भारतीय सिनेमा की शुरुआत से दर्शकों ने नायक और नायिकाओं को हमेशा अपने सर-आँखों पर बिठाया है. ख़ास बात यह है कि इन्हीं दर्शकों ने सिनेमाई खलनायकों को भी अपने दिल में पूरी जगह दी है.
असल में किसी भी फिल्म में खलनायक के बिना नायक का औचित्य सही ठहर ही नहीं सकता है.भारतीय सिनेमा के इन्हीं खलनायकों में से एक हैं अमजद खान. उन्होंने शोले फिल्म में ‘गब्बर सिंह’ का किरदार अदा किया था.
आज भी उन्हें इसी किरदार की वजह से याद किया जाता है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि उन्होंने गब्बर सिंह के बाद भी एक से बढ़कर एक किरदार निभाए. आईए अमजद खान को थोड़ा और करीब से जानते हैं…
थिएटर में सीखीं अदाकारी की बारीकियां
रौबदार और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक अमजद खान का जन्म 12 सितंबर 1940 के दिन पेशावर में हुआ था. बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आ गया था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट एंड्रयूज स्कूल से पूरी की थी.
आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने आर दी नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया था.कहा जाता है कि यहीं से वे अदाकारी की तरफ आकर्षित होने लगे थे. इसी क्रम में वे कॉलेज के थिएटर का हिस्सा बने थे.
आगे उन्होंने दूसरे थिएटर समूहों में भी अदाकारी सीखी. बहुत कम उम्र में ही वे अदाकारी की बारीकियों से परिचित हो गए थे.
जल्द ही उन्हें इसका फायदा भी मिला. मात्र 17 वर्ष की उम्र में ही इन्हें रूपहले पर्दे पर अदाकारी करने का मौका मिला. इस फिल्म का नाम ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ था. इसके बाद 21 वर्ष की उम्र में उन्हें फिल्म ‘नाजनीन’ में काम करने का मौका मिला.
1975 में शोले फिल्म के आने से पहले वे अनेक फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करते रहे.
अचानक से मिला गब्बर का रोल
अगर हम शोले फिल्म की बात करें तो इसमें हर किरदार बेमिसाल है. प्रत्येक किरदार अलग-अलग अदाकारों पर बखूबी जंचता है. डाकू गब्बर सिंह का किरदार तो जैसे इस फिल्म की जान है. इसे अमजद खान ने पूरी शिद्दत से निभाया है.
लेकिन आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि पहले पहल यह किरदार अमजद खान को नहीं मिल रहा था.
गब्बर सिंह के किरदार के लिए निर्देशक की पहली पसंद डैनी थे. उस समय डैनी बॉलीवुड के जाने-पहचाने खलनायक हुआ करते थे. वे इस किरदार के लिए तैयारी भी कर रहे थे. लेकिन निर्माण शुरू होने के कुछ महीनों पहले उन्होंने इस किरदार को निभाने से मना कर दिया.
उनके मना कर देने पर निर्देशक और निर्माता असमंजस में पड़ गए. गब्बर का किरदार ऐसा नहीं था कि कोई भी उसे निभा ले जाए. इस उथल-पुथल और असमंजस की स्थिति में अमजद खान से इस किरदार को निभाने का आग्रह किया गया.
अमजद खान भी झट से राजी हो गए.वक्त कम था और किरदार बहुत ही भारी. फिर भी अमजद ने जी-जान लगाकर इस किरदार के लिए तैयारी की. उन्होंने चम्बल के डाकुओं के ऊपर लिखी किताब पढ़ी.
आगे उन्होंने अपनी दाढ़ी बढाई और संवाद बोलने का एक अलहदा अंदाज विकसित किया. उसके बाद जब फिल्म रिलीज हुई तो गब्बर सिंह का नशा ऐसा छाया कि आजतक लोग उसके संवाद बोलते हैं.
निभाए एक से बढ़कर एक किरदार
शोले के बाद तो अमजद खान की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. उनके सामने फिल्मों में अदाकारी करने के प्रस्तावों की बाढ़ आने लगी. उन्हें विज्ञापनों के लिए बुलाया जाने लगा. इन्हीं में से एक एक विज्ञापन ब्रिटानिया बिस्किट्स का था.
शोले के बाद अमजद अपने आपको एक खलनायक के रूप में स्थापित कर चुके थे. लेकिन ऐसा नहीं था कि वे सिर्फ खलनायक का किरदार ही निभाना जानते थे. वे एक बहुमुखी प्रतिभा वाले अदाकार थे. यह कला उन्होंने थिएटर सीखते समय विकसित की थी.
आगे आने वाली फिल्मों में ने इसे सही भी साबित किया. उन्होंने अलग-अलग फिल्मों में तरह-तरह के किरदार अदा किए.
शोले के दो साल बाद फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ आई. यह फिल्म मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित थी और इसे महान निर्देशक सत्यजीत रे ने निर्देशित किया था.
इस फिल्म में अमजद खान ने अवध के नवाब का किरदार अदा किया था. उन्हें इसके लिए बहुत सराहा गया. ख़ास बात यह थी कि गब्बर सिंह से इतर अवध के नवाब का यह किरदार चरित्र में रूहानी था. इसे अमजद ने बखूबी निभाया था.
वहीँ 1984 में फिल्म पेट प्यार और पापी आई. यह फिल्म आम लोगों के जीवन की त्रासदी को दर्शा रही थी. इसमें अमजद ने एक प्रेमी का किरदार अदा किया था. यह किरदार गब्बर सिंह के किरदार से बिल्कुल उल्टा था.
वहीं इसी साल ‘उत्सव’ नाम की भी एक फिल्म आई. यह नाटककार गिरीश करनाड के नाटक पर आधारित थी. इसमें अमजद ने एक साथ दो किरदार अदा किए. पहला सूत्रधार के रूप में और दूसरा वात्स्यायन के रूप में.
वात्सयायन का किरदार एक यौन साधना करने वाले विद्वान के रूप में अमजद ने निभाया.
वहीँ 1993 में रुदाली नाम की फिल्म आई. यह फिल्म महाश्वेता देवी की कहानी पर आधारित थी. इसमें अमजद खान ने एक अय्याश जमींदार का किरदार अदा किया है.
इस फिल्म में एक जमींदार के जीवन के दो पक्षों को बहुत ही संजीदगी से दिखाया गया है.
पहले तो यह जमींदार अपनी क्रूरता से न जाने कितनी औरतों की जिंदगी बर्बाद करता है और फिर जब वह मरने वाला होता है तब उसे एहसास होता है कि उसने अपने पूरे जीवन में केवल लोगों का शोषण ही किया है.
इन दोनों पक्षों को अमजद ने बड़ी ही सहजता से निभाया है.
इसके अलावा अमजद खान ने सत्तर और अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन के साथ एक बेजोड़ जोड़ी बनाई. इस दौरान उन्होंने मुकद्दर का सिकंदर, याराना, परवरिश और लावारिस जैसी ब्लाकबस्टर फिल्मों में एक से बढ़कर एक रोल अदा किये.
अपने पूरे कैरियर में अमजद ने करीब 120 फिल्मों में अदाकारी की.
सच कहा जाए तो उन्होंने लगभग सभी प्रकार के किरदार अदा किये. लेकिन आज भी उन्हें केवल शोले के गब्बर सिंह के लिए ही याद किया जाता है. एक तरह से यह एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी अदाकार के साथ अन्याय ही है!
27 जुलाई 1992 के दिन वे हमें छोड़कर चले गए.
Web Title: Amjad Khan: The Versatile Actor Of Indian Cinema, Hindi Article
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