राम-सीता, रामायण और रावण को हम क्या, सारा जमाना जानता है… लेकिन अब राम, रामायण से ज्यादा चर्चा ‘रामसेतु’ की है. यह चर्चा तब और बढ़ गयी जब हाल ही में एक साइंस चैनल ने रामसेतु पर अपनी एनालिसिस प्रस्तुत की. इसमें बताया गया है कि रामसेतु का कांसेप्ट झूठ नहीं है, बल्कि उस जगह पर ऐसी संरचना है, जो भारतीय जनमानस में व्याप्त रामसेतु के कांसेप्ट को बल प्रदान करती है.
चर्चा-विवाद और तर्क के पीछे भले ही सीधे तौर पर राजनीतिक दलों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा हो, किन्तु थोड़ा पीछे जाकर देखें तो हम पाएंगे कि यह मुद्दा 1860 से ही चला आ रहा है.
‘रामसेतु’ को हमने और आपने रामायण में टीवी पर देखा है. इस लिहाज से उसको लेकर हमारी अपनी धार्मिक धारणाएं हैं, जैसे कि इसे ‘नल व नील नामक’ दो वानरों की मदद से बनाया गया. इसी को पार करते हुए भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की थी.
वहीं विज्ञान इसे मानव निर्मित बताता है.
अब सच क्या है, आईये धार्मिक और वैज्ञानिक मतों में ढूंढने की कोशिश करते हैं–
धार्मिक धारणाओं में ‘रामसेतु’
धार्मिक धारणाओं की मानें तो लंका पर चढ़ाई करने के लिए वानर सेना द्वारा ‘रामसेतु’ को पांच दिन में तैयार कर लिया गया था. इसको बनाने में नल व नील नामक दो वानरों का खास योगदान रहा. इन दो वानरों ने मिलकर इस पुल का निर्माण किया था.
इन दो वानरों के हाथ पत्थरों को तैरने के लायक बना देता था.
असल में ‘रामायण’ के मुताबिक ‘नल’ व ‘नील’ बदमाश बंदर थे, जोकि ऋषि-मुनियों के सामान को पानी में फेंक देते थे. इससे तंग आकर मुनियों ने ‘श्राप‘ दिया कि इनका फेंका हुआ सामान पानी में कभी नहीं डूबेगा. इस कारण जब उनके द्वारा पत्थरों को समुद्र में फेंका गया, तो पत्थर पानी के ऊपर तैरते रहे.
परिणाम यह हुआ कि वह लंका तक एक पुल बनाने में कामयाब रहे. यह पुल कोई और नहीं रामसेतु ही बतायी जाती है.
Monkeys Build Ramsetu (Pic: commons)
‘रामसेतु’ के वैज्ञानिक पहलू
उपरोक्त वर्णित धारणाओं के विपरीत विज्ञान कहता है कि पत्थरों का तैरना जादूगरी नहीं, बल्कि इन खास पत्थरों का निर्माण ज्वालामुखी के कारण होता है. इन खास पत्थरों को ‘प्यूमाइस स्टोन‘ कहते हैं. इस कारण ये पत्थर पानी में डूबते नहीं है.
रामसेतु को लेकर ऐसा कहा जाता है कि, सात हजार साल पुरानी है… तो किसी का मानना है 17लाख बरस पुरानी है.
‘रामसेतु’ कितना पुराना है… यह गुत्थी भले ही ना सुलझी हो, लेकिन अब तक सामने आए तथ्यों के आधार कहा जा सकता है कि, ‘रामसेतु’ केवल धर्मग्रंथ में नही है… यह केवल कल्पना नही बल्कि जमीनी हकीकत है. पहले मत के अनुसार 1993 में नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली-सी द्वीपों की रेखा देखी गई, उसे आज ‘रामसेतु’ माना जाता है.
वहीं, दूसरी तरफ विशेषज्ञों के अनुसार भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है. समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है. इसे भारत में ‘रामसेतु’ व दुनिया में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है.
‘रामसेतु’ के टूटने का दावा और…
इतिहासकार और पुरातत्वविद प्रोफ़ेसर माखनलाल के अनुसार, 1480 में आए एक तूफ़ान में ये पुल काफ़ी टूट गया. इसके अलावा रामसेतु को लेकर एक और दिलचस्प पहलू पढ़ने को मिलता है, जो हैरान कर देने वाला है. माना जाता है कि एक 1860 के आसपास एक ‘ब्रितानी कमांडर’ ने ‘रामसेतु’ को तोड़ने का मसौदा तैयार किया था.
यह उस वक्त की बात है, जब व्यापार के उद्देश्य से ब्रिटेन ने भारत को गुलाम बना लिया था. इसके आरंभ में समुद्री व भौगोलिक जानकार एडी टेलर कमांडर नियुक्त किया गया. यही वह कमांडर था, जिसने 1860 में अपनी सरकार को एक प्रस्ताव सौंपा.
कहते हैं कि इस प्रस्ताव में रामसेतु को तोड़ने का प्लान दिया गया था. हालांकि, कुछ कारणों से वह अपने इरादों में कामयाब नहीं हो सका. साथ ही यह प्रस्ताव सिर्फ एक कागज का टुकड़ा बनकर रह गया.
Mysterious Facts about Ramsetu (Representative Pic: Bhavanajagat)
सबसे बड़े ‘शिपिंग हार्बर’ की ओर
धार्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं के बीच भारत सरकार ‘रामसेतु’ के लिए 2005 में ‘सेतुसमुद्रम’ परियोजना लेकर आई. इसके तहत तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने की प्लान तैयार किया गया है. मतलब ‘रामसेतु’ के कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के लायक बनाये जाने की बात कही गयी.
माना जा रहा था कि इससे रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा. वहीं ‘तूतीकोरन हार्बर‘ एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाएगा.’ एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाएगा. यही नहीं कहा जा रहा है कि ‘सेतुसमुद्रम’ परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगे और 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग कर पाएंगे.
इसके चलते 19वें वर्ष तक 5000 करोड़ से अधिक के व्यवसाय की संभावना है. जबकि, इसके निर्माण में 2000 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है.
हालांकि, ‘सेतुसमुद्रम’ की प्रगति आस्था व पर्यावरण के कारण बहुत सुस्त है. भले ही इससे करोड़ की कमाई दिख रही है, लेकिन पर्यावरण व आस्था के आगे इनका मोल ‘ना’ के तुल्य है.
Ramsetu (Pic: Ournagpur)
अब रामसेतु यात्रा धर्म से शुरू होकर विज्ञान-भूगोल तक आ गई है. राम नाम के ‘पत्थर’ और ‘नल-नील’ के शापित हाथ का कमाल हमने पढ़ा, लेकिन विज्ञान का प्रयोग भी देख लिया.
देखना होगा कि आने वाले दिनों में रामसेतु पर चलने वाली चर्चा और एक्शन किस दिशा में मुड़ता है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि श्रीलंका और भारत के जुड़ाव में यह सकारात्मक भूमिका निभा सकता है.
Web Title: Mysterious Facts about Ramsetu, Hindi Article
Feature Image Credit: Firstpost