भारतीय क्रिकेट में अभी तक अनेक दिग्गज खिलाड़ी पैदा हुए हैं. इन खिलाड़ियों ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है. अगर इन खिलाड़ियों की लिस्ट बनाने बैठें, तो निश्चित तौर पर यह लिस्ट बहुत लंबी बनेगी.
इन खिलाडियों में अगर देखा जाए तो सुनील गावस्कर, कपिल देव, वेंकटेश्वर प्रसाद, सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, जहीर खान, महेंद्र सिंह धोनी इत्यादि खिलाड़ियों का नाम शीर्ष पर लिया जा सकता है.
लेकिन क्या आपको मालूम है कि इन सबके बीच एक ऐसा खिलाड़ी भी है, जिसने भारतीय क्रिकेट के लिए नींव तैयार की. इस खिलाड़ी ने भारतीय क्रिकेट का नवजागरण किया. इस खिलाड़ी का नाम है- दिलीप नारायण सरदेसाई.
इस आलेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि दिलीप सरदेसाई ने आखिर कैसे भारतीय क्रिकेट का नव-जागरण किया…
पाकिस्तान के खिलाफ शानदार प्रदर्शन
दिलीप सरदेसाई का जन्म 8 अगस्त 1940 के दिन मडगांव, गोवा में हुआ था. इनका परिवार आर्थिक रूप से काफी समृद्ध था, इसलिए इन्हें बचपन में किसी भी प्रकार की परेशानी से दो चार नहीं होना पड़ा.
शायद यही वजह थी कि वे अपना ध्यान क्रिकेट में लगा पाए. दिलीप अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के लिए न्यू एरा हाई स्कूल गए. यहाँ पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अपने परिवार के साथ बम्बई आ गए.
स्कूल के दिनों में ही वे क्रिकेट खेलने लगे थे. बम्बई में उन्होंने विल्सन कॉलेज में दाखिला लिया.
यहाँ जल्द ही वे अपने कॉलेज की क्रिकेट टीम का हिस्सा बन गए. उनका प्रदर्शन शानदार रहा तो वे बम्बई विश्वविद्यालय की क्रिकेट टीम में शामिल कर लिए गए. अब उन्हें अपना जलवा दिखाने के लिए एक बेहतर प्लेटफार्म मिल चुका था.
बात 1959-60 में हुई रोहिंटो बरिया ट्राफी की है. पाकिस्तान की क्रिकेट टीम भारत आई हुई थी और उसे बम्बई विश्वविद्यालय के खिलाफ मुकाबले खेलने थे. इस पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व फ़जल महमूद कर रहे थे.
इस ट्राफी में दिलीप एक सितारे की तरह चमके. उन्होंने 87 के औसत से कुल 435 रन बनाए.
उनके इसी प्रदर्शन के बदौलत जल्द ही उन्हें फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में पदार्पण करने का मौका मिला. अपना पहला फर्स्ट-क्लास क्रिकेट मैच उन्होंने इसी पाकिस्तानी टीम के खिलाफ खेला और शानदार प्रदर्शन किया.
जल्द ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय मुकाबले खेलने का मौका मिला. 1961 में कानपुर के ग्रीन पार्क में भारत और इंग्लैण्ड के बीच हुए दूसरे टेस्ट मैच में उन्हें डेब्यू करने का मौका मिला.
इस मैच में उन्होंने बस एक पारी में बैटिंग की और 28 रन बनाकर हिट-विकेट आउट हुए.
1961 में ही वे वेस्टइंडीज के दौरे पर गए. यहाँ उन्हें बस तीसरे टेस्ट मैच में खेलने का मौका मिला. इस मैच में उन्होंने 31 और 60 रन बनाए. यह श्रंखला भारतीय टीम 5-0 से हार गई थी.
शुरू हुआ सुनहरा दौर, लेकिन...
दिलीप सरदेसाई का सुनहरा दौर 1963 से शुरू हुआ. इस साल माइक स्मिथ की अगुआई में इंग्लैण्ड की टीम आक्रामक रुख के साथ मैदान पर उतरी थी. पांच मैचों की इस श्रंखला में दिलीप ने 45 के औसत से 449 रन बनाए. अंतिम मैच में दिलीप ने 79 और 87 रन की पारियां खेलीं. इन पारियों की बदौलत ही भारत यह हारा हुआ मैच ड्रा कराने में सफल हो सका.
अगले वर्ष न्यूजीलैंड की टीम 4 टेस्ट खेलने के लिए भारत आई. इन चार टेस्ट में दिलीप ने कुल 359 रन बनाए. मुंबई में हुए तीसरे टेस्ट में उन्होंने अपना पहला दोहरा शतक लगाया और फॉलो-ऑन के बाद भी टीम को हारने से बचा लिया.
अगले साल उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच खेले. इसके अगले वर्ष वे इंग्लैण्ड गए और वहां बुरी तरह से चोटिल हो गए. इसके बाद उन्हें ऑस्ट्रेलिया के दौरे के लिए टीम में शामिल किया गया. लेकिन उनका प्रदर्शन लगातार गिरता चला गया.
यह 1970 का समय था. लोगों को लगने लगा था कि दिलीप का करियर अब अस्त होने वाला था. किन्तु, दिलीप को यह मंजूर नहीं था. उनका प्रदर्शन भले ही गिरता जा रहा था, लेकिन उन्हें एक बड़े मौके की तलाश थी. जल्द ही उन्हें यह मौका भी मिला.
कप्तान ने जताया भरोसा, तो...
1971 में भारतीय टीम को अजीत वाडेकर की कप्तानी में वेस्टइंडीज के दौरे पर जाना था. इस दौरे में दिलीप के चयन की प्रायिकता न के बराबर थी, लेकिन अजीत ने उनके ऊपर विश्वास जताया.
इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास बनकर आज हम सबके सामने है. 1932 से लेकर 1970 तक भारतीय टीम में कुल 116 टेस्ट मैच खेले थे. जिनमें से उसे केवल 15 मैचों में ही जीत मिली थी.
सीरीज जीतना तो बहुत दूर की कौड़ी थी. दिलीप ने इसे बदल दिया. भारत ने पांच मैचों की यह श्रंखला 1-0 से जीती.
यहीं से भारतीय टीम में आत्मविश्वास पैदा हुआ तो अगले वर्ष टीम ने इंग्लैण्ड को उसके घर में भी हराया. इसमें भी दिलीप का महत्वपूर्ण योगदान रहा. वेस्टइंडीज के खिलाफ हुई इस श्रंखला में दिलीप ने 642 रन बनाए.
इस दौरान उन्होंने तीन शतक और एक दोहरा शतक लगाया. सबीना पार्क में खेले गए मैच में मात्र 75 रनों पर भारत के पांच विकेट गिर गए थे. इसके बाद दिलीप ने शानदार 212 रनों की पारी खेलकर टीम को बढ़त दिलाने में मदद की.
दूसरे टेस्ट में उन्होंने शतक लगाकर टीम को जीत दिलाई.
वहीँ चौथे टेस्ट में भारत जब हार की कगार पर था, तब उन्होंने शानदार 150 रनों की पारी खेलकर टीम को बचाया. इस श्रंखला में किये गए प्रदर्शन के बदौलत ही विजय मर्चेंट ने उन्हें भारतीय क्रिकेट का नवजागरण करने वाला खिलाड़ी कहा.
अंत में कहा जा सकता है कि दिलीप सरदेसाई एक बेमिसाल खिलाड़ी थे. उन्होंने बम्बई की रणजी टीम की तरफ से जितने भी मैच खेले, एक में भी उन्हें हार का सामना नहीं करना पड़ा.
अपने प्रदर्शन से उन्होंने भारतीय क्रिकेट में एक नई जान फूंकी. यह उनकी बनाई नींव ही थी, जिसके ऊपर आज भारतीय क्रिकेट का शानदार महल खड़ा हुआ है. दिलीप सरदेसाई 2 जुलाई, 2007 के दिन मृत्यु को प्राप्त हुए.
Web Title: Dilip Sardesai: The Renaissance Man Of Indain Cricket, Hindi Article
Feature Image Credit: anandabazar