'सिर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए, आजा प्यारे प्यास हमारे काहे घबराए' ‘प्यासा’ फिल्म का यह गाना सुनते ही हमारे आँखों के सामने हास्य कलाकार जॉनी वॉकर का चेहरा याद आने लगता है.
यह वही जॉनी वॉकर हैं, जो अपने एक्टिंग के दम पर अकेले ही फिल्मों को हिट कराने का माद्दा रखते थे. आज भी इनका नाम सुनते ही बॉलीवुड फैंस के अंदर गुदगुदी होने लगती है. इन्होंने अपने 35 साल के करियर में दर्शकों को खूब हंसाया. जॉनी ने लगभग 300 फिल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय का जलवा बिखेरा.
शुरूआती दौर में तो इनके बिना कोई भी फिल्म को कास्ट करना बड़ा मुश्किल माना जाता था, क्योंकि हर फाईनेंसर की चाहत जानी बन चुके थे. वहीं इनके दर्शकों की भी तादाद अनगिनत हो चुकी थी.
मगर, क्या आप जानते हैं एक वक़्त ऐसा भी था, जब जॉनी वॉकर घर वालों का पेट पालने के लिए दर दर की ठोकरें खाया करते थे. अगर नहीं तो आईए जानने की कोशिश करते हैं-
घर वालों का पेट पालने के लिए सब्जियां बेंची!
वॉकर का जन्म 11 नवंबर 1920 को मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में हुआ था. इनका वास्तविक नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था. ये एक गरीब परिवार से थे. इनके पिता मील में नौकरी करते थे.
पिता के सामने 15 सदस्यीय परिवार का पेट पालना बड़ा मुश्किल था.
फिर, अचानक वो मील भी बंद हो गई. इसके बाद इनका पूरा परिवार मुम्बई आ गया. इनके परिवार के किस्मत के सितारे गर्दिश में थे. जैसे तैसे पिता घर का खर्च चलाया करते थे. इन्होंने बाप का बोझ कम करने के लिए काम करने का फैसला किया. बदरू इधर-उधर कभी फल, सब्जियां, जैसे अन्य सामान बेचने लगे.
कुछ दिनों बाद पिता ने बढ़ती उम्र में रिटायर ले लिया. ऐसे में परिवार की ज़िम्म्मेदारी इनके कंधों पर आ गई. उस दौरान उन्होंने कई नौकरियां की, मगर घर वालों का खर्चा बड़ा मुश्किल से पूरा हो पाता था.
खैर, पिता के एक दोस्त की मदद से बॉम्बे इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट बस में कंडक्टर की नौकरी मिल गई.
कंडक्टर की नौकरी मिली, तो बदला जीवन का लक्ष्य!
कंडक्टर की नौकरी से परिवार की आर्थिक स्थिति थोड़ा सा बेहतर हुई. इसी कड़ी में दिलचस्प बात यह थी कि, यह नौकरी बदरू के अंदर छिपे कलाकार को बाहर निकालने में मुफीद साबित हुई. ये बचपन से ही दूसरों की नकल करने में माहिर थे. अपनी वास्तविक आवाज़ से अलग-अलग आवाज़ों से मिमिक्री करके लोगों को हंसाया करते थे.
जब इन्होंने कंडक्टर की नौकरी की तो अपने उसी कलाकारी को बाहर निकाला. जब भी कोई बस स्टॉप आता तो ये अपने निराले अंदाज से यात्रियों से उतरने का निवेदन करते थे.
आगे, इन्होंने लोगों को अपनी बचपन वाली मिमक्री से दोबारा गुदगुदाने पर मजबूर कर दिया.
इसके बाद इनको भी अपनी अदाकारी फिल्मों में दिखाने का भूत सवार हो गया. ये पार्ट टाइम में शूटिंग की जगह छोटे मोटे काम करने लगे. इस दौरान जब भी इनको टाइम मिलता ये सेट पर दूसरों को हंसाते रहते. धीरे-धीरे ये बड़े-बड़े एक्टरों तक पहुँचने में कामयाब रहे. ये उनको भी अपनी मिमिक्री से लोटपोट करने पर मजबूर कर देते थे.
परन्तु, अफ़सोस! इनके अभिनय की कद्र अभी तक किसी ने नहीं किया था. ये सिर्फ लोगों के लिए एक अच्छे टाइम पास ही बने रहे. जानी ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार फिल्मों में जगह बनाने के लिए कोशिशें जारी रखी.
आगे, इन्हें फिल्मों की भीड़ का हिस्सा बनने का मौक़ा मिल गया. इसके लिए इनको मात्र 5 रूपये मिलते थे. फिर इनको किसी तरह फिल्म ‘आखिरी पैमाने’ में एक छोटा सा किरदार मिला. इस रोल के लिए इनको 80 रूपये मिले थे.
जो इनकी कंडेक्टर की नौकरी के 26 रूपये माह से कहीं ज्यादा थे.
बलराज साहनी से हुई मुलाकात ने बनाया जॉनी वॉकर!
बदरू को अभी तक कोई बड़ा मौक़ा हाथ नहीं लगा था. वो मौके की तलाश में थे. एक दिन सेट पर ये अपनी मिमिक्री से लोगों का मनोरंजन कर रहे थे. तभी उस वक़्त के मशहूर अभिनेता बलराज साहनी की नज़र इन पर पड़ी. इन्होंने बदरू के अंदर छिपे कलाकार को पहचाना. फिर उनसे मुलाकात किया और उनको फिल्मों में ब्रेक दिलाने का वादा किया.
आगे, बदरू कंडक्टर की नौकरी करते समय भूले-भटके बलराज से टकरा ही जाते थे. तब वो उनके वादों की याद उन्हें दिलाया करते. ऐसे में बलराज भी बदरू को भरोसा दिलाते कि, मैं तुम्हारे लिए कुछ न कुछ ज़रूर करूँगा.
कुछ दिनों बाद गुरुदत्त को अपनी फिल्म के लिए एक शराबी की एक्टिंग करने वाले कलाकार की ज़रुरत पड़ी. दिलचस्प यह था कि इस फिल्म की कहानी बलराज ने ही लिखी थी.
उन्होंने गुरुदत्त के सामने बदरू को एक शराबी के रूप में पेश करने करने का प्लान बनाया.
उन्होंने बदरू से कहा कि तुम्हें फिल्म में एक शराबी का किरदार मिल गया है. फिर उन्हें गुरुदत्त के ऑफिस ले आये. बलराज ने उन्हें शराबी की एक्टिंग करने को कहा. गुरुदत कुछ लोगों के साथ अपने केबिन में थे.
जब बदरू ने शराबी की एक्टिंग करना शुरू किया तो सबने सोचा कि सच में एक बेवड़ा ऑफिस में घुस आया है. कुछ देर बीता तो गुरुदत्त को भी इस बारे में पता चला.
फिर, वो अपने केबिन से बाहर आ गये और एक शराबी की हरकतों को देखकर मज़ा लेने लगे. उन्हें भी यही लगा कि वाकई में कोई शराबी उनके ऑफिस घुस गया है. जब हद से ज्यादा हो गया तो उन्होंने बदरू को बाहर निकालने को कहा.
तभी बलराज ने सबको रोका और गुरुदत्त को उनके एक्टिंग के बारे में बताया. गुरुदत ये जानकर आश्चर्यचकित रह गए कि बिना शराब के एक शराबी कैसे इतनी अच्छी एक्टिंग कर सकता है.
इनकी एक्टिंग को देखकर गुरुदत्त ने अपनी फिल्म ‘बाजी’ में इनको ब्रेक दिया. इस फिल्म में उन्होंने अपने अभिनय का ऐसा जलवा बिखेरा कि दोबारा फिर वापस पीछे मुड़कर नहीं देखा.
कहते हैं कि इनकी एक्टिंग को देखकर गुरुदत्त ने प्रसिद्ध व्हिस्की ब्रांड ‘जॉनी वॉकर’ के नाम पर इनका नाम रखा था.
इनके एक गीत पर फाईनेंसर पैसा लगाने को थे तैयार!
इस फ़िल्म के बाद कंडक्टर बदरू फ़िल्मी जगत में जॉनी वॉकर के नाम से पहचाने गए. इसके बाद लगातार फिल्मों के ऑफर आने लगे. इन्होंने गुरुदत्त की कई फिल्मों में भी काम किया, जिनमें मिस्टर एंड मिसेज 55, प्यासा, कागज के फूल जैसी सुपर हिट फ़िल्में शामिल हैं.
इसके अलावा भी जॉनी वॉकर ने देवदास, मुगल-ए-आज़म और मेरे महबूब जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में अपने कॉमेडी से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया.
इसी कड़ी में दिलचस्प यह है कि एक दौर ऐसा भी आया जब उनकी हर फिल्म में एक गीत उन पर अवश्य फ़िल्माए जाते थे.
जो दर्शकों के बीच काफी पसंद भी किए गए. उन्हीं गीतों में सीआईडी फिल्म में उन पर फिल्माया गाना ‘ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, जरा हट के जरा बच के ये है बंबई मेरी जान’ और प्यासा फिल्म का ‘सिर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए’ गाने को इन्होंने अमर ही बना दिया था.
भारतीय सिनेमा जगत में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी हास्य कलाकार के लिए फिल्मों में एक गाना ज़रूर गाया जा रहा था. फाईनेंसर जॉनी के एक गीत के लिए फिल्मों में पैसा लगाने को तैयार रहते थे.
यहां तक कि उन पर एक गीत फिल्माए जाने की शर्त भी रख दिया करते थे.
कई हिट फ़िल्में दीं और...
जॉनी वॉकर ने अपने हास्य अभिनय से दर्शकों को सिनेमा घरों तक खींच ही लाते थे. एक के बाद एक हिट फ़िल्में देते रहे उम्र बढ़ी तो धीरे-धीरे फिल्मों से दूरियां भी बढ़ती गईं.
इन्होंने बॉलीवुड की 300 फिल्मों में काम किया. इनमें से अधिकतर फ़िल्में हिट रहीं. कुछ फिल्मों में मुख्य किरदार की भी भूमिका निभाई. साथ ही फिल्म ‘मधुमति’ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और फिल्म शिकार में हास्य कलाकार के लिए फिल्म फेयर अवार्ड से नवाज़ा गया.
वैसे तो जॉनी वॉकर ने 70 के दशक में फिल्मों से दूरियां बनाना शुरू कर दिया था. मगर, गुलजार और कमल हसन के बड़ी विनतियों के बाद आखिरी बार 1998 में चाची 420 में एक रोल निभाया था. पूरी जिंदगी लोगों को हँसाने वाले मशहूर व आला दर्जे के हास्य कलाकार जॉनी वाकर 29 जुलाई 2003 को सब को रोता छोड़ इस दुनिया से अलविदा कह गए.
इतने दशकों बाद भी भारतीय सिनेमा जगत में इनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.
Web Title: A Great Comedian Johnny Walker, Hindi Article
Feature Image Credit: top50/youtube.com