोनिंग कारगर रही है. यह उन्हें उत्साहित करता है.
भारत की बात की जाये तो यहां क्लोनिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध है. हैदराबाद में भारत के सेंटर फ़ॉर सेल्यूलर एंड मोलिक्यूलर बायोलोजी के निदेशक डॉ लालजी सिंह भी क्लोनिंग को सही नहीं मानते. उनके अनुसार इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हो सकता है कि लोग एक ही व्यक्ति के कई क्लोन बना सकते हैं, जिनका उपयोग ग़लत कामों के लिए किया जा सकता है.
हालांकि, वह यह भी चाहते हैं कि भारत सरकार को क्लोनिंग के लिए इतनी छूट जरुर देनी चाहिए, जिसका उपयोग इलाज के लिए किया जा सके.
Human Cloning (Pic: catholiclane)
मानव क्लोनिंग को लेकर भले ही अलग-अलग मत दिखाई देते हों, लेकिन इससे एक बात साफ है कि साइंस ने अपनी सारी परिधियों को तोड़ दिया है. आगे आने वाला वक्त ही तय करेगा कि अपने इस सफर में विज्ञान कितनी दूर तक जायेगा. साथ ही इसके लाभ और हानि की तस्वीर भी साफ हो पायेगी.
Web Title: Interesting Facts on Human Cloning, Hindi Article
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