3 जून 1924 को भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता मुत्तुवेल करुणानिधि का जन्म हुआ. ये एक ऐसी शख्सियत हैं कि इनका तार्रुफ़ किसी का मोहताज नहीं रखता.
करुणानिधि तमिलनाडु के एक बड़े राजनेता होने के साथ ही लेखक भी थे. उन्होंने कई कहानियों व उपन्यास की रचना की थी. इसी के साथ ही इनका ताल्लुक फ़िल्मी दुनिया से भी रहा. उन्होंने कई फिल्मों व नाटकों की पटकथा भी लिखी.
मगर, इसके बावजूद करुणानिधि अपने विवादों और पारिवारिक जीवन को भी लेकर चर्चाओं में रहे.
ऐसे में हमारे लिए करुणानिधि की जिंदगी से रूबरू होना दिलचस्प होगा –
8 दशकों की सियासत में कभी नहीं मानी हार!
महज 14 साल की उम्र में करुणानिधि ने राजनीतिक गलियारों में अपना कदम रखा. यह वही दौर था जब मद्रास प्रेसिडेंसी स्कूल में हिंदी विषय को अनिवार्य बनाया गया था. ऐसे में वहां पर हिंदी विरोधी आंदोलन ने जन्म ले लिया. इस आंदोलन में करुणानिधि ने भी हिस्सा लिया.
उन्होंने सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध किया था. बाद में करुणानिधि ने छात्रों के लिए ‘तमिल स्टूडेंट फोरम’ के नाम से एक संगठन बनाया था. इसके बाद इनका राजनीतिक करियर समय दर समय परवान चढ़ता गया.
इनके राजनीतिक करियर में कोई ऐसा नेता नहीं पैदा हुआ, जिसने इन्हें सियासी मैदान में शिकस्त दिया हो.
ये अपने राजनीतिक करियर में 13 बार तमिलनाडु के अलग-अलग विधानसभा से विधायक चुने गए थे. करुणानिधि ने पहली बार 1957 में डीएमके पार्टी के टिकट से तमिलनाडु के कुलिथालाई विधानसभा से विधायक चुने गए. इसके बाद 1961 में पार्टी के कोषाध्यक्ष बने.
आगे, 1962 में दोबारा तंजावूर से विधानसभा गए. 1967 में जब डीएमके सत्ता में आई तो विधानसभा के सार्वजनिक कार्य मंत्री बने. उस दौरान करुणानिधि पार्टी का एक बड़ा चेहरा बन चुके थे.
जब 1969 में अन्नादुरई की मौत हुई, तो वे पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने.
मुख्यमंत्री बनने के बाद करुणानिधि ने जनता के बीच एक समाजिक और दमदार नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई. फिर, वो 5 बार तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए. इस दौरान उन्होंने कई सामाजिक व अन्य मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे.
ये अपने पूरे सियासी सफर में राज्यों की स्वायत्तता की वकालत करते रहे. दिलचस्प यह है कि, इनके प्रयास से ही स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राज्य के मुख्यमंत्री को झंडा फहराने का अवसर प्रदान किया गया.
करुणानिधि ने अपने राजनितिक सफर के दौरान एक लेखक के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई थी.
किताबें लिखीं और फिल्मों की पटकथा भी
करुणानिधि को बचपन से ही लिखने में बड़ी दिलचस्पी रही. दमदार नेता होने के साथ ही ये एक शानदार लेखक भी रहे, वहीं पत्रकार के तौर पर भी उनकी कई बड़ी उपलब्धियां रहीं. हिंदी विरोधी आंदोलनों के दौरान करुणानिधि ने एक पत्रिका भी निकाली थी.
इसी के साथ ही अपने पार्टी के अख़बार व अन्य कई पत्रिकाओं में अपना बहुमूल्य योगदान दिया. इसी के साथ ही उन्होंने कई सामाजिक पहलुओं व अन्य मुद्दों पर 100 से अधिक किताबें भी लिखी. इसके अलावा उन्होंने कई कविताओं की रचना भी किया.
इसी कड़ी में दिलचस्प यह है कि करुणानिधि की लेखनी सिर्फ किताबों या कविताओं तक ही सिमित नहीं रहीं. उन्होंने कई फिल्मों और नाटकों के लिए पटकथाएँ भी लिखी. करुणानिधि ने सबसे पहले ‘राजकुमारी’ फिल्म की पटकथा लिखी.
इसके बाद तो वे लगभग 75 पटकथाएँ लिखकर तमिल फिल्मों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इनकी कई फ़िल्में सुपर हिट भी रहीं. पटकथाओं के अलावा उन्होंने कुछ गीत भी लिखे थे. उनके एक गीत तो मशहूर संगीतकार ए आर रहमान ने संगीतबद्ध किया था.
कुल मिलकर भारतीय राजनीति के अलावा तमिल साहित्य में भी उनका भरपूर योगदान रहा. जिसमें कविताएँ, काव्य, उपन्यास, मंच नाटक, पटकथाएँ, गीत और डायलॉग शामिल हैं.
एक बेहतरीन लेखक व कद्दावर नेता होने के बावजूद इनका कई विवादों से भी नाता रहा.
विवादों से भी रहा नाता
करुणानिधि अपनी राजनीतिक पटकथाएँ व सियासी कार्यों की वजह से बहुत प्रशंसा बटोरी थी, मगर इस दौरान ये कई विवादों में भी घिरे रहे.
इन पर लगातार कांग्रेस पार्टी की तरह सियासत में परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है. इस आरोप को लगाने वाले में सबसे ऊपर नाम इनकी पार्टी के ही नेता रहे वाइको का आता है.
खैर, उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपना उत्तराधिकारी बेटे स्टालिन को बना दिया था. एक तरफ जहां इन पर वंशवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता रहा. वहीं परिवार को धोखा देने का भी आरोप इन पर लगाया गया.
करुणानिधि अपने भतीजे मुरोसिलिनी मारन को सियासत से दरकिनार करने व उनके दोनों बेटों को नज़रंदाज करने के लिए भी चर्चा में रहे. कहा जाता है कि, अपने बेटे के राजनीतिक करियर को बढ़ावा देने के लिए पार्टी के दमदार नेता रहे भतीजे मुरोसीलिनी को पार्टी से बाहर कर दिया था.
करुणानिधि के विवादों का सिलसिला यहीं नहीं थमा. 2001 में इन पर चेन्नई के एक फ्लाईओवर के निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया. इसके चलते इनको जेल भी जाना पड़ा था. इस केस में इन पर व पार्टी के अन्य सदस्यों पर आईपीसी की कई धाराएं लगाई गई थीं.
बहरहाल, कोई पुख्ता सबूत न मिलने की वजह से करुणानिधि और इनके बेटे बरी कर दिया गया था.
आगे, ये भगवान राम पर विवादित टिप्पणियों की वजह चर्चा में आयें. उन्होंने इनके बारे में कहा था कि “कहा जाता है कि कई साल पहले राम ने बिना छुए समुद्र में पत्थरों के पुल बनाये थे. आखिर ये राम कौन हैं और उन्होंने किस इंजीनियरिंग कालेज से डिग्री ली थी. क्या कोई इसका प्रमाण दे सकता है”?
इनके इस विवादित बयान की वजह से भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया था. विपक्षियों ने इन पर कई तीखी टिप्पणियां भी की थीं.
आगे, करुणानिधि एक बार फिर चर्चा में आये. इस बार वे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या को लेकर विवादों में घिरे. इन पर जस्टिस जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट के मुताबिक एलटीटीई को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था.
यह वही कमीशन थी, जिसे राजीव गाँधी हत्या कांड जाँच की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. वहीं लिबरेशन टाईगर्स ऑफ़ तमिल ईलम पर ही राजीव गाँधी की हत्या का आरोप लगा था. खैर, बाद में करुणानिधि ने अपने एक बयान में कहा था कि “प्रभाकरण मेरा अच्छा दोस्त है, मगर राजीव गाँधी की हत्या के लिए एलटीटीई को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता”.
इन सब के अलावा इनके और जयललिता के साथ राजनीतिक दुश्मनी के लिए भी इनको याद किया जाता है.
प्रेमिका को छोड़ की 3 शादियां
करुणानिधि एक तरफ जहां अपने विवादों को लेकर लगातार सुर्ख़ियों में बने रहे, वहीं अपने पारिवारिक जीवन को भी लेकर चर्चा का विषय बने थे.
उन्होंने कुछ साल पहले ही एक शादी समारोह के दौरान इस बात को कबूला था कि, उनकी एक प्रेमिका भी थी. वो अपने वसूलों की वजह से अपनी प्रेमिका से शादी नहीं कर पाए थे.
उन्होंने कहा था कि बात 1944 की जब मेरी प्रेमिका के घरवालों ने परंपरागत तरीके से शादी करने को कहा, मगर मेरे वसूल इसकी इजाज़त नहीं दे रहे थे. मैं चाहता था की मेरी शादी सादे ढंग से हो. मैं मंत्रोच्चारण और मंगलसूत्र जैसी चीजों की मुखालिफत करता था.ऐसे में मैंने अपने वसूलों के चलते अपने प्रेम का बलिदान दे दिया था.
खैर, बाद में उन्होंने तीन शादियाँ की थी. उनकी पहली पत्नी का नाम पद्मावती था. इनसे इनको बड़े बेटे एम के मुत्तु की प्राप्ति हुई थी.
हालांकि, पद्मावती की मृत्यू के बाद उन्होंने दो शादियाँ दयालु आम्माल, और राजात्तीयम्माल नामक युवतियों से की थीं. दयालु से इनको अजगिरी, स्टालिन, सेल्वी और दयालुअम्मल औलादें हैं, जबकि तीसरी पत्नी से इनको एक बेटी भी है.
एक बड़ी शख्सियत के धनी करुणानिधि ने 7 अगस्त 2018 को इस दुनिया में अलविदा कह दिया, मगर इनके किए गए महतवपूर्ण कार्यों के लिए इनको हमेशा याद किया जाता रहेगा.
Web Title: Karunanidhi Was A Big Leader of Indian Politics, Hindi Article
Feature Image Credit: drmaaleem