भारतीय राजनीति के एक लंबे भाग पर नेहरु-गाँधी परिवार का एकछत्र राज्य रहा है. नेहरु-गाँधी परिवार के भीतर आपस में सत्ता संघर्ष भी चले हैं. इनसे जुड़ी कहानियाँ गाहे-बगाहे बाहर भी आती रही हैं.
एक ऐसी ही कहानी मेनका गांधी से जुड़ी है. मेनका और संजय गांधी को आपस में प्यार हुआ था. संजय मेनका से उम्र में 11 साल बड़े और इंदिरा गाँधी के छोटे बेटे थे. दोनों की शादी के बाद संजय की मृत्यु हो गई. इसके बाद घर के भीतर परिस्थितियां ऐसी बिगड़ीं कि मेनका को घर छोड़ना पड़ा.
आखिर ऐसा क्यों हुआ? आईए इस लेख में विस्तार से जानते हैं…
मेनका और संजय की प्रेम कहानी
मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 के दिन दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के लॉरेंस स्कूल से पूरी की. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज में दाखिला लिया.
1973 में इसी कॉलेज में ‘मिस लेडी’ नाम की प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. मेनका ने इसे जीत लिया. शीघ्र ही उनके पास मॉडलिंग कंपनियों की तरफ से प्रस्ताव आने लगे. इसी क्रम में उन्होंने डेल्ही क्लास मिल्स नाम की एक तौलिया बनाने वाली फैक्ट्री के लिए बोल्ड विज्ञापन किया. इस विज्ञापन की होर्डिंग्स शहर में जगह-जगह लगी थीं.
कहा जाता है कि इन्ही विज्ञापनों को देखकर संजय मेनका पर मोहित हो गए. असल में संजय उन दिनों मेनका की चचेरी बहन वीनू कपूर के दोस्त थे. वीनू की शादी के अवसर पर एक कॉकटेल पार्टी में संजय की मुलाकात मेनका से हुई. यहाँ दोनों ने एक-दूसरे के साथ पूरी शाम गुजारी और अगले दिन फिर से मिलने का वादा किया.
इसके बाद दोनों की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और ये धीरे-धीरे प्यार में बदलने लगीं. इस बीच संजय का हार्निया का ऑपरेशन हुआ. मेनका रोज कॉलेज के बाद उन्हें देखने जाने लगीं.
इस समय तक दोनों पूरी तरह से प्यार में डूब चुके थे. जब दोनों के बीच प्यार अपने पूरे परवान पर चढ़ा, तो दोनों ने शादी करने का फैसला किया. इसके लिए संजय ने मेनका के पिता से उनका हाथ माँगा. मेनका के पिता ने कहा कि उन्हें तो शादी से कोई ऐतराज नहीं होगा, लेकिन संजय को एक बार मेनका की मां से बात करनी पड़ेगी.
शादी और संजय की मृत्यु
वहीं दूसरी तरफ जब इंदिरा गाँधी को पता चला कि उनका बेटा शादी करने जा रहा है, तब उन्हें ख़ुशी और चिंता एक साथ हुई. उनकी सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर थी कि संजय मेनका से उम्र में 11 साल बड़े हैं.
अपनी इसी चिंता को दिमाग में रखते हुए उन्होंने मेनका को घर बुलाया और उनसे कुछ सवाल किए. इन सवालों का उत्तर पाने के बाद उन्होंने शादी के लिए मंजूरी दे दी. आखिर 29 सितंबर 1974 के दिन दोनों की शादी हो गई. यह शादी इंदिरा गांधी के विश्वसनीय दोस्त मोहम्मद युनुस के घर पर संपन्न हुई. इससे प्रेस को दूर रखा गया.
इंदिरा ने मेनका को उपहार स्वरुप 21 साड़ियाँ, दो गोल्ड सेट और जवाहरलाल नेहरु द्वारा जेल में बुनी गई एक साड़ी दी. इसके बाद कई लोगों ने कयास लगाया कि यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी. हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ. यह शादी काफी अच्छी चली. दोनों को जल्द ही एक बेटा हुआ. बेटे का नाम वरुण गांधी रखा गया.
शादी के बाद असली गड़बड़ संजय गांधी की मौत के बाद शुरू हुई. 1980 में एक हवाई दुर्घटना में संजय की मृत्यु हो गई. इसके बाद इंदिरा गांधी को यह आशंका हुई कि मेनका की मां उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में संजय की जगह लेने के लिए कहेंगी.
संजय इंदिरा के बहुत करीब थे. कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान संजय ने ही उसका जिम्मा संभाला था. संजय की मृत्यु के बाद इंदिरा चाहती थीं कि उनका बड़ा बेटा राजीव गांधी संजय की जगह ले. वहीं मेनका के मन में भी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया था. अब कहानी रोचक मोड़ पर आ गई थी.
इंदिरा और मेनका के बीच टकराव
इसी समय जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह, जो गाँधी परिवार के बहुत करीब थे, ने मेनका के समर्थन में एक लेख लिख दिया. इस लेख में उन्होंने लिखा कि संजय की विरासत राजीव की जगह मेनका को ही मिलनी चाहिए. इसके पीछे उन्होंने वजह यह बताई कि राजीव ने अभी तक राजनीति में कोई रूचि नहीं दिखाई है, वहीं मेनका ने हमेशा संजय का साथ दिया.
इसी लेख में उन्होंने मेनका को ‘शेर पर सवार दुर्गा’ भी बताया. इससे इंदिरा गांधी नाराज हो गईं. इससे पहले 1971 में हुए युद्ध के बाद इंदिरा को ही दुर्गा की उपाधि मिली थी. इंदिरा को लगा कि मेनका उनसे उनकी जगह छीनना चाहती हैं. अब दोनों महिलाएं एक-दूसरे के सामने थीं. विडंबना यह थी कि दोनों ने जी भरकर संजय को चाहा था.
एक ने बेटे के रूप में और दूसरी ने प्रेमी और पति के रूप में.
सास और बहू के बीच अनबन लगातार बढ़ती ही जा रही थी. इसी बीच संजय गांधी के ऊपर एक किताब प्रकाशित की जानी थी. मेनका ने इंदिरा गांधी से इस पुस्तक का परिचय लिखने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया.
इसके बाद 1982 में लखनऊ में अकबर अहमद ने एक सभा का आयोजन किया था. अकबर अहमद संजय गांधी के पुराने साथी थे. इंदिरा ने इस सभा को पार्टी विरोधी बताया था. अकबर ने इस सभा में मेनका को आमंत्रित किया . इंदिरा गांधी ने मेनका को हिदायत दी थी कि वे इस सभा में कोई भाषण न दे. लेकिन मेनका ने इंदिरा के आदेश के विपरीत जाते हुए भाषण दिया.
अगले दिन इंदिरा उनके ऊपर खूब गुस्सा हुईं. इंदिरा ने मेनका को घर छोड़ देने का आदेश दिया.
मेनका ने बिना किसी प्रतिवाद के घर छोड़ दिया. जिस घर में उनका स्वागत कई उपहारों के साथ किया गया था, उसी घर से उन्हें अपना सामान बाँध कर निकलना पड़ा.
आगे मेनका गाँधी ने राष्ट्रीय संजय मंच नाम के राजनीतिक दल की स्थापना की. आगे वे जनता दल से जुड़ीं. वर्तमान में वे एनडीए के नेतृत्व में केंद्र में सत्तासीन सरकार में वे महिला एवं बाल कल्याण मंत्री हैं.
Web Title: Why Maneka Gandhi Had To Leave Gandhi Family, Hindi Article
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