चीन और अमेरिका के बीच लगभग 5 महीने से जारी व्यापार युद्ध अपने चरम पर है.
एक ओर जहां अमेरिका ने चीन से आयातित माल पर आयात शुल्क लगा दिया है. वहीं इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिका से आयात होने वाले माल पर शुल्क लगाया है.
वहीं, इस युद्ध से थोड़ा दूर दक्षिण एशिया स्थित भारत के लिए ये खुला न्यौता माना जा रहा है कि वो अपने उत्पाद चीन और अमेरिका के बाजारों में बेचे.
आयात शुल्क लगने के बाद एक ओर जहां अमेरिका में चीनी माल की कमी हुई है, तो वहीं, चीन में अमेरिकी सामानों का आयात भी लगभग बंद है.
ऐसे में अमेरिका-चीन के बीच आपसी टकराव भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है.
लेकिन कैसे, आइए जानते हैं –
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, मतलब क्या है?
अमेरिका चीन व्यापार युद्ध में भारत के फायदे को समझने से पहले आपको ये जानना जरूरी है कि आखिर ये व्यापार युद्ध है क्या?
असल में किसी एक देश से दूसरे देश को भेजे जाने वाले माल या उत्पाद पर एक तय नियम के हिसाब से आयात शुल्क लगाया जाता है. इससे विदेशी माल या आयातित उत्पादों की मांग घरेलू बाजार में संतुलित बनी रहती है. और देश के उत्पादन पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता.
इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि यदि भारत में 125 सीसी की एक मोटरसाइकिल 50 हजार रुपए में बिक रही है. वहीं, चीन से आयातित ठीक वैसी ही 125 सीसी की मोटरसाइकिल, भारत में 45 हजार की बिक रही है. तो जिन भारतीयों को 125 सीसी की मोटरसाइकिल खरीदनी है, वह सस्ती होने की वजह से भारतीय की जगह चीनी मोटरसाइकिल खरीदेंगे.
वहीं, अब मान लीजिए कि भारत इस चीनी मोटरसाइकिल पर आयात शुल्क बढ़ा देता है. इससे इसके दाम बढ़कर 55 हजार रुपए हो जाते हैं, तो भारत में इसे कोई भी खरीदना पसंद नहीं करेगा.
भारत में कम होती चीनी सामानों की मांग के कारण कोई व्यापारी इन्हें नहीं मंगाएगा और चीनी निर्यात लगभग खत्म हो जाएगा. ये नियम विदेशों को निर्यात किए जाने वाले भारतीय सामानों पर भी लागू होते हैं.
अगर कोई एक देश, दूसरे के माल पर आयात शुल्क में तय हिसाब से ज्यादा की बढ़ोतरी करता है, तो इससे दूसरा देश भी उसके माल पर आयात शुल्क को बढ़ा सकता है. जैसा कि अभी अमेरिका और चीन के बीच चल रहा है. यही व्यापार युद्ध है.
इस व्यापार युद्ध से एक बात तो साफ है कि शुल्क बढ़ने से दोनों देशों में आयातित माल (Imported Goods) के दामों में बढ़ोतरी हो जाएगी. अमेरिका को जाने वाला चीनी सामान अमेरिका में महंगा होगा. और संभव है कि वहां चीनी सामान की मांग ही कम हो जाए.
इससे चीन के निर्यात में कमी होगी. वहीं, चीन के विदेशी मुद्रा कोष पर भी भारी दबाव पड़ेगा.
अमेरिका में चीनी उत्पादों की कम मांग के चलते चीन में माल का उत्पादन कम होगा. इससे चीन में बेरोजगारी भी बढ़ सकती है.
ठीक ऐसा ही प्रभाव अमेरिका पर भी पड़ सकता है.
व्यापार युद्ध की शुरूआत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन पर बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) की चोरी करने का आरोप लगाते रहे हैं.
बौद्धिक संपदा की चोरी के मामले में बनी एक जांच एजेंसी के अनुसार, चीन द्वारा बौद्धिक संपदा की चोरी करने के कारण अमेरिका को हर साल 225 बिलियन यूएस डॉलर से लेकर 600 बिलियन यूएस डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ता है. वहीं, इससे अमेरिका में सैकड़ों की नौकरी जाती है वो अलग.
इसके अलावा चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका मतलब है कि चीन अमेरिका को ज्यादा माल बेचता है और उससे खरीदता कम है.
और सरल शब्दों में कहें तो चीन अमेरिकी माल खरीदने के मुकाबले अमेरिका को अपना ज्यादा माल बेचता है.
अमेरिकी सेंसर ब्यूरो के मुताबिक सन 2016 में चीन ने अमेरिका को 423.4 अरब डॉलर का माल बेचा. वहीं, चीन ने अमेरिका से 104.1 अरब डॉलर का माल खरीदा.
इस जिहाज से सन 2016 में अमेरिका का व्यापार घाटा (Trade Deficit) 319.3 अरब डॉलर रहा.
वहीं, 2017 में चीन ने 130 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पाद खरीदे थे, जबकि अमेरिका ने चीन से 506 अरब डॉलर का सामान खरीदा था. इस तरह से 2017 में अमेरिका को लगभग 375 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था. जो हर साल बढ़ता ही जा रहा है.
इन सभी चीजों से परेशान होकर और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के इरादे से 9 मार्च 2018 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत चीन से खरीदे जाने वाले स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी.
बस यहीं से व्यापार युद्ध की शुरूआत हो गई.
इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप ने 22 मार्च को चीन पर 60 करोड़ डॉलर का आयात शुल्क लगाने की घोषणा की. इसके विरोध में चीन ने भी 23 मार्च को अमेरिका से खरीदे जाने वाले उत्पादों पर 3 बिलियन यूएस डॉलर का टैरिफ लाग दिया.
इस प्रकार, जैसे को तैसा वाली नीति पर आगे बढ़ते हुए अमेरिका और चीन एक-दूसरे से खरीदे जाने माल पर टैरिफ लगा रहे हैं.
पिछले महीने ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी माल की खरीद पर और 200 बिलियन डॉलर के टैरिफ लगाने की घोषणा की थी.
भारत अमेरिका को क्या बेचे?
अमेरिका में चीनी सामान पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी के जवाब में चीन ने भी अमेरिकी माल पर भारी आयात शुल्क लगाया है.
वहीं, अमेरिका चीन से इंजन-मोटर, निर्माण और खेती उपकरण, बिजली उपकरण, परिवहन व दूरसंचार उपकरण खरीदता था. दूसरी ओर, चीन अमेरिका से कृषि और ऑटो उत्पाद खरीदता है.
टैरिफ बढ़ने के बाद चीन में अमेरिकी सामान काफी महंगे हो गए हैं. वहीं, चीनी लोग अमेरिकी उत्पादों को ज्यादा नहीं खरीद रहे. ऐसी स्थिति भारत के लिए एक मौका है.
भारत चाहे तो, जो सामान अमेरिका चीन को निर्यात करता था, अब भारत चीन के बाजारों में पेश कर सकता है.
इससे भारत और चीन के रिश्तों में सुधार के साथ ही भारत के निर्यात को भी फायदा मिलेगा. वहीं, इससे भारत का विदेशी मुद्रा कोष भी बढ़ेगा.
ये स्थिति भारत के इस लिहाज से भी अच्छी है क्योंकि पिछले 5 सालों में भारत ने चीन से 50 प्रतिशत ज्यादा माल खरीदा है. इसके मुकाबले भारत ने चीन को कम सामान बेचा है.
साल 2017-18 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 63 अरब डॉलर हो गया. जो 2013-14 में मात्र 36.2 अरब डॉलर था. चीन सालाना 35 अरब डॉलर की सोयाबीन अमेरिका से खरीदता है. जिसका व्यापार ट्रेड वॉर के बाद से बंद है.
अब बात आती है कि ऐसे कौन से सामान हैं जो भारत चीन और अमेरिका को निर्यात कर सकता है.
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का कहना है कि अमेरिका ने चीन के जिन सामानों पर टैरिफ बढ़ाया है, उनमें पंप, सैन्य विमान पुर्जे, इलेक्ट्रोडियाग्नोस्टिक उपकरण पुर्जे, 1500-3000 सीसी के यात्री वाहन, वाल्व बोडीज आदि शामिल हैं. इन्हें भारत पहले से ही इन उत्पादों को अमेरिका निर्यात करता रहा है.
2017 में इन उत्पादों का निर्यात 50 मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक था. ऐसे सामानों के उत्पादन को बढ़ाकर अमेरिकी बाजार में भारतीय माल को पहुंचाया जा सकता है.
इसके अलावा भारत के पास अमेरिका की जरूरत के हिसाब से रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र, वाहन और ऑटो पार्ट्स, इंजीनियरिंग सामान जैसे उत्पादों को निर्यात करने की क्षमता है.
चीन में ‘मेड इन इंडिया’
हाल ही में भारत ने एशिया प्रशांत व्यापार समझौते (एपीटीए) के तहत अपने पड़ोसी बांग्लादेश, चीन, भारत, लाओस, दक्षिण कोरिया और श्रीलंका से आयातित 3,142 माल पर आयात शुल्क घटाया था. जिसके जवाब में चीन ने भी 8,500 वस्तुओं पर लगने वाले आयात शुल्क को कम किया था.
भारत अभी अपने पड़ोसियों को जेम्स एंड जूलरी, इलैक्ट्रिकल मशीनरी एंड इक्युपमेंट, हैवी मशीनरी एंड पार्ट्स, कोल एंड कोल प्रोडक्ट्रस, ऑर्गेनिक कैमिकल, प्लास्टिक पॉलीमर एंड कैमिकल, लोहा और स्टील, मेडिकल एंड ऑप्टिकल फोटोग्राफिक इक्युपमेंट, फार्मास्यूटिकल उत्पादों का निर्यात करता है.
एक ओर जहां अमेरिका से आने वाले इन सामानों पर चीन ने 15-25 प्रतिशत की टैरिफ लगाया है. वहीं, एशिया प्रशांत व्यापार समझौते (एपीटीए) के तहत चीन ने भारत को 6-35 प्रतिशत तक आयात शुल्क में राहत दी है. जाहिर तौर पर इससे भारात के पास मौका है कि वो अपने सामानों को चीन के बाजार तक पहुंचाए.
इससे पहले चीन कैंसर रोधी ड्रग्स के साथ कई भारतीय दवाओं पर आयात शुल्क घटा चुका है. इससे भारत के औषधि और आईटी क्षेत्र के दरवाजे चीनी बाजार के लिए खुल गए हैं.
भारत चीन को छोड़कर पूरी दुनिया को संतरे, बादाम, अखरोट, गेहूं, मक्का और अनाज जैसे उत्पाद बेचता है. वहीं भारत की चीन के बाजार में पहुंच भी नहीं है. भारत ने 2017-18 में दुनिया को 143.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मक्का का निर्यात किया था. वहीं इसी अवधि में चीन ने 600 मिलियन डॉलर की मक्का खरीदी थी.
अमेरिकी मक्का पर चीन ने 25 प्रतिशत शुल्क लगा रखा है, वहीं एशिया प्रशांत व्यापार समझौते के तहत आने वाले भारत को इस मामले में 100 प्रतिशत तक की छूट प्राप्त हो सकती है.
भारत के वाणिज्य विभाग के अनुसार, कम से कम 100 उत्पाद ऐसे हैं, जो भारत चीन के बाजारों में पेश कर सकता है. ताजा अंगूर, कपास लिंटर्स, तंबाकू, लूब्रिकेंन्ट्स और बेंजेन समेत कई अन्य कैमिकल जैसे कई उत्पाद भारत चीन को निर्यात करता है.
वहीं, अमेरिका भी ये उत्पाद चीन को बेचता था, लेकिन आयात पर शुल्क बढ़ाने की वजह से चीन अमेरिकी सामान नहीं खरीद रहा. भारत अगर इन सामानों का निर्यात बढ़ाए तो उसे इस 'ट्रेड वॉर' का फायदा मिल सकता है.
Web Title: How India Can Benefit From US-China Trade War, Hindi Article
Feature Image Credit: cnn/washingtontimes