प्रत्येक वर्ष सावन शुरू होते ही कावड़ियों के अनेक जत्थे अनेक स्थानों से गंगाजल लेने निकल पड़ते हैं. इस गंगाजल का प्रयोग स्थानीय जगहों पर स्थापित शिवलिंगों को स्नान करवाने में किया जाता है.
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार ऐसा करने पर पुण्य मिलता है. अपने घर से शुरू कर पवित्र स्थान से गंगाजल लाने और वापस लौटने की यह पूरी यात्रा कांवड़ यात्रा कहलाती है. गंगाजल को मटकों में भरकर बांस के पतले डंडो पर लटकाया जाता है.
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस यात्रा को पैदल ही पूरा करने का विधान है.
किन्तु, क्या आप जानते हैं कि इस कांवड़ यात्रा को लेकर कई सारी रोचक कहानियां प्रचलित है.
अगर नहीं!
तो आइए जानते हैं -
समुद्र मंथन से निकला विष, तो...
कांवड़ यात्रा के संबंध में जो मिथकीय कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है, वह समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे और समुद्र से विभिन्न वस्तुएं निकल रही थीं.
इसी बीच में विष भी निकला. यह विष इतना तेज था कि इसकी गर्मी से पूरी श्रृष्टि झुलसने लगी थी. कोई भी इसे छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. अगर यह ज्यादा देर तक पृथ्वी पर रहता, तो सम्पूर्ण श्रृष्टि का विनाश निश्चित था.
ऐसे में देवताओं ने इस संकट का हल निकलने के लिए भगवान शिव से गुहार की.
इसके बाद भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में एकत्रित कर लिया. इसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया. भगवान शिव को इसकी वजह से अपने कंठ में जलन महसूस होने लगी.
आगे इस जलन का प्रभाव कम करने के लिए देवताओं ने उनके ऊपर गंगाजल डाला. कहा जाता है इस कारण ही आज भगवान शिव के भक्त शिवलिंग को गंगाजल से स्नान करवाते हैं. यहीं से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा था.
श्रवण कुमार और कांवड़ यात्रा
वहीँ कांवड़ यात्रा की एक कहानी श्रवण कुमार से भी जुड़ी हुई है. त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने द्रष्टिहीन माता-पिता को विभिन्न तीर्थस्थानों की यात्रा पर ले गए थे. उन्होंने अपने पिता को बहुत सारे तीर्थस्थानों के दर्शन करवा दिये थे.
इसी क्रम में वे हिमाचल प्रदेश के ऊना में थे. यहाँ उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जताई. श्रवण कुमार ने इस अपने माता-पिता की इस इच्छा का सम्मान किया और उन्हें कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार ले गए.
वहां उन्होंने माता-पिता को स्नान करवाया. कहा जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की इस परम्परा ने जन्म लिया.
आगे इन्हीं श्रवण कुमार को राजा दशरथ ने धोखे से मार दिया था. इस कारण श्रवण कुमार के माता-पिता ने उन्हें पुत्र-वियोग सहने का श्राप दिया था. बाद में भगवान राम के वनवास पर चले जाने से उनके वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गई थी.
परशुराम ने शिव को कराया था जल से स्नान
कांवड़ परम्परा की एक मिथकीय कहानी भगवान परशुराम से भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि भगवान परशुराम के ह्रदय में भगवान शिव के लिए अनन्य श्रद्धा थी. जब वे पृथ्वी लोक पर थे, तो अक्सर भगवान शिव की पूजा किया करते थे.
एक बार भगवान परशुराम ने भगवान शिव के प्रति अपनी श्रृद्धा प्रकट करने के लिए उन्हें पवित्र गंगाजल से स्नान करवाया था. कई धार्मिक विद्वानों का यह भी मानना है कि भगवान परशुराम ही सबसे पहले कांवड़िये थे.
उन्होंने ही सबसे पहले कांवड़ में गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पास स्थित ‘पूरा महादेव’ का जलाभिषेक किया था. यह गंगाजल परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से लाए थे. आज भी लोग इस स्थान से गंगाजल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं.
बताते चलें कि आज गढ़मुक्तेश्वर को बृजघाट के नाम से भी जाना जाता है.
रावण ने शुरू की थी यह परंपरा
रावण को शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है. कहा जाता है कि उसने तपस्या करके भगवान शिव से कई वरदान प्राप्त किए थे. उसका पुत्र मेघनाद जब भगवान राम के विरूद्ध युद्ध लड़ने के लिए जा रहा था.
तभी उसने ही उसे भगवान शिव की पूजा करने की सलाह दी थी. बाद में भगवान शिव ने मेघनाद को अमोघ शक्ति प्रदान की थी, जिसका प्रयोग मेघनाद ने लक्ष्मण को मूर्छित करने के लिए किया था.
कहा जाता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को जब महादेव ने अपने कंठ में भर लिया. बाद में उन्हें पीड़ा होने लगी तो रावण से यह देखा न गया. उसने पहले तो तप किया और बाद में गंगाजल को कांवड़ में भर लाया.
इस गंगाजल से उसने पूरा महादेव की शिवलिंग का जलाभिषेक किया. इसके बाद ही भगवान शिव की पीड़ा समाप्त हुई!
राम ने किया शिवलिंग का जलाभिषेक
वहीँ एक अन्य कथा में भगवान राम को सबसे पहला कांवड़िया माना जाता है. भगवान राम जब वनवास पर थे, तब उन्होंने रावण की बहन शूर्पनखा के नाक और कान काट दिए थे.
इस कृत्य का बदला लेने के लिए रावण ने उनकी पत्नी माता सीता का अपहरण कर लिया था.
माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाने के लिए भगवान राम ने उसके ऊपर युद्ध घोषित कर दिया था. इस युद्ध में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए भगवान राम ने शिव की पूजा की और शिवलिंग को गंगाजल से स्नान करवाया.
भगवान राम झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाए. इसके बाद उन्होंने बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया. कहा जाता है कि यहीं से कांवड़ की शुरुआत हुई.
आगे प्रभु श्रीराम समुद्र पार कर लंका पहुंचे और उन्होंने रावण का वध किया. इसके बाद वे माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौट आए. उन्होंने विभीषण को लंका का राजा बना दिया था.
ये थीं कांवड़ से जुड़ीं कुछ प्रचलित कहानियां.
अगर आप भी किसी ऐसी कहानी के बारे में जानते हैं, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Mythological Stories Related To Kanwar Yatra, Hindi Article
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