मॉब लिंचिंग!
भीड़ का ऐसा व्यवहार जो एक इंसान को मौत के घाट उतार देता है. कहते हैं भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, न ही दिमाग होता है. वह बेवकूफ होती है. वाकई में ?
हाल ही में, राजस्थान के अलवर में भीड़ द्वारा एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी. जिसने एक बार फिर मॉब लिंचिंग के मामले को गरमा दिया है. इससे पहले भी बीते वर्षों में इस तरह के कई मामले सामने आए. जिन्होंने देश को हिलाकर रख दिया.
ऐसे में, शायद कानून की गैर-मौजूदगी लोगों को भीड़ में अपराध करने की मानसिकता को बढ़ावा दे रही है.
यही वजह है इस तरह की नफरत से भरी घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके खिलाफ कानून बनाने के निर्देश दिए हैं.अमेरिका और नाइजीरिया भी इसके खिलाफ एक कानून बनाने को प्रयत्नशील हैं.
तो आइये, मोब लिंचिंग से जुड़े कानूनी पहलुओं को टटोलने की कोशिश करते हैं-
जब अमेरिका में चरम सीमा पर थी मॉब लिंचिंग
19वीं शताब्दी के आखिरी दशकों में अमेरिका में मॉब लिंचिंग चरम सीमा पर थी. वहां के दक्षिणी और सीमावर्ती राज्यों में अश्वेत लोगों को आतंकित किया जाता था. उस दौर में वहां श्वेत लोग अपना दबदबा बनाए रखने के लिए इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देते थे.
साल 1882 और 1968 के बीच 4,742 लिंचिंग के केस सामने आये थे. इसके साथ ही, यह एक बहुत ही संस्थागत गतिविधि बन गयी थी. जिसमे गोरे लोग अश्वेत लोगों के साथ बहुत ही ज्यादा दुर्व्यवहार और मॉब लिंच करने लगे थे. इसकी वजह से अमेरिकी समाज दिन-प्रतिदिन नियंत्रण से बाहर होता जा रहा था.
लिंचिंग में लोग या भीड़ व्यक्ति को किसी जुर्म का दोषी मानते हुए उसकी सार्वजनिक तौर पर हत्या कर देते थे. इन सार्वजनिक हत्याओं के दौरान वे कई क्रूर और बर्बर तरीके भी अपनाते थे.
इन तरीकों में वे ज्यादातर लोगों को फांसी पर लटकाते या शूट कर देते. ऐसा भी होता था जब भीड़ इन दोनों तरीकों से लोगों की हत्या कर रही थी. इसके साथ ही, वहां लोग जिंदा जलाने, और निर्मम शारीरिक उत्पीड़न देते हुए हत्याएं करने लगे थे. जो कि वहां के समाज के एक घिनौने चेहरे को दिखा रहा था.
लिंचिंग का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में होने लगा था. जिसमें लोग अमेरिका में अपनी नस्ल या सर्वोच्चता को बनाए रखने के लिए इसे एक सबसे आसान उपाय समझते थे. इसके, साथ ही वह लिंचिंग को अश्वेतों को कंट्रोल करने का एकमात्र तरीका मानते थे.
श्वेत महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर अश्वेत लोगों की हत्या!
बताते चलें कि उस समय और भी लोगों को लिंच किया गया था. मॉब लिंचिंग का शिकार कुछ श्वेत लोगों को भी बनाया गया था. मगर यह आंकड़ा लगभग एक-तिहाई का हुआ करता था. जिसका अर्थ है कि अधिकतर मामले अश्वेतों के ही खिलाफ हुआ करता थे.
एक जातिवाद मिथक, जिसमें अश्वेतों के बारे में यह समझा जाता था कि उनके अंदर श्वेत महिलाओं से बलात्कार करने की अनियंत्रित इच्छा होती है. इसी मिथक को आधार बनाकर अश्वेतों की हत्या की जा रही थी.
हालांकि, मर्डर और किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार को भी लिंचिंग का कारण बताया जाता था. भीड़ ये आरोप इसलिए भी लगाती थी क्योंकि बलात्कार जैसे गंभीर आरोपों के बाद आगे की जांच से वे लोग बच जाते थे. यह आरोप है ही इतना गंभीर.
इन आरोपों पर एक गहरी चोट हुई. साल 1882 और 1927 के बीच हुई हत्याओं का डाटा आया. इस आंकड़े के अनुसार महिलाओं की हत्या का नंबर चौंकाने वाला था. दरअसल, जहां एक ओर 76 अश्वेत महिलाओं की हत्या हुई तो वहीँ दूसरी ओर केवल सोलह वाइट महिलाओं की हत्या हुई.
ये उपरोक्त आंकड़ा देने का मकसद ये है कि रेप को आधार बनाकर हत्या करना सिर्फ एक बहाना था. इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं की हत्या भी उनकी घिनौनी नफरत ही दिखाती है.
कानून बनाने के करीब 200 असफल प्रयास
अमेरिका के नेशनल एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ कलर्ड पीपल (NAACP) ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए अहम भूमिका निभायी.
NAACP ने साल 1909 में एक अंतरजातीय नागरिक अधिकार विरोध संगठन स्थापित किया. जिसमें अश्वेतों के खिलाफ लिंचिंग और अन्य अपराधों की पूरी तरह से जांच की. साथ ही, सामने आए तथ्यों से जनता को भी सूचित करने काम किया. साल 1918 में सी डायर ने 'डायर एंटी-लिंचिंग एक्ट' का प्रस्ताव संसद में रखा था.
उनका यह काम देश को जागृत करने में जबर्दस्त प्रभावी साबित हुआ. इसके साथ ही, वहां NAACP ने साल 1919 में अमेरिका में तीस साल की लिंचिंग प्रकाशित की. इस प्रकाशन में लिंचिंग से जुड़े हर पहलू को उजागर किया गया.
NAACP ने ही साल 1921 में डायर एंटी-लिंचिंग एक्ट और लिंचिंग को फेडरल अपराध बनाने जैसे अन्य कानून बनाने की मांग शुरू की. इसी का नतीजा था कि 1922 में डायर एंटी-लिंचिंग बिल हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में पारित किया गया.
यह बिल लिंचिंग के खिलाफ दंड के रूप में जुर्माना और कारावास प्रदान करता.
लेकिन, दक्षिणी सीनेटरों के फाइलबस्टर द्वारा सीनेट में इस बिल का विरोध हुआ. जिन्होंने दावा किया कि यह कानून असंवैधानिक और राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन होगा. हालांकि, डायर एंटी-लिंचिंग बिल की लंबी चर्चा हिंसा में गिरावट के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी.
आज भी करीब 200 असफल प्रयासों के बाद भी, संसद में इसे पास करने का मुद्दा उठता ही रहता है.
नाइजीरिया में भी इस पर कानून बनने की चर्चा
नाइजीरिया में अक्सर भीड़ चोरी के इलज़ाम लगाते हुए किसी भी व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डालते हैं. वहां वह कानून अपने हाथ में लेते हुए इस तरह के अपराध अंजाम देते हैं.
वैसे तो यहाँ, कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. परन्तु साल 2014 में हुए एक सर्वे के अनुसार, नाइजीरिया में 43% लोगों ने ये माना कि उन्होंने मॉब लिंचिंग की घटना अपनी आँखों से देखी है. वहां पर लोगों की भीड़ ने अपना जंगल राज कायम कर रखा है.
इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए नाइजीरियाई संसद में एक नया बिल डाला गया है. इस एंटी-मोब लिंचिंग एक्ट ने हाल ही में सीनेट में अपनी दूसरी रीडिंग को पारित किया. जल्द ही शायद वहां ये कानून के रूप में लागू हो जाएगा.
इस बिल के अंदर भीड़ द्वारा किये गए अपराध पर कार्रवाई का प्रावधान है. अपराध की श्रेणी में दंगा, शारीरिक नुकसान और किसी भी तरह से संपत्ति को नुक्सान पहुंचाना है.
इसके साथ ही, इन तीनों आपराधिक अपराधों में से किसी एक को उत्तेजित करने के दोषी पाए गए व्यक्ति को आजीवन कारावास या 25 साल की सजा मिलेगी.
सबसे दिलचस्प बात , यह बिल निर्धारित करता है कि एक सुरक्षा अधिकारी जो हमले को रोकने या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए उचित प्रयास करने में विफल रहता है, उसे पांच साल की कारावास मिलेगी.
इन सबके अलावा, इसमें आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है. जिसमें 500,000 (यूएस $ 1400) तक जुर्माना लगाया जाएगा. एक सुरक्षा अधिकारी जो एक असाधारण हमले में भाग लेता है, या षड्यंत्र करता है और रोकथाम में नाकाम रहता है. उसे बर्ख़ास्तगी और 15 साल की कारावास की सजा है.
मॉब लिंचिंग के लिए कानून जरुरी क्यों?
कहा जाता है कि यह भीड़ द्वारा किया जाता है, चूँकि यह भीड़ करती है इसीलिए इसमें सजा का प्रावधान कैसे किया जा सकता है.
साथ ही, यह कभी भी योजना के साथ किया हुआ हमला नहीं होता. यह अचानक ही अनियंत्रित भीड़ का गुस्सा या भड़की हुई भीड़ की बर्बरता होती है.
इसी सोच के सिक्के को ज़रा पलट दीजिए. ये एक नए चेहरे के साथ आपके सामने आएगा. बी वेल्स की स्पीच के अनुसार, यह भीड़ इस तरह परिभाषित होगी कि भीड़ का चेहरा होता है. यह भीड़ बहुत शांत और बुद्धि का प्रयोग करती है. वो इतनी चालाक होती है कि हर कदम नाप-तौल कर रखती है.
ये भीड़ जानती है कि संविधान में उनके इस अपराध के खिलाफ कोई कानून ही नहीं है, एक लिखित कानून. उनकी यही सोच उन्हें ताकत देती है. किसी भी व्यक्ति को मुजरिम साबित करने की, उसे सजा देने की और इस भीड़ की अदालत में आपको अपना पक्ष रखने की भी इजाज़त नहीं होती.
इस अदालत में तुरंत सजा दी जाती है, वो भी मौत की. अब आप चाहे दोषी हो या न हो. इन बातों द्वारा कहने का यही मतलब है कि इस समस्या का कहीं न कहीं एक उपाय है लिखित कानून, जो इस भीड़ की नाक में नकेल बांध सके.
शायद भारत को भी इस पर कानून बनाने से काफी हद तक मदद मिले. अमेरिका के मामले में सक्रियता से बिल पर शुरू हुई इस चर्चा ने ही इन घटनाओं पर लगाम लगा दी थी.
ऐसे में, एक संपूर्ण कानून बेहद लाभकारी हो सकता है. खैर, ये तो वक़्त ही बता पाएगा.
Web Title: Mob Lynching In World And Laws Related To it, Hindi Article
Feature Image Credit: dnaindia