“भारतीय आईटी कंपनी को स्किल की जरूरत है, डिग्री धारक इंजीनियर की नहीं.”
जी हां! ये कहना है भारत की अग्रणी आईटी कंपनी टेक महिंद्रा के सीईओ का.
उन्होंने हाल ही में कहा है कि भारत के 94 प्रतिशत आईटी ग्रेजुएट आईटी कंपनियों में नौकरी करने के योग्य नहीं हैं.
ऐसे में ये सवाल खड़ा होना लाजमी है कि कमी कहां है?
क्या भारत के आईटी संस्थानों से निकलने वाले इंजीनियर कुशल नहीं होते या उन्हें उस तरह की योग्य शिक्षा से ही वंचित रखा जाता है?
बहरहाल, ये पहली बार नहीं है जब किसी कंपनी ने भारत की इंजीनियरिंग प्रतिभा पर सवाल उठाए हैं. इससे पहले भी कई बार रिपोर्ट ये बताती रही हैं कि भारत का इंजीनियर बेरोजगार है और उसमें बड़ी आईटी कंपनियों में नौकरी के लिए कुशल योग्यता नहीं है.
आज हम इस लेख में इसी बारे में बात करेंगे –
एक इंजीनियर से क्या चाहती हैं आईटी कंपनियां
आईटी कंपनियों को बढ़ती वैश्विक जरूरत के हिसाब से योग्य और उच्च स्तर के कौशल प्राप्त आईटी इंजीनियर चाहिए, डिग्री धारक कॉलेज से पास आउट नहीं.
जैसा कि देश की 5वीं सबसे बड़ी सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनी टेक महिंद्रा के सीईओ चंद्र प्रकाश गुरनानी कहते हैं कि दिल्ली में यही हालात हैं. एक 60 प्रतिशत अंक लाने वाला एक छात्र जो बीए इंग्लिश पढ़ना चाहता है, वह इसमें एडमिशन नहीं ले सकता, जबकि उसे इंजीनियरिंग में आसानी से दाखिला मिल जाएगा.
और जब कुकुरमुत्ते की तरह से खुले किसी इंजीनियरिंग संस्थान से वो पास होकर श्रम बाजार में आएगा, तो उसके पास डिग्री तो होगी, लेकिन नौकरी करने के लिए आवश्यक कौशल नहीं होगा.
गुरनानी की चिंता जायज है, भारत की आईटी कंपनियां अभी वैश्विक आईटी प्रतिस्पर्धा के मुकाबले नहीं हैं. एक ओर जहां चीनी कंपनियों ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में महारत हासिल की है, वहीं भारत की कंपनियां उससे अभी बहुत दूर हैं.
नौकरी के लिए ज्ञान है पहली प्राथमिकता
इससे पहले सन 2017 में इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी और मानव संसाधन प्रमुख टी. वी. मोहनदास पई कह चुके हैं कि “भविष्य में आने वाली अच्छी नौकरी के लिए सिर्फ बीटेक की डिग्री ही काफी नहीं होगी. उन्हें इसके लिए एमटेक की डिग्री और विशेषज्ञता की भी जरूरत होगी.”
पई का कहना था कि कॉलेज के छात्र विशेषज्ञता अर्जित करें और कोडिंग करना सीखें, क्योंकि भविष्य में कंपनियां कोडिंग ज्ञान के आधार पर ही छात्रों को नौकरियां देंगी.
भारतीय छात्रों को इंजीनियरिंग कॉलेजों से डिग्री तो बांट दी जाती है, लेकिन जो व्यवहारिक ज्ञान उन्हें उसी पढ़ाई के दौरान मिल जाना चाहिए था, उसके लिए वो नौकरी के बाद कंपनियों में ढूंढने का प्रयास करते हैं. कि उन्हें किसी कंपनी में बतौर इंटर्नशिप काम करने को मिल जाएगा और वो छह महीने के इस प्रशिक्षण काल में उच्च कौशल का विकास कर लेंगे.
इस बारे में पई का कहना था कि कंपनियां छात्रों को प्रशिक्षण और पैसा देकर अपना समय क्यों नष्ट करेंगी?
जॉब कौशल क्रेडेंशियल कंपनी एस्पायरिंग माइंड्स का कहना है कि 95 प्रतिशत भारतीय इंजीनियर सॉफ्टवेयर डिवेलपमैंट की नौकरी करने के योग्य ही नहीं हैं.
ऑटोमेशन में सॉफ्टवेयर डिवेलपमैंट कौशल पर आधारित इनकी एक रिपोर्ट कहती है कि केवल 1.4 प्रतिशत ग्रेजुएट इंजीनियर कार्यात्मक रूप से सही कोड लिख सकते हैं. वहीं, केवल 4.77 प्रतिशत ग्रेजुएट इंजीनियर किसी कंप्यूटर प्रोग्राम के लिए सही लॉजिक लिख सकते हैं.
टॉप आईटी कंपनियों में मात्र 6 प्रतिशत इंजीनियर
एक शोध के अनुसार, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया रोबोटिक्स इलेक्ट्रॉनिक्स में अपनी मौजूदा प्रौद्योगिकी की ताकत को बढ़ाकर इंटेल और एनवीडिया जैसी कंपनियों को कड़ी प्रतिस्पर्धा दे रही हैं.
एशियाई उद्यम एआई प्रौद्योगिकी को उद्योग, उत्पाद, बाजार, अकादमिक और आर्थिक आयामों में पूरी तरह से महत्वपूर्ण मानते हैं. वहीं, चीन की एआई रिसर्च के क्षेत्र में तरक्की ने अमेरिका की नींद हराम कर दी है.
चीन की बड़ी आईटी कंपनियों जैसे अलीबाबा, बायडू और टेनसेंट ने अमेरिकी गूगल की तरह से अपनी खुद की सेल्फ ड्राइविंग कार तकनीक विकसित की है.
ऐसे में भारत के लिए भी ये महत्वपूर्ण हो जात है कि वह भी अपनी कंपनियों के जरिए एआई के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रिसर्च करे और बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सहभागी बने.
गुरनानी का कहना था कि भारतीय आईटी कंपनियां कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन, साइबर सुरक्षा, मशीन लर्निंग जैसी नई तकनीकों में प्रवेश करना तो चाहती हैं, लेकिन ये उनके लिए एक बड़ी चुनौती है.
और ऐसे में जब कंपनियां इसके लिए आईटी ग्रेजुएट्स को हायर करने का प्रयास करती हैं, तो लगभग 94 प्रतिशत छात्र इस योग्य नहीं मिलते. और इस कुशलता के अभाव में 10 अग्रणी आईटी कंपनियां केवल 6 प्रतिशत इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स को ही नौकरी दे पाती हैं.
और यही वो समय होता है, जब कंपनियों को उच्च स्तर के कुशल आईटी ग्रेजुएट्स की आवश्यकता होती है.
तो क्या संस्थान सिर्फ बेरोजगार इंजीनियर बना रहे हैं!
चंद्र प्रकाश गुरनानी जोर देकर कहते हैं कि क्या भारतीय संस्थान बेरोजगार लोग पैदा नहीं कर रहे हैं?
एस्पायर माइंड्स की 2016 की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में लगभग 80 प्रतिशत इंजीनियरिंग ग्रेजुएट बेरोजगार है.
इसमें से ज्यादातर मजबूरी में अपने क्षेत्र से इतर गैर इंजीनियरिंग पेशे में चले जाते हैं. और बाकी बेरोजगार रह जाते हैं.
इसके दो कारण माने जा सकते हैं, पहला तो, जगह-जगह इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ सी आ गई है. इससे न तो छात्रों को जरूरी कौशल मिल पा रहा है और न हीं वह भविष्य की नौकरियों के लिए योग्य हो पा रहे हैं.
हां, ऐसे कॉलेजों से पढ़ने के बाद उनके पास इंजीनियरिंग की एक डिग्री जरूर हो जाएगी, लेकिन ये आपकी योग्यता को सुनिश्चित नहीं करती.
दूसरा कारण है, कि कॉलेजों का जो सिलेबस और कोर्स है, वो इंडस्ट्री की आवश्यकता और भविष्य की नौकरियों को देखते हुए तय नहीं है. बदलते वैश्विक परिवेष में आईटी कंपनियों को अब क्लाउड एनालाइटिक्स, रोबोटिक्स, प्रौसेस ऑटोमेशन जैसे क्षेत्रों के लिए उच्च स्तर के कुशल लोगों की जरूरत है.
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, अगर आईआईटी और प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थानों को छोड़ दिया जाए, तो अन्य बचे इंजीनियरिंग संस्थान छात्रों को नौकरी पाने लायक शिक्षा देने के योग्य ही नहीं हैं.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, भारत में लगभग 6214 इंजीनियरिंग और तकनीकी संस्थान हैं, जिनमें लगभग 29 लाख छात्र हैं. इसमें से हर साल लगभग 15 लाख छात्र नौकरी के लिए श्रम बाजार में आते हैं.
लेकिन ज्यादातर के पास जरूरत के हिसाब से नौकरी पाने के लिए उच्च कौशल नहीं होते और वो बेरोजगार रह जाते हैं.
एआईसीटीई के मुताबिक, देश भर में तकनीकी संस्थानों से ग्रेजुएट होने वाले 8 लाख इंजीनियरों में से 60 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार रह जाते हैं.
Web Title: IT Graduates Are Not Fit For Hiring! Is India Producing Only Unemployable Engineers?, Hindi Article
Featured image credit: Quartz