दिल्ली को यूं ही देश का दिल नहीं कहा जाता. आज दिल्ली के किसी भी कोने में नजर डालें तो हम पाएंगे कि हर जगह भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आकर यहां लोग बसे हैं, इससे दिल्ली का स्वरूप ‘मिक्स कल्चर’ का हो गया है. अलग-अलग राज्यों, धर्मों एवं जातियों के लोगों के यहां बसने के कारण दिल्ली को ‘मिनी इंडिया’ भी खा जाता है. बदलते परिदृश्य में दिल्ली में क्या ख़ास है, आइये इस पर नज़र डालते हैं:
पुरानी दिल्ली का व्यापारिक स्वरूप
व्यापार की बात करें तो पुरानी दिल्ली ने अभी भी अपनी गलियों में फैले बाज़ारों के अंदर अपनी व्यापारिक क्षमताओं का इतिहास छुपा कर रखा है. पुरानी दिल्ली के बाजारों में आज भी हर प्रकार का सामान मिलेगा. चाहे फिर वह चटपटे आम या नींबू के अचारों की बात कहें या फिर मंहगे हीरे जवाहरात की. दुल्हन के कपड़े से लेकर हर एक सामान यहाँ थोक भाव में मिलता है.
शायद यही कारण है कि चांदनी चौक का तीन शताब्दियों से भी पुराना बाजार आज भी एकदम जीवांत है. यहां ज़री साड़ियों के साथ-साथ ज़रदोज़ी और मीनाकारी का अपना बोलबाला है.
सबसे दिलचस्प बात तो यह कि पुरानी दिल्ली के इन बाजारों को नए आयाम तक पहुंचाने के लिए नई दिल्ली का प्रगति मैदान, दिल्ली हाट, हौज खास जैसे स्थान अपनी बांहे फैलाकर बैठा है. इसी के चलते समय के साथ-साथ दिल्ली ने देश भर को अपना स्थान दिया. जिससे एक नये किस्म का अद्भुत मिश्रण दुनिया ने न सिर्फ़ देखा, बल्कि उसे सराहा भी.
पर्यटन स्थलों का मिश्रित स्वरूप
आज नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय जैसे अनेक स्मारक हैं, जो हमारे लोकतंत्र के जीवान्त होने का प्रमाण देते हैं तो, दूसरी ओर पुरानी दिल्ली में लाल किला, जामा मस्जिद आदि मध्यकालीन आकर्षण का केंद्र हैं. साथ ही साथ हुमायूँ का मकबरा, पुराना किला, सफदरजंग का मकबरा, लोधी मकबरे जैसी इमारतें तो यहाँ हैं ही, दूसरी ओर निज़ामुद्दीन औलिया की पारलौकिक दरगाह भी इस शहर की खासियत में चार चाँद ही लगाती है.
सिर्फ यही नहीं कनॉट प्लेस, चाँदनी चौक के साथ देश की राजधानी में बहुत से रमणीक उद्यान भी हैं, जो पुरानी दिल्ली औऱ नई दिल्ली के मिश्रित स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं.
आज भले ही नई दिल्ली के कनॉट प्लेस की दूधिया लाइट में आधुनिकता ने केएफसी, बर्गर किंग, डिमिनोज जैसे कई सारे विकल्प खान पान के लिए दिल्ली को दिए हों, लेकिन इसके बावजूद चांदनी चौक के पराठे वाली गली में लोग पराठों का स्वाद लेने के लिए लालायित रहते हैं.
Interesting facts of New Delhi (Pic: whatsuplife.in)
पुरानी में देशी, तो नई में पश्चिमी संगीत
दिल्ली में एक लम्बे समय से संगीत, मुशायरों और दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रमों की महफिलें सजती रही हैं. पर उनमें खास बात यह है कि पुरानी दिल्ली में देशी कार्यक्रमों का साज बाज दिखता है, तो नई दिल्ली में पश्चिमी संगीत का बोलबाला. कहते हैं कि पुराने समय में पुरानी दिल्ली में संगीत सीमित था, जिसका दायरा भी कुछ ही लोगों तक था.
किसी हद तक तो उसे ठीक नजर से देखा भी नहीं जाता था, इसीलिए अजमेरी गेट के करीब बदनाम जी बी रोड के कोठों से गूंजती गजल या ठुमरी की आवाज को ही संगीत की संज्ञा दी जाती थी.
जबकि नई दिल्ली के कनॉट प्लेस के होटलों में क्रिसमस जैसे त्योहारों पर डांस होता और बाकी दिनों में पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम होते थे. रीगल सिनेमा हॉल उस समय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का अड्डा माना जाता था, जो आज भी कनॉट प्लेस की जान है.
गालिब जैसे ‘फनकारों की दिल्ली’
आज भले ही कृत्रिम लाइटों के बीच कनॉट प्लेस के डिस्क औऱ पबों में हनी सिंह के गानों में युवा झूमते नजर आते हैं, लेकिन इन सब में दिल्ली के उन कलाकारों को नहीं भुलाया जा सकता, जिन्होंने दिल्ली शहर को देश विदेश में मान दिलाया. इनमें सरोद वादक शरण रानी, तबला वादक फय्याज खा और शफात खान, सारंगी नवाज सबरी खान, बिरजू महाराज, कत्थक नृत्यांगना उमा शर्मा, ओडिसी नृत्यांगना माधवी मृदुल के नाम शामिल हैं. ऐसे ही लोग थोड़ी न दिल्ली को ‘गालिब की दिल्ली’ कहते हैं, बल्कि यह इसलिए है, क्योंकि कलाकारों और फनकारों की पूरी श्रृंखला यहाँ मौजूद रही है.
खेल और खिलाड़ियों की दिल्ली
दिल्ली के बदले हुए स्वरूप ने दिल्ली की पुरानी तस्वीर को धुंधला भले ही कर दिया, लेकिन गौर से देखने पर हम पाएंगे कि किसी वक़्त दिल्ली खेल और खिलाडियों की भी थी. भले ही दिल्ली को एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजित करने के लिए जाना जाता हो, लेकिन कभी यहां बड़े छोटे स्टेडियमों के अलावा बहुत शानदार खुले घास के मैदान थे, जहां दिल्ली वाले दिल भरने तक खेलते थे. क्रिकेट, हॉकी और फुटबॉल के साथ कुश्ती और दंगल भी यहाँ होते रहते थे.
दिल्ली के मशहूर राजपथ को आज लोग शायद सिर्फ 26 जनवरी की गणतंत्र परेड के लिए जानते हैं, लेकिन यह जगह किसी ज़माने में शाम को खिलाड़ियों से भरी होती थी.
कहते हैं मशहूर एथलीट श्रीराम सिंह ने यहीं 1976 ओलंपिक की तैयारी की थी. इससे पहले मिल्खा सिंह ने भी राजपथ पर खूब दौड़ लगाई है.
चाट के ठेलों से शॉपिंग मॉल तक दिल्ली
आज दिल्ली की रंगत बिलकुल बदल चुकी है. यहां शॉपिंग मॉल्स हैं, एसी बसें हैं, मेट्रो ट्रेन हैं. साथ में दिल्ली के रिक्शे भी हैं और वह तंग गलियां भी, जहां शहर की 300-400 साल पुरानी तहजीब दिखती है.
लाला सुख लाल जैन की घंटे वाला मिठाई की दुकान आज भी मौजूद है. बस फर्क इतना हो गया है कि यह भी अब आधुनिक हो गई है. इनकी पैकिंग बदल गई है, लेकिन इनकी मिठाईयों का स्वाद आज भी वही है, जो सालों पहले था.
आज भी कहा जाता है कि चाट पकौड़ी का स्वाद लेना है, तो पुरानी दिल्ली जाइये. नॉन वेज के शौकीन भी अकसर जामा मस्जिद के पास करीम होटल पर अपना जमावड़ा लगाए ऐसी ही नहीं दिखते. जगह-जगह बड़े शौपिंग माल्स की मौजूदगी के बावजूद दिल्ली का पुराना स्वाद आपको पूरे रंग में मिलेगा और इसके लिए इसके शौकीनों को धन्यवाद दिया ही जाना चाहिए.
Interesting facts of Old Delhi, Red Fort (Pic: blogspot)
कनॉट प्लेस कभी जंगल हुआ करता था…
दिल्ली के पुराने लोग कहते हैं कि जब नई दिल्ली बनी तो उस समय ब्रिटिश सरकार को एक सुलभ और सुंदर बाजार की कमी महसूस हुई. इसलिए एक बाजार की नींव पड़ी, जिसे आज कनाट प्लेस के नाम से जाना जाता है. बाज़ार के तैयार होने से पहले यह इलाका कीकर की झाड़ियों का घना जंगल था, जहां उस समय कश्मीरी गेट और सिविल लाइंस में रहने वाले लोग तीतर, बटेर मारने आते थे.
जैसे-जैसे दिल्ली का विकास हुआ, या यूं कहें कि दिल्ली में भीड़ भाड़ बढ़ी, बाजार भी बढ़े. सरोजनी नगर, लाजपत नगर, करोल बाग़, अजमल खान मार्केट जैसे इलाके दिल्ली के बहुत बड़े बाजार माने जाते हैं. जी हाँ, आज भी!
‘ओबामा’ भी हो गए थे अभिभूत
आपको याद होगा कि कुछ समय पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपित बराक ओबामा भारत दौरे पर आए थे. तब उन्होंने दिल्ली भ्रमण के दौरान हुमायूं का मकबरा जैसे कई अन्य जगहों को देखा तो वह अभिभूत से हो गए. सिर्फ ओबामा नहीं उनकी पत्नी मिशेल ने भी दिल्ली के सौंदर्य में अपने कसीदे पढ़े.
दिल्ली की शान में जितनी बातें कही जाएं, कम ही होंगी. दिल्ली दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है, जिसने आधुनिकता को भी पूरी शिद्दत से अपने चरित्र में ढाल लिया है. आपका अनुभव क्या कहता है दिल्ली को लेकर… जरूर कुछ न कुछ कहता होगा, क्योंकि दिल्ली खामोश नहीं रहने देती, चुप नहीं रहने देती, अपने बारे में बुलवा ही लेती है.
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