हाल फिलहाल कंडोम के प्रचार को लेकर खूब हो हल्ला मचा. वैसे कंडोम को लेकर विवाद का जन्म लेना कोई नई बात नहीं है. सालों से यह बदस्तूर जारी है.
न सिर्फ भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी इसको लेकर हंगामा बरपता रहा है.
गजब की बात तो यह है कि कंडोम को लेकर ढ़ेरों कहानियां प्रचलित हैं. इनकी खासियत यह है कि सारी की सारी रोचक और दिलचस्प हैं. अब चूंकि, हंगामा बरपा ही है तो आईये कंडोम के अब तक के सफरनामे पर नज़र डालने की कोशिश करते हैं–
गेब्रियल ने दिया पहला नमूना
कंडोम के बारे में चर्चा के दौरान अक्सर सवाल उठ ही जाता है कि यह आया कहां से?
इसे बनाने वाला महान आदमी कौन रहा होगा और उसके दिमाग में इसको बनाने का आइडिया कहां से आया होगा!
अमूमन लोग अंदाजा लगाते हैं कि इसे किसी डॉक्टर या बायोलॉजी से संबंध रखने वाले व्यक्ति ने बनाया होगा, किन्तु आपको जानकर हैरानी होगी कि इसको इटली में रहने वाले भौतिक विज्ञान के एक प्रोफेसर ने बनाया था.
डॉ. गेब्रियल फेलोपियस नाम के प्रोफेसर ने जब 1564 में इसको बनाकर दुनिया के सामने पेश किया तो उनका लोगों ने जमकर उपहास उड़ाया. यहां तक कि उन्हें बेवकूफ तक कहके संबोधित किया. गेब्रियल ने अपने कंडोम में लिनेन की परत का इस्तेमाल किया था, जोकि सोखने की क्षमता रखता था.
गेब्रियल की यह खोज सुरक्षित सेक्स को बढ़ावा देती थी, लेकिन लोग इसे मानने के लिए तैयार नहीं थे.
खैर, सफर आगे बढ़ा तो 1600 में पहली बार कंडोम का आकार सबने देखा. इसे जानवरों की खाल से बनाया गया था. लेकिन इसकी कीमत इतनी ज़्यादा थी कि आम लोग के खरीदने के बस की बात नहीं थी.
Fallopius Gabriel copy (Pic: AbeBooks)
विवाद से जुड़ा नाता, लेकिन…
इसे पहला कंडोम विवाद कहा जा सकता है क्योंकि कंडोम का आने के बाद वर्ष 1605 में कैथोलिक पादरी लियोनार्डस लेसिअस ने कंडोम के इस्तेमाल को धर्म के खिलाफ बताया.
हालांकि, उस वक्त कैथोलिक चर्चों ने उनकी बात को ज्यादा भाव नहीं दिया और बात धीरे-धीरे छुप गई.
बाद में 1839 के आसपास चार्ल्स गुडवियर ने रबर का कंडोम बनाकर सबको चौका दिया. खास बात तो यह थी कि इसकी कीमत गेब्रियल के कंडोम से बहुत कम थी. इसी कड़ी में फ्रेडरिक कीलियन ने 1919 में कंडोम का एक नया प्रारुप दुनिया के सामने पेश कर दिया.
कहते हैं कि कीलियन के इस प्रारुप को लोगों ने स्वीकार करना शुरु कर दिया. इसके पीछे बड़ा कारण यह माना जाता है कि यहां तक आते-आते लोग शिक्षित होने लगे थे. वहीं जब 1931 में यह अमेरिकी आर्मी में फ्री में बांटे गए, तो इसके प्रचलन को एक नई तेजी मिल गई.
यहीं नहीं रुका सिलसिला
कंडोम के बढ़ते प्रचलन को देखते कई कंपनियों ने इसका निर्माण शुरु कर दिया. इसी कड़ी में 1957 में ड्यूरेक्स नाम की कंपनी ने दुनिया का पहला लुबरिकेटेड कंडोम बाजार में उतार दिया. शुरुआत धीमी रही लेकिन कंडोम परिवर्तित स्वरुपों के साथ-साथ आगे बढ़ता रहा.
इसी बीच कंडोम की लोकप्रियता कुछ कम होती देख गई… तभी 1980 में जब एड्स नाम की बीमारी सबके सामने आई और इससे बचने का उत्तम उपाय कंडोम सुझाया गया, तो सारे विवाद सुलझने लगे. बस फिर क्या था, कंडोम की प्रासंगिकता बढ़ गई.
आम लोगों को इसके प्रयोग के लिए जागरुक किया जाने लगा. तब से लेकर अब तक इसका सफर जारी है. आज आलम यह है कि बाजार में अलग-अलग नामों से ढ़ेर सारी कंपनियां मौजूद है, जो भिन्न-भिन्न प्रकार के कंडोम बनाती हैं, जिन्हें आपने टीवी से लेकर विज्ञापन के हर माध्यम में देखा होगा.
यहां तक कि महिलाओं तक के लिए बाजार में कंडोम मौजूद है, जिसकी जानकारी कम लोगों को है.
Durex Condom(Pic: Fortune)
भारत में आगमन हुआ तो…
भारत इतिहास काल से ही भले ही व्यापार का केंद्र रहा, लेकिन तथ्यों की मानें तो भारत में कंडोम को एंट्री लेने मे काफी वक्त लगा. माना जाता है कि 1963 में पहली बार भारत कंडोम पहुंचा. इसका नाम ‘कामराज‘ था. चूंकि, इसका नाम उस समय के सत्ताधारी दल कांग्रेस के अध्यक्ष के कामराज से मिलता-जुलता था, इसलिए यह शुरुआत में ही बुरी तरह से विवादों में घिर गया.
मामला तूल पकड़ते दिखा तो इसका नाम बदलकर निरोध रख दिया गया.
बाद में 1966 के आसपास जापान की ओकामोतो इंडस्ट्रीज के सहयोग से हिंदुस्तान लेटेक्स की स्थापना हुई थी. इसका पहला प्लांट 5 अप्रैल 1969 को केरल के पेरूरकडा में लगाया. यहीं ‘निरोध’ बनाने शूरू कर दिए गए. सिलसिला आगे बढ़ा तो कंडोम के कुछ और प्रारुपों से भारत के लोग रु-ब-रू हुए.
इसमें ‘मिथुन’ एक खास नाम था. यह पान-दुकानों समेत मेडिकल स्टोरों पर आसानी से देखा जाने लगा.
1963 का दौर रहा होगा, जब परिवार नियोजन अभियान को लेकर पुरजोर अभियान चलाए गए. इसकी परिणाम यह हुआ कि कंडोम को भारत में नया स्थान मिलने लगा. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ‘परिवार नियोजन’ के नाम पर कंडोम कंपनियों ने तेजी से भारत में अपने पांव पसार लिए.
केवल हिंदुस्तान लेटेक्स की बात करें तो भारत में यह कंपनी 8500 करोड़ रूपए की वार्षिक कमाई कर रही है.
विवाद और ‘बैन’ की गुत्थी
1957 में जब कंडोम कंपनी ड्यूरेक्स ने पहली बार अपना कंडोम मार्केट में उतारा तो उसे खासा विरोध झेलना पड़ा. यहां तक कि अमेरिका को उसके विज्ञापन पर बैन तक लगाना पड़ा था. हालांकि, 1979 में उसने विज्ञापन पर लगी रोक को हटा दिया गया था, और इसके सपोर्ट में कानून भी पास कर दिया था.
भारत में भी कंडोम के विज्ञापन को लेकर ऐसे विवाद समय-समय पर होते रहे. उदाहरण के लिए हाल ही का उदाहरण ले लीजिए. कुछ दिनों पहले जेएनयू हॉस्टल के डस्टबिन में तीन हजार कंडोम पाए गए, तो एक नए विवाद ने जन्म ले लिया था.
वहीं हाल ही में सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने कंडोम विज्ञापन रात से पहले न चलाने को लेकर निर्देश जारी करके एक नई बहस को जन्म दे दिया. एक बड़ा वर्ग जहां, इस फैसले को सराहनीय मानता है, वहीं कुछ लोग इसे ठीक नहीं मानते. इसके लिए उनके अपने-अपने तर्क हैं.
इसके सबसे साथ हमने भारत में कंडोम बांटने से लेकर कंडोम की एटीएम मशीन लगाने तक का दौर देख लिया है. अब कंडोम के आगे की यात्रा कैसी होगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा.
Happy Indian Couple (Pic: trulymadly )
फिलहाल लोग बाजार में मौजूद कंडोम के भिन्न-भिन्न स्वरुपों का उपयोग करके ‘हेल्दी सेक्स लाइफ’ का लुत्फ ले रहे हैं, जोकि एक हद तक सही भी है.
क्या कहते हो आप कंडोम की इस अनोखी यात्रा पर?
Web Title: Interesting Facts and History of Condoms, Hindi Article
Featured Image Credit: thedailydot