जब विश्व में बिज़नेस के क्षेत्र में महिलाओं का नाम लिया जाएगा. बिना किसी शंका के इंदिरा नूई का नाम शीर्ष नामों में लिया जायेगा. इंदिरा पेप्सिको का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं.
साल 2006 के बाद से वो दुनिया की शक्तिशाली महिलाओं की सूची में लगातार शामिल रही हैं. वो फोर्ब्स पत्रिका की सौ सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची में लगातार बनी हुईं थीं.
हाल ही में, उन्होंने अपने सीईओ पद से इस्तीफा दे दिया. जिसकी वजह से वह एक बार फिर चर्चा में आ गयी हैं. भारत में बेहद साधारण परिवार में पली बढ़ी इंदिरा नूई ने असीम ऊँचाइयों को छुआ.
ऐसे में, उनकी जिंदगी को जानना दिलचस्प रहेगा. जानते हैं, इंदिरा नूई के बचपन से पेप्सिको की सीईओ बनने तक का सफ़र-
नूई को माँ से रहा खास लगाव
इंदिरा नूई का जन्म 28 अक्टूबर, 1955 को तमिलनाडु के मद्रास (चेन्नई) में हुआ. वह मध्यम-वर्गीय परिवार में जन्मीं, जो जरा रुढ़िवादी भी था. उनके पिता बैंक में अधिकारी के रूप में काम करते थे.
इंदिरा और उनकी बहन चंद्रिका का पालन-पोषण उनकी माँ ने ही किया. वह अक्सर बचपन में उनसे पूछा करती थीं कि वह बड़े होकर क्या बनना चाहती हैं. माँ की इसी बात ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया. वह अब ज्यादा सोचने लगीं कि उनके लिए क्या बनना सबसे बेहतर होगा.
इंदिरा बताती हैं कि बचपन में उनकी माँ रात के खाने के समय उन्हें और उनकी बहन को स्पीच देने को कहा करती थीं. वो कहती कि मान लो तुम प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति हो. अब खुद को ये मानकर भाषण लिखने को बोलती थीं.
अंत में दोनों बहने स्पीच देती और फिर उनकी माँ निर्णय लेती कि वो किसको वोट करेंगी. इस तरह उनके मनोबल और कॉन्फिडेंस भी बढ़ता था. इस काम में उनकी माँ ने खेल-खेल में ही सही पर दोनों बहनों को बहुत निखारा था. नूई शाकाहारी और आस्तिक भी हैं. आज भी वह अपने ऑफिस में गणेश भगवान की मूर्ति रखती हैं.
म्यूजिक बैंड में बजाया करती थीं गिटार
इंदिरा की शुरुआती शिक्षा होली एंजेल्स एंग्लो इंडियन हायर सेकण्ड्री स्कूल. इसके बाद वह 1974 में मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज से ग्रेजुएट हुईं. यहाँ उन्होंने फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स विषय के साथ पढ़ाई की थी.
नूई के दादाजी एक जज थे, अगर वह नूई को अगर कुछ काम देते. वह उसे उनके मुताबिक़ न कर पाती तो, वह उनसे कागज़ पर 200 बार माफ़ी मांगने को कहते थे. इसने उनका काफी मनोबल बढाया.
इंदिरा बचपन से ही विद्रोही स्वभाव की रही थीं. यही वजह रही की उन्हें बचपन में ‘जंगली’ नाम से भी बुलाया जाता था. ये एक म्यूजिक बैंड का भी हिस्सा रहीं. इस बैंड में वह गिटार बजाया करती थीं.
इसके अलावा, वह गर्ल्स क्रिकेट टीम की भी सदस्य रहीं. यह बचपन से ही पढ़ाई में बहुत तेज थी. अपनी प्रखर बुद्धि की वजह से ही इंदिरा आइआइएम(कलकत्ता) में दाखिला लेने में सफल रहीं.
साल 1976 में उन्होंने यहाँ से मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा किया. यहां से डिग्री लेने के बाद उन्होंने अपनी सबसे पहली नौकरी टूटल टेक्सटाइल कंपनी में की.
इसके बाद वह जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी में बतौर एक प्रोडक्ट मेनेजर के तौर पर काम करने लगीं. इस नौकरी के दौरान, उन्हें बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी और चुनौती भी मिली. दरअसल, इस दौरान उन्हें भारत में स्टेफ्री की सेनेटरी नैपकिन को लोगों के बीच पहुंचाने की ज़िम्मेदारी मिली.
इसी दौरान, भारत में महिलाओं से जुड़ी स्वछता के बारे में विज्ञापन करना प्रतिबंध था. ऐसे में, इंदिरा के लिए यह बेहद मुश्किल था कि वह कैसे इसे भारतीय महिलाओं के बीच लेकर जाएं. लेकिन, इंदिरा ने इस मामले में बेहद अच्छा प्रदर्शन किया. वह किसी तरह इसे कॉलेज और और स्कूल की लड़कियों के बीच लाने में सफल रहीं.
...और रिसेप्शनिस्ट का भी किया काम
उन्हें लगा कि वह अभी भी बिज़नेस के मामले में उतनी मजबूत नहीं हैं. लिहाज़ा, उन्होंने इस बार विदेश जाकर पढ़ाई करने के बारे में सोचा. साल 1978 में वह अमेरिका चली गयीं.
यहां उन्होंने येल स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट से पब्लिक एंड प्राइवेट मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री ली. साल 1980 में वह ग्रेजुएट हो गयीं. येल यूनिवर्सिटी में अपना खर्च उठाने के लिए उन्होंने आधी रात से सुबह तक एक रिसेप्शनिस्ट की नौकरी की.
अपनी मेहनत से कमाये गए पैसों से उन्होंने अपना पहला सूट ख़रीदा. उन्हें यह सूट पहन कर इंटरव्यू देने जाना था. उन्हें इस इंटरव्यू में रिजेक्ट कर दिया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने घुटने से नीचे तक की पेंट पहनी थी. वह बहुत दुखी हुईं.
इसके बाद वह अपने प्रोफेसर के पास गयीं. उनके प्रोफेसर ने उन्हें सलाह दी कि वो वही पहने जिसमे वह सहज हो. अपने अगले इंटरव्यू में वह साड़ी पहनकर गईं और इस बार वह सेलेक्ट भी हो गयीं.
…और ऐसे बन गईं पेप्सिको की पहली महिला सीईओ
अपनी डिग्री मिलने के बाद उन्होंने बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ज्वाइन किया. यहाँ उन्होंने बतौर इंटरनेशनल कॉर्पोरेट स्ट्रेटेजी डायरेक्टर काम किया. यहाँ लगभग छह वर्ष काम करने के बाद अब वह मोटोरोला कंपनी में चली गयीं.
साल 1986 में उन्होंने मोटोरोला में सीनियर कार्यकारी के रूप में काम किया. दो साल के अंदर ही अपने बेहतरीन प्रदर्शन की वजह से कंपनी ने उन्हें कॉर्पोरेट स्ट्रेटेजी का उपाध्यक्ष और डायरेक्टर बना दिया.
इंदिरा ने साल 1990 में एक बार फिर अपनी पुरानी नौकरी को छोड़कर नयी नौकरी ज्वाइन की. उन्होंने समय के साथ कई नौकरियां बदली. साल 1990 में उन्होंने ABB कंपनी में बतौर वाईस प्रेसिडेंट काम किया.
साल 1994 तक उन्हें कई कंपनियों ने अपने साथ काम करने के ऑफर दिए. इसी साल पेप्सिको कंपनी के तत्कालीन सीईओ ने उन्हें अपनी कंपनी में आने का न्यौता दिया.
इस ऑफर को वह मन नहीं कर पायीं. उन्होंने पेसिको में सीनियर वाईस प्रेसिडेंट का पद संभाला. साल 2001 आते-आते उन्हें सीएफओ और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में भी शामिल कर लिया गया.
इंदिरा ने एक जगह यह बताया था कि जब वह इस खुश खबरी को अपनी माँ को सुनाने गईं. वह अपनी से कहती हैं कि मेरे पास बहुत बड़ी खुश खबरी है. उनकी माँ बदले में कहती हैं कि पहले जाओ, कल के लिए दूध ले आओ.
साल 2006 में वह पेप्सिको कंपनी की सीईओ बन गयीं. भारतीय मूल की इंदिरा नूई 12 सालों से पेप्सिको की प्रमुख थीं. इंदिरा नूई व्यापार जगत में शीर्ष पर पहुंचने वाली चुनिंदा महिलाओं में शामिल हैं.
वह 24 सालों से पेप्सी के साथ जुड़ी हुईं थीं. साल 2006 में इंदिरा नूई के कमान संभालने के बाद से पेप्सिको के शेयर में 78 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हो चुका है. साल 2007 में उन्हें भारत का प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान भी दिया गया.
आज इंदिरा का नाम पूरा विश्व जानता है. उन्होंने बेशक समाज में खुद को इस दर्जे पर पहुंचाकर साबित किया कि स्त्रियां किसी से कम नहीं होती हैं. वह दो बेटियों की माँ भी हैं, जिसने अपने घर परिवार के साथ अपना करियर भी हमेशा संतुलित रखा.
Web Title: Indira Nooyi: From Receptionist To Pepsico's CEO, Hindi Article
Feature Image Credit: dna