जर्मनी ने ना केवल इतिहास में बड़े-बड़े परिवर्तन किए हैं, बल्कि कार निर्माण के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी सुधार किए हैं.
पोर्शे कार भी यहीं बनाई गई. पोर्शे एक ऐसी कार है, जिसे उस व्यक्ति के नाम से विकसित किया गया. इसे जर्मनी का अब तक का सबसे बड़ा मोटर वाहन इंजीनियर माना जाता है.
किन्तु, क्या आप जानते हैं कि पोर्शे कार को बनने में काफी मशक्कतों का सामना करना पड़ा. इसका इतिहास बड़े उतार-चढ़ाव से भरा रहा.
कैसे आईए जानते हैं-
बाप गया जेल, तो बेटे ने बनाई कार
बात 1930 की है. इस समय फर्दिनेंद पोर्शे नाम के एक इंजीनियर ने जर्मनी के स्टुटगार्ड शहर में एक छोटा सा कारखाना खोला. उस समय जर्मनी में माना जाता था कि सफलता केवल उसे ही मिलती है, जो चीजों को दोषहीन तरीके से बनाता है.
फर्दिनेंद के दिमाग में यह बात बस गई थी.
इसी समय फर्दिनेंद ने आम लोगों के लिए मोटरसाइकिल बनाना शुरू किया था. जर्मन सरकार इन मोटरसाइकिलों से काफी प्रभावित थी, इसलिए उसने फर्दिनेंद से आग्रह किया कि उनकी कम्पनी आम लोगों के लिए गाड़ी बनाए.
फर्दिनेंद ने सरकार की बात मानी और इस तरह पहली पोर्शे कार सामने आई. 1938 तक फर्दिनेंद की कम्पनी ने ‘पोर्शे 64’ का उत्पादन किया. यह गाड़ी आम लोगों के बीच काफी मशहूर हुई.
आगे 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया तो इसका उत्पादन बंद हो गया.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फेर्दिनेंद की कंपनी ने कुछ युद्धक गाड़ियाँ बनाईं. फिर जैसे ही युद्ध खत्म हुआ, तो ब्रिटेन ने उनकी कम्पनी को अपने कब्जे में ले लिया. साथ ही फर्दिनेंद को युद्ध के दौरान किए गए अपराधों के आरोप में जेल में डाल दिया.
उन्हें करीब 20 महीने तक जेल में रहना पड़ा. जब फर्दिनेंद जेल में थे तो उनके बेटे फेरी ने गुमुंड रोडस्टर नाम की एक नई गाड़ी बनाई. यह ‘पोर्शे 64’ से बिल्कुल अलग थी. यह एक स्पोर्ट्स कार थी. इसमें केवल दो सीटें थीं और इसका इंजन पीछे था.
इसे एर्विन कोमेंडा नाम के डिजाइनर ने डिजाइन किया था.
... और छा गया 'मॉडल 356'
इस गाड़ी की डिमांड काफी बढ़ी. इससे उत्साहित होने के बाद फेरी ने इसमें कुछ सुधार करते हुए ‘356’ मॉडल निकाला. इस नई गाड़ी में अब चार सीटें थीं. इसी समय फर्दिनेंद भी जेल से छूट गए. वे जब आए, तो उन्होंने देखा कि ‘356’ मॉडल लोगों के दिलो- दिमाग पर छा गया. ऐसे में उन्होंने खुद कंपनी की कमान संभाल ली और कंपनी दिन दूनी, रात चौगुनी प्रगति करने लगी.
आगे अमेरिका के कार विक्रेता मैक्स होफमैन ने कम्पनी से संपर्क साधा. ताकि इस कार को अमेरिकी बाजार में उतारा जा सके. यह पहल काम कर गई और उन्हें मंजूरी मिल गई. आगे अमेरिका में इस कार की बम्पर बिक्री हुई. यह अभी भी मूलतः एक स्पोर्ट्स कार थी. इस समय तक कम्पनी ने खुद को एक स्पोर्ट कार बनाने वाली कम्पनी के रूप में स्थापित कर लिया था.
सत्तर का दशक इस कम्पनी के लिए तगड़ा मुनाफा लेकर आया था. सत्तर के दशक के आखिर में फर्दिनेंद की मृत्यु हो चुकी थी और उनका बेटा फेरी भी बूढ़ा हो चुका था. ऐसे समय में फेरी का बीटा अलेक्जेंडर कम्पनी की बागडोर संभालता है.
पोते अलेक्जेंडर ने बनाई असली पोर्शे
असल में अलेक्जेंडर शुरुआत में इस बिजनेस में नहीं आना चाहता था. वह तो विश्वविद्यालय में औद्योगिक नियोजन की शिक्षा लेने के लिए दाखिल हो चुका था. लेकिन विश्वविद्यालय से उसे यह कहकर निकाल दिया गया था कि वह इस शिक्षा के लिए उपयुक्त नहीं है. विश्वविद्यालय से निकाले जाने के बाद उसने निर्णय लिया कि वह अपने परिवार के ही बिजनेस के आगे बढ़ाएगा.
जब उसने यह बात अपने पिता को बताई तो वे बड़े खुश हुए. उन्होंने जल्द ही अलेक्जेंडर को बिजनेस की बारीकियां सिखा दीं. अलेक्जेंडर तेज दिमाग का था, तो सब कुछ जल्दी और आसानी से समझ गया.
आगे अलेक्जेंडर ने पोर्शे का ऐसा मॉडल निकाला, जो भविष्य में आने वाली सभी बेमिशाल मॉडलों का बेस बना . असल में अलेक्जेंडर ने पुराने 356 मॉडल में कुछ सुधार किए, उसके डिजाइन में कुछ परिवर्तन किये और नया मॉडल निकाला.
यह मॉडल था- ‘पोर्शे 911'. इसने बाजार में आते ही धूम मचा दी. इसकी विशेषता यह थी कि इसमें छह सिलेंडर का इंजन लगा था. इसके साथ ही इसमें बैठने के लिए बहुत जगह थी. यह मॉडल 1984 में आया था.
'मॉडल 911' और स्पोर्ट कार का भविष्य
कंपनी इसकी बिक्री से इतनी उत्साहित हुई कि इसने आगे इसी मॉडल की डिजाइन को आधार बनाकर 912, 914, 916, 928 और 948 के रूप में और मॉडल निकाले. 1986 में कम्पनी ने कुल मिलाकर 54,000 गाड़ियाँ बेचीं.
1986 के बाद आर्थिक मंदी आई तो कंपनी को घाटा सहना पड़ा. यह घाटा 1992 तक जारी रहा. आगे फिर कम्पनी ने दुबारा अपने आप को संगठित किया और मुनाफा कमाना शुरू किया.
1984 में बना 911 मॉडल आज 54 साल बाद भी पोर्शे की जान बना हुआ है. इन 54 सालों में स्पोर्ट कार बनाने की तकनीक में कई परिवर्तन हुए हैं. पोर्शे ने भी इन्हें अपनाया है, लेकिन अपने 911 मॉडल के मूल प्रारूप को नहीं छोड़ा है.
आज स्पोर्ट कार के क्षेत्र में पोर्शे का नाम बिल्कुल अलग से लिया जाता है.
उसके पीछे का कारण वही जर्मन दर्शन है, जिसे फर्दिनेंद ने अपनाया था. अर्थात अगर सफल होना है, तो चीजों को दोषहीन बनाते जाओ. ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में पोर्शे और भी उन्नत गाड़ियों का निर्माण करेगी.
Web Title: The Story Of Famous Porsche Car, Hindi Article
Feature Image Credit: yandex