क्या आप जानते हैं, पिछले लगभग 10 सालों में हमने उतनी प्लास्टिक पैदा की है जितनी पिछले 100 सालों में नहीं की गई. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा प्लास्टिक उपभोक्ता देश है. यहां हर साल 15 लाख टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है.
और इसका प्रभाव क्या होगा..? कभी सोचा है.
नहीं न..!
ये तो सिर्फ एक छोटा सा तथ्य है, प्लास्टिक के हानिकारक प्रभावों को जानकर तो आपके होश उड़ जाएंगे. आप क्या सोचते हैं कि प्लास्टिक का सामान आप इस्तेमाल करेंगे और उसके परिणाम या कहें दुश्कर प्रभावों से बच पाएंगे?
इस लेख के माध्यम से आज हम प्लास्टिक के इस्तेमाल और उसके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की बात करेंगे –
महासागरों में समा रही है प्लास्टिक
आपको जानकर ताज्जुब होगा, एक रिपोर्ट के अनुसार कि दुनिया भर में कचरे के रुप में ढेर होने वाली प्लास्टिक का 50 प्रतिशत केवल एक बार ही इस्तेमाल किया जाता है और फिर उसे कूड़े में फेंक दिया जाता है.
प्रत्येक साल 88 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक जमीन से समुद्र में चली जाती है. और रही सही कसर समुद्री हवाएं और जलधाराएं पूरी कर देती हैं. वह इस कचरे को समुद्र की गहराई में ले जाती हैं, जहां ज्यादातर जीव इसे अपना भोजन बना लेते हैं और अंतत: उनकी मौत हो जाती है.
वहीं, बढ़ते-बढ़ते प्लास्टिक कचरा एक साथ इकट्ठा होकर समुद्र में एक विशाल द्वीप के रूप में जमा हो जाता है. इसका एक उदाहरण ग्रेट पैसिफिक कचरा पैच है. हवाई और कैलिफोर्निया के मध्य उत्तर प्रशांत महासागर में स्थित ग्रेट पैसिफिक कचरा पैच में लगभग 1.8 ट्रिलियन प्लास्टिक मौजूद है. इसका आकार टेक्सास से करीब दोगुना है.
उत्तर प्रशांत महासागर में हर साल लगभग 24,000 टन मछलियां प्लास्टिक खाने से मर जाती हैं.
वहीं, समुद्र में जमा 80 प्रतिशत प्लास्टिक हमारे द्वारा इस्तेमाल की गई होती है, जिसे इस्तेमाल के बाद हम यहां-कहां फेंक देते हैं. इसमें से 50 प्रतिशत समुद्र की गहराई में इकट्ठा हो जाती है. इसे खाने से लगभग 10 लाख समुद्री पक्षी और एक लाख समुद्री जीव-जंतु हर साल मर जाते हैं.
2017 में प्लास्टिक बैग खाने से कई व्हेल मछलियों की मौत हो गई थी. वहीं, लगभग 52 प्रतिशत कछुए, 44 प्रतिशत समुद्री पक्षी और बड़ी मात्रा में मछलियां समुद्र में फैले इन प्लास्टिक कचरे से प्रभावित होती हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, अगर हमारे दैनिक जीवन में इसी प्रकार से प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता रहा तो साल 2050 तक मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक हमारे समुद्र में तैरता हुआ नजर आएगा.
Plastic has Created a major Environmental Problem in Our Oceans. (Pic: nationalgeographic)
आपका घर भी महफूज नहीं!
ये तो हाल महासागरों का है, अगर आप अपने घर को इस प्रदूषणकारी प्लास्टिक से सुरक्षित मानते हैं, तो ये आपकी गलतफहमी है.
आजकल हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुके प्लास्टिक के बर्तन, गिलास और अन्य चीजें भी हमारे शरीर को नुक्सान पहुंचा रहे हैं. प्लास्टिक में हानिकारक रसायन होते हैं, जिनके साथ पानी मिलने पर फ्लोराइड, आर्सेनिक और एल्युमिनियम जैसे पदार्थ बनते हैं. ये तत्व मानव शरीर के लिए हानिकारक हैं. प्लास्टिक के बर्तनों में पानी पीने से कैंसर हो सकता है, वहीं, ये हमारे इम्यून सिस्टम पर भी हानिकारक प्रभाव डालते हैं.
भारत में घरों तक पहुंचने वाले 82.40 प्रतिशत सप्लाई पानी में प्लास्टिक फाइबर (बहुत सूक्ष्म प्लास्टिक के कण) पाए जाते हैं, सामान्यत: नदियों में प्रदूषण के कारण ऐसा होता है.
भारत में गंदा बदबूदार पानी सीवेज से होकर नदियों में छोड़ दिया जाता है, जो शायद ही ट्रीट किया जाता हो. इस पानी के साथ गंदगी तो होती ही है, साथ ही प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण भी इसमें मिले होते हैं, जो इसके ट्रीट होने के बाद भी हमारे घरों तक पहुंच जाते हैं. असल में आजकल के ट्रीटमेंट प्लांट पानी में से ऐसे बेहद छोटे प्लास्टिक तत्वों को अलग नहीं कर सकते.
क्या आप जानते हैं, सिगरेट के एक बट्स को नष्ट होने में 12 साल का समय लगता है. वहीं, मात्र 5 मिनट के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्लास्टिक स्ट्रॉ नष्ट होने में लगभग 200 साल लगाता है.
Cigarette Butts. (Pic: mentalfloss)
पेंट से पॉलीथीन तक
प्लास्टिक की विस्तृत श्रृंखला में जीवाश्म ईंधन के औद्योगिक विकास ने प्रत्येक चीज में बदलाव कर दिया है.
प्लास्टिक के जीवन चक्र में उसका उत्पादन जितना सरल और आम है, उसका प्राकृतिक तरीके से नष्ट होना उतना ही कठोर और लंबी प्रक्रिया है. और उसे गलने के लिए हजारों साल तक लंबा इंतजार करना पड़ता है.
प्लास्टिक निर्माण के दौरान जहरीले रासायनिक तत्व बनते हैं, वह पानी, जमीन, और वायु प्रदूषण के माध्यम से हमारी पारिस्थितिकी में शामिल हो जाते हैं. जो पर्यावरण के साथ मिलकर सांस के द्वारा, पानी के साथ हमारे शरीर में जाते हैं और नुक्सान पहुंचाते हैं.
आपको जानना चाहिए कि कुल प्लास्टिक उत्पादन की एक बहुत छोटी मात्रा लगभग 10 प्रतिशत से भी कम का प्रभावी रूप से पुनर्नवीनीकरण हो पाता है और शेष प्लास्टिक को लैंडफिल साइट पर भेज दिया जाता है, जहां ये सैकड़ों, हजारों साल तक यूं ही प्राकृतिक पर्यावास में अपने नष्ट होने के लिए संघर्ष करती रहती है.
और यहां से ये प्लास्टिक जमीन के पानी को भी प्रदूषित करता है.
लैंडफिल साइट से पानी रिस-रिसकर जमीन के नीचे जाता है, जिसमें प्लास्टिक के सूक्ष्म कण भी शामिल होते हैं. इससे जमीनी समह के नीचे मौजूद पानी भी जहरीला हो जाता है.
Plastic Bags. (Pic: lyd)
न चाहते हुए भी इससे दूर नहीं..!
यूके की रिसर्च के अनुसार, युवाओं पर हुए एक रिसर्च में 86 प्रतिशत किशोरों के मूत्र में बिस्फेनॉल ए (बीपीए) रसायन पाया गया, जो प्लास्टिक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक नामक विशेष प्लास्टिक बनाने के लिए सिंथेटिक रसायन बीपीए का प्रयोग किया जाता है. इसके द्वारा प्रभाव प्रतिरोधी सामग्री बनाने, डीवीडी बनाने और चिकित्सा उपकरणों के लिए व खाद्य पदार्थ व पेय पदार्थों की पैकेजिंग में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
1950 के दशक से शुरू हुआ इसका वाणिज्यिक उपयोग अपनी चरम सीमा पर है. आज यह दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादित रसायनों में से एक है. पूरे विश्व में प्रत्येक साल 3.6 बिलियन टन बीपीए का उत्पादन किया जाता है.
Plastic Bottle. (Pic: Field Study of the World)
प्लास्टिक को ना कहना सीखें
कुछ कंपनियां प्राकृतिक पर्यावास में प्लास्टिक मुक्त जीवनशैली सिखाने और पर्यावरण पर उसके प्रभाव को कम करने पर काम कर रही हैं. उन्हीं में से एक है ‘द हैप्पी टर्टल‘ जो इंसानों द्वारा एक साल में इस्तेमाल की गई व्यक्तिगत प्लास्टिक फुटप्रिंट का आकलन करती है. और इसे कम करने के तरीके आपके साथ साझा करती है.
ताकि आपका भविष्य प्रदूषण रहित और प्लास्टिक से होने वाले नुक्सानों से बचा रहे.
कंपनी की फांउडर ऋचा मालिक प्लास्टिक के उपयोग पर कहती हैं कि “यात्रा के दौरान कई लोग प्लास्टिक की बोतल से ही पानी पीना पसंद करते हैं, वे एक दिन में कई बोतलों का इस्तेमाल करते हैं और फिर उन्हें फेंक देते हैं. और इस तरह से पानी की ये खाली बोतलें समुद्र में चली जाती हैं, जिससे कई समुद्री जीव जंतुओं की जिंदगी तबाह हो जाती है. वहीं अपनी ट्रैवल के दौरान यात्री अपने साथ हमेश री-यूजेबल कटलरी साथ रखें, ताकि 5 मिनट के खाने के दौरान आपको 200 साल में गलने वाली प्लास्टिक कटलरी का उपयोग न करना पड़े.”
Richa Malik Founder of The Happy Turtle. (Pic: Team Roar)
प्लास्टिक की शुरूआत मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति और जीवनशैली में सुधार के नजरिए से की गई, लेकिन आज इसका बड़ी मात्रा में अंधा उपयोग पर्यावरण और हमारे जीवन पर घातक प्रभाव डाल रहा है.
चकाचौंध से भरे और अपनी रंगीन जिंदगी के लिए मशहूर कई बड़े शहरों की एक सच्चाई ये भी है कि वहां हर दिन बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा इकट्ठा हो जाता है, जो पर्यटकों द्वारा यूं ही इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है.
आपको जानकर ताज्जुब होगा, भारत की राजधानी दिल्ली में हर रोज लगभग 700 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो पूरे भारत में सबसे ज्यादा है.
ऐसे में जरूरी है कि अमेरिका की सड़कों पर 48 साल पहले 22 अप्रैल 1970 को बढ़ते प्रदूषण को समाप्त करने के लिए शुरू हुई मुहिम को जारी रखा जाए.
और प्लास्टिक की 100 प्रतिशत रीसाइक्लिंग, प्लास्टिक से संबंधित मानव व्यवहार को बदलने, कॉर्पोरेट और सरकारी उत्तरदायित्व को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए.
Web Title: How Plastic Is Damaging Our Drinking Water, Hindi Article
Featured Image Credit: alphacoders