पिछले कुछ महीनों से दो नाम खासे चर्चा में रहे हैं.
एक बॉलीवुड फिल्म ‘पद्मावत’ और दूसरा करणी सेना. दिलचस्प बात तो यह है कि ये दोनों ही नाम एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. असल में इस फिल्म को पिछले साल यानी 2017 दिसंबर में रिलीज होना था, लेकिन करणी सेना के भारी विरोध और सेंसर बोर्ड द्वारा सर्टिफिकेट देने में देरी के कारण इसकी रिलीज डेट बढ़ा दी गई थी.
बाद में सेंसर बोर्ड की सलाह पर इस फिल्म का नाम पद्मावती से बदलकर पद्मावत कर दिया गया. बहरहाल, फिल्म रिलीज हो चुकी है और पर्दे पर आ चुकी है, किन्तु करणी सेना का विवाद लम्बा चला. ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर यह करणी सेना है कौन?
और पद्मावत को लेकर ये इतना विरोध क्यों करती रही, जिसके कारण इसे खासी नेगेटिव पब्लिसिटी तक मिली–
गठन की बात की जाए तो 2006 में करणी सेना का जन्म हुआ. इस संगठन का नाम करणी रखने की पीछे वहज यह मानी जाती है कि यह राजपूतों को संगठन है और करणी माता उनकी एक लोक देवी हैं, जिन्हें वह पूजते हैं. अब सवाल यह है कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी? (Pic: Times of India)
असल में यह संगठन इसलिए बना, क्योंकि आरक्षण के कारण राजपूतों को लगने लगा था कि उनका वजूद खतरे में है. ऊपर से बीजेपी के बड़े राजपूत नेता रहे भैरोसिंह शेखावत को उपराष्ट्रपति बनाकर दिल्ली भेज दिया गया था, जिसके कारण राजपूत नेतृत्व का राजस्थान में एक तरह से अभाव सा हो गया. (Pic: Flickr)
करणी सेना के गठन के साथ ही सबसे पहले अजीत सिंह मामडोली इसके प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए. साथ ही लोकेंद्र सिंह कालवी इसके संयोजक बनकर उभरे. शुरुआत में तो करणी सेना बहुत लोकप्रिय रही, लेकिन आगामी कुछ सालों में इसमें फूट पड़ गई और यह संगठन कई धड़ों में बंट गया. (Pic: 5 Dariya)
इनमें से लोकेंद्र सिंह कालवी के नेतृत्व वाली श्री राजपूत करणी सेना, अजीत सिंह मामडोली के नेतृत्व वाली श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना समिति और सुखदेव सिंह गोगामेदी के नेतृत्व वाली श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना सबसे ज्यादा प्रभावी बतायी जाती है. (Pic: Twitter/Kunwar Suraj Pal Amu)
वैसे तो करणी सेना के गुट अलग-अलग काम करते हैं, लेकिन समय-समय पर ये एकजुट होते भी दिखे हैं. अगर आपको याद हो तो 2008 में आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘जोधा अकबर’ के समय भी इन्होंने खासा विरोध किया था. बाद में मामला इतना बढ़ गया था कि यह फिल्म राजस्थान में रिलीज नहीं हो पाई थी. (Pic: Filmygyan)
इसके बाद यह संगठन 2013 में चर्चा में रहा. इस बार वह आरक्षण की मांग को लेकर लामबंद थे. उन्होंने कांग्रेस के चिंतन शिविर को निशाना बनाने तक की धमकी दे डाली थी. (Pic: India Abroad)
नेगेटिव पब्लिसिटी का उनका सफर यही नहीं रुका. 2017 में जब राजस्थान पुलिस ने कुख्यात अपराधी आनंदपाल सिंह को एनकाउंटर में मार गिराया तो करणी सेना ने एकत्र होकर उसकी याद में श्रद्धांजलि देने की कोशिश की थी. यही नहीं विरोध प्रदर्शन करते हुए उन्होंने ट्रेन की पटरियां उखाड़ दीं और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था. (Pic: NewIndianExpress)
रही बात फिल्म पद्मावती को लेकर करणी सेना के विरोध को लेकर, तो शायद ही किसी से कुछ छिपा होगा. यह फिल्म 2017 दिसंबर में रिलीज होनी थी, लेकिन उनके भारी विरोध और सेंसर बोर्ड द्वारा सर्टिफिकेट देने में देरी के कारण इसकी रिलीज बढ़ा दी गई थी. (Pic: Republic TV)
हालांकि, इस हंगामे के बीच अंतत: जनवरी में फिल्म पर्दे पर रिलीज हुई और दर्शकों ने इसका लुत्फ लिया. वह बात और है कि इसमें कई सारे कट लगाए गए और फिल्म का नाम पद्मावती से पद्मावत कर दिया गया. दिलचस्प बात तो यह है कि इसके बावजूद भी करणी सेना का हंगामा नहीं रुका. यहां तक कि वह कथित तौर पर मरने मारने पर उतारू हो गए थे. (Pic: TopYaps)
करणी सेना की कार्यशैली पर बात की जाए तो यह कथित तौर न केवल राजपूतों के गौरव की रक्षा कर रहा है, बल्कि समाज के हितों की भी चिंता करता है. साथ ही करणी सेना हिन्दू संस्कृति के संरक्षण का काम कर रही है, ऐसा भी कई हलकों में बताया जा रहा है. यही नहीं ये खुद को ‘राष्ट्रीय एकता’ का हिमायती भी बताते हैं. (Pic: Social News )
इनकी परिधि की बात की जाए तो यह राजस्थान के राजपूत बहुल ज़िलों में बहुत जल्दी से अपने पैर फैलाये हैं. झोटवाड़ा, खातीपुरा, वैशाली और मुरलीपुरा जैसे राजपूत बहुल इलाकों में तो आलम यह हो चला है कि इससे जुड़े युवक महज एक आह्वान पर तुरंत इकठ्ठे हो जाते हैं. (Pic: NewIndianExpress)
गजब की बात तो यह है कि यूं तो राज्य के प्रमुख शहरों में राजपूत सभा काम करती है और क्षत्रिय युवक संघ कई दशकों से संगठित होकर काम कर रहा है. किन्तु, करणी सेना ने अलग रास्ता अपनाया और खुद को युवकों पर केंद्रित किया. यही इसकी असली ताकत बताई जाती है. (Pic: Indiatimes.com)
वहीं करणी सेना के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह भले ही एक राजपूत संगठन है, लेकिन उसका एक राजनितिक एजेंडा भी है. चूंकि करणी सेना के बड़े धड़े के मुखिया लोकेंद्र सिंह कालवी कई बार चुनाव लड़ चुके हैं… हालांकि वह कभी जीते नहीं.
ऐसे में समय-समय पर करणी सेना का विरोध और सक्रियता, राजनीतिक आधार बनाने की कोशिश हो सकती है! बहरहाल, यह कितना सही है, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन एक बात तो साफ है कि यह संगठन राजपूतों के बीच लोकप्रिय होने की कोशिश शुरु से करता रहा है. हालाँकि, जब पद्मावत रीलिज हो गयी तो राजपूतों द्वारा विरोध-प्रदर्शन के दौरान जिस तरह गुडगाँव में एक स्कूली बस पर पत्थरबाजी की गयी, उसने इस संगठन और राजपूतों को सर्वाधिक बदनाम किया. बेशक, बाद में यह कहा गया कि संगठन और राजपूत समाज के विरोधियों ने करणी सेना को बदनाम करने के लिए षड़यंत्र किया था, किन्तु बदनामी तो फिर भी बदनामी ही है!
आप क्या कहेंगे इस ‘करणी सेना’ के बारे में?
Web Title: Full Story of Karni Sena, Photo Story
Feature Image Credit: DNA India