मशहूर हिंदी कवि, शानदार वक्ता और युवा राजनेता.
ये तीनों नामों के संगम से जो बनता है, उसे कुमार विश्वास कहा जा सकता है!
उनके व्यक्तित्व की ये कुछ ऐसी खूबियां हैं, जो उन्हें युवा दिलों की धड़कन बनाता है. खासकर कविता प्रेमियों को. उनकी जुबां पर जब कभी कोई दीवाना कहता है… आता है, तो उनके चाहने वाले खुशी से झूम उठते हैं.
बहरहाल, वह पिछले कुछ समय से खासे चर्चा में हैं. असल में आम आदमी पार्टी की तरफ से वह राज्यसभा भेजे जाने की उम्मीद कर रहे थे, किन्तु अंतिम मौके पर उनको साइड लाइन करते हुए संजय सिंह, सुशील गुप्ता, नारायण दास गुप्ता की इंट्री करा दी.
तब से वह लगातार आप संयोजक केजरीवाल पर निशाना साधते नज़र आ रहे हैं. हाल ही में इटावा में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने खुद को ‘आप’ का आडवाणी बता डाला. वह यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपने अंदाज में केजरीवाल पर तंज कसते हुए कहा कि-
पुरानी दोस्ती को इस नई ताकत से मत तौलो,
ये संबंधों की तुरपाई है षडयंत्रों से मत खोलो,
मेरे लहजे की छैनी से गढ़े कुछ देवता,
जो कल मेरे लफ्जों पे मरते थे,
वो अब कहते हैं मत बोलो…
उनका परिवार न तो कवियों की पृष्ठिभूमि से आता है और न ही राजनीति की. बावजूद इसके उन्होंने जिस तरह से इन दोनों क्षेत्रों में खुद को चर्चित रखा है, वह कौतूहल का विषय तो है ही!
आखिर कैसे कुमार, पहले कवि और बाद में राजनेता बनकर उभरे और उनके जीवन में क्या-क्या ख़ास रहा, आईये जानते हैं–
कुमार विश्वास मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में मौजूद क्षेत्र पिलखुवा से आते हैं. 10 फरवरी 1970 को उन्होंने वहां के निवासी डॉ. चंद्रपाल शर्मा के यहां अपनी आंखें खोली थीं. चूंकि पिता पेशे से शिक्षक थे, इसलिए बचपन से ही उन्होंने कुमार को पढ़ाई पर केंद्रित रखा. वह चाहते थे कि कुमार बड़े होकर इंजीनियर बनें. (Pic: Wikipedia)
शायद यही कारण रहा कि 12वीं के बाद कुमार इंजीनियरिंग के लिए एमएनआईटी, इलाहाबाद पहुंच गए. जोकि, भारत के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में से माना जाता है. (Pic: Amar Ujala)
शुरू में सबकुछ ठीक था, किन्तु धीरे-धीरे कुमार का मोह इंजीनियरिंग से भंग होने लगा. उनका मत था कि सिर्फ एक इंजीनियरिंग बनने से अच्छा है कि वह एक अच्छे कवि क्यों न बन जाएँ. बस इसी सोच के चलते उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ दी और खुद को साहित्य की तरफ मोड़ दिया. (Pic: BollySpice.)
कुमार के इंजीनियरिंग छोड़ने के फैसले ने उनके पिता को बहुत आहत किया. वह खुद बताते हैं कि जब वह अपने शुरुआती दिनों में कवि गोष्ठियों से देर रात घर लौटते थे, तो उनके पिता उनको तंज मारते हुए कहते थे कि इनके लिए बनाओ हलवा, ये सीमा से लड़कर आए हैं. (Pic: Wikimedia Commons)
ऐसा नहीं है कि इंजीनियरिंग छोड़ने के बाद कुमार ने पढ़ाई छोड़ दी हो. बस उन्होंने इसकी धारा बदल दी थी. उन्होंने आगे हिंदी साहित्य में पीएचडी की डिग्री ली और 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज में प्रोफेसर बने. (Pic: Urbandesis)
अपनों की नाराजगी के बावजूद कुमार ने कविता का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ते रहे. हालांकि, यह रास्ता आसान नहीं था. अपने तो पहले से ही नाराज थे. ऊपर से कवियों ने उनका बहिष्कार करना शुरु कर दिया. कई मौकों पर बड़े कवियों ने उनके साथ मंच साझा करने तक से मना कर दिया. असल में वह कुमार की कविताओं को कविता नहीं मानते थे. (Pic: hindiwritings.com)
ऐसे में कुमार ने युवाओं के बीच कविता पढ़ने का सिलसिला शुरु कर दिया. इसके लिए उन्होंने आईआईटी जैसे परिसरों को टारगेट किया. उनका यह दांव सफल रहा और जब उन्होंने कोई दीवाना कहता है… को मंच पर सुनाया तो युवा झूम उठे… कहते हैं कि कुमार की इस एक कविता ने उन्हें रातों-रात मशहूर कर दिया और उनकी मांग बढ़ने लगी. (Pic: Amar Ujala)
आज आलम यह है कि वह विदेशों तक अपनी कविताओं के लिए जाते हैं. एक टीवी शो के लिए वह करीब 10 लाख रूपए बतौर फीस लेते हैं. इसके चलते उन पर आरोप भी लगते रहे हैं कि उन्होंने कवि सम्मेलनों को कॉन्सर्ट में बदल दिया है. (Pic: University Express)
कुमार ने जिससे प्यार किया, उससे शादी भी की. जी हां, यहां बात उनकी पत्नी मंजू शर्मा विश्वास की हो रही है. बताते चलें कि वह कॉलेज के दिनों से साथ थे. मंजू ही थी, जिनके लिए कुमार ने अनेक गीत और कविता लिखे. दोनों के बीच सालों बाद भी खूब प्रेम बना हुआ है. उनसे कुमार को अगरता विश्वास और कुहू विश्वास नाम की दो बेटियां हैं. (Pic: Making Peace)
एक कवि होने का साथ-साथ कुमार की राजनीति में इंट्री बहुत दिलचस्प रही. 2012 में हुए अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में उनकी सक्रियता ने उन्हें नई पहचान दी. इस दौरान वह 16 अगस्त 2011 को उन्हें गिरफ्तार भी किए गए. (Pic: Getty Images)
बाद में 26 नवंबर 2012 को इस आंदोलन से निकलकर जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक दल बनाते हुए आम आदमी पार्टी का ऐलान किया, तो कुमार इसका मजबूत स्तंभ बनकर उभरे. साथ ही पार्टी की सदस्यता लेते हुए पूरी तरह राजनीति में सक्रिय नज़र आए. (Pic: Times of India)
दिल्ली विधानसभा के लिए पहली बार 4 दिसंबर 2013 को जब आप मैदान में उतरी तो वह उसके लिए एक स्टार प्रचारक बनकर सबसे आगे दिखे. दिल्ली में केजरीवाल सरकार बनने में उनका योगदान अहम माना जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से राहुल गांधी के खिलाफ ताल ठोक दी. हालांकि, वह यह चुनाव बुरी तरह हारे थे. (Pic: Newsmobile)
बहरहाल, वह निराश नहीं हुए और राजनीति की डगर पर चलते रहे. आम आदमी पार्टी के अहम मौकों पर वह साथ खड़े नज़र आए. टीवी पर डिबेट हो या फिर किसी कार्यक्रम में ‘आप’ के लिए मजबूती से बात करना, वह हर मोर्चे पर उनके मजबूत सिपाही बने. (Pic: Hindustan Times)
इस सफर में कुमार पर दिल्ली को एमसीडी में चुनाव हराने, बीजेपी के लिए साफ्ट कार्नर रखने व पार्टी लाइन से बाहर जाने, जैसे कई आरोप भी लगते रहे. हालांकि, कुमार यही कहते रहे कि वह ‘आप’ के सबसे बड़े पैरोकार हैं. शायद यही कारण रहा कि वह जब आम आदमी पार्टी के तरफ से तीन लोगों को राज्यसभा भेजने की बात उठी तो उन्होंने खुले रूप से अपनी दावेदारी ठोक दी. वह बात और है कि पार्टी ने इसको नज़रअंदाज करते हुए दूसरों को वहां भेज दिया.(Pic: Amar Ujala)
इस प्रक्ररण के बाद से कुमार केजरीवाल पर हमलावर हैं, हर मौके पर वह अपनी कविता के माध्यम से उनको निशाने पर लेते रहते हैं. उनका यह रवैया उन्हें राजनीति के किस मुहाने पर लेकर जाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा.
हां, उनके चाहने वाले तो उनसे यही चाहेंगे कि वह कोई दीवाना कहता है…ए क पगली लड़की…जैसे अपने तरानों से उनका मंनोरंजन करते रहे.
क्यों सही कहा न?
Web Title: How Kumar Vishwas an Poet and now a Politician, Photo Story
Feature Image Credit: bhopali