आजकल उत्तर कोरिया बहुत चर्चा में है!
कारण है उनके नेता किम जोंग की हाल ही में अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ ऐतिहासिक मुलाकात.
खैर, आज बात उत्तर कोरिया के राजनीतिक परिद्रश्य पर नहीं, बल्कि वहां की धर्म की स्थिति पर.
तो आईए जानते हैं कि वहां में लोगों को अपना धर्म मानने की कितनी आजादी है-
चौथी शताब्दी से ही फले-फूले धर्म
चौथी शताब्दी की शुरुआत में कोरिया में लोग शमन नाम का धर्म मानते थे. आगे जब धीरे-धीरे यहाँ के लोगों ने व्यापार और शेष दुनिया से संपर्क बढ़ाए तो चीन की तरफ से बुद्ध और कनफूसिअस धर्म ने कोरिया में प्रवेश किया.
आगे नौवीं और दसवीं शताब्दी में बुद्ध धर्म कोरिया का प्रमुख धर्म रहा.
इसी क्रम में चौदहवीं शताब्दी में कोरिया में सत्ता परिवर्तन हुआ और बुद्ध धर्म की जगह कनफुसिअसवाद ने ले ली. इस समय बुद्ध और शमन धर्म मानने वालों पर बहुत अत्याचार हुआ.
कोरिया में ईसाइयत का प्रवेश सत्रहवीं शताब्दी में हुआ और अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक, इसका प्रभाव क्षेत्र बहुत घट भी गया. हुआ यह कि ईसाईयों के कोरिया में आते ही उन पर भीषण अत्याचार हुए.
आगे 1876 में कोरिया खुला और कट्टर शासकों की जगह, यहाँ उदारवादी शासक गद्दी पर बैठे.
इस समय कोरिया में सभी धर्मों को बराबर फलने फूलने का मौका मिला, लेकिन जल्द ही 1910 में जापान ने कोरिया पर कब्जा कर लिया. कब्जे के साथ ही जापान ने अपना राजकीय धर्म 'शिन्तो' कोरिया के ऊपर थोप दिया. आगे द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई. इस तरह कोरिया को स्वतंत्रता मिली. वह दो हिस्सों में बंट गया-उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया.
यह दौर शीत युद्ध का दौर था. इसमें एक तरफ कम्युनिस्ट सोवियत संघ था और दूसरी तरफ पूंजीवादी अमेरिका. उत्तर कोरिया सोवियत संघ की तरफ गया और दक्षिण कोरिया अमेरिका की तरफ.
उत्तर कोरिया बना कम्युनिस्ट, तो...
इस तरह उत्तर कोरिया में कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना हुई, जिसके बाद किसी भी प्रकार का कोई राजकीय धर्म नहीं थोपा गया. असल में कम्युनिज्म अर्थात् साम्यवाद के सबसे बड़े शिक्षक कार्ल मार्क्स ने धर्म को जनता के लिए अफीम बताया. उन्होंने बताया कि धर्म के नाम पर सदियों तक लालची और क्रूर शासकों ने आम जनता को लूटा है.
उत्तर कोरिया की सरकार ने इसी सिद्धांत का पालन किया.
हालाँकि, उसने संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का प्रावधान बनाए रखा. 1949 में लागू हुए देश के संविधान में साफ़ लिखा था कि प्रत्येक नागरिक को अपना धर्म मानने की पूर्ण स्वतंत्रता है. 1972 में इसमें एक संशोधन हुआ. इस संशोधन के अनुसार न केवल नागरिकों को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता दी गई, बल्कि उन्हें धर्म का विरोध करने की भी छूट दी गई.
वहीँ आगे 1992 में फिर से एक संशोधन हुआ. इस संशोधन के अनुसार नागरिकों को धार्मिक इमारतें कड़ी करने और सार्वजनिक जगहों पर पूजा- अर्चना करने का भी पूरा अधिकार दिया गया.
हालाँकि, आज उत्तर कोरिया में दो तिहाई से अधिक जनसँख्या नास्तिक है.
इसका कारण यह बताया जाता है कि उत्तर कोरिया की सरकार ने लगातार यहाँ पर नास्तिकता को प्रोत्साहन दिया है. इसके साथ ही सरकार ने जूशे नाम की विचारधारा को भी बहुत प्रोत्साहन दिया.
जूशे विचारधारा और धर्म
जूशे विचारधारा इस सिद्धांत का प्रतिपादन करती है कि इस ब्रह्मांड में किसी भी प्रकार की कोई आध्यात्मिक शक्ति मौजूद नहीं है. ऐसे में मनुष्य को किसी भी आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास करने के बजाए.
वह खुद पर और अपने साथियों पर विश्वास करना चाहिए.
वैसे कई लोगों का ये भी कहना है कि जूशे विचारधारा का इस्तेमाल कोरिया के तानाशाह शासक जनता को अपना गुलाम बनाने के लिए करते हैं. यह एक विचारधारा से अधिक धर्म है. ऐसा धर्म जिसमें कोरिया के तानाशाह जनता के लिए भगवान हो जाते हैं, जनता को उनकी हर बात माननी पड़ती है और उनकी पूजा करनी पड़ती है.
इसी आधार पर यह भी कहा जाता है कि उत्तर कोरियाई सरकार नास्तिकता और जूशे से इतर धर्म मानने वालों को भीषण यातनाएं देती हैं. हालाँकि, इन रिपोर्ट्स में कितनी सच्चाई है, वो अलग बहस का हिस्सा है.
कुछ ऐसी है वर्तमान में स्थिति...
जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि शमन धर्म कोरिया का सबसे पुराना धर्म है. इसमें कई पुजारी होते हैं, जो मनुष्य और भगवान के बीच मध्यस्त का काम करते हैं. जब भी किसी को कोई परेशानी होती है, तो वह पुजारी के पास जाता है.
इसके बाद पुजारी कई तरह के अनुष्ठान करता है. साथ ही उम्मीद करता है कि पीड़ित मनुष्य को उसकी पीड़ा से छुटकारा मिलेगा. कोरिया के विभाजन के समय इस धर्म को मानने वाली जनसँख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा दक्षिण कोरिया चला गया.
कहा जाता है कि आज उत्तर कोरिया में कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत भाग शमन धर्म मानने वाला है.
कोरिया में चोंडोवाद का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के पास हुआ.
यह धर्म पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति के खिलाफ एक आन्दोलन के रूप में प्रकाश में आया. इस धर्म की विशेषता यह है कि इसमें शमन और कनफुसिअस दोनों धर्मों के सिद्धांत मिश्रित हैं.
इस धर्म के प्रमुख सिद्धांत आत्म संवृद्धि, सामाजिक कल्याण और पुनर्जन्म का निषेध है. अनुमान लगाया जाता है कि उत्तर कोरिया की कुल जनसँख्या का 13 प्रतिशत हिस्सा, इस धर्म को मानने वाली है. सरकार इस धर्म को संरक्षण देती है.
सरकार की निगरानी में है बुद्ध धर्म
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि बुद्ध धर्म कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म था. बीच में इसे सदियों तक दबाया गया.
बीसवीं शताब्दी में उदारवादियों के आने से इसका विकास एक बार फिर से शुरू हुआ, लेकिन कोरिया के विभाजन के बाद बहुत से बौद्ध दक्षिण कोरिया चले गए. आगे उत्तर कोरियाई सरकार ने बुद्ध धरम को सीधे अपने नियंत्रण में कर लिया.
वर्तमान में उत्तर कोरियाई सरकार ही बुद्ध धर्म की प्रतिनिधि बनकर अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक सभाओं में शामिल होती है. यहाँ के बौद्ध साधुओं पर सरकार की कड़ी नज़र रहती है और उनके जीवन-यापन के लिए सरकार ही पैसे देती है.
आज उत्तर कोरिया में 60 बौद्ध मंदिर हैं. इसके साथ ही यहाँ पर एक बौद्ध अध्यन केंद्र भी है.
एक अनुमान के मुताबिक यहाँ की 5 प्रतिशत जनसँख्या बौद्ध धर्म मानने वाली है.
ईसाईयत और इस्लाम की हालत
ईसाई मिशनरियों ने जापान के खिलाफ कोरिया की आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई.
इसका परिणाम यह हुआ कि इस समय यहाँ ईसाइयत का बहुत प्रसार हुआ, लेकिन उत्तर कोरिया के कम्युनिस्ट राज्य बनते ही ज्यदातर ईसाई दक्षिण कोरिया चले गए.
आज यहां न के बराबर ईसाई हैं.
हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में उत्तर कोरिया की राजधानी में पांच नई चर्च बनी हैं.
इस्लाम के नाम पर यहाँ केवल एक मस्जिद है. वो भी ईरानी दूतावास में स्थित है. इसके अलावा यहाँ और कोई धर्म नहीं है.
तो ये थी उत्तर कोरिया में उपस्थित धर्मो के बारे में जानकारी.
इससे जुड़ी अगर आपके पास कोई और जानकारी है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Is It Criminal Offence To Be Religious In North Korea, Hindi Article
Feature Image Credit: newbranch.