टाटा मोटर्स की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो, रतन टाटा की एक ‘ड्रीम कार’ रही है. वो इस कार को हर मध्यमवर्गीय परिवार के घर तक पहुंचाना चाहते थे.
उन्हें इस कार को बनाने का ख्याल मुंबई के एक परिवार को देखकर आया था. जिन्हें देख रतन टाटा को अफोर्डेबल कार बनाने का आईडिया आया और उन्होंने वो करके के भी दिखाया.
लेकिन हाल ही में आई ख़बरों के मुताबिक यह बंद होने की कगार पर है. पूरे देश में जून के महीने में इसका एक ही यूनिट बिक पाया. हालांकि, कंपनी ने आधिकारिक रूप से अभी इसके बंद होने की कोई घोषणा नहीं की है.
किन्तु, माना जा रहा है कि अब इसके नए यूनिट सड़कों पर दौड़ते हुए नज़र नहीं आएँगे.
ऐसे में साल 2005 में ही इसपर काम होना शुरू हो गया था. इसी दौरान, मार्केट में इतनी कम कीमत की कार बनाना असंभव माना जा रहा था. लेकिन बाधाओं को पार करते हुए रतन टाटा ने इसे साल 2009 में लांच कर इतिहास रच दिया.
जानते हैं, टाटा नैनो के बनने की दिलचस्प कहानी जिसे खासतौर पर आम आदमी के लिए बनाया गया-
स्कूटर पर बैठे परिवार को देख, रतन टाटा को आया ख्याल!
टाटा नैनो कार को बनाने का ख्याल अपनी कार में बैठे रतन टाटा को एक दृश्य को देखने के बाद आया. दरअसल, मुंबई शहर अपनी बारिश के लिए काफी जाना जाता है. वहां हर घंटे या दो घंटे में बारिश आती है और चली जाती है.
वहां हालात तब और भी बुरे जब बारिश का सीजन ही आ जाता है. ऐसे में, वहां जलभराव की समस्या उत्पन्न हो जाती है. जिसकी वजह से लोगों को खासा परेशानी का सामना करना पड़ता है.
इसी दौरान, जब अपनी गाड़ी से गुजर रहे रतन टाटा की नज़र एक परिवार पर पड़ी. यह परिवार स्कूटर पर सवार था. तेज़ बारिश से बचने के लिए वह एक फ्लाईओवर के नीचे खड़ा आकर खड़ा हो गया. इस दृश्य को देखकर टाटा ने आम आदमी को मशक्कतों का सामना करते हुए देखा.
ये देखकर उन्होंने सोचा कि क्यूँ न एक ऐसी कार बनायीं जाए जिसे मध्यमवर्गीय लोग अफोर्ड कर सके. साथ ही, उस गाड़ी में खुद को दुपहिए वाहनों की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित महसूस करें.
बस, अब उन्होंने इस ख्याल को सच्चाई में बदल देने की ठान ली. लिहाज़ा, जल्द ही इस पर काम भी शुरू कर दिया.
एक लाख रुपये की कीमत में कार बनाना चुनौतीपूर्ण था!
रतन टाटा ने इसे बनाने के बारे में तो सोच लिया था लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती थी कि आखिर कैसे कम से कम कीमत में इसका निर्माण किया जाए.
नैनो के डिजाईन और कीमत के बारे में अभी कंपनी सोच ही रही थी कि एक पत्रकार ने रतन टाटा से इस कार की कीमत के बारे में एक इंटरव्यू लिया. जिसमे टाटा ने बोल दिया कि इसकी लागत लगभग 1 लाख रुपये होगी.
उनका ये इंटरव्यू मीडिया में आग की तरह फैला और सारे मीडिया में ये ख़बरे छा गयी कि टाटा 1 लाख रुपये में कार बनाना चाहते हैं.
इस खबर के बारे में कई ऑटो पेशेवरों ने कहा कि यह असंभव है, इतनी कम कीमत में एक कार का उत्पादन छलावा ही है. अपने इस बयान को गर्माता देख उन्होंने अपने बयान को खारिज भी कर दिया.
लेकिन रतन टाटा को किसी भी हाल में इस प्रोजेक्ट को कम से कम कीमत में ही बनाना था. इस प्रोजेक्ट से उनकी भावनाएं जुड़ चुकी थी. अपने बयान को खारिज करने के बावजूद उन्होंने इस कार को एक लाख की कीमत पर ही बनाने को ठान लिया.
शुरुआत में ही 2000 करोड़ अतिरिक्त का खर्च झेलना पड़ा!
इसके निर्माण कार्य के लिए टाटा ने भारत के पश्चिम बंगाल के सिंगूर में एक नया प्लांट बनाया जहाँ नैनो कार साल 2008 तक मार्केट में आ जानी थी.
लेकिन कुछ राजनीतिक मुद्दों की वजह से उन्हें यह प्लांट वहां से हटाना पड़ा. दरअसल, कंपनी को प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण में किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा. मामले ने धीरे-धीरे राजनीतिक रंग ले लिया.
अब इस प्लांट को किसी और जगह पर स्थानांतरित करने की समस्या थी. अपने नए प्लांट सेटअप के लिए उन्होंने गुजरात को चुना. उन्होंने गुजरात में सानंद में इसका प्लांट लगाने का फैसला लिया.
इसकी वजह से ही उन्हें अतिरिक्त 2000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े.
इसके अलावा, कार के तय समय में मार्केट आने में भी डेढ़ साल की देरी लग गयी. खैर, टाटा अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए इस नुक्सान को झेल कर भी पीछे नहीं हटे और गुजरात में अब इस कार पर तेज़ी से काम होना शुरू हुआ.
...और इंजीनियर गिरीश वाघ के हाथों में सौंपी गयी कमान!
कंपनी की सबसे बड़ी चुनौती थी इसे एक लाख रुपए में लोगों को उपलब्ध कराना. जिसकी वजह से ही इसके पार्ट्स को कई-कई बार डिजाईन करना पड़ा ताकि वह बजट में आ जाए. यह कार जर्मनी में डिज़ाइन हुई और यूके और इंडिया में डेवेलप हुई.
लिहाज़ा, जर्मनी की बॉश ने इसे स्पार्क प्लग को मोटरसाइकिल स्पार्क प्लग के आधार पर इंजीनियर किया. कार के इंजन को पूरी तरह से एल्यूमीनियम से बनाया गया. साथ ही, कार की उपयोगिता को ज्यादा बढाने के लिए भी डिजाइन किया गया.
जब वहां से डिजाईन आया तो उसमे कई सारी कमियां भी नज़र आईं. साथ ही, इसके लुक्स और फीचर्स से काफी हद तक समझौते गए थे. इसके साथ ही इसमें एसी नहीं था और कार में हैच डोर भी नहीं था.
लिहाज़ा, टाटा मोटर्स ने इस कार को एक अच्छा लुक देने के लिए बाहरी रूप में बदलाव के प्रयास किए. कीमत को ध्यान में रखते हुए कार का पूरा डिजाइन मॉड्यूलर बनाया गया.
रतन टाटा ने अपने इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी गिरीश वाघ को सौंपी. इस प्रोजेक्ट के लिए एक पूरी इंजीनियरिंग टीम बनायीं गयी जिसे वाघ ने लीड किया.
रतन ने उन्हें ये प्रोजेक्ट देते समय तीन बातों का ख्याल रखने को कहा जिसमें यह कम लागत वाला होना चाहिए, रेगुलेटरी आवश्यकताओं का पालन करना चाहिए.
साथ ही फ्यूल एफीसिएंट और त्वरण क्षमता (acceleration capacity) जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहिए.
अब इस पर काम जोरों से शुरू हुआ. वाघ की टीम में करीब 500 इंजीनियर शामिल थें. जिनका हर रोज़ इकट्ठा होकर मिलना ज़रा मुश्किल था. ऐसे में, इसके लिए उन्होंने पांच इंजीनियरों की एक कोर टीम बनाई.
जिन्हें हर दिन प्रोजेक्ट पर नए डेवलपमेंट के बारे में चर्चा करनी होती थी. दिलचस्प बात ये है कि हर एक इंजीनियर ने कार के एक अलग हिस्से का प्रतिनिधित्व किया.
उदाहरण के लिए, इंजन, कार की बॉडी, पार्ट्स कंपाइलेशन, सुरक्षा और औद्योगिक डिजाइन आदि. कई सारे एक्सपेरिमेंट्स के बाद आखिरकार साल 2009 में यह बनाकर तैयार हो गयी. अब यह मार्किट में आने के लिए तैयार हो गयी थी.
2009 में अपने लॉन्च होने के साथ ही मुश्किलों का सामना किया!
साल 2009 में टाटा नैनो को बाज़ार में लांच किया गया. यह बाज़ार में लांच होते गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करने में कामयाब हो गयी. यह दुनिया की सबसे सस्ती कार मानी गयी.
भारत में यह 'लखटकिया कार' के नाम से भी बहुत पॉपुलर हुई. इसका ये नाम इसकी एक लाख की कीमत की वजह से पड़ा. इस कार का एक लाख रुपए की कीमत के रूप में ज़बरदस्त प्रचार हुआ.
इसकी कीमत के कम होने की वजह से लोगों ने नैनो को प्री-बुक करना शुरू कर दिया. लिहाज़ा, लगभग 2,03,000 ऑर्डर पहले से ही बुक हो गए जिससे कंपनी को लगभग 501 मिलियन डॉलर की राशि प्राप्त हुई.
नैनो को बाजार में आने में काफी देर हो गई इसका कारण था प्लांट को गुजरात में फिर से सेटअप करना. जिसकी वजह से इसके उत्पादन पर भी फर्क पड़ा.
परिणामस्वरूप, कंपनी एक साल में साठ हज़ार कारें ही बना पायी लेकिन बुकिंग लाखों में हो चुकी थी.
इन सब समस्याओं का सामना कर रही कंपनी और मुसीबत में आ गयी. दरअसल, जब कारों की डिलीवरी शुरू होने के कुछ ही दिनों में कई कारों में आग लगने की खबर से लोग इसे लेने से डरने लगे.
दुनिया की सबसे अफोर्डेबल कार के टैग की सबसे सस्ती कार के रूप में गलत व्याख्या हुई. इसे लोगों ने स्टेटस के रूप में देखा और इसे गरीबों की कार माना.
खैर, साल 2015 में इसे रिडिजाइन किया गया और भी कई सुधार किए. लेकिन फिलहाल तो इसके बंद होने की खबरे जोरों पर हैं.
Web Title: Tata Nano: Interesting Story og Making of India's Lakhtakiya Car, Hindi Article
Feature Image Credit: fkitemeso