आज हम जिस शख्स की बात करने जा रहे हैं, उसने अपनी खुली आँखों से सपने देखे. साथ ही इन सपनों को पूरा करने के लिए उसने न केवल कड़ी मेहनत की, बल्कि जोखिम भी उठाए.
उसे जब लगा कि अभी जिस जगह वह है, वहां उसके सपने कभी पूरे नहीं हो पाएंगे, तो उसने वो जगह तुरंत छोड़ दी. बिना इसकी परवाह किए कि आगे उसके साथ बहुत बुरा भी हो सकता है.
आज वह तकनीक की दुनिया में सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाला व्यक्ति है. जी हां, यहां बात हो रही है निकेश अरोड़ा!
तो आईए जानते हैं निकेश की कहानी...
पार्ट टाइम जॉब के साथ की पढ़ाई
निकेश अरोड़ा का जन्म 9 फरवरी 1968 को गाज़ियाबाद में हुआ. इनके पिता भारतीय वायुसेना में अधिकारी थे. इसलिए इन्हें बचपन से ही तकनीक वाले माहौल में पलने-बढ़ने का माहौल मिला.
निकेश ने दिल्ली के एयरफ़ोर्स स्कूल में अपनी शुरूआती पढाई की. इसके बाद ये 1998 में आईआईटी बीएचयू चले गए. वहां से उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की. इसके तुरंत बाद ही उन्हें विप्रो में नौकरी मिल गई.
ये विप्रो की नौकरी से खुश नहीं थे. उन्हें कुछ बड़ा करना था, इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चले गए. वहां उन्होंने बोस्टन कॉलेज और नार्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी में बिजनेस मैनेजमेंट की पढाई की.
निकेश ने अपने जीवन का असली संघर्ष उन्हीं दिनों किया.
असल में इस दौरान निकेश ने शादी कर ली थी, लेकिन उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं था. उनका परिवार उनकी पढ़ाई पर पहले ही बहुत खर्चा कर चुका था, इसलिए निकेश को उनसे पैसा माँगना भी अच्छा नहीं लग रहा था.
फिर भी उनके पिता ने उन्हें 3,000 यूरो दे दिए. निकेश नहीं चाहते थे कि वे अपने पिता की कमाई पर ज्यादा दिन गुजारा करें, इसलिए उन्होंने पार्ट टाइम जॉब करना शुरू किया. वे बर्गर किंग में बर्गर बेचते और लोगों के घरों को देख-रेख करते.
जल्द ही उन्हें फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट में बतौर एनलिस्ट नौकरी मिल गई. यहां उनकी तनख्वाह 42,000 डालर सालाना थी. यह निकेश की आशा से कम थी, लेकिन वे अब अपने पैरों पर खड़े थे. इस नौकरी के साथ निकेश ने अपनी पढाई भी चालू रखी.
वे दिन में नौकरी करते और रात में पढ़ाई करते.
...और आखिर रंग लाई मेहनत
कहते हैं कि कठिन परिश्रम कभी भी बेकार नहीं जाता है. निकेश की मेहनत भी रंग लाई और उन्होंने अपनी क्लास में टॉप किया. 1995 में निकेश ने चार्टर्ड फाइनेंशियल एनलिस्ट की पढ़ाई पूरी कर ली.
अब वे ऐसी स्थिति में थे, जहाँ से सिर्फ आगे बढ़कर अपने सभी सपनों को पूरा किया जा सकता था. फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट में काम करने के दौरान निकेश अपनी मेहनत से कम्पनी के उप- प्रमुख बन गए थे.
किन्तु, जल्द ही उन्होंने इस कंपनी को भी छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने पटनम इन्वेस्टमेंट को ज्वाइन किया. यहां भी ये ज्यादा दिनों तक नहीं टिके और डॉयचे टेलीकॉम पहुंचे. डॉयचे टेलिकॉम में काम करते-करते उन्हें मोबाईल तकनीक के क्षेत्र में महारत हासिल हो गई.
इसके साथ ही उनके पास अब अच्छा-खासा पैसा भी इकट्ठा हो गया, इसलिए अब उन्होंने खुद की मोबाईल कंपनी खोलने की सोची. उन्होंने यह विचार अपने दोस्तों को बताया. दोस्तों को यह जंचा नहीं.
उनके दोस्तों ने उन्हें गूगल कंपनी में काम करने की सलाह दी.
इस तरह वे गूगल के साथ जुड़ गए. गूगल में उन्होंने करीब एक दशक तक काम किया. उन्होंने यहाँ पहले टॉप सेल्स एक्जीक्यूटिव और फिर वाइस प्रेसिडेंट की हैसियत से काम किया.
इसी क्रम में वे 2013 में गूगल के सबसे ज्यादा तनख्वाह पाने वाले कर्मचारी बन गए. असल में उनके रहते कंपनी को बहुत मुनाफा हुआ. इस समय इनकी तनख्वाह 345 करोड़ रुपए सालाना थी.
गूगल को छोड़ने के बाद क्या...
2014 में निकेश ने गूगल को छोड़ दिया. इसके पीछे का कारण यह रहा कि कंपनी के मुनाफे में कमी आने लगी थी. उसके इन्वेस्टर्स घट रहे थे. विज्ञापन देने वाले लगातार कम हो रहे थे. इस साल गूगल की कुल कमाई 15.61 बिलियन डॉलर रही. जबकि, कम्पनी को आशा थी कि यह 15.91 बिलियन डॉलर होगी. इसके साथ ही पेड क्लिक्स की संख्या में कमी आ रही थी.
गूगल को छोड़ने के बाद उन्होंने जल्द ही जापान की इन्टरनेट इन्वेस्टमेंट कम्पनी सॉफ्टबैंक को ज्वाइन कर लिया.
बताते चलें कि सॉफ्टबैंक का सॉफ्टवेयर तकनीक के क्षेत्र में एक अलग ही नाम है.
इस कंपनी में जाते ही निकेश ने इसके 482 मिलियन डालर के शेयर खरीद लिए. इससे कंपनी के बॉस का उनपर भरोसा बढ़ा और उन्हें कंपनी की नम्बर दो पोजीशन पर नियुक्त कर दिया गया. इस नियुक्ति के तुरंत बाद ही निकेश ने भारत और इंडोनेशिया में इन्वेस्टमेंट की बाढ़ ला दी.
सॉफ्टबैंक ने ओला, ओयो रूम्स, ग्रूफेर्स, स्नैपडील, फ्लिप्कार्ट, हाउसिंग डॉट कॉम, पेटीएम, बिग बास्केट इत्यादि में जम कर इन्वेस्ट किया. आगे जैसे-जैसे ऑनलाइन मार्किट का दायरा बढ़ा, वैसे- वैसे इन इन्वेस्टमेंट्स से सॉफ्टबैंक को बहुत मुनाफा हुआ. इस मुनाफे की वजह से निकेश के संबंध कम्पनी के मालिक मायाशोसी सन से बहुत अच्छे हो गए.
दोनों साथ में लंच और डिनर करने लगे. दोनों अक्सर एक साथ पैदल ही लंबी- लंबी दूरी तय करते. उनके बीच कम्पनी के भविष्य को लेकर भी बातें होतीं. इसी क्रम में आगे मायाशोसी सन ने निकेश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इसके साथ ही निकेश 2015 में सॉफ्टबैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बन गए.
निकेश अब बहुत खुश थे. आखिर वे अब सॉफ्टबैंक के मालिक बनने जा रहे थे.
सॉफ्टबैंक के मालिक बनने ही वाले थे, लेकिन...
2016 की शुरुआत तक सब ठीक था. फिर एक दिन अचानक मायाशोसी सन ने निकेश से कहा कि वे अभी अपनी कंपनी को और चलाना चाहते हैं. कम से कम पांच साल और. इस पर निकेश ने कहा कि इस कंपनी को अब या तो वे या फिर मायाशोसी ही चला सकते हैं. दोनों एक साथ काम नहीं कर सकते हैं. आगे बात नहीं बनी, तो निकेश ने सॉफ्टबैंक को छोड़ दिया.
असल में बात ये थी कि मायाशोसी और निकेश के बीच कम्पनी की इन्वेस्टमेंट नीतियों को लेकर भारी मतभेद पैदा हो गए थे. खासकर भारत में इन्वेस्टमेंट को लेकर. मायाशोसी का कहना था कि हमें भारत में अपनी इन्वेस्टमेंट को और बढ़ाना चाहिए. जबकि, निकेश इसके खिलाफ थे. निकेश का इसके पीछे तर्क था कि मोदी सरकार ने बीते कुछ समय में भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पीछे धकेला है, इसलिए हमने, जिन स्टार्टअप्स में इन्वेस्ट किया है, उनमें से बहुत सारे जल्द ही डूब जाएंगे.
खैर, सॉफ्टबैंक को छोड़ने के बाद निकेश अभी हाल में पालो अल्टो नेटवर्क नाम की कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने हैं. यह कम्पनी सिक्यूरिटी सॉफ्टवेयर बनाने का काम करती है. इसके साथ ही निकेश अब तकनीक की दुनिया में सबसे अधिक सैलरी पाने वाले सीईओ भी बन गए हैं. 6 जून को पद संभालते ही इन्हें 858 करोड़ रुपए प्रति साल की सैलरी मिली है.
इसके साथ ही इन्हें 12.6 करोड़ डालर की इक्विटी भी मिली है. इससे पहले एप्पल के सीईओ टिम कुक ही निकेश से ज्यादा सैलरी पाने वाले व्यक्ति थे. कुक की सालाना सैलरी 119 मिलियन डालर थी.
तो ये थी निकेश अरोड़ा की कहानी.
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Web Title: Nikesh Arora: From Part Time Job To Highest Paid CEO, Hindi Article
Feature Representative Image Credit: fortune