आजकल छुटीयों में कहीं बाहर घूमने फिरने जाने का फैशन जोरों पर है और फैशन की नक़ल जो ना करे वो पिछड़ा माना जाता है. हम पिछड़े तो कदापि नहीं बनना चाहते थे, सो बना डाला कार्यक्रम… वो भी पूरे खानदान पानदान सहित. अब चूँकि हम उस उम्र की ओर कदम बढ़ा रहे हैं जिस उम्र में अक्सर महिलाओं की भक्ति टाइप फीलींग जागने लगती है… तीर्थस्थान घूमने की प्लानिंग करने लगती हैं …
महिला इसलिए कहा क्योंकि मर्दों की ऐसी उम्र कभी नहीं आती, क्योंकि वे तो बलराज साहनी के ओ मेरी जोहराजबी के सच्चे प्रशंसक होते जो हैं. सो हरिद्वार और ऋषिकेश जाने का कार्यक्रम तय हुआ. बच्चे बड़े मिलकर 14 लोगों का परिवार था सो टेम्पो ट्रेवलर बुक किया. अपने खानदानी मुहावरे “बगल में टोसा तो किसका भरोसा’ को मानते हुए सुबह चार बजे उठकर आलू के परांठे बनाने का काम हमारे जिम्मे आया और आचार सहित डब्बे पैक कर डाले रास्ते के लिए पानी कोल्ड्रिंक नमकीन ये सब तो बोनस में था ही. छ बजे सब गाते बजाते मस्ती करते हुए निकल लिए.
रस्ते भर अन्ताक्षरी और चुटकुलों संग पिकनिक का पूरा आनंद आया दोपहर सब हरिद्वार पहुँच कर खा पीकर कमरों में आराम करने पहुँच गए. सुबह से भागमभाग करके सबकी हालत पस्त जो थी. हां हमारे टीन एजर और युवा होते बच्चे जरुर बैचैन थे जिन्हें घूमने का सचमुच क्रेज था … चूँकि गर्मियां थी सो शाम को गंगाजी के स्नान का और आरती का प्रोग्राम तय हुआ. जो तय समय पर पूरा हुआ और अंत में बढ़िया सा भोजन भरपेट ठूंस कर सब सो गए. अगले दिन शिवपुरी जाना था. हमारी उम्र का आनंद तो दर्शन आरती में मिल चुका था. अब बच्चों की बारी थी, जिन्हें रिवर राफ्टिंग करनी थी.
अरे वही जिसमें हवा वाली नाव चलाते हैं … हम सब सुबह सुबह ही निकल गए. पीक सीजन की वजह से बहुत भीड़ थी और ट्रेंड बोट वालों की भी कमी थी …
हमें तो पानी से भयानक रूप से डर लगता है, सो हम किसी भी तरह जाने को तैयार नहीं थे. पानी के मामले में हमारी हालत कुत्ते से भी बदतर है जो पानी देखते ही भौंकता है… हम तो उनमे से हैं जो तीन फुट पानी में भी डूब जाएँ … ना ना ऐसा मत सोचो इतने भी ख़राब नहीं हम जो चुल्लू भर में डूब जाएँ.
हमें काफी समझाया बुझाया गया कि बहुत सिंपल है, आराम से बैठना है… बस हम सब लाइफ जैकेट पहन कर तैयार हो गए सबको एक चप्पू पकड़ा दिया. अब चूँकि ट्रेनर भी नया था, सो उसने ज्यादा कुछ समझाया नहीं. हम चप्पू को लेकर खेलते हुए तलवार की तरह घुमाते हुए कुछ आगे बढे ही थे… भयंकर सी आवाजें आई वो बोला राफ्ट आ रहा है चप्पू चलाओ… हमें ना तो ये समझ आया कि राफ्ट लहरों को कहते हैं. ना ही हम चप्पू को सही एंगल से चला पाए.
खैर, हमने जैसे तैसे उस राफ्ट यानी पानी की लहरों को पार ही किया था कि क्या देखते हैं सामने समन्दर जैसी बड़ी-बड़ी लहरें उठ रही हैं और …. ये क्या हमारे परिवार की आगे वाली बोट सीधी खड़ी हो गयी. हम सब डर के मारे सुन्न हो गए … ट्रेनर चिल्ला रहा था चप्पू चलाओ …. और चप्पू हवा में तैर गया … .कुछ ही सेकेंड के इस खेल में हमारा पूरा परिवार पानी में था.
दोनों नाव पलट चुकी थीं. साठ सत्तर फीट गहरे पानी में लहरें हमें ऐसे उठा उठा कर पटक रही थी, मानो मिक्सी में हमारा जूस बन रहा हो. अपने बचने की सारी उम्मीदें छोड़ चुकी थी मैं और अपने भगवान् को याद कर खुद को ढीला छोड़ दिया.
पर कुछ ही देर में महसूस किया कुछ लोगों ने मेरी लाइफ जेकिट से पकड़ कर मुझे ऊपर खीच लिया था … मैं रोने लगी और अपने बच्चों को और परिवार के बाकी लोगों को तलाशने लगी जो पहले ही पानी से निकल चुके थे और मुझे खोज रहे थे. क्योंकि सब जानते थे में पानी से डरती हूँ .. हमारा छोटू भारी भरकम और डरपोक सा था… मुझे सबसे ज्यादा उसकी चिंता थी .. पर वो हम सबसे होशियार निकला उसने ट्रेनिंग के दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात सीखी थी की नाव की रस्सी को पकड़ के रखना सो जब हमारी लस्सी बन रही थी वो हीरो नाव के साथ ही लटका रहा और तो और सारे चप्पू अपने पैर में दबा लिए …कहीं पैसा ना भरना पड़े इसलिए … हम सब उसकी हरकत पर बाद में खूब हँसे.
उस वक्त तो मौत से साक्षात्कार करके आ रहे थे. अब डर के मारे हम सबकी सिट्टी पिट्टी गुल थी. हम में से कोई भी दोबारा नाव में बैठना नहीं चाहता था, सो किनारे किनारे पैदल चल रहे थे. किसी की चप्पल तो किसी का चश्मा गंगा मैया को भेंट चढ़ चुका था. हमारे नाव वाले ट्रेनर हमें समझाने की कोशिश कर रहे थे… पर सब के सब बुरी तरह डरे हुए थे…
पर, हमें ऋषिकेश तक जाना था और नाव के अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा था सो कुछ दूर चलने के बाद फिर से नाव में बैठना हमारी मज़बूरी थी. भगवान का नाम लेकर हमने दोबारा यात्रा शुरू की … अब हमें समझ आ चुकी थी चप्पू की अहमियत सो खूब जोर लगा के हईशा की पूरी ताकत से चप्पू चलाये और किनारे पहुँच कर सबकी जान में जान आई. सब कर रहे हैं हम भी करें वाली नीति हम पर बहुत भारी पड़ गयी थी … हमें बाद में पता लगा कि हमने गलत पैकेज चुना था. बच्चो और औरतों के साथ ये रिस्क नहीं लिया जाता, बल्कि राफ्टिंग में एक जैसे चप्पू चलाने वाले लोग होने चाहिए.
कई महीनों तक ठीक से नींद तक नही आई. रातों में चीखते थे, खुद को बार बार पानी में डूबता महसूस करते थे ….. किसी भी चीज की आधी अधूरी जानकारी और दूसरों की नक़ल करना इतना भारी पड़ जाएगा ये हम सब समझ चुके थे. सो सबने तो तौबा की अब इस तरह की एडवेंचर ट्रिप प्लान करने की..
Adventure Trip Hindi Satire (Pic: Archana Chaturvedi)
Web Title: Adventure Trip Hindi Satire, Archana Chaturvedi
Keywords: Tourism, Satire, Satirical Article in Hindi, Rafting, River Rafting, Haridwar, Rishikesh, Travel Precaution, Alert, Boat
Featured image credit / Facebook open graph: thrillophilia.com