घूमना-फिरना!
इस शब्द को सुनते ही हमारे जहन में सबसे पहले पहाड़, बीच और बर्फीले इलाकों के ख्याल ही आते हैं.
कई बार ऐसा होता है कि हम आध्यात्मिक शांति की खोज में होते हैं. ऐसे में, इस बार एक ऐसे मंदिर में जाने में का विचार बनाइए. जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं.
यहाँ न सिर्फ आप मंदिर में दर्शन कर सकते बल्कि पूरे गोरखपुर की भी सैर कर सकते हैं. इस जगह के बारे में जानने के बाद आप शायद इस भूमि की ओर खींचे चले आये.
तो आइये चलते हैं एक सफ़र पर, जो शब्दों से बुना हुआ है. लेकिन क्या पता ये शब्द ही आपको ‘गोरखनाथ मंदिर’ की चौखट पर ला दे-
नाथ संप्रदाय से का ‘गढ़’ है यह मंदिर
नाथ सम्प्रदाय के गढ़ गोरखनाथ मंदिर को नहीं घूमा तो क्या घूमा.
उत्तरप्रदेश में मौजूद गोरखपुर, दिल्ली से लगभग सात सौ किमी. दूर है. गोरखपुर सड़क, रेल और हवाई तीनों मार्गों द्वारा पहुंचा जा सकता है. इस राज्य का नाम ही बाबा गोरखनाथ के ऊपर रखा गया है.
यह जगह एक और चीज़ के लिए भी प्रसिद्ध है. वो है गीता प्रेस. वही प्रेस जिसके धार्मिक पुस्तकें लगभग हर हिन्दू व्यक्ति के घर मिल ही जाएँगी.
माना जाता है कि नाथ समुदाय आदिनाथ भगवान शिव द्वारा स्थापित किया गया था. उनके शिष्य मत्स्येन्द्रनाथ थे. जिसके बाद उन्होंने अपना ज्ञान अपने शिष्य गोरखनाथ को दिया.
इस समुदाय जिसमें बारह शाखाएं थी, नाथ समुदाय कहलाया. इस समुदाय के लोगों को कान छिदवाने के कारण इन्हें कनफटा, दर्शन कुंडल धारण करने के कारण दरशनी और गोरखनाथ के अनुयायी होने की वजह से गोरखनाथी भी कहा जाता है.
गोरखनाथ के अनुयायियों ने अपने नाम के पीछे ‘नाथ’ लगाना शुरू कर दिया. यहाँ पर ब्राह्मणों की बहुलता के साथ एक ऐसा समाज स्थापित हुआ, जहाँ बौद्ध और शैव समुदाय के लोग भी अच्छी खासी मात्रा में मौजूद रहे.
गोरखनाथ ने इन्हीं सारे समुदायों को मिलाकर एक ‘योग’ का नया पथ बनाया. इस पथ को कई मुस्लिम लोगों ने भी अपनाया.
उन्होंने घोर ब्राह्मणवाद और बौद्ध धर्म में भी कट्टरता का विरोध किया. उन्होंने हिंदू- मुस्लिम एकता की नींव रखी और जात-पात से जुड़े भेदभाव के आडम्बरों का हमेशा विरोध किया.
यही वजह रही कि नाथ संप्रदाय में काफी सारे ऐसे लोग आकर जुड़ गए, जिन्होंने अपने जीवन में भेदभाव सहा था. नाथपंथियों में वर्णाश्रम व्यवस्था से विद्रोह करने वाले सबसे ज्यादा थे.
संत परंपरा को बढ़ाने वाले ‘बाबा गोरखनाथ’
बाबा गोरखनाथ की सीख और वचन कुछ ऐसे रहे कि आज ओशो उनकी ‘वाणी’ पर खूब प्रवचन देते हैं. नाथ का प्रभाव कबीर, दादू और सूफी कवि जैसे मुल्ला दाउद, जायसी आदि पर भी खूब रहा.
ओशो बताते हैं, कि महाकवि सुमित्रानंदन पंत ने यूँ उनसे पूछा कि भारत के धर्माकाश में वे कौन से 12 लोग हैं जो सबसे चमकते हुए सितारे हैं. इस बात पर ओशो कहते हैं कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, नागार्जुन, शंकर, गोरख, कबीर, नानक, मीरा, रामकृष्ण का नाम लिया.
इसके बाद पंत ओशो से इनमें से सात, फिर पांच और बाद में चार के नाम लेने को कहते हैं. इस पर ओशो कहते है कि कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध और गोरखनाथ. फिर पंत ने कहा कि यह सूची में से सिर्फ तीन व्यक्ति चुने तो ओशो ने जवाब दिया कि इन चार में से मैं किसी को छोड़ न सकूंगा. फिर पंत पूछते हैं, भला ऐसा क्यों?
इस पर वह कहते हैं कि गोरख को नहीं छोड़ सकता क्योंकि गोरखनाथ से इस देश में एक नया सूत्रपात हुए . उन्होंने एक नए प्रकार के धर्म को जन्म दिया. गोरख के बिना न कबीर हो सकते हैं न नानक, न दादू, न वाजिद, न फरीद, न मीरा.
गोरखनाथ ने जितना आविष्कार इस बात पर किया है कि मनुष्य को अपने अंदर ही खोजने की जरूरत है. स्वयं को पहचानने की जरुरत है. यही वजह रही कि उनके अनुयायियों में हर धर्म के लोग शामिल हुए.
नेपाल का राजपरिवार हर साल लगाता है ‘भोग’
नाथ परंपरा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ द्वारा स्थापित की गयी. यह मठ गोरखपुर जिले में स्तिथ है. यह मंदिर उन्हें श्रधांजलि देने के लिए बनाया गया. इस मंदिर को उसी जगह बनाया गया, जहाँ पूजा किया करते थे.
गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ही ‘नाथ’ परंपरा को जन्म देने वाले गुरु हैं. गुरु ने शिष्य गोरखनाथ के साथ मिलकर कई सारे योग स्कूल भी खोले.
इस स्थान को तपःस्थली की ख्याति प्राप्त है. कहा जाता है कि गोरखनाथ जी ने भारत और नेपाल की सीमा पर स्तिथ शक्तिपीठ देवीपाटन पर तपस्या की थी. उन्हीं को देवीपाटन और पाटेश्वरी पीठ की स्थापना का भी श्रेय जाता है.
आज भी तीनों स्थान शक्तिपीठ देवीपाटन, नेपाल का चौघड़ा और गोरखनाथ मंदिर, एक दूसरे से सम्बंधित हैं. किन्तु, इस मंदिर का महत्व ज्यादा है.
आज मंदिर में गोरखनाथ की समाधि भी है, जहां लोग उनके दर्शन के लिए दूर दूर से आते हैं.
इस मंदिर से एक दिलचस्प बात और भी जुड़ी है. मकर सक्रांति के त्यौहार पर यहाँ हजारों की संख्या में लोग आकर जुटते हैं. इस दिन यहाँ प्रसिद्ध खिचड़ी मेला भी लगता है. यहाँ बाबा को लोग ‘खिचड़ी’ प्रसाद के रूप में चढाते हैं.
इस दिन, यहाँ हर साल सबसे पहले नेपाल के राजघराने से बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाई जाती है. दरअसल, बाबा गोरखनाथ ही नेपाल राजपरिवार के कुलगुरु हैं.
बताते चलें, बरसों से राज परिवार द्वारा भेजी जाने वाली खिचड़ी सबसे पहले चढ़ाई जाती है. पर्व के एक दिन बाद, गोरखनाथ मंदिर से महाप्रसाद राजपरिवार को पहुंचाया जाता है. सालों से चली आ रही परंपरा आज भी जारी है.
गोरखपुर में मौजूद इस मंदिर का इतिहास बड़ा ही रोचक है. यह मंदिर नाथ समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. यहाँ आने के बाद मन को एक अभूतपूर्व शांति महसूस होती है.
इस बार अगर कहीं छुट्टियाँ बिताने का मन है, तो इस स्थान को भी अपनी लिस्ट में जरुर रखें. क्योंकि यह भारत की सबसे सुंदर जगहों में से एक है.
Web Title: Gorakhnath Temple: Where The Seeds Of Nath Community Planted, Hindi Article
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