हाल ही में 'थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन' नाम की एक रिपोर्ट आई. इसके तहत हमारा 'इनक्रेडिबल इंडिया' महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश है. यह रिपोर्ट लंदन की एजेंसी द्वारा जारी की गयी है.
रिपोर्ट आने के साथ ही देश में अलग-अलग तरह से बहस छिड़ गयी है. कोई इस रिपोर्ट के अस्तित्व को ही एक सिरे से खारिज कर रहा है. तो कोई इस पर गहन विचार के परामर्श दे रहा है.
इस रिपोर्ट की प्रक्रिया को भी काफी हद तक भेदभाव पूर्ण माना जा रहा है. बहरहाल, भले ही हमारा देश इस मामले में अव्वल स्थान पर न आए, पर इस बात से भी इनकार नहींं किया जा सकता कि उनकी हालत बहुत अच्छी है.
लिहाज़ा, इस मामले की गंभीरता को तथ्यों के सहारे जानना सामयिक रहेगा-
क्या कहती है NCRB की रिपोर्ट?
हमारा समाज भी अजीब है, क्योंकि जहां एक ओर वो महिला-पुरुष के समान होने की बात करता है. वहीं दूसरी ओर उनके मान से लेकर हक तक को छिनने से नहींं कतराता. NCRB (National Crime Record Bureau) की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगातार महिलाओं के साथ जुर्म की घटनाएं बढ़ी हैं. रिपोर्ट की माने तो, साल 2015 में जो संख्या तीन लाख 29 हज़ार के आसपास थी, वह 2016 में बढ़कर लगभग 3 लाख 38 हज़ार के पास पहुँच गयी.
बात तब और अखरती है, ज्ञात होता है जब विकासशील भारत की राजधानी भी इस मामले में पीछे नहींं है. दरअसल, यही रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में महिलाएं भारत के 19 बड़े शहरों की तुलना में ज्यादा असुरक्षित हैं.
राजधानी में अपहरण, बलात्कार और हत्या के मामले बाकी मेट्रो शहरों की तुलना में सबसे अधिक है. साथ ही, आकडो़ं के मुताबिक बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए.
उपरोक्त लिखे आकड़ों से मत चौंकिए, क्योंकि इस मामले की गंभीरता तब और भी बढ़ जाती है, जब हम लाइवमिंट की एक रिपोर्ट पर नज़र दौडाते हैं. दरअसल, इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 99 प्रतिशत ऐसे मामले हैं जो कभी दर्ज ही नहींं हो पाते. जी बिलकुल! 99 प्रतिशत.
महिलाओं के साथ हो रहे शोषण और जुर्म में कमी आने के बजाय यह साल दर साल बढ़ ही रहा है. विषय तुलना करने या ना करने का नहींं है. फिर भी हाल ही में आई, लंदन की एक एजेंसी की रिपोर्ट ने एक बार फिर इस मुद्दे को गरमा दिया है.
शीर्ष नेताओं समेत कई बुद्धिजीवियों ने इसकी प्रमाणिकता पर प्रश्न उठाए हैं. उनका तर्क यह है कि जरुर ही, इस मामले में भारत की दशा कुछ अच्छी नहींं. किन्तु, स्तिथि ऐसी भी नहींं कि यह विश्व के सबसे पहले स्थान पर महिलाओं के लिए असुरक्षित देश है!
एक नज़र एजेंसी की रिपोर्ट पर!
भारत सरकार ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की रिपोर्ट खारिज की! लंदन की इस एजेंसी 'थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन' के मुताबिक़, भारत को दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताया गया है. महिलाओं के लिए असुरक्षित देशों की लिस्ट में भारत के बाद, अफग़ानिस्तान, पाकिस्तान और सोमालिया का नाम है.
इस लिस्ट में भारत का नाम अफग़ानिस्तान और सीरिया जैसे देशों से भी ऊपर है, जिसकी वजह से इस बात को गले से उतारना थोड़ा मुश्किल लगता है. जहां एक ओर सरकार ने इस रिपोर्ट को नकार दिया है और इसमें किये जाने वाले सर्वे की प्रक्रिया को ही सवालिया निशान के घेरे में खड़ा कर दिया है.
वहीं दूसरी ओर, शशि थरूर जैसे नेता ने भी इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि, इस बात में कोई दोराय नहींं कि महिलाओं के साथ जुर्म की घटनाएँ बढ़ी है, जो कि बहुत निंदनीय है. बावजूद इसके भारत का हाल सीरिया, पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान से लाख गुना बेहतर है. क्योंकि, यहाँ उन्हें इन देशों या किसी भी अरब देश के मुकाबले ज्यादा अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त है.
ऐसे में, हमारा लिस्ट में शीर्ष स्थान पर होना संभव नहींं. इन सबके अलावा, इस सर्वे में सिर्फ 548 लोगों से सवाल जवाब किए गए. इसमें से इन लोगों से या फिर फोन पर या आमने-सामने पूछे गए सवालों और उनके उत्तर के आधार पर रिपोर्ट बनाई गयी.
आपको बता दें, ये 548 लोग संयुक्त राष्ट्र के सदस्य 193 देशों से थे. इस सर्वे में ह्यूमन ट्रैफिकिंग, सेक्स स्लेवरी और घरेलू कामकाज के आधार पर रिपोर्ट बनायीं गयी है. लिहाज़ा, इतनी छोटी सैंपलिंग को भी इसके सही न होने की वजह माना जा रहा है. इसी क्रम में, संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट भी कुछ अलग तस्वीर पेश करती है.
अगर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की माने तो...
भले ही, थॉमसन रॉयटर्स की रिपोर्ट में, भारत को पहले पायदान पर रखा गया है. जहां हमारी हालत को कोंगो, सीरिया और अफग़ानिस्तान जैसे देशों से भी बुरा माना गया है. किन्तु, इस बात को मानना इसलिए भी भारी पड़ रहा है, क्योंकि, साल 2015 में संयुक्त राज्य की एक रिपोर्ट आई थी. इसमें भारत कई देशों से इस मामले में पीछे था. दरअसल, इस रिपोर्ट में, इस बात के आधार पर सर्वे किया गया था कि 15 से 49 की उम्र के बीच की महिलाएं जो कि यौन हिंसा का शिकार हुई हो.
जिस में भारत में दस प्रतिशत था, जबकि कई देशों का तो हाल ऐसा था कि वहां ये आकड़ा बीस से तीस प्रतिशत तक था. साथ ही, WHO की भी एक रिपोर्ट में भारत का नाम दूर-दूर तक नहींं था. इस लिस्ट में शीर्ष 29 देशों में भारत का नाम नहींं था.
ऐसे में, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की एडिटर-इन-चीफ बेलिंडा से इस बारे में पूछा गया. उन्होंने बताया कि सर्वे लोगों के किसी देश के बारे में विचार के आधार पर बनाया गया है. साथ ही, इसमें WHO और UN की कुछ रिपोर्ट्स भी ली गयी हैं. लेकिन, उपरोक्त रिपोर्ट तो कुछ और ही कहती है. बहरहाल, इस रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर प्रश्न उठ रहे हैं, जो की लाज़मी भी हैं.
भले ही, हम कुछ तथ्यों या आकड़ो के आधार पर ये कह रहे हैं कि भारत शीर्ष स्थान पर नहींं हो सकता.
किन्तु, इस NCRB के डेटा को नज़रंदाज़ करना भी बहुत बड़ी बेवकूफी होगी. हमे ये नहींं भूलना चाहिए, महिलाओं को देवी का दर्ज़ा देने वाले भारत में 99 प्रतिशत मामले कभी दर्ज ही नहींं हो पाते.
ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि आखिर, हम अपने देश कजी महिलाओं को सुरक्षा देने में कहा चूक रहे हैं?
Web Title: Is Plight of Indian Women Worse Than Syria and Pakistan?, Hindi article
Feature Image Credit: dawn