2003 की शुरुआत का वह समय तो आपको याद ही होगा, जब रिलायंस इंफोकॉम ने 500 के मोबाइल हैंडसेट्स लांच करके तहलका मचा दिया था. वस्तुतः वह घटना संचार क्रांति (Link in English) का सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय कही जा सकती है. ऐसा नहीं है कि उसके पहले यह इंडस्ट्री मौजूद नहीं थी, अथवा बाद में दूसरी कंपनियों ने अपना योगदान नहीं दिया, पर क्रांति शब्द, खासकर सेल्लुलर इंडस्ट्री में ‘रिलायंस’ के साथ ज्यादा मुफ़ीद बैठता है.
इसके बाद की कहानी और भी अधिक गौर करने वाली है.
बाद में रिलायंस का बंटवारा हुआ और रिलायंस इंफोकॉम, अनिल अम्बानी के हिस्से में जाकर रिलायंस कम्युनिकेशन्स बन गयी. यह क्षेत्र उभरता ही नहीं, बल्कि उफनता हुआ क्षेत्र था. ज़रा सोचिये, फिर एक दशक से ज्यादा समय तक मुकेश अम्बानी ने आखिर कैसे इस सेक्टर में एंट्री नहीं ली.
सीधी सी बात है, वह इंडस्ट्री में सक्रीय कंपनियों के पीछे-पीछे चलने की बजाय अपनी अलग और मजबूत पहचान के लिए योजना बनाने में जुटे हुए थे. वह योजना अब ‘रिलायंस जिओ‘ के रूप में सबके सामने है, किन्तु इस योजना के विभिन्न पहलु कौन-कौन से रहे हैं? यह जानना समझना आवश्यक है, क्योंकि इसी आधार पर दूसरी कंपनियां अगले दशक तक रिलायंस जिओ का कोई तोड़ तैयार कर सकती हैं.
निश्चित रूप से 10 महीने के कम समय में 10 करोड़ सब्सक्राइबर्स जुटाना कोई हंसी खेल नहीं है. और तो और, रिलायंस जिओ ने मुफ़्त 4 जी हैंडसेट लांच करने की घोषणा करके अपने ग्राहकों की संख्या 50 करोड़ तक ले जाने का अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य सामने रखा है.
योजना, पूँजी और टेक्नोलॉजी का संगम
वैसे तो रिलायंस जिओ की स्थापना 2010 में ही कर दी गयी थी, किन्तु उसके बाद लगातार 6 साल कंपनी ने टेलीकॉम मार्किट पर चुप्पी साधकर योजना तैयार करती रही. फिर दिसंबर 2015 से अगस्त 2016 तक अपने कर्मचारियों और रेफरेन्सेस पर जिओ का बीटा वर्जन इस्तेमाल किया और फिर 5 सितम्बर 2016 को लांच कर डाला ‘जिओ’.
सिम एक्टिवेशन इत्यादि की प्रक्रिया को आधार से जोड़कर बेहद सरल तो बनाया ही, साथ ही साथ लगातार एक के बाद दूसरा प्लान पेश करके यूजर्स की संख्या भी बढ़ाता गया रिलायंस. जैसे ही रिलायंस जिओ को लेकर मार्किट थोड़ी ठंडी होती है, वैसे ही मुकेश अम्बानी एजीएम में कोई नयी घोषणा कर डालते हैं. रिलायंस जिओ की लांचिंग के समय कई विशेषज्ञों और कॉम्पिटिटर्स का स्टेटमेंट आ रहा था कि ‘रिलायंस जिओ‘ एक जुआ है, जिसका जवाब देते हुए मुकेश अम्बानी को बयान देना पड़ा था कि ‘जिओ जुआ नहीं, एक सोचा समझा बिजनेस प्लान है.’
उनकी बात अब लगातार सच साबित हो रही है, किन्तु बड़ा अजीब है कि जिओ की प्रतिद्वंदी कंपनियां शायद अब तक इस सदमे से उबर नहीं सकी हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो वोडाफोन, एयरटेल, आईडिया या फिर अनिल अम्बानी की रिलायंस कम्युनिकेशन सहित सरकारी कंपनी बीएसएनएल इस बात को समझ चुकी होतीं कि मुकेश अम्बानी की सोच अपने सभी प्रतिद्वंदियों को धुल चटाते हुए एकलौता मार्किट लीडर बनने की है.
ज़रा गौर कीजिये, 2017 में भारत में स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या 35 करोड़ (Link in English) के आसपास है. वहीं सवा सौ करोड़ (Link in English) के आसपास मोबाइल कनेक्शन हैं भारत में. ऐसे में मोटे तौर पर देखा जाए तो 60 करोड़ से ऊपर उपभोक्ताओं के पास आज भी फीचर फोन है.
अब यह मत पूछियेगा कि ‘जिओफ़ोन’ से इस आंकड़े का क्या सम्बन्ध है?
अब अगर पूँजी इन्वेस्टमेंट की बात की जाए तो पहले ही मुकेश अम्बानी 1 लाख 80 हज़ार करोड़ रूपये रिलायंस जिओ में लगा चुके हैं (Link in English1 / 2). ऊपर से रिलायंस के 10 करोड़ पेड उपभोक्ताओं से भी कंपनी को आमदनी होने लगी है.
जिओफ़ोन के लिए 1500 रूपये सिक्योरिटी डिपाजिट रखने की बात की गयी है. ऐसे में अगर इस मास्टरस्ट्रोक से रिलायंस मरी हालत में 25 करोड़ उपभोक्ताओं को भी यह फोन दे पाती है तो तो उसके पास 3750 करोड़ रूपये तीन साल के लिए जमा होंगे. कहने को तो यह पैसा रिफंडेबल है, किन्तु 3 साल में बहुत कम लोग अपने फोन को फिजिकल डैमेज से बचा पाएंगे.
चूंकि, दूसरी प्रतिद्वंदी कंपनियों के शेयर लगातार गिर रहे हैं और ऐसे में रिलायंस जिओ के बढ़ते शेयर प्राइस के कारण स्वतः ही पूँजी भण्डार बढ़ता जा रहा है.
जहाँ तक बात है टेक्नोलॉजी की तो न केवल 4 जी वोल्टे देकर वॉइस और डाटा की पहुँच को आसान बनाया गया है, बल्कि टेलीविजन इंडस्ट्री से जोड़ने की राह भी जिओफ़ोन खोल सकता है. मतलब नहीं समझे तो कुछ यूं समझिये कि रिलायंस जिओ, टेलीविजन सेट-टॉपबॉक्स इंडस्ट्री में भी बड़ी सेंध लगा सकता है. साफ़ है अगर रिलायंस जिओ से कनेक्ट करके कोई अपना टेलीविजन चला सकता है तो फिर छतरी लगाकर हर महीने अलग से बिल क्यों देगा दूसरे को.
मतलब प्लान फूलप्रूफ है जी!
Reliance Jio and Direction of Telecom Industry (Pic: indianexpress.com / 2)
क्या कर सकती हैं दूसरी कंपनियां
पिछले दिनों खबर आयी थी कि आईडिया वोडाफोन का विलय होने जा रहा है. इसका संभावित समय 2018 (Link in English) बताया जा रहा है. हालाँकि, कंपनियों के मर्जर का एक प्रोसेस होता है, किन्तु जिस तरह का वॉर इस इंडस्ट्री में चल रहा है, उसमें एक साल लम्बा समय होता है. एक साल में आपके करोड़ों कस्टमर दूसरे खेमे में जा सकते हैं. जाहिर तौर पर रिलायंस जिओ जैसी बड़ी योजना का मुकाबला करने के लिए बड़े खिलाड़ियों की आवश्यकता है, जिससे मार्किट में मोनोपॉली की स्थिति से बचा जा सके.
आईडिया वोडाफोन की बात छोड़ भी दें तो हाल फिलहाल सबसे बड़ा टेलीकॉम खिलाड़ी एयरटेल भी 4 जी वोल्टे सर्विस लांच करने की तैयारी कर चुका है, जिसकी लांच डेट मार्च 2018 (Link in English) रखी गयी है. दूसरे खिलाड़ियों की रणनीति अभी बहुत साफ़ नहीं है और ऐसे में रिलायंस जिओ आगे-आगे और बाकी कंपनियां पीछे-पीछे का खेल देखने को मिल रहा है.
प्रतिद्वंदी कंपनियों को कुछ बड़ा करने की राह पर अग्रसर होना होगा, खासकर हैंडसेट सेगमेंट को लेकर. आपको याद होगा, पिछले दिनों फ्रीडम 251 (Link in English) नामक स्मार्टफोन मात्र 251 रूपये में लांच करने की घोषणा की गयी और लोगबाग टूट पड़े कंपनी की वेबसाइट पर. यह बात अलग है कि कंपनी फ्रॉड निकली और यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी. पर जिओ की प्रतिद्वंदी कंपनियों को ऐसा ही कुछ जादुई ऑफर लाने के बारे में सोचना होगा. वह भी जल्दी, क्योंकि 1500 रूपये जमा करके अगले 3 सालों के लिए कस्टमर रिलायंस जिओ के साथ बंध चुका होगा. ऐसे में अगर हैंडसेट बनाने वाली कंपनियां और रिलायंस जिओ के प्रतिद्वंदियों के बीच कुछ ठोस समझौता होता है, जो जिओफ़ोन को टक्कर दे सके तो रिलायंस जिओ की मोनोपॉली से कुछ हद तक मार्किट को बचाया जा सकता है, अन्यथा रिलायंस जिओ तो ऑक्टोपस की भांति टेलीकॉम इंडस्ट्री को खुद में समेटने की दिशा में बढ़ता ही जायेगा.
5 जी जैसी हाईटेक टेक्नोलॉजीज में निवेश
ऊपर की आइडियाज तो बीच-बचाव वाली हैं, किन्तु सच तो यह है कि वर्तमान में बाजी रिलायंस जिओ के हाथ आ गयी है. अब 4 जी में कोई कितना भी दम लगा ले, रिलायंस जिओ को पीछे धकेलना मुश्किल और नामुमकिन दोनों है. ऐसे में सेल्लुलर इंडस्ट्री में स्पीड एक ऐसा फैक्टर है, जो आने वाले दिनों में इस गेम का रूख पलट सकता है.
4G टेक्नोलॉजी के बाद निश्चित रूप से अब 5G को लेकर बातें हो रही हैं. बीच में खबरें आईं कि चीनी कंपनी हुआवे भारत की टेलिकॉम कंपनियों से इसको लेकर बातचीत कर रही है. दिलचस्प बात यह भी है कि 5G की कुछ सेवाएं पहले ही एलटीई-ए प्रौद्योगिकी के माध्यम से बाजार में पेश की जा रही हैं. रिलायंस जिओ जैसी कई कंपनियां पहले ही वोल्टे तकनीक के माध्यम से मार्किट में हैं, पर बात जब 5G को लेकर सामने आएगी तो यह न केवल कॉलिंग अनुभव, बल्कि स्पीड को और भी बेहतर बना देंगी.
हालाँकि, इसमें कुछ पेंच भी हैं. भारत में अनुमानतः 20 फीसद से कम नेटवर्क ही फाइबर ऑप्टिक केबल पर चल रहे हैं, तो बैकहाल कमजोर हालत में है. गौरतलब है कि बैकहॉल एक ऐसा नेटवर्क है जो सेल साइट्स को सेंट्रल एक्सचेंज से कनेक्ट करता है. खबरों के अनुसार, अगर भारत में 2020 तक 5जी उपलब्ध हो भी जाता है और इस नेटवर्क को लाने के लिए आधारभूत चुनौतियों को कवर कर भी लेता है तो भी एक अच्छे 5जी नेटवर्क की उम्मीद तब तक नहीं की जा सकती जब तक भारत के पास विश्वसनीय और मजबूत बैकहॉल न हो. जाहिर तौर पर टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट और तेज गति से कार्य किये जाने की आवश्यकता है.
मार्च में मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस (Link in English) में सैमसंग और रिलायंस जियो ने 4जी नेटवर्क को मिलकर और बेहतर बनाने के लिए अपने इनफिल एंड ग्रोथ प्रोजेक्ट का ऐलान किया था. तब संकेत मिले थे कि सैमसंग और जियो दोनों 5जी के लिए अभी से ही तैयार हैं. हालाँकि, 5जी नेटवर्क 4जी की जगह नहीं लेगा बल्कि इसके लिए अलग तरह का ढांचा तैयार किया जाएगा.
निश्चित रूप से मुकेश अम्बानी की जिओ अगली लड़ाई के लिए भी पूरी तैयारी कर रही है. संभवतः एयरटेल और बीएसएनएल भी 5G की रेस में बने रहने के लिए कोशिश कर रही हैं, पर बात जब 5G नेटवर्क की हो तो उसकी तैयारियां 2G स्पीड से करना भला कहाँ से उचित माना जा सकता है.
अगर इन तमाम समीकरणों और मार्किट की स्थिति पर नज़र दौड़ाते हैं तो रिलायंस जिओ बेहद मजबूत स्थिति में नज़र आता है और इसका कारण कोई अजूबा नहीं है, बल्कि योजनाबद्ध ढंग से तकनीक में निवेश इसका प्रमुख स्तम्भ है. हालाँकि, दूसरी कंपनियां अभी तक किंकर्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति में ज्यादा दिखी हैं और इस कारण से रिलायंस जिओ बेरोक टोक ढंग से आगे बढ़ती जा रही है. पर अगर जैसा कि हम जानते हैं टेक्नोलॉजी की दुनिया और उसमें शोध की संभावनाएं अनंत हैं.
इसे कुछ यूं समझा जा सकता है.
पहले मोबाइल रेडियो टेलिफोन सिस्टम इस्तेमाल होते थे, तो इस तकनीक को 0G का नाम दिया गया. फिर बारी आयी पहली वायरलेस टेलिफोन टेक्नॉलजी की, जिसे 1G कहा गया. फिर सेकंड जेनेरशन के रूप में GSM लॉन्च हुआ और ऐनलॉग के बजाय डिजिटल नेटवर्क का इस्तेमाल होने लगा. इसी कड़ी में, तीसरी जेनरेशन यानी 3G आया, जिसमें W-CDMA, TD-SCDMA, HSPA+ और CDMA2000 स्टैंडर्ड्स शामिल किये गए थे. इसके बाद 2008 में 4G पेश हुआ, जिसमें मोबाइल WiMAX और LTE दो स्टैंडर्ड्स थे. LTE (Long-Term Evolution) मोबाइल फोन और डेटा टर्मिनल्स के लिए हाई स्पीड वायरलेस कम्यूनिकेशन का एक स्टैंडर्ड माना जाता है, तो इंटरनेट प्रोटोकॉल या IP पर आधारित LTE नेटवर्क को ही VoLTE (Voice Over Long Term Evolution) का नाम दिया गया. इसके जरिए वॉइस कॉलिंग भी की जा सकती है और रिलायंस जिओ इसी स्टैण्डर्ड पर काम कर रहा है.
जाहिर तौर पर आगे संभावनाओं के द्वार खुले हुए हैं और अगर 5G में भारी निवेश किया जाता है तो कोई कारण नहीं होगा कि रिलायंस जिओ के अश्वमेध रथ को प्रतिद्वंदी कंपनियां रोक न सकें.
Reliance Jio and Direction of Telecom Industry (Pic: jagran)
Web Title: Reliance Jio and Direction of Telecom Industry, Hindi Article
Keywords: Reliance Big Shot, Airtel, Vodafone, Idea, 0G, 1G, 2G, 3G, 4G, LTE, VOLTE, 5G, VOIP Technology, Internet Speed, Voice Calling Jio Phone, Plan to Growth, Future Standards
Featured image credit / Facebook open graph: guidetopc