पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक हिंदुत्ववादी विचारक व भारतीय राजनितिज्ञ थे. उन्होंने हिन्दू शब्द को धर्म के तौर पर नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति के रूप में जोर दिया. उनका संबंध आरएसएस के साथ भी रहा. इसी के साथ भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने राजनीति के अलावा भारतीय साहित्य में भी योगदान दिया. उन्होंने कई रचनाएं लिखी.
दीनदयाल भारत के समाज सुधारक के साथ ही पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माया. पंडित दीनदयाल बचपन से लेकर किशोरावस्था तक कई दुःख झेले. इसके बावजूद उन्होंने अपने विचारों से लाखों दिलों पर राज किया.
आज भी भारतीय राजनीति में उनको अपना आदर्श माना जाता है. हाल ही में मुग़ल सराय स्टेशन का नाम इस आदर्शवादी व्यक्ति के नाम पर बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय कर दिया गया. ऐसे में भारत के इस राष्ट्रवादी विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा.
तो चलिए जानते हैं भारत के महान दार्शनिक, समाजवादी व इतिहासकार पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवनकाल के बारे में…
दुःख भरा रहा बचपन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में हुआ. इनके पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय भारतीय रेलवे विभाग में नौकरी किया करते थे. माता रामप्यारी गृहिणी के रूप में परिवार का देखभाल करती थी.
दीनदयाल के माता-पिता दोनों बहुत धार्मिक थे. पिता की नौकरी रेलवे में होने की वजह से अक्सर बाहर ही रहना पड़ता था. जब कभी छुट्टी मिलती तो वो घर आते थे. इसके बावजूद इनकी माता ने बच्चों का बेहतर पालन-पोषण किया करती थीं.
इनके जन्म के बाद इनकी माता ने एक और पुत्र को जन्म दिया. इनके छोटे भाई का नाम शिवदयाल था. इसके बाद इनके पिता ने अपनी पत्नी व बच्चों को मायके भेज दिया. दीनदयाल के नाना भी रेलवे विभाग में स्टेशन मास्टर के पद पर कार्यरत थे. दीन दयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ पले बढ़े.
ये अपने माता-पिता के साथ ही अपने छोटे भाई से बहुत प्यार करते थे, मगर भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था. जब पंडित दीनदयाल उपाध्याय की उम्र लगभग 3 साल की थी तो इनके पिता का स्वर्गवास हो गया. छोटी सी उम्र में बाप का साया सिर से उठने से दीनदयाल को गहरा दुःख पहुंचा. पिता की मौत के बाद इनकी माता को भी गहरा धक्का लगा था, जिसकी वजह से वो भी बीमार रहने लगीं.
बीमारी की हालत में दीनदयाल की माँ ने भी इनका साथ हमेशा के लिए छोड़ दिया. सात साल की छोटी उम्र में ही दीनदयाल अनाथ हो चुके थे. पिता के बाद माता के चले जाने पर दीनदयाल को गहरा सदमा लगा, मगर उन्होंने किसी तरह खुद को सभांला.
नाना ने इनको उच्च शिक्षा देना चाहा, लेकिन गांव में उच्च शिक्षा का अभाव था. ऐसे में नाना ने दीनदयाल व उनके भाई शिव को पढ़ाई के लिए उनके मामा के घर गंगापुर भेज दिया. आगे 1926 में नाना ने भी हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
इस दुःख से उभर भी नहीं पाए थे कि इनके मामा भी टीबी नामक भयानक बीमारी की चपेट में आ गए थे. उन्होंने छुआ छूत से बिना डरे मामा का इलाज लखनऊ में कराया. इसके कुछ सालों बाद इनके भाई को भी बीमारी ने जकड़ लिया. बीमारी की वजह से इनके भाई की मृत्यू हो गई. इनको भाई के बिछड़ने का बहुत दुःख हुआ, मगर होनी को कौन टाल सकता है.
पढ़ाई में रहे हमेशा अव्वल
बचपन में ही कई अपनों ने साथ छोड़ दिया था. गरीबी के कारण पढ़ाई में कई अड़चनें भी आईं. इसके बावजूद सभी दुखों व परेशानियों का बखूबी सामना किया. दीनदयाल ने मामा के पास रहकर कक्षा पांच तक की पढ़ाई पूरी की. इस दौरान वो हमेशा स्कूल में पहला स्थान प्राप्त करता रहा.
इसके बाद इनको कोटा आना पड़ा क्योंकि गंगापुर में आगे की पढ़ाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. इनके साथ इनके मामा का लड़का भी पड़ता था.
दीनदयाल के पास इतनी रकम नहीं थी कि वो किताबें खरीद सकें इसके बावजूद उन्होंने मेहनत से पढ़ाई की. जब उनका ममेरा भाई रात में सो जाता तब वो उसकी किताबों से पढ़ाई किया करते थे. यहां भी वो सभी अध्यापकों का दिल जीतने में कामयाब रहे. प्रत्येक वर्ष उन्होंने अव्वल नंबर से पास किया.
आगे, हाईस्कूल व इंटर में भी अपनी मेहनत व लगन से प्रथम स्थान प्राप्त किया. जिसकी वजह से इनको दोनों साल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया. इसी के साथ ही इनको आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति भी मिलती रही.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक 'संघ' को दी सेवाएं
इंटर में गोल्ड मेडलिस्ट रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर के एस डी कालेज में प्रवेश लिया. यहां भी उन्होंने पढ़ाई के दौरान गहन अध्ययन किया. पढ़ाई के साथ-साथ कुछ राजनीतिक गतिविधियों में भी रूचि लेने लगे.
यहां पर इनकी मुलाकात बलवंत महासिंघे से हुई. ये एक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य थे. पंडित जी इनसे प्रेरित होकर 1937 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए. यहां से बी0 ए0 की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के बाद एम0 ए0 की डिग्री के लिए आगरा चले गए.
इस दौरान वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सक्रीय सदस्यों में से एक रहे. दीनदयाल ने संघ की सेवा के लिए शादी न करने का फैसला लिया. उन्होंने पढ़ाई छोड़ देश हित के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया.
उन्होंने बाद में दोबारा पढ़ाई करने के लिए इलाहबाद की ओर रुख किया. बी0 टी0 की पढ़ाई के दौरान भी संघ के लिए कार्य करते रहे. आगे 1955 में इन्हें उत्तर प्रदेश संघ संगठन का प्रचारक बनाया गया.
आगे दीनदयाल ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कदम रखा. उन्होंने लखनऊ से ‘राष्ट्र धर्म’ प्रकाशन नामक पत्रिका को निकालना शुरू किया. बाद में ‘पांचजन्य’ नामक साप्ताहिक व ‘स्वदेश’ नामक डेली समाचार पत्र को भी निकालना शुरू कर दिया. जो आज भी प्रकाशित होता है. अब स्वदेश का नाम बदलकर ‘तरुण भारत’ हो गया है.
भारतीय जन संघ के बने अध्यक्ष और...
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने साहित्य में भी अपना हाथ अजमाया. उनके द्वारा सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य व चाणक्य पर आधारित नाटक ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ बहुत पसंद भी की गई.
आगे जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सहायता लेकर भारतीय जन संघ की स्थापना की तो वो इसका हिस्सा बनें. जो आज भारतीय जनता पार्टी के नाम से जाना जाता है. इस दौरान ये भारतीय राजनीतिक गतिविधियों में अहम किरदार निभाते रहे.
उन्होंने एकात्म मानववाद के आधार पर भारत राष्ट्र की कल्पना की थी. जिसके द्वारा विभिन्न राज्य की संस्कृतियां आपस में मिलकर मजबूत राष्ट्र का निर्माण करें. 1953 में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया तो भारतीय जन संघ की अधिकतर जिम्मेदारियां पंडित जी के कंधे पर आ गई.
लगभग 15 वर्षों तक संगठन के महामंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं देते रहे. आगे दिसंबर 1967 में इनके कठिन परिश्रम व उच्च दायित्व को देखते हुए इनको पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया. इसके कुछ दिनों उपरांत 11 फ़रवरी 1968 को रेलवे यात्रा के दौरान इनकी मृत्यु हो गई.
इनका मृत शरीर मुग़ल सराय रेलवे स्टेशन की लाइनों के पास मिला था. पंडित दीनदयाल की मृत्यु कैसे हुई ये आज तक एक रहस्य बन कर रह गया.
आज भले ही देश के महान व्यक्तित्व वाले इंसानों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय भले ही हमारे बीच में न हों, मगर उनकी सर्वोच्च विचारधारा हमारे बीच विराजमान हैं.
तो ये थी पंडित दीनदयाल उपाध्याय से जुड़ी कुछ दिलचस्प व रोचक बातें जो दुःख भरे बचपन के बावजूद हिम्मत नहीं हारी. वो अपनी सोच व कुशलता से लाखों भारतीय के दिलों में राज किया और आज भी कर रहे हैं.
Web Title: Great Nationalist And Thinker Pandit Deendayal Upadhyaya, Hindi Article
Featured Image Credit: Vasundhararaje