यात्रा करना किसे पसंद नहीं होता, खासकर कि ‘विदेश यात्रा’!
अपने देश की सीमा के अंदर घूमने-फिरने के लिए जहाँ किसी विशेष अनुमति की जरुरत नहीं होती है, तो वहीं सीमा पार के लिए पासपोर्ट के रूप में दूसरे देश की अनुमति पड़ती है.
किसी भी देश में प्रवेश करने के लिए सबसे पहली चीज जिसकी जरुरत होती है, वो है पासपोर्ट. पासपोर्ट सदियों से इस्तेमाल होता आ रहा है.
यह राजाओं-महाराजाओं के काल से लेकर प्रथम विश्व युद्ध में बड़े पैमाने में इस्तेमाल किया जाने लगा. एक अनुमति राजपत्र से लेकर आज के मॉडर्न बायोमीट्रिक पासपोर्ट की कहानी बड़ी ही रोचक है.
तो आइये, चलते हैं पासपोर्ट के ऐतिहासिक सफर पर जिसके बिना कहीं बाहर के देश में सफर करना पाना संभव नहीं है-
हिब्रू बाइबिल में भी है इस दस्तावेज का जिक्र
प्राचीन समय की बात करें तो, पासपोर्ट जैसा कांसेप्ट उस समय भी मौजूद था. इस तरह के दस्तावेज के इस्तेमाल का जिक्र भी हिब्रू बाइबिल में मिलता है. दरअसल, यह एक ऐसे दस्तावेज के रूप में जारी किया गया, जिससे सुरक्षित यात्रा की जा सके. लगभग 450BC में, यह फारस के राजा द्वारा नेहेमियाह नाम के एक व्यक्ति के लिए जारी किया गया.
नेहेमियाह को यरूशलम के पुनर्निमाण के लिए यात्रा पर जाना था, ताकि उसकी यात्रा में कोई बाधा उत्पन्न न हो, यह दस्तावेज जारी किया गया. इस दस्तावेज में राजा के नियंत्रण से बाहर के क्षेत्रों में नेहेमियाह को रास्ते में सुरक्षा प्रदान करने का आग्रह किया गया.
उनका यह आग्रह रास्ते में आने वाले गवर्नरों से था. इस तरह सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए यह दस्तावेज जारी हुआ. इसके अलावा, इस तरह के दस्तावेज का जिक्र शेक्सपियर के नाटक में भी देखने को मिलता है. उनके द्वारा लिखित हेनरी V में राजा को यह कहते दिखाया गया है कि, ‘....इसे अब यहाँ से रवाना किया जाए, इसका पासपोर्ट बना दिया जाए.’
'शुरुआत' को लेकर फ्रांस और ब्रिटेन के बीच मतभेद
फ्रेंच शब्द paase ports का अर्थ ‘किसी पोर्ट से गुजरने के लिए आधिकारिक अनुमति’ है. सन 1464 में, इस शब्द की व्याख्या बड़े स्तर पर की जाने लगी. अब इसका अर्थ हो गया कि, ‘एक ऐसा सुरक्षा प्रदान करने वाला दस्तावेज जो किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से आने-जाने के लिए आधिकारिक अनुमति देता है.’
पासपोर्ट को लेकर आज तक फ्रांस और ब्रिटेन के बीच मतभेद हैं. ‘पासपोर्ट’ शब्द को लेकर भी मतभेद देखने को मिलते हैं.
ब्रिटेन इसे सुरक्षा दस्तावेज के रूप में सबसे पहले इस्तेमाल की बात करता है. वहीं दूसरी ओर, इस शब्द की उत्पत्ति के बारे में दो तरह की बात कही जाती है. जिसमें मैरीटाइम पोर्ट्स (बंदरगाहों) या फिर शहर की दीवारों जिनको फ्रेंच भाषा में पोर्ट्स कहा जाता है, जिन्हें पार करने के लिए इनका प्रयोग किया गया. हालांकि, इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है.
वहीं मध्यकालीन यूरोप में यात्रियों के लिए स्थानीय अधिकारी दस्तावेज जारी किया करते थे. ताकि यात्री गेट से बिना किसी परेशानी के आवाजाही कर सके. वहीं दूसरा मत ये कहता है कि यह एक ऐसे शाही प्रार्थना पत्र होते थे, जो paase ports नाम से जाने जाते थे. क्योंकि उस दौरान जिसके पास यह पत्र होते थे, सिर्फ वही बंदरगाह (Port) पार कर सकते थे. यह पत्र ग्रेट लुइस XIV द्वारा साइन किये जाते थे.
इसके अलावा, ब्रिटेन में हेनरी के शासनकाल के दौरान, इसे इंग्लिश पार्लियामेंट एक्ट में राजा द्वारा प्रजा और विदेशी नागरिकों के लिए जारी पासपोर्ट भी देखने को मिलता है. यह सबसे पहले सन 1540 में प्रिवी काउंसिल द्वारा प्रदान किया गया था.
आपको बता दें, यह सिर्फ आम जनता के लिए जारी किया जाता था. किसी राजा या रानी को इसकी जरुरत नहीं होती थी. यही वजह है आज भी महारानी एलिज़ाबेथ हर जगह बिना किसी पासपोर्ट के यात्रा करती हैं.
बता दें, ब्रिटिश में साइन किया गया सबसे पुराना पासपोर्ट आज भी मौजूद है. यह सन 1641 में चार्ल्स द्वारा जारी किया गया था.इसके तीन साल बाद चार्ल्स के सत्ता से गिर जाने के बाद ओलिवर क्रोम्वेल ने पासपोर्ट जारी करने के लिए एक शर्त रख दी थी. उन्होंने यह शर्त ब्रिटेन के नागरिकों पर रखी.
इस शर्त के अनुसार, राष्ट्रमंडल के खिलाफ सहायता, सहायता या परामर्श नहीं लेंगे. इसकी पूर्ति के बाद ही पासपोर्ट जारी करने की बात कही.
ब्रिटेन के बाद अगर बात करें रूस की तो, साल 1719 में रूस का ज़ार (राजा) पीटर द ग्रेट पासपोर्ट को चलन में लाया. उसने इसका इस्तेमाल यात्रा के अलावा टैक्स और सेना सेवा के लिए भी इस्तेमाल किया.
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुई दोबारा वापसी
फ्रांस में स्वतंत्रता आन्दोलन के नाम पर पासपोर्ट को खत्म कर दिया गया. फ्रांसीसी क्रांति के दौरान पासपोर्ट को एक बार फिर 18वीं शताब्दी की शुरुआत में वापस लाया गया.
हालांकि, उद्योग क्रांति के दौरान पहली बार ट्रेवेलिंग दस्तावेजों की जरुरत महसूस हुई. इसके अलावा, पूरे यूरोप में टूरिज्म बड़ी तेजी से बढ़ रहा था और रेल नेटवर्क भी तेजी से अपने पाँव पसार रहा था.
फ्रांस को रेल नेटवर्क के फैलने के बाद हर व्यक्ति की चेकिंग करना निराधार सा लगा. लिहाजा, फ्रांस सरकार ने 1861 में पासपोर्ट सिस्टम रद्द कर दिया. फ्रांस के इस फैसले को बाकी यूरोपियन देशों ने भी अपनाया.
इसके बाद इतिहास में एक बार फिर पासपोर्ट की प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वापसी होती है. इस दौरान इसकी वापसी जासूसों से बचने के लिए हुई. दुश्मनों को अपनी सीमा क्षेत्र से बाहर रखने के लिए उपयोगी माना गया. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा पैदा हो गया था. पहले तो यह एक टेम्पररी कदम था, जिसे बाद में परमानेंट कर दिया गया.
ब्रिटेन का सबसे पहला पासपोर्ट साल 1914 में आया. वहां ब्रिटिश नेशनलिटी एंड स्टेटस एलियंस एक्ट, 1914 भी बनाया गया. वहां पासपोर्ट जिसके आठ फोल्ड में एक पेज का होता और ऊपर कार्डबोर्ड का कवर बना होता था.
इसमें फोटो और हस्ताक्षर के साथ शरीर के फीचर उल्लेखित होते थे. फीचर में रंग, कद, चेहरे का आकार आदि लिखा होता. साथ ही, इसकी वैलिडिटी दो साल की होती थी.
बता दें, फोटोग्राफी के आविष्कार से पहले लोगों की पहचान करने में बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. लेकिन ‘फोटोग्राफी’ आने के बाद पासपोर्ट से जुड़ी यह समस्या भी खत्म हो गई.
कई सारे यात्री इस सिस्टम को काफी अमानवीय मानते थे. वह शरीर की इस तरह की व्याख्या से नाराज भी हुआ करते थे. साल 1920 में, लीग ऑफ़ नेशन ‘पेरिस कांफ्रेंस ऑन पासपोर्ट एंड कस्टम्स फोर्मलिटी एंड थ्रू टिकट्स’ कांफ्रेंस में पासपोर्ट को स्टैण्डर्ड कर दिया. यह इंटरनेशनल स्तर पर स्टैण्डर्ड हो गया.
इस कांफ्रेंस के दौरान, 42 संस्थापक सदस्यों ने इस पासपोर्ट पर अपनी सहमती जताई. सुरक्षा और समय अवधि में कुछ बदलाव किया गया. जबकि नीला रंग जस की तस रहा. यह ओल्ड ब्लू के नाम से जाना जाता था.
थोड़ा आगे चलें तो, साल 1947 में इंटरनेशनल सिविल एविएशन आर्गेनाईजेशन (ICAO) ने पासपोर्ट से सम्बंधित सारी जिम्मेदारी ले ली.
उस समय से आजतक ICAO के पास ही पासपोर्ट से जुड़े मामलों पर फैसला लेने का हक है. यह पासपोर्ट क्वालिटी, स्टाइल, फोटोग्राफ आदि के बारे में निर्णय लेता है.
बॉयोमीट्रिक पासपोर्ट बनने तक की कहानी
आज बॉयोमीट्रिक पासपोर्ट का चलन हो गया है. यह टेक्नोलॉजी की ही देन है कि आज का पासपोर्ट बिलकुल मॉडर्न बन चुका है. इस पासपोर्ट में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल है. यह पासपोर्ट ने धारक की निजी जानकारी को ज्यादा बटोर कर रखता है. इसके साथ ही यह सुरक्षा की नज़र से ज्यादा उपयोगी है. बॉयोमीट्रिक पासपोर्ट सबसे पहले साल 1998 में मलेशिया में आया. इसके बाद से अब यह विश्व के कई हिस्सों में इस्तेमाल हो रहा है. इसे सभी देशों ने तेजी से अपनाना शुरू कर दिया है.
आपको बता दें, साल 2016 से यदि आपके पास बॉयोमीट्रिक पासपोर्ट नहीं है तो, आप संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश तक नहीं कर सकते हैं. साथ ही, साल 2017 तक करीब 120 देश ऐसे हैं जिन्होंने बॉयोमीट्रिक पासपोर्ट जारी किए हैं.
फिलहाल, बॉयोमीट्रिक पासपोर्ट में सीमित जानकारी होती है. जिसमें वायरलेस स्मार्ट कार्ड होता है, जिसमें एक माइक्रोप्रोसेसर चिप और एक एम्बेडेड एंटीना शामिल है. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी का विकास होगा, वैसे ही राष्ट्रीय सुरक्षा में भी सुरक्षा का पैमाना बढ़ जाएगा.
इसके रंगों के पीछे भी है कहानी
भारत समेत 15 कैरिबियाई देश और दक्षिणी अमेरिकी देशों के पासपोर्ट का रंग नीला है. इसके अलावा, नीला रंग ‘नयी दुनिया’ का प्रतीक माना जाता है. साथ ही, शान्ति का प्रतीक नीले रंग को CA-4 संधि वाले देश भी इस्तेमाल करते हैं.
जबकि दक्षिणी अमेरिकी देशों के नीले रंग का पासपोर्ट उनका ट्रेड यूनियन मरकॉसुर के साथ संबंधों का प्रतीक है. बता दें, साल 1976 में अमेरिका ने अपने पासपोर्ट के लिए नीले रंग को अपनाया.
बात अगर लाल रंग की करें तो, सल्वेनिया, चीन, सर्बिया, रूस, लात्विया, रोमानिया, पोलैंड और जॉर्जिया के नागरिकों के पास लाल रंग का ही पासपोर्ट होता है. अभी भी ज्यादातर साम्यवादी सिस्टम वाले देशों ने लाल रंग को ही अपनाया है. वैसे इस लिस्ट में कई सारे नाम मौजूद हैं. जैसे, बोलिविया, कोलंबिया, अक्वॉडर आदि.
इसके अलावा, यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के पास भी लाल रंग का ही पासपोर्ट होता है. हरे रंग के पासपोर्ट का ज्यादातर मुस्लिम देश इतेमाल करते हैं. हरे रंग को पैगंबर मुहम्मद का पसंदीदा रंग माना जाता है. लिहाजा मुस्लिम देशों जैसे-मोरक्को, सऊदी अरब और पाकिस्तान ने इस रंग को अपनाया.
वहीं अफ्रीकी देशों ने जैसे बुर्किना फासो, नाइजीरिया, नाइजर, आइवरी कोस्ट आदि का हरे रंग को अपनाना ‘इकोवास मतलब इकनॉमिक कम्यूनिटी ऑफ वेस्ट ऐफ्रिकन स्टेट्स से संबंध को भी दर्शाता है.
काला रंग बहुत कम ही देशों ने अपनाया है. इसमें अफ्रीकी देशों बोत्सवाना, जांबिया, बुरुंडी, अंगोला, कॉन्गो, मलावी आदि शामिल हैं. वहीं न्यूजीलैंड का नेशनल कलर काला होने की वजह से उन्होंने काला रंग अपनाया.
भारत में मिलते हैं तीन प्रकार के पासपोर्ट
भारत में पासपोर्ट का इस्तेमाल साल 1914 से होना शुरू हुआ था. यह डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट, 1914 के तहत इस्तेमाल होना शुरू हो गया था. उस दौरान प्रथम विश्व युद्ध के लिए ब्रिटिश इंडिया ने इसे जारी किया था.
लेकिन यह एक्ट छः महीने बाद समाप्त कर दिया गया. कुछ सालों बाद 1920 में इंडियन पासपोर्ट एक्ट, 1920 लागू हुआ, जो बाद में बदलकर पासपोर्ट एक्ट हो गया.
भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह काम विदेश मंत्रालय को सौंप दिया. इसके मुख्य कार्यालय मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नै और नागपुर में थे. वर्तमान भारत में पासपोर्ट 24 जून, 1967 के इंडियन पासपोर्ट कानून के तहत जारी होते हैं. वैसे तो लगभग हर देश में अलग अलग रंग का प्रयोग होता है. रंग स्टेटस और ओहदे को भी दर्शाता है.
उसी प्रकार भारत में भी तीन रंग के पासपोर्ट का इस्तेमाल होता है. जिसमें रेगुलर, ऑफिसियल और डिप्लोमेटिक पासपोर्ट्स दिए जाते हैं.
इसके अलावा, भारतीय नीले रंग के पासपोर्ट आम नागरिकों के लिए जारी किये जाते है. आम नागरिकों ऑफिशियल और डिप्लोमैट्स से अलग रखने के लिए सरकार ने यह फर्क रखा है.
इससे कस्टम अधिकारियों सहित विदेश में चेकिंग करने में आसानी होती है. नीले रंग के अलावा सफ़ेद रंग का भी इस्तेमाल किया जाता है. यह गवर्नमेंट ऑफिशियल को दर्शाता है. साथ ही, यह ऑफिशियल की आइडेंटिटी के लिए होता है.
तीसरा रंग मरून भी इंडियन डिप्लोमैट्स और सीनियर गवर्नमेंट ऑफिशियल्स (आईपीएस, आईएएस रैंक के लोग) के लिए जारी किया जाता है.
मरून पासपोर्ट धारकों को विदेशों में एम्बेसी से लेकर यात्रा के दौरान तक कई सुविधाएँ मिलती हैं. साथ ही, उन्हें वीजा की जरूरत भी नहीं पड़ती है. उन्हें सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा सुविधाएँ मिलती हैं.
बताते चलें, हाल ही में भारत सरकार ने ‘नारंगी’ पासपोर्ट जारी करने शुरू कर दिए हैं. यह रंग कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए जारी किया जाएगा. जबकि शिक्षित लोगों को नीला रंग ही मिला करेगा.
यहां का पासपोर्ट है सबसे ताकतवर
साल 2018 में हेनली पासपोर्ट इंडेक्स के अनुसार, जापान का पासपोर्ट दुनिया का सबसे मजबूत और शक्तिशाली पासपोर्ट माना गया है.
इस दौड़ में जापान ने सिंगापुर को भी पीछे छोड़ दिया. ग्लोबल रैंकिंग में नंबर हो चुके जापान अपने नागरिकों को 189 डेस्टिनेशन्स पर वीजा-फ्री या वीजा-ऑन-अराइवल की सुविधा देता है. इस रैंकिंग में दूसरे पायदान पर सिंगापुर और जर्मनी हैं. ये दोनों ही अपने नागरिकों को 188 डेस्टिनेशन्स पर पहले से वीजा लिए बिना प्रवेश करने की अनुमति देते हैं.
भारत का नाम इस लिस्ट में 75वां रहा. इस इंडेक्स के अनुसार, सिर्फ 51 देश ही ऐसे हैं जहां भारत के नागरिक बिना वीज़ा या वहां पहुंचने पर मिलने वाले वीज़ा (वीज़ा ऑन अराइवल) पर जा सकते हैं. इनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इज़रायल, जापान, रूस, सऊदी अरब, सिंगापुर, यूएई, यूनाइटेड किंगडम जैसे महत्वपूर्ण देश शामिल हैं.
तो ये है शाही पत्र से लेकर पासपोर्ट बनने तक की कहानी. आपको कैसी लगी कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताएं.
Web Title: Journey Of Passports, Hindi Article
Feature Image Credit: traveltriangle